*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
ये तो सही बात नहीं है। अडानी जी और मोदी जी की दोस्ती के चर्चे जरा से पब्लिक की जुबान तक क्या पहुंच गए, मोदी जी के विरोधी अडानी भाई के ही पीछे पड़ गए। पता है कि मोदी जी का तो कुछ बिगाड़ नहीं सकते; फकीर आदमी हैं। दिल उखड़ गया, तो कभी भी झोला उठाकर निकल जाएंगे। जाना कहां है, यह तक नहीं सोचेंगे, बस निकल जाएंगे। घेरा-घारी की सारी मेहनत बेकार! सो मोदी जी का एवजीदार मानकर, बेचारे अडानी भाई के ही पीछे पड़े हुए हैं। पहले जब-तब छोटी-मोटी रिपोर्टें आती रहीं, कभी आस्ट्रेलिया से कोयले के आयात में, तो देश में यहां-वहां खदानों से खनिजों की निकासी में हाथ की सफाई की, तब तक तो दोस्तों ने खास नोटिस नहीं लिया; न मोदी जी ने और न अडानी जी ने। हां! अडानी जी ने एकाध पत्रकार, प्रकाशन वगैरह को, इज्जत हतक का सौ-सौ करोड़ का नोटिस जरूर भेज दिया और अदालत से कहकर अपने खिलाफ कुछ भी लिखने-दिखाने पर रोक लगवा दी। फिर भी इक्का-दुक्का रिपोर्टें आती रहीं, तो दोस्ती की खातिर अडानी जी ने वो चैनल ही खरीद लिया, जिसमें ऐसी खबरें आने का अंदेशा हो सकता था। न रहे बांस, न बजे बांसुरी; कोई आंच न आए, न दोस्तों पर और न दोस्ती पर।
लेकिन ‘‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’’ बैकग्राउंड में ही बज रहा था, तब भी विपक्षी ऐसे भड़क गए, जैसे सांड़ लाल कपड़ा देकर बिदकता है। अडानी भाई के खिलाफ अमरीका से किसी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ले आए। और लगे जय-वीरू की दोस्ती तुड़वाने के लिए, जेपीसी की मांग करने। मोदी जी ने भी कह दिया कि दोस्ती सलामत रहे, संसद के सत्र हजार आएंगे चलने-चलाने को। जेपीसी नहीं बनेगी। जेपीसी नहीं बनी, तो राहुल गांधी ने संसद में सीधे मोदी जी, अडानी जी की दोस्ती पर ही हल्ला बोल दिया। पर दोस्तों ने भी हल्ले के बाद, अगले को कुछ नहीं बोलने दिया। न संसद के उस सत्र में और न उसके आगे के सत्र में। राष्ट्रहित में अगले की संसद की सदस्यता ही खत्म करा दी। और सुप्रीम कोर्ट और सेबी से जांच की ऐसी जलेबी बनवायी कि जांच के बिना ही, क्लीन चिट का शंख बजवा दिया।
पर अब भाई लोग किसी ओसीसीआरपी यानी संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजैक्ट की रिपोर्ट ले आए हैं। और रिपोर्ट भी ऐसी जो पत्रकारों की रिपोर्ट होने का दावा तो करती ही है, खुद हिंडनबर्ग रिपोर्ट लिखने वालों के हिसाब से, घोटाले की उनकी कहानी में छूट गयी जगहों को भी भरती है। कहते हैं कि इस रिपोर्ट में मनी ट्रेल है — पैसा कहां आया और कहां पहुंचा! पर यह रिपोर्ट कहे कुछ भी, बताती क्या है? यही तो कि अडानी की कंपनियों के शेयरों की खरीद में, बाहर बैठे अडानी के बड़े भाई ने बराबर पैसा लगाया है, बल्कि खुद भी नहीं लगाकर, एक किसी चीनी और एक यूएई वाले के जरिए लगवाया। हम पूछते हैं कि इसमें घोटाला क्या है, जिसकी जांच का इतना शोर मचाया जा रहा है? भाई का भाई की कंपनी के शेयरों में पैसा लगाना क्या अपराध है? और अपराध भी, संयुक्त परिवार के आदर्श पर चलने वाले हमारे देश में! तो क्या विदेश से कोई पैसा लगाए या लगवाए तो अपराध है? प्राब्लम क्या है, कहीं से भी आए, पैसा हमारे देश में तो आ ही रहा है! या छुप-छुपा के पैसा लगाने में प्राब्लम है? अब गुप्तधन, गुप्तदान की इतनी पुरानी परंपरा वाले इस देश में, कोई पैसा लगाकर भी गुप्त रखना चाहे, तो हम उसकी गुप्त रहने की इच्छा का आदर करेंगे या उस पर शक करेंगे, मनी ट्रेल का पीछा करते फिरेंगे!
पुरानी भारतीय परंपरा के हिसाब से आप लोगों ने कुछ भी गलत नहीं किया है। फिर क्या डरना, लगे रहो अडानी भाइयो। बस मोदी जी से दोस्ती बनाए रखना!
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*