Site icon अग्नि आलोक

 न्यायपालिका और कार्यपालिका एक बार फिर नए टकराव की ओर

Share

जेपी सिंह

देश में ईवीएम की धांधली से चुनावों की सुचिता पहले से ही सवालों के घेरे में है। इस बीच मोदी सरकार चुनाव आयोग चयन समिति से सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को हटाने के लिए राज्यसभा में एक बिल पेश कर रही है। इससे जहां चुनावों में निष्पक्षता पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग रहा है वहीं न्यायपालिका और कार्यपालिका एक बार फिर नए टकराव की ओर बढ़ रही है। केंद्र सरकार एक ऐसा विधेयक लाई है जो चीफ जस्टिस को देश के शीर्ष चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया से बाहर कर देगा।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 गुरुवार को राज्यसभा में पेश किया जा रहा है। इसमें प्रस्ताव है कि मतदान अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक पैनल की सिफारिश पर की जाएगी। प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित केंद्रीय कैबिनेट के मंत्री इसके सदस्य होंगे। प्रधानमंत्री पैनल की अध्यक्षता करेंगे। अभी तक इस समिति में चीफ जस्टिस भी हैं। लेकिन जब यह विधेयक कानून बन जाएगा तो चीफ जस्टिस इस समिति का हिस्सा नहीं होंगे।

दरअसल इस विवादास्पद विधेयक का मकसद सुप्रीम कोर्ट के मार्च 2023 के फैसले को कमजोर करना है जिसमें एक संविधान पीठ ने कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष और सीजेआई वाले पैनल की सलाह पर की जाएगी।

मोदी सरकार के इस कदम ने सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के बीच नए सिरे से टकराव की स्थिति तैयार कर दी है। राज्यसभा में अभी जो स्थिति है, उसके हिसाब से सरकार यह विधेयक भी पास करा लेगी। लेकिन यह अलोकतांत्रिक होगा, क्योंकि आखिर सीजेआई को इस पैनल से हटाने पर सरकार क्या कुछ हासिल कर लेगी। सरकार अब जो नया पैनल बनाने का इरादा रखती है, उसके जरिए उसे अपने मन माफिक मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव अधिकारियों की नियुक्तियों का अधिकार मिल जाएगा। उस पर टोका-टाकी करने वाले सीजेआई नहीं होंगे।

यह बिल ऐसे समय लाया जा रहा है जब पूरे विपक्ष का ध्यान अविश्वास प्रस्ताव की बहस पर है। जाहिर सी बात है कि राज्यसभा में हर समय सदन स्थगित किए जाने या सदन बहिष्कार की स्थिति बनी रहती है। सरकार इन हालात का फायदा उठाकर इस बिल को पास कराना चाहती है।

तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने कहा है कि ‘बीजेपी खुलेआम 2024 के चुनाव में धांधली की कोशिश कर रही है। मोदी सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेशर्मी से कुचल दिया है और चुनाव आयोग को अपना चमचा बना रही है। उन्होंने कहा कि गुरुवार को राज्यसभा में पेश किए जा रहे एक विधेयक में, मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 ईसी की नियुक्ति के लिए चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर एक केंद्रीय मंत्री को शामिल किया गया है’।

उन्होंने कहा कि ‘जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा था कि समिति में (ए) भारत के मुख्य न्यायाधीश, (बी) पीएम (सी) विपक्ष के नेता शामिल हों। विधेयक में मोदी सरकार ने चीफ जस्टिस की जगह “एक केंद्रीय मंत्री” को शामिल कर दिया है। इस तरह अब मोदी और 1 मंत्री पूरे चुनाव आयोग की नियुक्ति करेंगे। इंडिया गठबंधन द्वारा भाजपा के दिल में डर पैदा करने के बाद यह 2024 के चुनावों में धांधली की दिशा में एक स्पष्ट कदम है।

कॉलेजियम के जरिए जजों की नियुक्तियों से लेकर दिल्ली सेवा अधिनियम जैसे विवादास्पद कानूनों तक, कई मुद्दों पर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के बीच खींचतान चल रही है। कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच लंबा विवाद चला। तत्कालीन कानून मंत्री किरण रिजिजू का मंत्रालय इस चक्कर में छीन लिया गया।

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने एक सर्वसम्मत फैसले में कहा था कि यह मानदंड तब तक लागू रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद द्वारा कानून नहीं बनाया जाता।

अगले साल की शुरुआत में चुनाव आयोग में एक रिक्ति निकलेगी, जब चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे 14 फरवरी को 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर कार्यालय छोड़ देंगे। उनकी सेवानिवृत्ति चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित 2024 लोकसभा चुनावों की संभावित घोषणा से कुछ दिन पहले होगी। पिछले दो मौकों पर आयोग ने मार्च में संसदीय चुनावों की घोषणा की थी।

Exit mobile version