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*खाकी का भी तो मान है*

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              *अमित सिंह परिहार*

देश प्रदेश में संविधान और कानून की रक्षा करने वाली एजेंसी को अपने सम्मान के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना पड़े इससे अधिक शर्मनाक स्थिति और क्या होगी ।

पुलिस को किस हद तक पंगु बनाना चाहते है ये पॉलिटिशियन ये तो वही जाने ।

अंग्रेजो ने जो दमनकारी पुलिस सिस्टम बनाया वो उसके राजतंत्र को पोषित करने के लिए बनाया । देश आजाद हुए 75 वर्ष हो गए परंतु सिस्टम आज भी वही है बस इतना सा बदलाव है कि अंग्रेजो का स्थान सत्ताधारी पार्टियों ने ले लिया है ।

सत्ता में बने रहने के लिए अपने विरोधियों को निपटाने के लिए पुलिस खूब इस्तेमाल हो रही है । 

इसमें अकेला दोष सरकार का नही है  दोषी पुलिस ऑफिसर और कर्मी भी है जो मनचाही पोस्टिंग के लिए नेताओ के तलवे चाटते है । और उसके नतीजे ये मिलते है कि कानून सम्मत काम करने पर भी लात पड़ती है और सम्मान के लिए हाथ पसारना पड़ता है ।

पुलिस का हर अफसर और कर्मचारी  सत्ता की चापलूसी छोड़ दे तो ये दिन हरगिज़ न देखना पड़े ।

विपत्ति में भगवान के बाद पुलिस ही याद आती है ,पुलिस अपने सीमित संसाधनों से असीमित काम कर रही है 18 ,18 घंटे काम करती है , कोई पूछने वाला नही, जैसे पुलिस मानव न हो कर रोबोट हो ।

वोट की राजनीति के कारण जो अराजकता भरा वातावरण बना है और बनता जा रहा है तो लगता है इस रात की सुबह कब होगी ।

अराजक तत्व खुलेआम राजनीति का चोला ओढ़ मनमानी कर आम लोगो का जीवन दूभर कर रहे है ।और गिरा हुआ मनोबल लेकर पुलिस बगले झांक रही होती है।

आम आदमी के दिल मे पुलिस को जगह बनानी होगी,और जब आम आदमी पुलिस के साथ खड़ा मिलेगा तो किसी सत्ताधीश की हिम्मत नही होगी वो पुलिस का बाल भी बांका कर सके । पुलिस को अपने भीतर झांक कर रिफॉर्म होने की आवश्यकता है अपनी निष्ठा ईमानदारी,और रक्षक की भूमिका के साथ न्याय कीजिये,आम जनता आपके साथ अन्याय नही होने देगी ।

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