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कंस और जरासंध के दृष्टिकोण से कृष्ण एक हमलावर

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व्यापार युद्ध रोकते हैं। इसमें आप कुछ देते हैं और बदले में कुछ पाते हैं। लेकिन जब आप जमाखोरी यो बेईमानी करने लगते हैं, तो युद्ध तय है। आजकल उद्यमियों की तरह नेता खुद को योद्धा के रूप में देखना पसंद करते हैं। यह उन्हें हमलावर बनाता है, जो कर्मचारियों, ग्राहकों और बाजारों से पैसा निकालते हैं। यह उन्हें शोषक बनाता है। यह उनकी छवि के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए वे सलाहकारों और मीडिया को बुलाते हैं और अपने युद्ध को न्याययुद्ध में बदल देते हैं। वे कहते हैं कि उनकी लूट की वजह लोगों की रक्षा या उन्हें सभ्य बनाना या किसी पुरानी गलती को ठीक करना है। इतिहास ऐसे लोगों और उनके किस्सों से भरा पड़ा है।

देवदत्त पटनायक

इलाका अगर हरा-भरा है तो वहां चलेगा व्यापार। लेकिन जमीन अगर रेतीली या पथरीली है तो वहां चलती है, भूखे लोगों की लूटपाट। राजपूताना यानी रेगिस्तान ऐसे लोगों की कहानियों से भरा पड़ा है, जिन्होंने गंगा के उपजाऊ मैदानों पर राज करने वालों को नहीं माना। जरासंध और कृष्ण की कहानी इसे और साफ करती है। वहीं पाबू का सदियों पुराना महाकाव्य रेगिस्तानी हमलावरों और नदी के उपजाऊ मैदानों के अमीर व्यापारियों के बीच का तनाव दिखाता है। पाबूजी कहानी राजस्थान में हजारों वर्षों से कही जा रही है।

अपनी भतीजी को ऊंटों का उपहार देने के लिए पाबूजी ने लंका पर हमला किया, रावण को हराया और दूर देश से ऊंट लूट ले आए। इसके चलते एक राजकुमारी उनसे शादी करना चाहती थी। शादी हो रही थी कि पाबू की गायें चोरी होने लगीं। चोरों का सरदार उसकी अपनी बहन का पति था। पाबू चाहते तो अपने चोर बहनोई को मार सकते थे, लेकिन वह अपनी बहन को विधवा नहीं करना चाहते थे। खैर, पाबू की मौत हुई और जो राजकुमारी उनसे शादी करना चाहती थीं, वह आधी दुल्हन बनीं उनके साथ सती हो गईं। बाद में पाबू की बहन के बेटे ने अपने पिता की हत्या करके पाबू की मौत का बदला लिया। इसके बाद वह संन्यासी बन जाता है क्योंकि वह देख चुका था कि महत्वाकांक्षा किस तरह से युद्ध, मृत्यु और अंतत: दुख का कारण बनती है।

कहानी में पाबू ऊंटों के लिए जहां हमला करता है, उसका नाम लंका बताया गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे उसकी लूट का दाग मिट जाता है। पौराणिक कथाओं में लंका का राजा रावण अधर्मी है, जो दूसरों की पत्नियां चुराता है। मगर कर्म का सिद्धांत कहता है कि जो जैसा करेगा, वैसा ही भरेगा। इसलिए अपनी गायों को चोरों से बचाते हुए पाबू की मृत्यु हो जाती है। यहां वह न्यायप्रिय शख्स के रूप में सामने आते हैं। वहीं, बहनोई पर हमला नहीं करके पाबूजी आदर योग्य व्यक्ति भी बन जाते हैं।

व्यापार युद्ध रोकते हैं। इसमें आप कुछ देते हैं और बदले में कुछ पाते हैं। लेकिन जब आप जमाखोरी यो बेईमानी करने लगते हैं, तो युद्ध तय है। आजकल उद्यमियों की तरह नेता खुद को योद्धा के रूप में देखना पसंद करते हैं। यह उन्हें हमलावर बनाता है, जो कर्मचारियों, ग्राहकों और बाजारों से पैसा निकालते हैं। यह उन्हें शोषक बनाता है। यह उनकी छवि के लिए अच्छा नहीं है। इसलिए वे सलाहकारों और मीडिया को बुलाते हैं और अपने युद्ध को न्याययुद्ध में बदल देते हैं। वे कहते हैं कि उनकी लूट की वजह लोगों की रक्षा या उन्हें सभ्य बनाना या किसी पुरानी गलती को ठीक करना है। इतिहास ऐसे लोगों और उनके किस्सों से भरा पड़ा है।

इसमें कोई शक नहीं कि साम्राज्य का निर्माण करने वाले शांति स्थापित करते हैं, व्यापार मार्ग बनाते हैं। लेकिन वे उन्हें पसंद नहीं करते, जो स्वतंत्रता चाहते हैं। कृष्ण और कंस का ही उदाहरण लें। कृष्ण खानाबदोश ग्वालों के प्रतीक हैं, वह स्वायत्तता चाहते हैं। कंस मथुरा का तानाशाह है, जनपद तोड़ता है। कंस को उसके ससुर मगध के राजा जरासंध का समर्थन हासिल है। कंस का इंद्र और इस तरह से बारिश पर नियंत्रण है। जरासंध आखिर में इंद्र को बुलाकर मथुरा में जमकर बारिश करवाता है, तब कृष्ण गोवर्धन पर्वत की मदर लेकर अपने लोगों और गायों की रक्षा करते हैं। शक्ति अब कृष्ण के पास है। मगर इस सच को मानकर व्यापार बढ़ाने की बजाय कंस कृष्ण को मारना चाहता है और कुश्ती मैच में बुलाता है।

पूरे रेगिस्तान में हमें ऐसे पत्थर मिलते हैं जो उन लोगों को समर्पित हैं जो चोरों से समुदाय के मवेशियों की रक्षा करते हुए मर गए। कृष्ण शायद इन्हीं वीरों में से उभरे थे। जब कृष्ण कुश्ती के मैदान में कंस को मारते हैं, तो जरासंध मथुरा पर हमला करके उसे फूंक देता है। तब कृष्ण को रेगिस्तान से भागकर द्वारका में बसना पड़ता है। बाद में पांडवों की मदद से वह जरासंध के टुकड़े-टुकड़े करके अपना बदला पूरा करते हैं, जो शायद राज-मंडल को तोड़ने और जनपद को वापस लाने का एक रूपक था।

चूंकि कृष्ण विजेता हैं, इसलिए हम उन्हें न्याय के चैंपियन के रूप में देख सकते हैं। हालांकि, कंस और जरासंध के दृष्टिकोण से देखने पर कृष्ण एक हमलावर दिखेंगे, जिनकी गायें और चरागाह उन खेतों पर अतिक्रमण करते हैं, जो जमींदारों के लिए आमदनी का जरिया हैं। इनमें से आप कौन सा सत्य चुनेंगे, यह बहुत कुछ इस बात पर है कि आप अपनी आर्थिक और राजनीतिक स्थिति कहां से पाते हैं।

(बिजनेस सूत्र के लेखक देवदत्त पटनायक का यह लेख 6 जनवरी, 2024 को इकॉनमिक टाइम्स में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था, जिसका यह संक्षिप्त हिंदी अनुवाद है। पूरा लेख आप इकॉनमिक टाइम्स में पढ़ सकते हैं)

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