अग्नि आलोक

*कर्पूरी ठाकुर हरावल दस्ते के सोशलिस्ट थे!*(भाग -2)

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*प्रोफेसर राजकुमार जैन,*

            कर्पूरी जी महज किताबी बुद्धिजीवी नहीं थे। जमीनी सच्चाई से बावस्ता होने के कारण वैचारिक स्तर पर सोशलिस्ट नुक्ते नजरिये से मुख्तलिफ विषयों पर रोशनी भी दिखाते थे। देश दुनिया के हर पहलू पर बहस करते वक्त उनके मानस में गांव -गरीब, आखिरी पायदान पर खड़े आदमी के लिए हमेशा दिल धड़कता था। यह कर्पूरी जी थे जो गहन गंभीर विषयों पर अपने ज्ञान से सदन को उद्वेलित, चौंकाते थे। वही मेहनतकश गरीब की दशा व्यथा  पर सदन का ध्यान दिलवाते थे। कर्पूरी जी बिहार विधानसभा में एक और जहां देश दुनिया के नामवर चिंतकों, दार्शनिको,  राजनेताओं, अर्थशास्त्रियों के उदाहरण देकर अपने तर्क को मजबूत धार देते थे। वही मामूली साधनहीन गरीबों मेहनतकशों के लिए  विधानसभा में मंत्रियों से सवाल कर जवाब देही मांगते थे। 6 जुलाई 1956 को उन्होंने सदन में सवाल किया की क्या माननीय श्रम मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे की बिहार राज्य में कितने रिक्शे हैं और कितने,रिक्शे चालक है?(2) कितने रिक्शा चालकों की उम्र 12 से 18 वर्ष के अंदर,कितने की18 से 22 वर्ष के अंदर कितने की 22 से 40 वर्ष के अंदर, कितने की 40 से 50 वर्ष के और कितने की 50 से 65 वर्ष के अंदर है?,(3)इन विभिन्न उम्र के रिक्शा चालकों की औसत मासिक आय क्या है? (5) रिक्शा चालकों की पूरी स्थिति (कंडीशन) आय,स्वास्थ्य आदि की जांच- पड़ताल करने तथा उनकी स्थिति को समुन्नत करने संबंधी सुझाव देने के लिए क्या सरकार कोई श्रम जांच कमीशन निकट भविष्य में बहाल करना चाहती है? 12 दिसंबर 1960 को कर्पूरी जी ने सदन में सवाल किया, क्या मुख्यमंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि (1)यह बात सही है कि बहुत जमाने से गांव के चौकीदार, अपराधों और दंगे- फसाद को रोकने में सहायता करने के काम से लेकर जोखिम उठाने तथा गांवो के संबंध में थाना को आवश्यक सूचना देने का काम करते रहे हैं? (2] क्या यह बात सही है कि अत्यधिक आवश्यक सेवा करने वाले चौकीदारों का वेतनमान केवल ₹15 महीना है। यदि हां, तो क्या इस महंगाई के जमाने में जो बहुत ही कम है और वो भी उन्हें समय पर भी नहीं मिल पाता है?(3) क्या यह बात सही है की सरकार चौकीदारी प्रथा उठाने के प्रश्न पर विचार कर रही है?(4) यदि उपर्युक्त खंडो के उत्तर स्वीकारात्मक है तो इसको कायम रखने और चौकीदारों का वेतन बढ़ाने के प्रश्न पर सरकार कौन सी कार्रवाई करना चाहती है? बैलगाड़ी (चालकों) के प्रति चिंता, बैलगाड़ी टैक्स का औचित्य, 17 मई 1972 को कर्पूरी जी ने बिहार विधानसभा में प्रश्न किया, क्या मंत्री सामुदायिक विकास विभाग यह बतलाने की कृपा करेंगे कि- (1) क्या यह बात सही है कि श्री कुमार राय, पिता श्री चतुरी  राय, ग्राम चकपहाड़, प्रखंड मोरवा, दरभंगा के पास देहाती बैलगाड़ी है, जिसका इस्तेमाल कृषि कार्य और देहाती कामकाज के लिए ही होता है ?(2) यदि खंड (1) ,का उत्तर स्वीकारात्मक है तो उन पर साढे आठ रूपए का बैलगाड़ी टैक्स लादे जाने का क्या औचित्य है?   कर्पूरी जी की एक खासियत थी कि जहां वे एक और गुरबत के शिकार आम जनों की रोजमर्रा की दुश्वारियों, तकलीफों को वरीयता से उठाते थे, वही गंभीर विषयों पर अपने वक्तव्य से सदन को चौंकाते थे।                    16 सितंबर, 1953 को बिहार विधानसभा में प्रस्तुत प्रस्ताव ‘दि बिहार सेटिनेंस आफ पब्लिक ऑर्डर बिल, का विरोध करते हुए कर्पूरी जी ने कहा मैं इस बिल का विरोध करता हूं। इस बिल का विरोध उन्हीं लोगों के द्वारा होता है जिनके दिल में जनता की स्वाधीनता की भावना है। हेराल्ड लास्की  का यह कहना है कि आजादी के लिए लड़ने वालों की संख्या हमेशा कम होती है। ” FRIENDS OF LIBERTY ARE ALWAYS IN MINORITY IN HUMAN SOCIETY”) आज से वर्षों पहले पश्चिमी देशो के बारे में लिखते हुए पंडित नेहरू ने जो कहा था, उसको पढ़ने के लोभ को सॅवरण नहीं कर सकता हूं। In western countries a strong public opinion has been built up opposed .There are large numbers of people who though not prepared to participate in strong and direct action themselves ,they are enough persons and press do agitate for them seriously ,thus helping to check the tendency of the state to encroach upon them”.कर्पूरी जी ने सरकार पर तंज करते हुए कहा जब आपनें इस प्रणाली को अपनाया, तब यह ठीक था, लेकिन आज के विरोधी दल अगर उस प्रणाली को अपनाता है, तो  वह प्रणाली गलत है! क्या लॉजिक है?किस तरह से आपका विचार बदल गया है,इससे साफ पता चलता है।आज डेमोक्रेसी का अर्थ यह नहीं है, जैसा की एच,जी, वेल्स ने कहा है, रूल ऑफ़ दि मेजोरिटी नहीं है। उनका कहना यह है कि चुनाव के बाद 5 वर्ष के अंदर जनता की राय जानने का कोई दूसरा तरीका नहीं है। उन्होंने ‘कंटीन्यूंइंग कान्सेंट ऑफ दि ऐलेक्टोरेट’ फ्रेज का व्यवहार किया है। ‘कंटीन्यूंइंग कंसेंटं आफ दि एलेक्टोरेट’ जानना जरूरी है। मगर लोकमत जानने की मांग एक सीमित मांग है। बिना पब्लिक ओपिनियन में भेजे कैसे ‘कंटिन्यूंइंग कान्सेंट ऑफ दि एलेक्टोरेट’ ले सकते हैं? इसके अलावे दूसरा साधन हमारा कहां है? अध्यक्ष महोदय आपने कहा था कि जनमत जानने की मांग प्लेबीसाइट नहीं है, यह चुनाव चुनौती नही है। चुनाव में बड़े पैमाने पर लोगों की राय जानी जाती है मगर कंटिन्यूंइंग कंन्सेंट ऑफ दि एलेक्टोरेट’ जानने की प्रणाली उसके अंदर सीमित है, फिर भी इस उचित प्रणाली को आप दमन करने के लिए तैयार हैं। गुप्तकाल में भारत में बड़े-बड़े कलाकार पैदा हुए और कालिदास जैसे नाटककार पैदा हुए। ऐसी प्रगति इसलिए हुई कि देश समृद्धशाली था। जहां प्रगति है, वहां शांति अनिवार्य है, और जहां प्रगति नहीं है, वहां कभी शांति स्थापित नही हो सकती है। इसके अलावे आप अकबर के जमाने के इतिहास को देखें। पंडित नेहरू ने कहा है कि अकबर उदार आदमी था, इसलिए देश प्रगतिशील था। धार्मिक दृष्टि मे वे कट्टर आदमी नहीं थे और वे राजपूत को मिलाकर सभी काम करते थे, इसलिए काम में सफलता भी मिलती थी। अपने राज्यकाल में उन्होंने नया रिवेन्यू सिस्टम चलाया था। इस सब प्रगति के कार्यो को वे इसलिए कर सकते थे, क्योंकि देश में शांति थी। उनके राज्यकाल में तुलसीदास और सूरदास जैसे महान व्यक्ति का अविर्भाव  हुआ।   एलिजाबेथ के इतिहास को आप देखें! उनके राज्यकाल में शेक्सपियर पैदा हुए और  वॉल्टर, रैले और डेक जैसे आदमी पैदा हुए, जिन्होंने स्पेन के जहाज को लूट कर अपने देश को समृद्धशाली बनाया। फ्रांस रिवॉल्यूशन के इतिहास में इस संबंध में जो कुछ लिखा हुआ है, उसके  एक अंश  को आपके सामने पढ़ देना चाहता हूं:- “The French Revolution burst like a volcano and yet revolutions and volcanoes do not burst out suddenly without reason or long evolution. We see the sudden burst out and are surprised; but underneath the surface of the earth many forces play against each other for long ages, and the fires gather together, till the curst on the surfaces can hold them down no longer and they burst forth in mighty flames shooting up to sky , and molten lava rolls down the mountain side.Even so, the forces that ultimately break out in revolution play for long under the surface of society.Water boils when you heat it,but you know that if has reached the boiling point only after getting hotter and hotter. Ideas and economic conditions make revolutions .Foolish people in authority ,blind to everything that does not fit in with their ideas, imagine that revolutions are caused by agitators . Agitators are people who are discontented with existing conditions and desire a change and work for it. But when economic Conditions are such that their day to day suffering grows and life becomes almost an intolerable burden,then  even the weak are prepared to take risks .It is then that they listen to the voice of the agitator who seems to show them a way out of their misery”.      नागरिक स्वतंत्रता के सवाल पर   सदन में, कांग्रेस के राजस्व मंत्री के भाषण का जिक्र करते हुए कर्पूरी जी ने कहा कि उन्होंने इंग्लैंड के ट्रेडीशन के बारे में कहा है कि वहां का ढंग दूसरा है। अध्यक्ष महोदय, अगर वे कुछ इसके बारे में जानते हैं, तो मैं भी कुछ जानकारी रखता हूं। वहां का ट्रेडीशन यही है कि किंग जॉर्ज जो लोगों को अधिकार नहीं दे रहा था,उसे लोगों ने तलवार के जोर पर मजबूर किया और आखिरकार 12:15 बजे मैग्नाकार्टा पर दस्तखत कराया  और उसे लोगों को पॉलिटिकल अधिकार देना पड़ा। फिर चार्ल्स फर्स्ट की गर्दन अलग कर दी गई और चार्ल्स सेकेंड को मजबूर किया कि उसे जनता को अधिकार देना पड़ेगा। इस तरह अंत में 1968 ईस्वी में पीसफुल रिवॉल्यूशन हुआ और जनता को पार्लियामेंट में अधिकार दिया गया। आप देखेंगे कि इस तरह जनता के नागरिक स्वतंत्रता का वहां ट्रेडीशन बनाया। सम्राटों से लड़कर बनाया। हम चाहते हैं कि जो ट्रेडिशनल इंग्लैंड का है। उसे हम लोग भी अपनाए, लेकिन आप इसे नहीं चाहते हैं। हम चाहते हैं कि हर कदम पर सरकार से लड़कर, चाहे सरकार कांग्रेस पार्टी की हौ, झारखंड पार्टी की हो या सोशलिस्ट पार्टी की हो, नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करें। हम देश में ऐसी परंपरा बनाएं जिससे नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करें। हम देश में ऐसी परंपरा बनाएं जिससे नागरिक स्वतंत्रता के लिए लोगों के दिल में आदर हो, इसलिए हम इस बिल का विरोध करते हैं।                               *—–जारी है,*

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