सुसंस्कृति परिहार
20फरवरी को संपूर्ण पंजाब में एक साथ मतदान होने वाला है।कुल 117सीटों पर आजकल चुनाव चरम पर है । पूर्व में आकलन बता रहे थे कि पंजाब के दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी बनने के बाद पंजाब में कांग्रेस की राह आसान हो जाएगी क्योंकि वहां दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 36फीसदी है तथा किसान भाजपा या अकाली दल को समर्थन ना करके कांग्रेस को सहयोग करेंगे किंतु डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम-रहीम की जमानत के बाद स्थितियां बदलती नज़र आ रही हैं जिसे भाजपा ने साजिशन उसे जमानत दिलवाई है।क्योंकि पंजाब के मालवा के क्षेत्र के दलित उसके अनुयायियों में हैं।
इन पर चरणजीतसिंह चन्नी जी का अब कितना और कैसे ज़ोर चल पायेगा? उधर किसान संघर्ष समिति में शामिल 22संगठनों ने मिलकर नई पार्टी ने भी संयुक्त समाज मोर्चा बनाया है वह मैदान में है उन्होंने मोर्चे के बलबीर सिंह राजेवाल को अपना नेता चुना था ख़बरों के मुताबिक लेकिन वे अपने कुछ अन्य नेेेताओं के साथ अलग हो गए हैं।इसी सब के बीच निगाहें कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई राजनीतिक पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस पर भी है जो भारतीय जनता पार्टी और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखदेव सिंह ढींढसा की शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ मिल कर चुनावी मैदान में उतर रही है। चुनावों में डेरा सच्चाआम आदमी पार्टी को समर्थन दे सकता है क्योंकि आम आदमी पार्टी का प्रभाव भी मालवा के इलाके में है और डेरा भी वहीँ प्रभावी है। जबकि 2017में डेरे ने अकाली दल का समर्थन किया था। चूंकि अकाली दल सिखों का प्रतिनिधित्व करती है और सिख अभी भी इस बात से नाराज़ हैं कि डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को ईशनिंदा के मामले में अकाल तख़्त से माफ़ी दिलवाने में अकाली दल की भूमिका थी इसलिए नहीं लगता कि अकाली डेरे का समर्थन लेने की कोशिश भी करेंगे। इसलिए भाजपा की बी टीम को इसका फायदा मिल सकता है।
ऐसा लगता है चमकौर साहिब सीट पर ख़तरे को भांपते हुए भदौड़ सुरक्षित सीट से भी चरणजीत सिंह चन्नी को चुनाव लड़ाया जा रहा है। जबकि वे चमकौर साहिब से तीन बार विधायक चुने गए हैं।एक बार तो निर्दलीय जीते। भाजपा और शिरोमणि अकाली दल,बसपा का यहां ना के बराबर फिलहाल अस्तित्व है। लेकिन बी टीम आम आदमी पार्टी चूंकि विपक्ष की भूमिका में रही है उसे ही अन्य दल आगे सहयोग करेंगे।ये भाजपा की यहां कांग्रेस को चुनाव हराने की रणनीति है। पी एम और अमित शाह दोनों बुरी तरह कांग्रेस हटाने के लिए अनाप-शनाप बोले जा रहे हैं।इसी तर्ज पर चन्नी भी कुछ असंयत होकर ‘भैय्या’पर बोल गए।भूल गए वे भी उनके मतदाता है इसका असर उत्तर प्रदेश पर ज़रूर कुछ हो सकता यहां कुछ नहीं है।इस चूक के लिए चन्नी को माफी मांगनी चाहिए।
पंजाब मेहनतकश लोगों का प्रांत है। वहां जात पात का कोई बखेड़ा नहीं है । बचाई यह है कि यहां काम करने वाले मुख्यमंत्री का 1983-84 के बाद से अभाव बना हुआ है। अमूनन सभी मुख्यमंत्रियों ने अपनी दौलत बढ़ाने का ही काम किया जनता में इस बात को लेकर काफी नाराज़गी रही है इसलिए अमरिंदर सिंह को जब पंजाब के मुख्यमंत्री पद से हटाया गया तो जनता में ख़ुशी की लहर देखी गई। लेकिन भाजपा से कांग्रेस का रुख किए नवजोत सिद्धू का जब मुख्यमंत्री बनने का सपना टूटा तो वे आज तक पार्टी अध्यक्ष होते हुए भी चन्नी के साथ उचित तालमेल नहीं बना पाए।इसकी वजह से केजरीवाल अपनी स्थिति मजबूत मान रहे हैं।आगे वक्त पड़ने पर ऐसे लोगों का साथ भी ले सकते हैं।समझा जाता है उन्होंने ऐसे कई उम्मीदवारों से संपर्क भी साधा हुआ है।
जबकि केजरीवाल भागवत मान के बिना नहीं चलते। केजरीवाल कभी हिंदू ख़तरे में है ,की बात करते हैं तो कभी व्यापारी ख़तरे में है कह रहे हैं। घोषणापत्र में बड़ी बड़ी घोषणाएं करना ही उनका गहनतम प्रचार का हिस्सा है।जबकि जैसे मोदी सरकार के पास बुरी तरह फेल गुजरात माडल है केजरीवाल का इसी तरह दिल्ली माडल है जिसकी चर्चा वे नहीं करते। मोदी सरकार की तरह केजरीवाल का प्रचार प्रसार पर ज्यादा खर्चा हो रहा है इसलिए मीडिया केजरीवाल केजरीवाल का जाप कर रहा है। शायद केजरीवाल भाजपा के तमाम तौर तरीकों के साथ मैदान में उतरे हैं।कहा जाता है कि जब अभी खरीद फरोख्त टिकिट देने में की गई तो फिर आगे मध्यप्रदेश या कर्नाटक दोहराया जाने की संभावना बनती तो है।
बहरहाल सरसरी तौर पर कांग्रेस के खिलाफ कांटे की टक्कर का पुख्ता इंतजाम किया जा चुका है लेकिन अब पंजाब के मतदाताओं के विवेक पर निर्भर करता है कि वह कर्मठ मुख्यमंत्री चाहते हैं या दिल्ली जैसा ढुलमुल भाजपा का तरफदार मुख्यमंत्री । पंजाबियत का जवाब देखने देश बेताब है।