अग्नि आलोक

कर्पूरी ठाकुर हरावल दस्ते के सोशलिस्ट थे!भाग— 4*

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         *प्रोफेसर राजकुमार जैन*

   जमीन के बंटवारे, सीलिंग पर सोशलिस्ट पार्टी की नीति को स्पष्ट करते हुए उनका कहना था कि  जमीन पर सीलिंग होना चाहिए, जमीन का बंटवारा होना चाहिए। और सरप्लस जमीन को बांटना चाहिए।  95 फ़ीसदी सदस्य जनता के प्रतिनिधित्व करने वाले हैं, चाहे कांग्रेस पार्टी के हो, झारखंड पार्टी  के हो, पीएसपी के हो  कम्युनिस्ट पार्टी के हों, या सोशलिस्ट पार्टी के हों, सभी  इस मत के हैं के हैं कि सीलिंग  होनी चाहिए और जमीन का बंटवारा होना चाहिए। 

 हमारे यहां एग्रेरियन इकोनामी है। उसको देखते हुए ऐसे बिल का लाना अत्यावश्यक है। कई माननीय सदस्यों ने बहस के दरमियान में कहा कि अगर यह पास हो जाएगा तो जमीन की पैदावार घट जाएगी, पर ऐसा कहना गलत है। अनुभव यह सिद्ध करता है, केवल अपने देश का अनुभव नहीं; बल्कि संसार का अनुभव सिद्ध करता है कि ऐसा कहना गलत है। जब किसान को साधन मिलेगा,  जरिया मिलेगा, अच्छा बीज मिलेगा, उसके पास पैसे होंगे, खेतों में परिश्रम कर सकेंगे और साधनों को जुटा सकेंगे  सिंचाई की व्यवस्था कर सकेंगे, तो पैदावार घटने वाली नहीं है, बल्कि बढ़ने वाली है। ताज़ा मिसाल जापान की है। वहां जमीन का बंटवारा हुआ, यहां तो अच्छी से अच्छी जमीन एक व्यक्ति के लिए 20 एकड़ रखी गई है, वहां के कानून के अनुसार एक परिवार को 7, 15 एकड़,  किसी को 2,15 एकड़ और बिरले ही को ऐसा भी था, जिसके लिए 10 एकड़ की व्यवस्था की गई। वहां के कानून से अपने यहां के कानून को मिलाने पर अधिक फर्क मालूम होता है। वहां जमीन सुधार का कानून लागू किया गया अमेरिकी सरकार के कमांडर मैकऑथर ने। एक एकड़ में पैदा होता है जापान में 3560 पौड, इटली में 4250  पौंड हिंदुस्तान में 1050 पौंड। इस तरह दूसरे देशों में हमारे यहां से साढे तीन गुणा और चौगुना पैदा होता है एक एकड़ में। मैं उन माननीय सदस्यों से कहना चाहता हूं उन्होंने इस पर विचार नहीं किया और कहा है क जमीन का बंटवारा होने से पैदावार घटने को है। यह गलत है। जब साधन मिलेगा, परिश्रम होगा तो पैदावार घटेगा कैसे? पूरे प्रांत बिहार में बटाई का सिद्धांत  ठेके का सिद्धांत आदि चला हुआ है। बटाईदार लोग, ठेके पर जमीन जोतने वाले लोग जितना भी पैदा करते हैं इसका एक  हिस्सा या कभी-कभी आधा हिस्सा जमीन के मालिक ले लेते हैं। दूसरी बात यह है कि बहुत से लोग भूमिहीन है और खेती करते हैं, खेतों में मेहनत करते हैं, हल चलाते हैं, कुदाल चलाते हैं, जिनके पास खेत नहीं है, उनके लिए समस्या का निदान निकालना चाहिए। मैं सरकार से पूछना चाहता हूं कि जिस राज्य में 46 लाख खेतिहर मजदूर हैं सरकार उनके जीने के लिए कौन सा साधन देने जा रही है? मैं इस बात का जवाब चाहता हूं कि भूमिहीन को जीने का वह कौन सा साधन देगी, जमीन जोतने वाले की होनी चांहिए।  तकाबी लोन जो लोगों को दिया जाता है, वह बड़े-बड़े खुशहाल लोगों को दिया जाता है। सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि राज्य में 34.5% बड़े खेतिहार को मिला और 58.1% बड़े और लार्ज कल्टीवेटर को मिलाऔर 32.1% मीडियम कल्टीवेटर को और 9.8 प्रतिशत छोटे-छोटे खेतीहरों को तकाबी लोन मिला। लैंडलेस को कुछ नहीं मिलता है, जिनके पास जमीन नहीं है उसको तकाबी लोन नहीं मिलता है। नौकरी भी उन्हीं लोगों को मिलती है। क्लास 1, क्लास 2, का पोस्ट, जिनके पास काफी जमीन है। बड़े लोग हैं। यह बात दूसरी है कि चंद लोगों को उनके मेरिट पर, अच्छी नौकरी मिल गई हो। तो मेरे कहने का मतलब  यही है कि जिनके पास साधन है, जमीन है, उन्हीं को ही अच्छी नौकरी, तकाबी लोन पर्याप्त मात्रा में मिलता है। जिनके पास काफी जमीन है, उनको बड़े-बड़े शहरों में मकान भाड़ा लगाने के लिए, राजनीति में भी उन्हीं लोगों को ऊंचा स्थान चाहिए जिनके पास काफी जमीन है। जिन्हें साधन है, उन्हीं को तकाबी लोन मिला है। लैंड इंप्रूवमेंट के लिए कर्ज मिलता है लैंड रिक्लेम करने के लिए उनको कर्ज मिलता है। यानी जितनी सुविधा है, उनको मिलना चाहिए। गरीब को कुछ नहीं मिलना चाहिए।  उनके मुंह पर ताला लगा देना चाहिए। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि ऐसा क्यों? मैं आपको बतलाना चाहता  हूं की  कैपिटल फॉरमेशन कहां होता है? हमारे पास रूरल क्रेडिट सर्वे की रिपोर्ट है, उसमें लिखा हुआ है कि 10% बिग कल्टीवेटर हैं, और 20% लार्ज कल्टीवेटर है। बिग कल्टीवेटर बहुत ज्यादा जमीन रखने वाले है और उसके बाद मिडिल मीडियम कल्टीवेटर आते हैं। 20, 25, 30 एकड़ जमीन रखते हैं। जो बिग कल्टीवेटर हैं 10% है, जिनके पास 30 एकड़ जमीन बोने लायक है। उनके यहां कैपिटल फॉरमेशन 40% होता है। और जो 20% लार्ज कल्टीवेटर है, उनकी जमीन 28% बोने लायक हैं और उनके यहां कैपिटल फॉरमेशन 27% होता है। इसको रूरल क्रेडिट सर्वे और अर्थशास्त्र के विद्वानों ने  दिखलाया है कि वह ज्यादा पैदावार नहीं कर सकते।  गरीब किसान ही, जिनके पास जमीन नहीं है, वे ही ज्यादा पैदावार कर सकते हैं। बड़े किसानों को यह संतोष है कि उनको ज्यादा रेंट मिलेगा। इसलिए वे ज्यादा पैदा करने पर ध्यान नहीं देते है। उनको सिर्फ इसकी परवाह नही है,  उनको  परवाह इसी की है कि वे जमीन के मालिक बने रहे। मैं आपको एक मजेदार बात जेंटलमैन किसको कहते हैं, कहना चाहता हूं। हेराल्ड लास्की ने अपनी किताब ‘(The Danger of being a Gentleman ‘  में लिखा है-The political failure of the gentleman,in a word,is the that he had not the imagination to perceive that the inevitable accompaniment of political democracy would be the demand for social equality”. यह बात मानी हुई बात है कि ‘जेंटलमैन’ जिनका वर्णन हेरल्ड लास्की ने किया है, वे सचमुच में नहीं चाहते है कि जमीन की पैदावार बड़े या जमीन का बंटवारा हो। आज हंगर और स्टार्वेशन की बात होती है इसका कारण यह नहीं है, की जमीन के पैदावार कम होती है, बल्कि जमीन की पैदावार इसलिए कम है कि डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ आर्गेनाइजेशन की जो व्यवस्था है, वह ठीक नहीं है।आज 16 मिलियन एकड़ जमीन संसार में है, जिसमें दो मिलियन एकड़ जमीन खेती लायक है। न्यूट्रिशन  कमेटी की सिफारिश के आधार पर यू, एन, ओ, के एक्सपर्ट ने लिखा है की दुनिया के दो तिहाई लोगों को बैलेंस डाइट नहीं मिलता है उन्होंने यह भी लिखा है की हर इंसान को बैलेंस डाइट मिलना चाहिए अभी दुनिया की आबादी तीन अरब है जिसमें से दो अब लोगों को बैलेंस डाइट नहीं मिल रहा है डाइट क्वांटिटी और क्वालिटी दोनों में! खराब और काम रहता है मैं उसकी  सिफारिश को पढ़कर सुनाता हूं-Authorities on agriculture and nutrition , studying the correction of area cultivated. and food supply in the light of modern knowledge of nutrition have estimated that about two acres per person will supply the indispensable elements of a rational diet.Cultivation according to that ratio would use one fourth of the world’s arable land .As yet ,the area cultivated has not reached 2 million acres, an eighth of the earth’s natural law  ”’ Essentially it is not a problem of production at all,but rather one of distribution.”—

 इसलिए हम कहना चाहते हैं की जो बिल सरकार ने पेश किया है और इस सदन की स्वीकृति उस पर चाहती है, उसमें अमेंडमेंट लाया जाए, उसमें चेंज ले और ऐसा ले जिसमें सचमुच में 12 लाख एकड़ के बदले 31 लाख 35 लाख या 40 लाख एकड़ जमीन मिल सके और उसका बटवारा गरीबों में किया जा सके।

*जारी है*

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