अनिमेष मुखर्जी
अगर एयर इंडिया और सूर्य कुमार यादव विमर्श से फुर्सत मिल गयी हो तो जानिए की भारत का एक पूरा शहर डूब रहा है। ऐसा वैसा शहर नहीं। शंकराचार्य और बद्रीनाथ तक पहुंचने का रास्ता।
घर चटखते जा रहे हैं और उनमें पानी भर रहा है। हैरानी की बात है कि इस पर सब चुप हैं। एक शहर का डूबना किसी विचारधारा को सूट नहीं करता।
लगभग एक दशक पहले उत्तराखंड में कई हफ्ते रहा था। तब पहाड़ के आखिरी छोर तक जाने वाली गाड़ियों की भीड़ नहीं थी। सरकारी कर्मचारियों के साथ भी रहा और किसानों के साथ भी, भूगर्भशास्त्रियों से भी खूब बात की। अनिल जोशी और सुन्दरलाल बहुगुणा जैसे हर व्यक्ति ने ढेर सारी समस्याएं गिनायीं।
बड़े लोगों को तकलीफ थी कि सरकार की योजनायें स्थानीय ज़रूरतों को देखकर नहीं बनायीं जाती हैं। कृषक महिलाओं को दिल्ली से आने वाले यात्रियों से समस्या थी। जो खेतों में लघुशंका करते, खाली पैकेट और बोतलें फेंकते और जिनके चक्कर में हर जगह पॉलिथीन हो जाती।
खैर, जोशीमठ अब बियॉन्ड रिपेयर वाली स्थिति में पहुंचने वाला है, लेकिन आप जो मैगी और चाय के फोटो डालने के चक्कर में एक पूरे इकोसिस्टम की ऐसी तैसी कर रहे हैं अगला दशक खत्म होते-होते ये आंच दिल्ली तक आएगी। इंस्टाग्राम का कोई फिल्टर इसे नहीं रोक पायेगा। यकीन न हो तो थोड़ा गूगल करिए।
कार्बन एमिशन से हर वीकेंड पहाड़ों को रौंदने वालों के लिये बशीर बद्र का एक शेर है, लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम आह भी नहीं करते बस्तियां जलाने में।
बाकी जोशीमठ की आपदा में धार्मिक एंगल और मुसलमानों के सिर इसका दोष मढ़ने के लिये आईटी सेल सक्रिय हो चुका होगा, तो तब एक नया विमर्श चालू होगा।