शशिकांत गुप्ते
जब से आस्थावान लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है,तब से
कोई भी दिन राम भगवान के नाम से वंचित नहीं रहता है।
आमजन की बुनियादी समस्याओं की खबरें भलेही हाशिए पर चली गई हैं,लेकिन रामनाम की खबरें हर दिन,सुनने पढ़ने को मिल रही है। खबरों में पढ़ने और सुनने को मिलता है,फलां जगह कुछ धार्मिक आस्थावान लोग बाकयदा पवित्र रंग के दुपट्टे धारण कर हिंसा करते हैं और मुँह से जय जय श्रीराम का उच्चारण भी करतें हैं।
ये लोग श्रवण भक्ति के लिए सहयोगी होतें हैं। श्रवण भक्ति का महत्व समझने वाले बहुत ही सरल स्वाभव के लोग होतें हैं। इनलोगो को इस बात से कोई सरोकार नहीं रहता कि,
राम भगवान का नाम कोई भी व्यक्ति या समूह क्यों और किस मक़सद से ले रहा है।
श्रवण भक्ति का मतलब भगवान राम का नाम आदर से सुनना।
सकल सुमंगल दायक
रघुनायक गुण गान
सादर सुनही ते तरही
भव सिंधु बिना जलयान
कलयुग में श्रवण भक्ति की महिमा जानने के साथ ही रामजी की संपूर्ण कथा पढ़ने की कोशिश करते हुए यकायक सन 1963 में प्रदर्शित फ़िल्म बहुरानी के इस गीत का स्मरण हुआ। इस गीत को लिखा है,गीतकार हसरत जयपुरीजी ने.
काम क्रोध और लोभ का मारा
जगत न आया रास
जब जब राम ने जन्म लिया
तब तब पया वनवास
कलयुग तक चलती आई है
सतयुग की ये रीत
युग बदले जग बदला
पर बदल न पाया ये इतिहास
छोड़ के अपने महल दुमहले
जंगल जंगल फिरना
राम हर एक युग में आये
पर कौन उन्हें पहचाना
राम की पूजा की जग ने
पर राम का अर्थ न जाना
तकते तकते बूढ़े हो गए
धरी और आकाश।
गीत की इन पंक्तियों में लिखा है।
राम हर युग में आये
पर किसने उन्हें पहचाना?
यदि मनुष्य में सच में राम भगवान को पहचानने की क्षमता पैदा हो जाए तब मनुष्य में मनुष्यता जागृत हो जाएगी।
मनुष्यता जागृत होगी सारे विवाद ही समाप्त हो जाएंगे।
इस संदर्भ में प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी का यह शेर प्रासंगिक है
मज़हबी बहस मैंने की ही नहीं
फ़ालतू अक़्ल मुझ में थी ही नहीं
शशिकांत गुप्ते इंदौर