अग्नि आलोक

 बहुत जरूरी है स्वामी विवेकानंद के विचारों पर एक नजर डालनी

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,मुनेश त्यागी 

     हम अपने बचपन से ही बहुत सारे साधू सन्यासियों के बारे में पढ़ते और सुनते चले आ रहे हैं मगर उन सब में सबसे ज्यादा हमें स्वामी विवेकानंद के विचारों ने प्रभावित किया है और उनके विचार आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं। स्वामी विवेकानंद ने अपने समय में फैले हुए सभी शोषण, जुल्म, गैर बराबरी और मानव विरोधी विचारों का विरोध किया था। यही कारण है कि आज की शासक शक्तियां  स्वामी विवेकानंद के विचारों को जैसे भूल गई हैं। अब तो वे उनके विचारों पर या स्वामी विवेकानंद पर कोई चर्चा ही नहीं करना चाहती हैं। हमारा मानना है कि हमें स्वामी विवेकानंद के विचारों पर बार-बार विचार करना चाहिए क्योंकि उनके विचार आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं।

      स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि अगर कोई यह सपना देखा है कि अकेला उसका ही धर्म बचा रहे और दूसरे धर्म नष्ट हो जाएं तो मैं दिल की गहराइयों से उस पर तरस खाऊंगा और उसे बताना चाहूंगा कि जल्द ही सारे प्रतिरोध के बावजूद हर एक धर्म के झंडे पर यही लिखा जाएगा,,,,, सहायता न की लड़ाई, मेल मिलाप न की विनाश एवं  सौंदर्य एवं शांति न की असंतोष।

      12 जनवरी 1863 को महान संत स्वामी विवेकानंद का जन्मदिन मनाया जाता है। उन्होंने अपने जीवन में बहुत सारी बातें कही हैं, बहुत सारे भाषण दिए हैं। उन्होंने भारतीय समाज को सजग बनाने की बातें कही हैं।

     वे भारतीय समाज के पिछड़ों, शोषितों, अभावग्रस्तों, जुल्मों सितम और अन्याय के शिकार के लोगों के वकील थे। वे भारत से शोषण, जुल्म, दास्तां, गरीबी, अन्याय और छुआछूत का अंत चाहते थे।

     कट्टरता, पोंगापंत, धर्मांधता और सांप्रदायिकता के विरुद्ध एक धधकती मशाल हैं स्वामी विवेकानंद और उनके विचार। उन्होंने अंधविश्वासियों पर चोट करते हुए कहा था कि मैं अंधविश्वासियों की जगह अनीश्श्वरवादियों को देखना ज्यादा पसंद करूंगा क्योंकि वे तर्क, विवेक और बुद्धि में विश्वास करते हैं। वे जीवित तो हैं।

     रूस में समाजवाद आने से पहले ही स्वामी विवेकानंद अपने को समाजवादी कहते थे। वे कहते थे कि “इसलिए नहीं कि यह व्यवस्था पूर्णतया परिपूर्ण है, बल्कि इसलिए कि एक भी रोटी न होने से आधी रोटी ही भली है।” उन्होंने यह भी कहा था कि मानव जाति को मुक्त करने के लिए अंततः शूद्रों यानी मेहनतकशों का राज होगा। उन्होंने कहा था कि दुखियों, पीड़ितों, मजदूरों और निर्धनों की सेवा करने से ही असली सुख मिलता है।

      ईश्वर में अविश्वास प्रकट करते हुए वे कहते थे कि मैं यह स्वीकार नहीं करता कि,,,,

” जो ईश्वर मुझे यहां रोटी नहीं दे सकता, वह स्वर्ग में मुझे अनंत सुख देगा।” अभी आगे कहते हैं,,,” भूख से पीड़ित आदमी को धर्म के उपदेश नहीं, भरपेट रोटी चाहिए।”

     उन्होंने चेतावनी भी दी थी यदि गरीबों को उनका हक न दिया गया तो एक दिन जाग्रत और संगठित होकर इस देश के स्वामी बन जाएंगे।

सांप्रदायिक, जातिवादी, भ्रष्टाचारी और जनता का शोषण करने वाली ताकतें आज स्वामी विवेकानंद के विचारों पर गंभीर कुठाराघात कर रही हैं, उनके विचारों, सिद्धांतों और सपनों को रौंद रही है।

   ये ताकतें आज भी जनविरोधी नीतियों का पालन कर रही हैं। इनकी नीतियों के कारण समाज में शोषण, जुल्म, अन्याय, अत्याचार बढ़ रहे हैं। जनता गरीब से गरीब होती जा रही है, असमानता अपने चरम पर है और आर्थिक संपन्नता चंद लोगों तक सिकुड़ कर रह गई है।

      भारत की जनता इन सब चीजों को समझ रही है और वह अपना उजला भविष्य बनाने को संघर्षरत है। आज हमारा देश उसी तरह बढ़ रहा है। स्वामी जी की भविष्यवाणियां सही साबित हो रही हैं। हम आज देख रहे हैं कि स्वामी विवेकानंद के विचारों और सिद्धांतों पर चलकर ही भारत को एक उन्नत, समतावादी, समानतावादी, विकासशील और जनवादी ताकत वाला देश बनाया जा सकता है।

    स्वामी विवेकानंद जनजागृति और जन संघर्ष करने में विश्वास करते थे तभी तो वह कहते थे,,, 

उठो जागो और तब तक नहीं रुको 

जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए। 

     उनका कहना था कि आदमी जैसा चाल चलन चलेगा, जैसा व्यवहार करेगा और जैसी सोच बनाएगा वह ऐसा ही हो जाएगा। अगर आदमी की सोच निर्बल होगी, तो वह निर्बल हो जाएगा और अगर वह उसकी सोच सबल होगी, तो वह शक्तिशाली हो जाएगा। वे कहते हैं,,,,” तुम जैसा सोचोगे वैसा ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल हो जाओगे।”

      स्वामी विवेकानंद आदमी में विश्वास करते थे। वे “आदमी” को ही भगवान समझते थे। उनका कहना था कि,,,,” मैं उस प्रभु का सेवक हूं जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहते हैं।”

     स्वामी विवेकानंद अपनी पूरी जिंदगी सीखने की प्रक्रिया में लगे रहे और वे अनुभव को ही श्रेष्ठ शिक्षक मानते थे। उनका कहना था कि,,,, “जब तक जीवन है सीखते रहो, क्योंकि अनुभव ही सबसे श्रेष्ठ शिक्षक है।

    स्वामी विवेकानंद भूख और अज्ञानता से नफरत करते थे। उनका कहना था कि,,,,” जब तक करोड़ों लोग भूख और अज्ञानता से ग्रस्त हैं, मैं हर उस व्यक्ति को विश्वासघातक मानता हूं जो उन लोगों की तनिक भी परवाह नहीं करता, जिनकी कीमत पर वह शिक्षित हुआ है।”

     स्वामी विवेकानंद हर इंसान की शिक्षा में विश्वास करते थे। वह हमेशा एक शिक्षित समाज के लिए संघर्ष करते रहे। उनका कहना था कि,,, यदि गरीब शिक्षा के लिए आ सकते हैं तो शिक्षा को उनके खेत तक, उनके कारखाने तक, हर जगह पहुंचना चाहिए।”

      उनके कुछ महत्वपूर्ण और उपयोगी व शानदार उद्धरण निम्न प्रकार हैं,,,,”उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए,,”विनम्र बनो,साहसी बनो और 

शक्तिशाली बनो।,,
“हम हिंदू भी नहीं हैं,
वेदांतिक भी नहीं हैं,
असल में हम छुआछातपंथी हैं।,,

     स्वामी विवेकानंद विचारों के धनी थे। वे सभी अनपढ़, गरीब, अछूत, शोषित और पीड़ित सबका उद्धार चाहते थे, सबका कल्याण करना चाहते थे। वे सारी जिंदगी इसके लिए प्रयासरत रहे। उनकी याद में हम तो यही कहेंगे,,,,

याद में हम तो यही कहेंगे,,,,
शब्दों से सबको राह दिखाते थे
विचारों के धनी थे विवेकानंद,
ऐसे युग प्रवर्तक थे विवेकानंद
सबका भला चाहते थे विवेकानंद।

    स्वामी विवेकानंद एक बहुत ही गंभीर बात कहते हैं। वे कहते हैं कि भारत में गरीबों में इतने मुसलमान क्यों हैं? यह सब मिथ्या बकवास है कि तलवार की धार पर उन्होंने धर्म बदला। जमीदारों और पुरोहितों से अपना पिंड छुड़ाने के लिए ही उन्होंने ऐसा किया और फलत: आप देखेंगे कि बंगाल में जहां जमींदार अधिक हैं वहां हिंदुओं से अधिक मुसलमान किसान हैं।

      स्वामी विवेकानंद के बारे में उपरोक्त जानकारी हासिल करने के बाद यह बात निर्वादित रूप से सही है कि स्वामी विवेकानंद अपने विचारों और आदर्शों में सब सन्यासियों से सबसे आगे थे। वे भारत से शोषण, अन्याय, जुल्म, और गैरबराबरी खत्म करके एक समरस समाज की स्थापना चाहते थे। इसी कारण उनके तमाम विचार आज भी प्रासांगिक बने हुए हैं।

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