अग्नि आलोक

ज़रा देखिए तो सही : किसके लिए है ‘भागवत’ की हिन्दू एकता?

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     (आम हिन्दू आबादी को भाईचारे के नाम पे चारा बनाने की साज़िश)

          प्रस्तुति : पुष्पा गुप्ता 

पिछले दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने फिर एक बार “हिन्दू एकता” का राग अलापा है। इसकी एक वजह यह है कि अभी हाल के चुनावी समीकरणों में भाजपा और संघ परिवार का “हिन्दू कार्ड” ठीक से नहीं चल पा रहा है। इसलिए महाराष्ट्र चुनाव से पहले भाजपा और संघ परिवार हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण की चाल चल रहे हैं। 

      वैसे यह भी मज़ेदार बात है कि अभी कल तक हरियाणा चुनाव में भाजपा और संघ परिवार “हिन्दू एकता” की नहीं बल्कि जाट-ग़ैर-जाट की राजनीति पर वोटों का ध्रुवीकरण करके सत्ता तक पहुँचे हैं।

      ऐसे में हिन्दुओं के सबसे बड़े “रहनुमा” संघ परिवार के मोहन भागवत से आम हिन्दू आबादी को पूछना चाहिए कि उनकी रोज़मर्रा की समस्याओं के समय आरएसएस कहाँ ग़ायब हो जाता है? आइए, मोहन भागवत से “हिन्दू एकता” का पाठ पढ़ाने पर कुछ सवाल पूछते हैं ?

क्या कभी आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद् ने देश भर के मज़दूर-ग़रीब किसानों के आन्दोलन को समर्थन दिया है? जबकि देश भर के सभी संघर्षों में 90 फ़ीसदी आबादी हिन्दुओं की होती है। याद कीजिए ग़रीब किसानों-मज़दूरों के आन्दोलन में हिन्दुओं के ये फ़र्ज़ी ठेकेदार कभी नज़र आयें हैं?

      जब लाखों की संख्या में ठेका, अस्थायी, दिहाड़ी मज़दूरों के पैसे ठेकेदार और मालिक हड़प जाते हैं, तब ये हिन्दू धर्म के ठेकेदार मदद के लिए सामने क्यों नहीं आते?

स्त्री पहलवानों के संघर्ष से लेकर हाथरस, उन्नाव जैसे जघन्य स्त्री-विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले आन्दोलनों के समय आरएसएस कहाँ ग़ायब रहता है? उल्टे, यह ज़रूर होता है कि 100 में से 99 बार ऐसे अपराधों को अंजाम देने वालों के तार संघ परिवार और उसके चुनावी फ्रण्ट भाजपा से जुड़े पाये जाते हैं।

      देश भर में लक्ष्मणपुर, बथानी टोला, खैरलांजी या मिर्चपुर जैसी बर्बर दलित उत्पीड़न की घटनाओं में आएएसएस कितने “हिन्दू” दलितों की सुरक्षा या न्याय की लड़ाई में शामिल हुआ? सब जानते है कि संघ परिवार और भाजपा अपनी विचारधारा और  चरित्र से घोर ब्राह्मणवादी हैं और इनके सदस्य ब्राह्मणवादी /सवर्णवादी मानसिकता से ग्रस्त हैं।

लॉकडाउन के समय जब लाखों मज़दूर सड़कों पर पैदल चल रहे थे, रोटी-पानी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे थे, तब यह आरएसएस कहाँ था? याद रहे कि यह हालात झेल रहे मज़दूरों का क़रीब 85 फ़ीसदी हिस्सा हिन्दू मज़दूर ही है।

       मोदी सरकार और संघ परिवार ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की नौटंकी करते नहीं थकते हैं लेकिन दूसरी ओर देश भर के लाखों हिन्दू सफ़ाई कर्मचारी मौत के मुँह में जाकर सफ़ाई का काम करने को मजबूर हैं। ज़रा पूछिये क्या इन “हिन्दू” सफ़ाईकर्मियों की मौत पर आरएसएस ने कभी कोई प्रदर्शन किया है?

     पूँजीपतियों, फैक्ट्री मालिकों, ठेकेदारों, दलालों के पैसों से चलने वाले ये “हिन्दू धर्म-रक्षक” असल में मालिकों की ही सेवा करने के लिए खड़े हैं। आज फ़ासीवादी राज्यसत्ता, जो स्वयं संगठित हिंसा और दमन का सबसे बर्बर तन्त्र है, वह विहिप, बजरंग दल जैसे हिंसक संगठित गिरोहों को इसलिए फलने-फूलने का मौक़ा दे रही है ताकि सडकों पर भी हर प्रकार के विरोध को कुचला जा सके, भविष्य में जुझारू मज़दूर आन्दोलनों पर हमले करवा सके, उसको कुचलने के लिए इन्हीं प्रतिक्रियावादी ताक़तों का इस्तेमाल कर सके।

      याद रखिए! जब स्वतन्त्रता आन्दोलन में भगतसिंह और उनके साथी ब्रिटिश सरकार से उन्हें फाँसी के बदले गोली से उड़ा दिये जाने की माँग कर रहे थे, तब संघियों के पुरखे जैसे कि सावरकर अंग्रेज़ी हुकूमत को माफ़ीनामे पर माफ़ीनामे लिख रहे थे। जब देश में लाखों युवा आज़ादी की लड़ाई में क़ुर्बानी दे रहे थे, उस समय आरएसएस बेशर्मी से स्वतन्त्रता आन्दोलन से ग़द्दारी करके मुस्लिम लीग के साथ मिलकर दो प्रान्तों में सरकार चला रहा था।

      इसलिए देश के मेहनतकश साथियों के साथ-साथ तमाम इन्साफ़पसन्द नागरिकों कोभी ऐसे फ़र्ज़ी धर्म के ठेकेदारों से सावधान रहना चाहिए। मेहनतक़श आबादी को अपने संघर्षों को एकजुट करने के लिए अपने सच्चे साथियों को पहचानना चाहिए। याद रखिए महँगाई, बेरोज़गारी और बदहाली कभी धर्म-जात पूछ कर नहीं आती। अगर ये सही में हिन्दुओं के सच्चे हितैषी होते तो देश की 90 फ़ीसदी हिन्दू आबादी बेरोज़गारी, महँगाई, ग़रीबी, कुपोषण, भुखमरी से त्रस्त नहीं होती।

 आरएसएस के “हिन्दू राष्ट्र” का मतलब है बड़े इज़ारेदार पूँजीपति वर्ग यानी अम्बानी, अडानी, टाटा, बिड़ला आदि समेत समूचे पूँजीपति वर्ग की सेवा करना। आज जो कोई भी इस देश में पूँजीपतियों की लूट के ख़िलाफ़ आवाज उठायेगा, वह इस “हिन्दू राष्ट्र” का द्रोही है, चाहे वह हिन्दू हो, मुसलमान हो, सिख हो, ईसाई हो या कोई और! इसलिए हमें समझना होगा कि धर्म-जात के झगड़े में हम जैसी ही ग़रीब-मेहनतक़श आबादी उजड़ेगी, दंगों के नाम पर देश के बेरोज़गार युवाओं को ही चारा बनाया जायेगा।

     तमाम धर्म के ठेकेदार ए.सी. कमरों में बैठकर फ़ेसबुक लाइव से भाषण देकर आग भड़कायेंगे और नुक़सान मेहनतक़श आबादी को  उठाना पड़ेगा। दंगों की आग पर रोटियों सेंक कर भाजपा व संघ को कुर्सी मिलेगी और इनके अपने बच्चे विदेशों में पढ़कर मौज लेगें।

     इसलिए शहीदे-आज़म भगतसिंह की यह बात कभी ना भूलें ….‘लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग-चेतना की ज़रूरत है। ग़रीब, मेहनतक़शों व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं। इसलिए तुम्हें इनके हथकण्डों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़कर कुछ नहीं करना चाहिए। संसार के सभी ग़रीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं। तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताक़त अपने हाथों में लेने का प्रयत्न करो। इन यत्नों से तुम्हारा नुक़सान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी ज़ंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी।’

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