राजस्थान में बीकानेर शहर से 30-35 किलोमीटर दूर है माता करणी का मंदिर। इस मंदिर को चूहे वाले मंदिर के नाम से लोग जानते हैं। काफी दिनों से मैं इस मंदिर को विजिट करने का प्लान बना रही थी। फिर सोचा पंथ सीरीज की स्टोरी ही इस पर कर दी जाए। मैं खुद भी दर्शन कर लूंगीं और मेरे माध्यम से आप लोग भी आस्था से जुड़ी एक कहानी से रूबरू हो जाएंगे।
20वीं शताब्दी की शुरुआत में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने इस मंदिर को बनवाने का काम शुरू किया था। मंदिर की पूरी संरचना संगमरमर से बनी है और इसकी वास्तुकला मुगल शैली से मिलती-जुलती है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में करणी माता विराजमान हैं।
करणी माता के एक हाथ में त्रिशूल है। उनके साथ उनकी दो बहने दोनों ओर बैठी हैं।
अंदर आते वक्त मेरी मुलाकात एंड्रिया से हुई। एंड्रिया इटली के मिलान शहर के रहने वाले हैं। वह वहां प्रोजेक्ट मैनेजर हैं और अकेले भारत घूमने आए हैं।
उन्होंने अपने टूर प्लान में खास तौर पर इस मंदिर को शामिल कर रखा है क्योंकि वो देखना चाहते थे कि सच में कोई ऐसा मंदिर है जहां इतनी बड़ी तादाद में चूहे हैं।
एंड्रिया बताते हैं, ‘पहले तो मैं यहां आते हुए कुछ डर रहा था। बाहर जूते उतारते हुए भी सोचा कि कहीं कोई चूहा जूते में घुसकर न बैठ जाए। फिर हौसला करके मंदिर के अंदर आ गया।’
मैंने उनसे पूछा- आपको अब कैसा लग रहा है, डर थोड़ा कम हुआ? कहने लगे, ‘मैं किसी जगह एक साथ इतने सारे चूहों को पहली बार देख रहा हूं। आश्चर्य इस बात का ज्यादा हो रहा है कि लोग माथा टेक रहे हैं, भोग लगा रहे हैं, चूहों का जूठा पानी पी रहे हैं’इटली के एंड्रिया चूहों को देखकर खुश हैं। अगली बार वो अपने दोस्तों को भी यहां लाना चाहते हैं।
एंड्रिया की नजरें सफेद चूहे को तलाश रही हैं। दरअसल इस मंदिर की मान्यता यह है कि माता के चरणों में कोई मन्नत मांग कर आओ और उसके बाद अगर आपको सफेद चूहा दिखाई दे जाए या पांव से छू जाए तो समझो मन्नत कुबूल हो गई है। एंड्रिया भी इसी फिराक में हैं कि सफेद चूहा उनके पांव को छू जाए।बीस हजार चूहों के बीच सिर्फ तीन सफेद चूहे हैं। भक्तों की निगाहें सफेद चूहे को ढूंढ रही हैं।
मैं अपनी स्टोरी के लिए मंदिर में वीडियोग्राफी कर रही हूं। लोग यह जानते हैं इसलिए उन्हें लगता है कि मेरा कैमरा सफेद चूहे का पता जानता होगा। हर कोई मुझसे दूर से ही पूछ रहा है कि सफेद चूहा कहीं दिखा।
बीकानेर की ऐश्वर्या ने तो सीधे आकर मुझसे पूछ लिया आपको कहीं सफेद चूहा दिखाई दिया तो नहीं। मैंने उन्हें न में जवाब दिया।
ऐश्वर्या अपने पति के साथ यहां आई हैं। वह बताती हैं कि इस मंदिर में मौजूद चूहे जब मरते हैं तो चारण जाति में मानव जन्म लेते हैं। इसी तरह जब चारण जाति में किसी मानव की मौत होती है तो वह व्यक्ति चूहा बनता है। चूहे माता करणी देवी के ही बच्चे हैं उनके वंशज हैं।
हालांकि, यहां कभी चूहों की गिनती तो नहीं हुई है, लेकिन एक अंदाजा है कि यहां 20,000 से ज्यादा चूहे हैं। इनमें सिर्फ तीन सफेद चूहे हैं।ऐश्वर्या ने बताया कि यहां मौजूद चूहों को काबा कहा जाता है। काबा का मतलब बच्चे होता है।
मंदिर की खूबसूरत संगमरमर की नक्काशी वाली दीवारों और राजस्थानी झरोखों से नजर नहीं उठती। इसके एंट्री द्वार पर बने दो शेरों को माथा टेक लोग अंदर जाते हैं।
चांदी के दो बड़े दरवाजों पर भी नक्काश ने खूबसूरत कलाकारी की है। मंदिर के अंदर दाखिल होते हैं तो एक छोटा सा बरामदा आता है।
रामदा ऊपर जाली से ढंका है। फिर मंदिर का एक छोटा द्वार है, जिसके अंदर दाखिल होते ही जगह-जगह फर्श पर बाजरा, बूंदी और प्रसाद पड़ा है। चूहे इन्हें खाने के लिए पैरों पर चढ़कर गुजरते हैं।कोई एक खिड़की, जाली, छेद, नाली, गर्भ गृह, छत, पंखा, सब्जियां, प्रसाद की परात चूहों से खाली नहीं।
चूहों के दूध पीने के लिए चांदी की पराते रखी हैं। पानी के लिए मिट्टी के बर्तन हैं। मंदिर के ट्रस्टी अशोक चारण बताते हैं कि इन चूहों को दो वक्त बाजरा दिया जाता है। शाम को सेंधा नमक मिलाकर भीगे चने दिए जाते हैं। चूहे अजवायन वाली रोटी भी खाते हैं।
लंबी-लंबी पूंछ वाले चूहे जब यहां से वहां दौड़ते हैं तो डर लगता है कि पांव के नीचे न आ जाएं।
कभी तो ऐसा हुआ ही होगा कि चूहे पैरों के नीचे दबकर मर गए हों?
इसका जवाब अशोक चारण देते हैं। बताते हैं, ‘अगर किसी भक्त के पांव के नीचे आकर कोई चूहा मर जाता है तो वह मंदिर में चांदी का चूहा चढ़ाता है। हालांकि मंदिर परिसर की तरफ से ऐसी कोई बाध्यता नहीं है, लेकिन भक्त ऐसा करते हैं।’
कहते हैं कि जब से यह मंदिर यहां बना है, तब से चूहे यहां हैं। इनकी संख्या न तो कभी बढ़ी है और न ही कभी कम हुई है।
अगर कोई चूहा सिर पर चढ़ जाए तो शुभ माना जाता है। मंदिर चारों ओर से बारीक जाली से ढंका हुआ है ताकि बिल्ली या चील चूहों को कोई नुकसान न पहुंचाए। चूहे खुद भी परिसर के बाहर नहीं जाते।
मंदिर परिसर में एक नाली है। मेरी नजर पड़ती हैं कि ढेरों लोग यहां बैठे बारी-बारी से नाली में हाथ डाल रहे हैं। मैं भी वहां पहुंच जाती हूं। भीड़ में मौजूद एक व्यक्ति से पूछती हूं कि ऐसा क्यों कर रहे हैं ये लोग। उन्हें डर ही नहीं लग रहा है कि कोई सांप या कुछ और न अंदर से निकल आए।
उस व्यक्ति ने बताया कि किसी ने यहां सफेद चूहे की पूंछ देखी है। लोग बारी-बारी से पूंछ को ही छूकर चूहे को माथा टेक रहे हैं।
इस बिल के अंदर सफेद चूहे की पूंछ दिख गई है। लोग पूंछ छूकर उसका आशीर्वाद ले रहे हैं।
इसी जगह से कुछ दूर बैठा एक भक्त अपने हाथ से चूहों को प्रसाद खिला रहा है। फिर चूहों का जूठा खुद खा रहा है। चूहे भक्तों की लाई सब्जियां कुतर रहे हैं। लोग उन सब्जियों को प्रसाद मानकर खा ले रहे हैं।
शायद यह सब मुझे कोई बताता तो मैं यकीन न करती, लेकिन यह सब मेरी आंखों के सामने हो रहा है।
चूहों का जूठा खाने की वजह से कोई कभी बीमार नहीं हुआ? अशोक चारण कहते हैं, ‘चूहों के मामले में कहा जाता है कि इनके रहने से कई तरह की बीमारियां फैलने का खतरा रहता है। खासकर प्लेग। प्लेग जैसी महामारी के चलते चूहों को कई देशों में मार दिया जाता है। यहां सरकार की तरफ से कई दफा इस प्रकार की जांच हो चुकी है। प्लेग के कोई लक्षण नहीं मिले हैं।’
मैंने हर कोने, हर छोटे कमरे, बड़े कमरे, दालान, बरामदे सब जगह जाकर देखा कि चूहों की भरमार की वजह से कोई बदबू तो नहीं आ रही। मैं हैरान थी यह देखकर कि यहां न ही कहीं कोई बदबू थी, न ही चूहों की वजह से गंदगी।
यहां नवरात्र में तो खासी भीड़ रहती है। मंदिर में सिर्फ नवरात्र और उपनवरात्र ही मनाए जाते हैं। परिक्रमा भी होती है।
मंदिर में दूसरे मंदिरों की तरह पुजारी नहीं हैं। चारण परिवार के सदस्य ही इस मंदिर की देखरेख करते हैं, वही लोग सब काम को देखते हैं। जयदेव देपावत एक किस्सा सुनाते हैं- जोधपुर के राजा और उनके बेटे राव बीका के बीच मनमुटाव हो गया था।
राव बीका माता करणी के चरणों में 15 घुड़सवारों के साथ आया था। फिर माता करणी ने उससे कहा था कि तुम यहीं राजपाट कायम करो। राव बीका ने यहीं रहकर जूनागढ़ किले का निमार्ण किया जिसकी आधारशिला माता करणी ने रखी थी।
उन्हीं के नाम से इस शहर का नाम बीकानेर पड़ा था। समय-समय पर अलग-अलग राजाओं ने इस मंदिर में काम करवाया। महाराजा गंगासिंह और चांदमल ढढा जैसे राजाओं ने मंदिर में खूबसूरत नक्काशी का काम करवाया।
मां करणी को मां दुर्गा का अवतार कहा जाता है। कहा जाता है कि बीकानेर पर कोई भी मुसीबत आती है तो मां करणी ही रक्षा करती हैं। करणी माता और चूहों के दर्शन के बाद मैं मंदिर परिसर घूमने निकलती हूं। पता चला कि फिलहाल यहां की छह धर्मशालाओं में 300 एसी कमरे हैं।यहां 22 बीघे में एक गौशाला है, जहां 2426 पशु हैं। इनमें से दुधारू सिर्फ 62 हैं, बाकी बीमार हैं।गायों के लिए अलग से एंबुलेंस है। उनकी रोटी पकाने के लिए अलग से मशीन भी लगी है।
गायों के लिए इंसानों जैसी सुविधाएं हैं। गोशाला के मैनेजर मोहनदास बताते हैं कि हमारा फोकस रहता है कि हम बीमार गायों की सेवा करें।
इनके लिए महीने की लगभग डेढ़ लाख रुपए की दवाएं आती हैं। बाकायदा डॉक्टर और कंपाउंडर रखे गए हैं। एक आईसीयू वार्ड भी है।