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 गिरफ्तारी की मांग करना कोर्ट का काम नहीं … स्वामीनाथन अय्यर

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मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी आर. बी. श्रीकुमार को अहमदाबाद की एक अदालत ने 14 दिन के लिए जेल भेज दिया है। उन्हें 2002 के गुजरात दंगों के मामले में कथित तौर पर साक्ष्य गढ़ने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। तीस्ता को रिहा करने की मांग करते हुए कई शहरों में प्रदर्शन हुए हैं। लोगों ने सवाल उठाए कि सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य को गोधरा कांड में SIT की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किया और कुछ ही घंटों में तीस्ता और श्रीकुमार के खिलाफ केस दर्ज हो गया। कई संगठनों ने सवाल उठाते हुए कहा, ‘अगर अन्याय के खिलाफ लड़ाई का अपराधीकरण किया गया तो इससे वे क्या संदेश देंगे कि हम सांप्रदायिक दंगों के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते? पीड़ितों के साथ कोई खड़ा नहीं हो सकता?’ जानेमाने एक्सपर्ट स्वामीनाथन एस. अय्यर ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में लेख लिखकर सवाल उठाया है। वह लिखते हैं कि इंसाफ की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं को आरोप लगाने के वाले की जगह आरोपी मानने के खिलाफ सैकड़ों प्रतिष्ठित लोगों ने आलोचना की है। उन्होंने लिखा है कि कोर्ट का काम किसी की गिरफ्तारी की मांग करना नहीं है।

तीखी टिप्पणी कर सकती थी अदालत…
अय्यर लिखते हैं कि सीतलवाड़ ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेष जांच दल (SIT) ने 2008 में गुजरात दंगों में मिलीभगत के लिए राज्य सरकार को दोषमुक्त करने में गलती की थी, और सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के फैसले में एसआईटी के रुख को बरकरार रखते हुए गलती की। उन्होंने नए सिरे से जांच की मांग की थी। उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट के जजों को दोषमुक्ति के बावजूद पुराने मामले को बार-बार उठाए जाने पर आपत्ति थी तो वे कुछ तीखी टिप्पणियों के साथ सीतलवाड़ की याचिका को खारिज कर सकते थे या मामले को सुनने से भी इनकार कर सकते थे।

किसी गुप्त उद्देश्य के लिए मामले को जारी रखने की गलत मंशा से प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल करने वालों को कठघरे में खड़ा करके उनके खिलाफ कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए।

सनसनी पैदा करने को झूठे दावे
अय्यर कहते हैं कि इसके बजाय जज खुद ही आरोप लगाने वाले बन गए, शिकायतकर्ताओं पर ‘सनसनी’ पैदा करने के लिए झूठे दावे करने का आरोप लगाया। उनके फैसले में कहा गया है, ‘वास्तव में, प्रक्रिया के इस तरह के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कठघरे में खड़ा करने और कानून के अनुसार कार्रवाई करने की आवश्यकता है।’ दरअसल, देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि गुजरात में 2002 के दंगों पर झूठे खुलासे कर सनसनी पैदा करने के लिए राज्य सरकार के असंतुष्ट अधिकारियों को कठघरे में खड़ा किए जाने और उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करने की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि उसे राज्य सरकार की इस दलील में दम नजर आता है कि संजीव भट्ट (तत्कालीन आईपीएस अधिकारी), हरेन पांड्या (गुजरात के पूर्व गृह मंत्री) और आरबी श्रीकुमार (अब सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी) की गवाही मामले को केवल सनसनीखेज बनाने और इसके राजनीतिकरण के लिए थी, जबकि यह झूठ से भरा था।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल में जाकिया जाफरी की याचिका खारिज करते हुए कहा था कि कुछ लोग कड़ाही लगातार खौलाते रहना चाहते हैं। इस टिप्पणी को तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ के संदर्भ में माना गया। गैर-सरकारी संगठन सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस की सचिव सीतलवाड़ पर झूठे तथ्यों और दस्तावेजों को गढ़ने, गवाहों को प्रभावित करने और 2002 के गुजरात दंगों के मामलों में लोगों को फंसाने के लिए झूठे सबूत गढ़कर कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने का आरोप है।

क्या पुलिस ने गलत समझा?
स्वामीनाथन ने कहा, ‘गिरफ्तारी के बारे में सुनकर मेरी पहली प्रतिक्रिया यह थी कि पुलिस ने जजमेंट की गलत व्याख्या की। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर ने एक इंटरव्यू में कहा कि कोर्ट ने सीतलवाड़ को गिरफ्तार करने का ऐसा कोई आदेश नहीं दिया। उन्होंने उम्मीद जताई कि जज इस आशय को लेकर स्पष्टीकरण जारी करेंगे। लेकिन हम दोनों गलत थे।’

लोकुर से जब पूछा गया कि अगर उन्हें पता चले कि जजों ने वास्तव में सीतलवाड़ की गिरफ्तारी का आदेश दिया था तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी। उन्होंने चिंता के भाव में जवाब दिया, ‘ईश्वर मदद करे।’

गिरफ्तारी की मांग करना कोर्ट का काम नहीं
स्वामीनाथन लिखते हैं कि किसी भी शख्स की गिरफ्तारी की मांग करना अदालतों का काम नहीं है। यह काम पुलिस का है। वह लिखते हैं कि SIT ने 2009 की अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया था कि सीतलवाड़ ने झूठे दावे किए, कहानियां गढ़ीं और गवाहों को प्रभावित किया। ऐसा लगता है कि कोर्ट इस बात से हैरान दिखा कि इसके लिए उनके खिलाफ कोई मुकदमा नहीं हुआ। लेकिन झूठे दावे और कहानियां बनाना तो लाखों कोर्ट केस में आम बात है। अगर पुलिस हर झूठे दावे पर इस तरह से काम करने लगे तो उसके पास दूसरी चीजों के लिए समय ही नहीं बचेगा। वे आमतौर पर झूठे आरोप लगाने वाले को छोड़ देते हैं तो यह मामला अलग क्यों होना चाहिए?

तीस्ता अकेली नहीं…
अय्यर लिखते हैं कि सीतलवाड़ गुजरात सरकार की इकलौती आलोचक नहीं हैं। 2004 के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट के दो जजों ने गुजरात सरकार की यह कहकर आलोचना की थी, ‘आधुनिक नीरो कहीं और देख रहे थे जब बेस्ट बेकरी और मासूम बच्चे और असहाय महिलाएं जल रही थीं।’ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस वीके कृष्णा अय्यर की अध्यक्षता वाली सिटिजंस ट्राइब्यूनल ने गुजरात सरकार की आलोचना की थी, तो क्या सीतलवाड़ के साथ इन सभी के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए?

अय्यर कहते हैं कि अदालत ने सीतलवाड़ को ‘इस प्रक्रिया में शामिल हर पदाधिकारी की सत्यनिष्ठा पर सवाल उठाने की ढिठाई’ के लिए भी फटकार लगाई है। वह लिखते हैं, ‘क्षमा करें लेकिन उदार लोकतंत्र में इस तरह की ढिठाई या साहस करना एक मौलिक अधिकार है।’

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