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मोदी ने चांस दिया तो ‘डिप्‍लोमेसी के बाहुबली’ बन गए जयशंकर

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बात 2012 की है। करीब एक दशक से गुजरात का मुख्‍यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी कई देश घूम आए थे। उस वक्‍त तक उनकी छवि पर 2002 दंगे और अमेरिका का वीजा न देना हावी थे। कई जगह भारतीय राजदूतों से मोदी को उचित प्रोटोकॉल नहीं मिला, मगर 2012 का चीन दौरा अलग रहा। वहां बतौर राजदूत भारतीय विदेश सेवा (IFS) के सीनियर अधिकारी एस जयशंकर तैनात थे। जयशंकर ने चीन की ऐसी-ऐसी हस्तियों से मोदी की मुलाकात कराई कि वे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाए। वहां से दोनों के बीच ऐसी पर्सनल केमिस्‍ट्री बनी कि जब मोदी सत्‍ता में आए तो जनवरी 2015 में सुजाता सिंह को हटाकर जयशंकर को विदेश सचिव बना दिया गया। उस वक्‍त भले ही कांग्रेस प्रवक्‍ताओं ने सिंह को अचानक हटाने का विरोध किया हो, मगर दबी जुबान में मनमोहन कैबिनेट के मंत्रियों ने कहा कि वे इस बदलाव से खुश हैं।

फॉरेन पॉलिसी पर PM मोदी के गो-टू मैन हैं जयशंकर

जयशंकर से मोदी के पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह भी खासे इम्‍प्रेस थे। इतने कि 2013 में विदेश सचिव के लिए जयशंकर ही उनकी पहली पसंद थे, मगर सोनिया गांधी ने मनमोहन के हाथ बांध दिए। नतीजा नियुक्ति कांग्रेस के पुराने वफादार और पूर्व आईबी चीफ टीवी राजेश्‍वर की बेटी सुजाता सिंह की हुई। मोदी ने पीएम बनने के बाद जयशंकर को जो जिम्‍मेदारी सौंपी, वे उसपर पूरी तरह खरे उतरे। एनडीए-1 में सुषमा स्‍वराज के मातहत काम करते हुए जयशंकर की भूमिका पीएम के अनऑफिशियल एडवाइजर की रही। 2019 में जब सुषमा की जगह भरने की बात आई तो मोदी ने फिर जयशंकर पर भरोसा किया। करीब तीन साल के कार्यकाल में जयशंकर ने साबित कर दिया है कि वह इस पद के लिए बेस्‍ट चॉइस थे।

मनमोहन की पसंद पर सोनिया का ‘वीटो’

1977 बैच के IFS अधिकारी एस जयशंकर 2013 में विदेश सचिव बनने की रेस में सबसे आगे थे। वह तत्‍कालीन पीएम मनमोहन सिंह की पहली पसंद थे, मगर जयशंकर को करीब रख नहीं पाए। वजह, सुजाता सिंह। उस वक्‍त सिंह सबसे सीनियर IFS अधिकारी थीं और जर्मनी में राजदूत के रूप में तैनात थी। सीनियॉरिटी का हवाला देकर उन्‍होंने पद पर दावा ठोका और यह कहा कि अगर उन्हें नजरअंदाज किया गया तो इस्‍तीफा दे देंगी।

ऐसा नहीं कि मनमोहन के पास मिसाल नहीं थी। यूपीए-1 में ही दर्जन भर IFS अधिकारियों को किनारे कर शिवशंकर मेनन को विदेश सचिव बनाया गया था। तब कई इस्‍तीफे हुए थे मगर स्‍टैंड नहीं बदला। हालांकि 2013 आते-आते कहानी बदल चुकी थी। यूपीए-2 संकट में थी। ऐसे में IFS अधिकारियों का विरोध सहना उसे हितकर नहीं लगा।

सुजाता कांग्रेस के पुराने नेता और पूर्व आईबी प्रमुख टीवी राजेश्‍वर की बेटी थीं। चर्चा थी कि उनकी लॉबीइंग कांग्रेस नेतृत्‍व तक से हुई। रिपोर्ट्स के मुताबिक, मनमोहन की चॉइस पर यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने वीटो कर दिया और सुजाता को विदेश सचिव बना दिया गया।

एस जयशंकर का बायोडाटा क्‍या बताता है?

मोदी-जयशंकर की जोड़ी ने किया फॉरेन पॉलिसी को रीवैम्‍प

2015 में विदेश सचिव बनने के बाद जयशंकर ने MEA और प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की दूरियां कम कीं। वह फॉरेन पॉलिसी पर मोदी के अनऑफिशियल एडवाइजर बनते चले गए। विदेश दौरे पर जयशंकर PM मोदी के साथ रहते थे जबकि आमतौर पर विदेश सचिव ऐसी यात्राओं पर नहीं जाते। मोदी और जयशंकर ने साथ में हिंद महासागर क्षेत्र, कनाडा, दक्षिण कोरिया, अफ्रीका, पश्चिम एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों का दौरा किया।

सितंबर 2016 में नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे का क्रेडिट जयशंकर को ही मिला। तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति बराक ओबामा के साथ दो मुलाकातों (सितंबर 2014 में वॉशिंगटन और जनवरी 2015 में दिल्‍ली) के पीछे भी जयशंकर ही थे। मोदी तेज काम करने में यकीन रखते हैं, नए आइडिया एक्‍सप्‍लोर करते हैं, ग्‍लोबल मैप पर भारत की ताकत दिखाना चाहते हैं, जयशंकर उनके लिए एकदम सही सलाहकार साबित हुए।

एस जयशंकर की पहचान ऐसे डिप्‍लोमेट की रही है जो किसी भी राजनीतिक नेतृत्‍व और उसके विजन से तालमेल बैठा लेते थे। जयशंकर बेहद विद्वान अधिकारियों में गिने जाते थे। विदेश मंत्रालय का काम संभालने के बाद फॉरेन पॉलिसी में उनके ‘रियलिस्टिक अप्रोच’ की साफ झलक मिलती है।

अमेरिका के साथ जयशंकर का पुराना कनेक्‍शन

जयशंकर इन दिनों अपने अमेरिका दौरे के चलते सुर्खियों में है। अमेरिका के साथ जयशंकर का पुराना कनेक्‍शन है। 1981 से 1985 के बीच विदेश मंत्रालय मुख्‍यालय में अंडर सेक्रेटरी (अमेरिका) और पॉलिसी प्‍लानिंग में रहते हुए जयशंकर का पहली बार सुपरपावर से पाला पड़ा। फिर 1985 से 1988 तक जयशंकर को वाशिंगटन स्थित दूतावास में फर्स्‍ट सेक्रेटरी बनाकर भेजा गया। फिर 2007 से 2007 के बीच MEA में जॉइंट सेक्रेटरी (अमेरिका) रहते हुए जयशंकर उन चुनिंदा लोगों में थे जो भारत-अमेरिका न्‍यूक्लियर डील पर नेगोशिएट कर रहे थे।

सिर्फ अमेरिका ही नहीं, चीन के बारे में भी जयशंकर की डिप्‍लोमेटिक समझ के लोग कायल हैं। 1978 में सोवियत युग के मॉस्‍को से अपना करियर शुरू करने वाले जयशंकर फर्राटे से रशियन बोलते हैं। हाल ही में यूक्रेन-रूस युद्ध के बीच, जयशंकर ने रूस और अमेरिका दोनो को साध रखा है जो उनकी काबिलियत साबित करता है।

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