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*1956 मे अस्तित्व मे आए खंडवा संसदीय सीट,अब भी दामन साफ नही दिखाईं दे रहा

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इस संसदीय क्षेत्र से 9 बार कांग्रेस 8 बार बीजेपी 2 बार जनता पार्टी चुनाव जीती है दो बार उप चुनाव भी हुए पहला 1979 मे स्वर्गीय परमानंद गोविंदजीवाल की असमय मृत्यु और दूसरा 2021 मे ठाकुर नंदकुमार सिंह चौहान की मृत्यु उपरांत संपन्न हुए है …. 

 *2018 विधानसभा 2024 जनपथ अध्यक्ष के हार के मायने क्या ?*

राकेश चौकसे बुरहानपुर

बुरहानपुर की सियासत राजनीती के स्तर से उतरी या उतारी जाती दिखने लगी है, कभी सत्ता की सिरमौर दिखने वाली कांग्रेस आज सत्ता संघर्ष में दिखाई दे रही है। अहंकार से लबरेज कांग्रेस के मूल में कभी आजादी का अंश दिखाईं देता था जो बाद में अहंकार में तब्दील होने लगा था! इसी का फायदा उठा 

कांग्रेसी नेताओ ने, कद्दू, लौकी, डिंडे की सब्जी परोसकर कांग्रेसी कार्यकर्ताओ से जायके स्वाद के बारे में पूछते थे, उनकी पसंद -ना पसंद के बारे में नही। 

क्या स्वाद पूछकर कांग्रेसी कार्यकर्ताओ को चिढ़ाया नही गया था ? इस पार्टी के नेताओ ने इस पार्टी के खेवनहार कार्यकर्ताओ से कभी यह नहीं पूछा पेट भरा भी या नही। ठीक उसी प्रकार ना पसंद लोगो को छोटे बड़े चुनावो मे टिकट देकर जमीन से जुड़े नेताओ कार्यकर्ताओ की उपेक्षा कर  हमेशा उनका जायका बिगाड़ा ही है ! परिणाम आज पार्टी  नगर निगम, नगर परिषद,पंचायत चुनावों में सीमित अंक तालिका के दायरे में खड़ी दिखाईं दे रही है।

वही पूरे यौवन में शुमार भाजपा कस्बे, ग्राम ,तहसील, जिले से ऊपर उठकर प्रदेश के साथ देश की सत्ता शीर्ष की पार्टी बनकर खड़ी है । किंतु बीते  2018 और इसके बाद इस दल के नेताओ में भी अंको का गुबार भर गया है ! मतदाता, कार्यकर्ता चाहता कुछ और है और इन्हे परोसा कुछ और जा रहा है। सत्ता के नशे में मदमस्त पार्टी स्वतंत्रता के बाद पहला मौका है बुरहानपुर की नगर निगम मे वार्ड पार्षदों की संख्या पूर्व निर्धारित मानकों से अलग रही है। इस बार भाजपा ने कांग्रेस को पछाड़ा और निगम अध्यक्ष के लिए हुए चुनाव मे जीत का ताज कांग्रेस के सर चढ़वाया गद्दार आज भी पार्टी मे  इस चुनाव का गद्दार कौन ? आज तक पता नहीं लगा! क्योंकि निष्कासन का डंडा चला ही नही। वही भारतीय जनता पार्टी की हार सुर्खियो मे रही थीं। यही हाल शाहपुर नगर पंचायत मे देखने को मिला यहां भी सत्ता के शिखर पर पहुंचने के लिए एक योग्य नेत्री का विरोध महज इसलिए किया जा रहा  था वह विकास का नया अध्याय लिखने वाली अर्चना दीदी की समर्थक थी ? यहां भी विरोधी 2018 वाले ही। यहां भी पार्टी नेताओ को पूर्वानुमान था शाहपुर में भी बुरहानपुर विधानसभा की तरह पार्टी के बागी इस चुनाव खेले गए खेल को दोहराते दिखाईं देंगे पर मंसूबे साकार नही हो सके थे ?  अब भी *दामन साफ दिखाईं नही दे रहा* अतीत को कुरेदेंगे तो वर्तमान शर्मसार हो जाएगा ! इसलिए स्याही इजाजत नही दे रही।

शाहपुर के गद्दार 

  और बुरहानपुर के बागियो के समूह  को धत्ता बताकर दोनो क्षेत्रो के मतदाताओं ने अपना भविष्य अर्चना दीदी – साधना तिवारी के हाथो ही सुरक्षित समझ वोट दिया है।

आने वाला लोकसभा चुनाव मोदी के 400 प्लस के आंकड़े को छूने के लिए महत्वपूर्ण है। कांग्रेस मज़बूत उम्मीदवार की खोज कर भाजपा के लिए चुनौती खड़ी करना चाहती है।

2018 मे बुरहानपुर विधानसभा की हार और 2024 मे खकनार जनपथ अध्यक्ष चुनाव मे हार के मायने क्या?

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