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समय नहीं नीयत बदलने से ही मिल पाएगा न्याय

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मुनेश त्यागी

      आजकल भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक बहस चल रही है कि अदालतों का समय बदल देना चाहिए, इससे जनता को न्याय मिलेगा। वहीं बार के वकील कह रहे हैं कि अदालतों का समय बदलने से न्याय नहीं मिलेगा। पिछले दिनों भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने कहा है कि आम आदमी को सस्ता और सुलभ न्याय मिले, यह उनकी सबसे बड़ी चिंता है।

     पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के जजों की जयपुर में एक मीटिंग हुई जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के 15 और उच्च न्यायालय के 75 जजों ने भाग लिया। मीटिंग में भारत के कानून और न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने बताया कि इस समय देश में 7 करोड़ मुकदमे लंबित हैं( हिंदुस्तान 17 जुलाई 2022) जिनमें 87 फ़ीसदी निचली अदालतों में 12 फ़ीसदी हाईकोर्ट में और 1 फ़ीसदी यानी 72062 मुकदमें सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। यहीं पर कानून मंत्रालय के अनुसार भारत में निचली अदालतों में 24490 जजों की संख्या है जिसमें 5147 पद खाली पड़े हैं। हाईकोर्ट में 1108 जज हैं जिनमें 381 पद खाली हैं। सुप्रीम कोर्ट में 34 जज हैं और दो पद खाली हैं।

     जस्टिस रामन्ना का कहना है कि जब तक भारत की न्यायपालिका और केंद्रीय और राज्य  सरकारें मिलकर काम नहीं करेंगे, तब तक जनता को सस्ता और सुलभ न्याय प्राप्त नहीं हो सकता। उनका यह भी कहना है कि सस्ते और सुलभ न्याय के लिए लोगों को जागरूक करना पड़ेगा। बहुत सारे वकीलों का कहना है कि न्यायालयों का समय बदलने से जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिलेगा। यहां पर हमारा कहना है कि समय नही, नीयत और नीतियां बदलो, तभी जाकर जनता को सस्ता और सुलभ न्याय मिलेगा।

     हमारे देश में वर्षों से करोड़ों मुकदमें अदालतों में लंबित हैं और जैसे-जैसे जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ती जा रही है उसी अनुपात में मुकदमों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, मगर समस्या यह है कि मुकदमें बढ़ने के साथ-साथ मुकदमों का निस्तारण नहीं हो रहा है। जनता को समय से सस्ता और सुलभ न्याय नहीं मिल रहा है। यहां पर सबसे मुख्य सवाल यह है कि जनता को सस्ता और सुलभ कैसे मिले?

       यहां पर हम कहेंगे कि सरकार की सारी नीतियां न्याय विरोधी हैं। वह लगातार मांग करने के बाद भी कुछ सुनने और कुछ भी करने को तैयार नहीं है। उसके पास सिर्फ और सिर्फ कथनी है, करनी नहीं। कांग्रेस और बीजेपी दोनों सरकारों का और दूसरी अधिकांश राज्य सरकारों का भी यही आलम है। अब यहां पर मुख्य सवाल यह है कि आखिर जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए क्या हो? इसके लिए जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि निम्नलिखित कदम अविलंब रूप से उठाए जाएं,,,,,

      १. जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए सरकार की नीयत और नीतियां बदलें, २.  मुकदमों के अनुपात में जजों की नियुक्तियां हों और सबसे पहले खाली पड़े जजों के पदों को और क्लर्कों के पदों को भरा जाए, उन पर नियुक्तियां की जाएं,३.  पूरी न्याय प्रणाली का आधुनिकरण हो, मुकदमें जल्दी निपटाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाए, ४. न्यायपालिका पर बजट का .02% से 3% किया जाए, ५. अदालत कक्षों और बिल्डिंगों में पर्याप्त वृद्धि हो, ६. वर्षों से खाली पड़े 80 परसेंट क्लर्कों के पदों को अविलंब भरा जाए, ७. पर्याप्त संख्या में स्टेनों की नियुक्तियां हो  की जायें।

      ८.लोक अदालतें और जेल लोक अदालतें हर महा आयोजित हों, इससे मुकदमों के निपटारे में सुगमता आएगी और जेल में बिना वजह सब रहे हजारों कैदियों को मुक्ति मिलेगी, ९. आरोपियों को शीघ्र जमानत देने के लिए, नए  जमानत कानून बनें और नए नियम बनें और जिस का सिद्धांत यह हो कि “जमानत नियम और जेल अपवाद”, १०. न्यायपालिका का विकेंद्रीकरण हो, सुप्रीम कोर्ट कि पूरे देश में चार बेंच स्थापित की जाएं और बड़े राज्यों में हाईकोर्ट की कम से कम तीन तीन बेंच स्थापित की जाएं, 

    ११. जनता को उसके दरवाजे पर न्याय मिले, १२. जजों के तबादलों, नियुक्तियों और मिसकंडक्ट के मामलों को निष्पक्ष रुप से  निस्तारित करने और नियुक्तियां करने के लिए एक “राष्ट्रीय न्यायिक आयोग” बने, १३. सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में “अंकल जज सिंड्रोम” की प्रवृत्ति का समूल खात्मा हो और १४. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में एससी, एसटी ओबीसी और अल्पसंख्यक के जजों की नियुक्तियां हों और उन्हें इन नियुक्तियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिले, १५. मुकदमों की सुनवाई क्षेत्रीय और मातृभाषाओं में हो और 

     १६. जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए यह जरूरी हो कि मुकदमों को निर्णित करने के लिए, एक समय सीमा निश्चित की जाए और  इस समय सीमा के अंदर मुकदमा तय किया जाए, तभी जाकर और इन जरुरी कदमों को उठाकर ही, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय मिल सकता है। 

    यही पर हमारा कहना है की जनता को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाने के लिए,  समय बदलने से नहीं, बल्कि सरकार की नीयत और नीतियां बदलने से ही जनता को सस्ता और सुलभ न्याय मिल सकेगा।

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