अजय खरे
रीवा । विंध्यांचल जन आंदोलन के नेता अजय खरे ने कहा है कि छत्रपति शिवाजी महाराज का उदाहरण देकर संघ परिवार के लोग माफी मांगने को रणनीति बता रहे हैं जबकि शिवाजी ने कभी माफी नहीं मांगी । मुगल शासक औरंगजेब के दरबार में जाने पर जब शिवाजी को उचित सम्मान नहीं मिला तो उन्होंने इसका प्रतिकार किया जिसके चलते वे बंदी बना लिए गए लेकिन वह आगरा के बंदी गृह से चकमा देकर भाग निकले और जीवन पर्यंत बादशाह औरंगजेब से संघर्ष करते रहे । शिवाजी ने कभी माफी नहीं मांगी जबकि आजादी के आंदोलन से लेकर अभी तक उनके नाम का दुरुपयोग करने वाले माफीखोरों की लंबी लिस्ट तैयार हो गई है। ऐसे लोग शिवाजी के नाम का इस्तेमाल करके अपने पापों को छिपाने का कुत्सित प्रयास करते दिखाई देते हैं । श्री खरे ने कहा कि शिवाजी की तुलना माफीखोरों से करना अत्यंत आपत्तिजनक और घोर निंदनीय कृत्य है।
श्री खरे ने कहा कि देश की राजनीति में माफीखोरों की एक जमात है जिसके चलते आजादी के आंदोलन से लेकर अभी तक गंदगी फैलाई जा रही है । उन्होंने बताया कि चटगांव सशस्त्र विद्रोह के क्रांतिकारी दिनेश दासगुप्त जबअंडमान निकोबार दीप समूह की जेल में काला पानी की सजा काट रहे थे उस वक्त वहां बंद विनायक दामोदर सावरकर जेल से छूटने के लिए ब्रिटिश हुकूमत को माफी भरे अत्यंत शर्मनाक पत्र लिख रहे थे। पत्रकार गंगा प्रसाद जी ने दिनेश दास गुप्त क्रांतिकारी और समाजवादी किताब की भूमिका में लिखा कि दादा ने देश में सबसे अधिक समय तक सत्ता में रहने वाली पार्टी का लगातार विरोध किया था। 1977 में हुए व्यापक राजनीतिक उलटफेर के मद्देनजर समाजवादी बदलाव होने की उम्मीदें जगीं लेकिन दो ढाई साल बाद जो निराशा हुई वह धीरे-धीरे बढ़ी है । अब तो राजनीतिक , सामाजिक हर क्षेत्र में संकट ही संकट है । दादा के रहते ही 1998 में देश में ऐसी पार्टी सत्ता में आई जिसका सीधा संबंध ऐसे संगठन से है , जिस पर अंग्रेजों का साथ देने और गांधी की हत्या करने का आरोप है । दादा ने आखिर तक उस संगठन और उनके लोगों का विरोध किया । फिर वही पार्टी केंद्र में 10 साल बाद सत्ता में आ गई लेकिन दादा नहीं हैं। दादा के तेवर आख़री समय तक क्रांतिकारी रहे । 15 अगस्त 2003 को तत्कालीन राष्ट्रपति अबुल पाकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान किया तो उन्होंने दिनेश दा को भी आमंत्रित किया । कलाम जब उन्हें सम्मानित कर रहे थे तब उन्होंने राष्ट्रपति का ध्यान अंडमान के शहीद पार्क में स्थापित विनायक दामोदर सावरकर की मूर्ति की ओर दिलाया और मांग की कि वहां से सावरकर की मूर्ति को हटाया जाए। इस पर राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार को जांच पड़ताल के आदेश दिए । उस समय अटल बिहारी वाजपेई प्रधानमंत्री थे । केंद्र सरकार ने सावरकर की मूर्ति हटाने की बजाय यह बहाना बनाया कि अंडमान में केंद्र सरकार की ओर से सावरकर की मूर्ति की स्थापना नहीं की गई है। दिनेश दा ने अटल बिहारी बाजपेई को इस बारे में पत्र लिखा लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया। दिनेश दा ने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सामने भी यही मांग रखी। उन्होंने संसद के सेंट्रल हॉल में भी सावरकर की तस्वीर हटाने की मांग की ।अंडमान सेल्यूलर जेल में लगी पट्टिका से सावरकर का नाम हटाने और सावरकर के नाम पर पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डे के रखे नाम को बदलने की भी मांग की थी ।
श्री खरे ने कहा कि इधर राहुल गांधी भी भारत जोड़ो पदयात्रा के महाराष्ट्र में प्रवेश के बाद सावरकर के माफीनामे और आजादी के आंदोलन में संघ परिवार की गद्दार भूमिका का जिस तरह खुलासा कर रहे हैं वह काबिले तारीफ है । इस बात को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा एवं उससे जुड़े संगठन राहुल गांधी पर हमलावर हो गए हैं लेकिन इसकी परवाह किए बिना वह अपनी पदयात्रा में खुलकर इस बात को उठा रहे हैं । निश्चित रूप से इतिहास का यह सच सामने आना चाहिए कि देश के आजादी के आंदोलन के दौरान किन लोगों ने माफी मांगी थी और देश के साथ गद्दारी की थी। देश के लोगों को गद्दारों की वंशावली का पता होना भी बहुत जरूरी है।