अग्नि आलोक

*कर्पूरी ठाकुर हरावल दस्ते के सोशलिस्ट थे !(भाग– 3 )*

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           *प्रोफेसर राजकुमार जैन*

              *खेती किसानी, जमीन के जोतदार, बटाईदार, और भूमिहीन किसानों तथा बड़े जमींदारों के सवाल पर अक्सर कर्पूरी जी सदन में  सवाल करते रहते थे। और  कई मौलिक सुझावों को भी सदन के सामने प्रस्तुत करते थे। खेती के संदर्भ में उन्होंने एक बहुत ही महत्वपूर्ण सुझाव सदन में प्रस्तुत किया था। कर्पूरी जी का कहना था कि अंग्रेजी राज में अफसर शाही के इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस वाले  नियम को ही हिंदुस्तान में अपना लिया गया, वह ढांचा गुलामी का ढांचा है वह हिंदुस्तान के निर्माण का ढांचा नहीं हो सकता। अगर आप अपने को देश का निर्माता कहते हैं, और निर्माता बनकर रहना चाहते हैं तो अंग्रेजी राज्य के पुराने ढांचे को फेंक कर नए ढांचे का निर्माण करना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि आर्थिक पुनर्निमान के लिए सबसे पहली बात आपको यह करनी है कि आप एक नई ‘इकोनामिक सिविल सर्विस’ कायम करें। आज हम देहातों में जाते हैं तो वहां जिस ढंग से आपके अफसरान काम बतलाते हैं, उससे पता चलता है कि देहातों का काम नहीं चलेगा। आपने बड़ा भारी पैराफरनेलिया कायम किया है, जिस पर अधिक से अधिक पैसा खर्च होता है। आप इसकी जगह पर ‘रूरल सिविल सर्विस’ कायम करें, तभी आप जो काम करना चाहते हैं,वह काम हो सकेगा।

 अध्यक्ष ने, कर्पूरी जी से प्रश्न किया कि इकोनॉमिक्स सिविल सर्विस ओर रूरल सर्विस की क्या व्याख्या है?, इसको अगर माननीय सदस्य बतला देते तो बात समझ में आती। उसके उत्तर में कर्पूरी जी ने कहा दो तरह के सर्विस का जिक्र हमने किया है। उनसे मेरा मतलब यह है की देहातों में काम करने के लिए वैसे आदमीयों को रखना चाहिए, जिन्हें गांव और खेत की सारी बातों की जानकारी हो, जिन्हें यह जानकारी हो कि खेतों की तरक्की कैसे हो सकती है, उत्पादन की वृद्धि कैसे हो सकती है? खेतों में किस समय बीज लगाए जाएं की फसल अच्छी हो, जिनकी मनोवृति नयी हो, मनोविज्ञान जिनका नया हो वैसे योग्य आदमीयो को लेकर रूलर सिविल सर्विस कायम किया जाए। अपने ग्रो -मोर -फूड डिपार्टमेंट में ऐसे लोगों को रखा है, जिन्हें खेती के बारे में जानकारी कुछ भी नहीं है। वे  एडमिनिस्ट्रेशन चला सकते हैं, लेकिन खेतों की मिट्टी नहीं पहचान सकते हैं। खेतों में कब हल चलेगा, कब बीज बोया जाएगा, कब सिंचाई होगी, इन सब बातों को वह नहीं जानते हैं। ऐसे लोगों से उत्पादन की वृद्धि का काम नहीं हो सकता है। इसमै ऐसे लोगों को रखना चाहिए जो उन समस्याओं की जानकारी रखते हो। उनसे अवगत हो, और जो उन्हें नए ढंग पर करना चाहते हो, जो अपने देश को आगे बढ़ाना चाहते हो, ऐसे लोगों की आप सर्विसेज कायम करके देश को आगे बढ़ा सकते हैं। 

 किसानों के लिए उनका मानना था की चार चीजे बहुत जरूरी है,वे ये हें कि उनका  क्राप (फसल) कैटल (पशु) लैंड (भूमि) प्राइस (दाम) इंश्योर्ड (निश्चित) गारंटेड है? क्या उनका क्राप इंश्योर्ड है? क्या उनकी पैदावार की कीमत गारंटेड है, क्या उनका लैड इंश्योर्ड है? 19% जमीन की सिंचाई होती है, बाकी 81% जमीन आसमान के भरोसे पड़ी रहती है।आसमान ऐसा पगला होता है की कभी इतना ज्यादा बरसता है कि खेत  ढह जाता हैं और कभी इतना कम बरसता है की खेत सूख जाता है! अगर वर्षा समय पर हुई भी और फसल लगी तो कीड़े -मकोड़े लगकर बर्बाद कर देते हैं। सहरसा जिले में माननीय मंत्रियों को घूमने का मौका मिला होगा। मैंने वहां देखा है कि सूअर और बंदर उस इलाके की फसल को बर्बाद कर देते हैं। वहां किसानों की फसल सुरक्षित नहीं है।     निजी और सार्वजनिक संपत्ति के फर्क पर दुनिया के मशहूर इकोनॉमिस्टो का हवाला देते हुए विचारोंत्तेजक चर्चा में 22 अगस्त 1961 को श्री जानकी रमण मिश्र द्वारा बिहार विधानसभा में प्रस्तुत लैंड रिफॉर्म्स  (फिक्शनऑफ सीलिंग ऑफ लैड )बिल 1959 के वाद विवाद में  जनतापाटी (स्वतंत्र पार्टी) के बृजेश्वर प्रसाद सिंह ने यह कहते हुए की वर्तमान सीलिंग बिल द्वारा जमीन लेने की जो बात सरकार सोच रही है, वह डकैती है। उस पर कर्पूरी ठाकुर ने कहा अध्यक्ष महोदय, इस विधेयक पर जनता पार्टी 

 (स्वतंत्र पार्टी) की ओर से जो विरोध हुआ है वह लज्जा का विषय है। विरोध क्यों होता है  मैं समझता हूं। विरोध इसलिए होता है कि *’एडम स्मिथ’ का जो सिद्धांत है, इकोनॉमिक्स का, “रिकॉर्डौ” का जो सिद्धांत है, और “जेबीशे”  का जो सिद्धांत है, उस सिद्धांत को आज 20वीं शताब्दी में ⁹ जनता पार्टी (स्वतंत्रत पार्टी)  समर्थन करने वाली है। उनका यह निश्चित मत है कि इन इकोनॉमिक्सटो के अलावें इस संसार में एडम स्मिथ, रिकॉर्डो और जेबिशे के अलावे सिसमंडी जैसे इकोनॉमिस्ट पैदा हुए थे, इस संसार में सेंट साइमन भी पैदा हुए थे, इस संसार में, रॉबर्ट, प्रटो, मार्क्स और महात्मा गांधी इस युग में पैदा हुए थे। जनता पार्टी समझती है कि  अर्थशास्त्र के विषय में प्राइवेट प्रॉपर्टी की ही सैंक्टिटी(,sanctity) हैl वह इस बात का समर्थन करती है कि जिनके पास जितना पैसा है जिनके पास जितनी संपत्ति है उसका संरक्षण सिर्फ उसी के हित में होना चाहिए, और जिन इकोनॉमिस्टों ने धन के वितरण के बारे में कहा है, वे इकोनॉमिस्ट ही नहीं है। वह जमाना अध्यक्ष महोदय लद गया,* जब  सैंक्टिटी आफ प्राइवेट प्रॉपर्टी के मानने वालें इस संसार में थे। आज के युग में शासन की पॉलिसी बदल गई है, इकोनॉमिक पॉलिसी बदल रही है, सामाजिक पॉलिसी बदल रही है। ऐसी हालत में जब आप सैंकटिटी आफ प्राइवेट प्रॉपर्टी की बात करते हैं तो सामाजिक नीति, अर्थनीति आदि के विपरीत बात करते हैं, मैं मानता हूं कि प्राइवेट प्रॉपर्टी जो चल रही है और शायद वह बरसों चलेगी। लेकिन प्राइवेट प्रॉपर्टी का मतलब यह हैं कि यह आपका कुर्ता है, यह मेरी धोती है, यह आपका पेंट है, या मेरा कोट है, तो यह मानने की बात है। लेकिन आज क्या हो रहा है? जमीन का जहां तक सवाल है, जंगल का, उद्योग का, नदी का, खान का, खाड़ी का, समुद्र का या ऐसे साधनों का सवाल है यह चीज ऐसी है, जिनके बारे में सभी संस्थाओं का मत है कि यह समाज की चीजे हैं और इनका इंतजाम समाज के हाथ में जाना चाहिए।

 बहस में सदन के *अध्यक्ष ने जब कर्पूरी जी से कहा कि आप कम्युनिस्टो के साथ क्यों नहीं जाते हैं? तो कर्पूरी , जी ने सोशलिस्टों, कम्युनिस्टो, सर्वोदयी मे क्या फर्क है, मत भिन्नता है, उसका खुलासा करते हुए कहा, समाजवाद का, साम्यवाद का, सर्वोदय का जो सिद्धांत है, उससे ऐसा पता चलता है कि वह चाहते हैं की संपत्ति पर समाज का स्वामित्व होना चाहिए; लेकिन इसके लिए क्या पॉलिसी होगी, कैसे कारगर किया जाएगा, हिंसा से या अहिंसा से, कानून से या जोर जबरदस्ती से, राज्य के हाथ में सौंपकर या अराज्य व्यवस्था के द्वारा किया जाएगा? इस प्रश्न पर भिन्न-भिन्न दलों के भिन्न-भिन्न मत हैं और यही कारण है की एक दूसरे में मतभेद है। रास्ता अलग-अलग होने के कारण, कार्यक्रम अलग होने की वजह से, देश में भिन्न-भिन्न दल चल रहे हैं और उनमें मतभेद चल रहा है।* 

                       *—–जारी है,*

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