पहले कोविड और अब जातीय हिंसा से कुकी महिलाओं और बच्चों के जीवन संघर्ष को लेकर मैरी ग्रेस ज़ोउ कहती हैं कि हम मणिपुर की महिलाएं रो रही हैं। मणिपुर में कुकी समुदाय मुश्किल से जीवित रह रहा है। पढ़ें, वेब पोर्टल ‘द वायर’ के लिए करण थापर द्वारा किए गए साक्षात्कारों पर आधारित यह प्रस्तुति
सुशील मानव
करीब 28.55 लाख आबादी वाले पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में तीन प्रमुख समुदाय हैं – बहुसंख्यक मैतेई और जनजातीय कुकी एवं नागा। तथाकथित तौर पर करीब 53 प्रतिशत आबादी वाला मैतेई समुदाय आर्थिक और राजनीतिक रूप से राज्य का सबसे प्रभावशाली समुदाय है। मौजूदा मुख्यमंत्री बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय से आते हैं। जबकि राज्य की 40 प्रतिशत आबादी (अनुमानित तौर पर) कुकी और नागा समुदाय की है। मैतेई समुदाय सूबे के मैदानी इलाके इंफाल में रहती है जो कि कुल क्षेत्रफल का 10 प्रतिशत है। वहीं कुकी और नागा आबादी पहाड़ी इलाके में रहती है। यह राज्य के कुल क्षेत्रफल का 90 फीसदी है।
धार्मिक दृष्टि से बात करें तो मणिपुर में 41.39 प्रतिशत हिंदू, 41.29 प्रतिशत ईसाई और 8.4 प्रतिशत इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं। बहुसंख्यक मैतेई हिंदू धर्म मानते हैं। जबकि नागा, कुकी और अन्य जनजातियों के लोग ईसाई धर्म को मानते हैं।
जातीय हिंसा की पृष्ठभूमि
मणिपुर में जारी हिंसा के पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला, बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा दिया जाना। इस फैसले का प्रमुख जनजाति समुदाय कुकी और नागा विरोध कर रहे हैं।
दूसरा कारण है– भाजपा की अगुवाई वाली एन. बीरेन सिंह सरकार द्वारा सरकारी जमीन सर्वेक्षण करवाकर आरक्षित वन क्षेत्र से आदिवासी ग्रामीणों को बेदखल करना। कुकी और नागा समुदाय इसे खुद को जंगल से बाहर किए जाने की कार्रवाई के तौर पर देख रहा है।
वहीं दूसरी ओर असम की ही तरह मणिपुर में भी अफवाह फैलाई गई है कि वहां म्यांमार और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी बस रहे हैं, जिनकी वजह से मैतेई समुदाय को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मैतेई समुदाय के नेता लंबे समय से बहुसंख्यक मैतेई के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा मांगते आ रहे हैं। मणिपुर हाईकोर्ट ने गत 20 अप्रैल, 2023 को राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह चार सप्ताह के अंदर मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा देने की मांग पर केंद्र सरकार को अपनी सिफ़ारिश भेजे।
राजधानी इंफाल से करीब 63 किमी दूर कुकी बाहुल्य चुराचंदपुर जिले में द इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने सरकारी जमीन सर्वेक्षण के विरोध में 28 अप्रैल, 2023 को 8 घंटे बंद का ऐलान किया। ठीक इसी दिन मुख्यमंत्री बीरेन सिंह का भी जिले में रैली और उद्घाटन कार्यक्रम था। लेकिन 27 अप्रैल की रात में भीड़ द्वारा मुख्यमंत्री के कार्यक्रम वाली जगह पर तोड़-फोड़ किया गया और जिस जिम कॉम्पलेक्स का उद्घाटन होना था, वहां भी तोड़-फोड़ और आगजनी हुई। मुख्यमंत्री को अपना दौरा रद्द करना पड़ा। पुलिस और प्रदर्शनकारी आमने-सामने आ गए। उसी रात फॉरेस्ट रेंज ऑफिस को आग के हवाले कर दिया गया।
फिर 3 मई, 2023 को कुकी और नागा आदिवासियों ने मिलकर सभी 10 पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकालने का ऐलान किया। इस यात्रा का आयोजन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (एटीएसयूएम) ने किया। इस यात्रा के दौरान मैतेई-कुकी समुदायों के बीच संघर्ष शुरु हुआ। यह देखते ही देखते हिंसक हो गया। मणिपुर में भड़की हिंसा में अब तक कम से कम एक सौ लोग मारे जा चुके हैं और एक लाख से ज्यादा लोग अपने घर-बार छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए हैं। इस हिंसा के कारण आम लोग बहुत तकलीफें उठा रहे हैं और महिलाओं, बच्चों व विस्थापितों की हालत दयनीय है।
इस स्थिति से निपटने में सूबे की सरकार विफल रही है। कुकी और अन्य मुख्यतः ईसाई आदिवासी समूहों और उनकी संपत्ति को निशाना बनाया जा रहा है। हिंसक भीड़ गिरजाघरों को चुन-चुनकर नष्ट कर रही है। अब तक करीब तीन सौ गिरजाघर हिंसा की आग में खाक हो चुके हैं।
डेढ़ महीने से जारी हिंसा के बाद आज भी हालत यह है कि इंफाल घाटी में कोई कुकी नहीं है और शायद पहाड़ी क्षेत्र में कोई मैतेई नहीं है। दूसरे शब्दों में, वास्तव में, जनसांख्यिकीय अलगाव हासिल कर लिया गया है। इसके अलावा 10 कुकी विधायकों, जिनमें सत्तारूढ़ भाजपा के सात और दो कुकी पीपुल्स एलायंस केंद्र शासित प्रदेश या अलग राज्य के रूप में अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं।
कुकी और मैतेई समुदायों के बीच विभाजन गहराया
मणिपुर के नाटककार व निर्देशक रतन थियाम मणिपुर में हुई त्रासदी से हताश हैं। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा है कि कुकी और मैतेई समुदायों के बीच गुस्सा और विभाजन इतना गहरा हो गया है कि इसे सुलझाया नहीं जा सकता है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व निदेशक थियाम पीएम मोदी की चुप्पी से भी हैरान हैं। वह कहते हैं कि अपने ‘मन की बात’ रेडिया कार्यक्रम में प्रधानमंत्री गुजरात में चक्रवात और 40 साल पुराने आपातकाल के बारे में बोलने के लिए समय निकाल लेते हैं, लेकिन मणिपुर हिंसा पर एक भी शब्द बोलने के लिए उनके पास वक़्त नहीं है। जबकि मणिपुर के लोग अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे हैं और पूछ रहे हैं, कहां जाएं? क्या करें?
मणिपुर के सबसे प्रतिष्ठित रंगमंच कलाकारों में से एक थियाम आगे कहते हैं कि जब तक सुलह संभव नहीं है या नहीं होती है, तब तक, कुकी और मैतेई समुदायों के बीच विश्वास बहाल नहीं किया जा सकता है। यदि दोनों समुदाय एक साथ खुशी से नहीं रह सकते हैं तो शायद वे पड़ोसियों के रूप में खुशी से रहने में सक्षम हो सकते हैं? मध्यस्थता की भूमिका निभाने के लिए तैयार थियाम कहते हैं कि अगर प्रधानमंत्री या केंद्रीय गृहमंत्री उनसे मणिपुर में एक सुलह प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहते हैं तो वह ऐसा करने के लिए तैयार हैं।
कुकियों के लिए एक अलग प्रशासन देने के अलावा कोई विकल्प नहीं
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर खाम खान सुआन हाउजिंग मानते हैं कि कुकियों के लिए एक अलग प्रशासन देने के अलावा अब कोई और विकल्प नहीं है। ऐसे में केंद्र सरकार को अपना राजनीतिक निर्णय लेना चाहिए। केंद्र सरकार को अपना राजनीतिक रूप और आकार तय करना चहिए। वह आगे कहते हैं कि युनाइटेड मणिपुर में ज़मीन के विवाद को सुलझाया जा सकता था, लेकिन अब उसका वक़्त निकल चुका है।
प्रोफेसर हाउजिंग दावा करते हैं कि कुकी के लिए एक अलग प्रशासन ही उनके और मैतेई के बीच की समस्या को हल कर सकता है, यह नागालैंड के साथ विलय के लिए मणिपुरी नागाओं द्वारा लंबे समय से किए गए दावे के लिए भी आधार तैयार करेगा। साथ ही वह ज़ोर देते हैं कि एक ट्रुथ एंड रिकांसिलेशन कमीशन की ज़रूरत है, क्योंकि भले ही दोनों समुदाय अलग हो जाएं, फिर भी उन्हें शांतिपूर्ण सामंजस्यपूर्ण पड़ोसियों के रूप में रहने की ज़रूरत है और यही कारण है कि कुकी को अलग प्रशासन देने के बाद भी, एक सुलह-सफाई आयोग की आवश्यकता है।
महिला नेताओं से मिले भारत सरकार
मौजूदा संकट को ‘मणिपुर के इतिहास का सबसे बुरा दौर’ करार देते हुए मैतेई समुदाय की प्रमुख बुद्धिजीवी, बीनालक्ष्मी नेप्राम मणिपुर में चल रहे संकट पर चुप रहने के लिए प्रधानमंत्री की आलोचना करती हैं।
शांति के लिए पूर्वोत्तर भारत महिला पहल की संयोजक बीनालक्ष्मी नेप्राम कहती हैं कि साल 2002 में दंगों को रोकने में गुजरात में केवल तीन दिन लगे। इसके विपरीत, मणिपुर में संकट छह सप्ताह से ज़ारी है।
वह उल्लेख करती हैं कि कुकी और मैतेई महिलाएं, अन्य उत्तर पूर्वी समुदायों की महिलाओं के साथ, समस्या का समाधान करने की कोशिश करने के लिए एक साथ आई हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को ज्ञापन दिया है। उन्होंने उनसे मुलाकात करने की मांग की है। लेकिन प्रधानमंत्री या गृह मंत्री की ओर से उन्हें मिलने की अनुमति या कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। भारत सरकार को महिला नेताओं से मिलना चाहिए। वह कहती हैं कि हम आबादी का 50 प्रतिशत हैं। आप हमसे क्यों नहीं मिल सकते?
उन्होंने अपनी मांगों के बारे में कहा कि महिलाएं एक सुलह आयोग, क्षतिपूर्ति, राहत और पुनर्वास पर एक समिति और शिकायतों के समाधान के लिए एक अन्य समिति की मांग कर रही हैं।
भारत सरकार की विफलता पर सवाल खड़े करते हुए वह कहती हैं कि यदि वे व्यवस्था बहाल नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति को लाना चाहिए, और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र शांति सेना पर भी विचार करना चाहिए।
वहीं कुकी महिला मंच की संयोजक मैरी ग्रेस ज़ोउ केंद्र और राज्य सरकार की भूमिका पर निराशा और नाराजगी जाहिर करते हुए कहती हैं कि उनका समुदाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह में ‘विश्वास खो रहा है’ और समझ नहीं पा रहा है कि वे मुख्यमंत्री के रूप में बीरेन सिंह के साथ क्यों खड़े हुए हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, आखिर क्या विकल्प है – क्या हमारे पास केंद्र सरकार से आशा रखने के अलावा कुछ नहीं है?
बीरेन सिंह को मणिपुर के मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग करते हुए वह उन्हें कुकी विरोधी होने के साथ-साथ केंद्र सरकार को गुमराह करने का आरोप लगाती हैं। वह निराश स्वर में कहती हैं कि कुकी और मैतेई ‘ब्रेकिंग पॉइंट’ पर खड़े हैं।
पहले कोविड और अब जातीय हिंसा से कुकी महिलाओं और बच्चों के जीवन संघर्ष को लेकर मैरी ग्रेस ज़ोउ कहती हैं कि हम मणिपुर की महिलाएं रो रही हैं। मणिपुर में कुकी समुदाय मुश्किल से जीवित रह रहा है। कोविड-19 महामारी के अनुभव के बाद, मणिपुर में स्कूलों के पूर्ण रूप से बंद होने का मतलब है कि बच्चों की एक पूरी पीढ़ी अपनी शिक्षा से चूक गई है। बुजुर्ग कुकी जब बीमार पड़ते हैं तो उन्हें मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पतालों तक पहुंच नहीं मिलती, क्योंकि वे सभी इंफाल घाटी में हैं। इसके बजाय, उन्हें मिजोरम से होकर कोलकाता और दिल्ली जैसे महानगरीय केंद्रों तक की यात्रा करनी पड़ती है। जबकि कुकी स्त्रियां अपना घर चलाने और अपने बच्चों का पेट भरने के लिए संघर्ष कर रही हैं। रसोई गैस की कीमत दोगुनी हो गई है। दैनिक वेतन आय पर निर्भर लोगों के लिए यह विशेष रूप से कठिन है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र के विशेषज्ञ व जेएनयू में अध्यापक प्रो. बिमोल एकोइजाम का कहना है कि पूर्वोत्तर और शेष भारत के बीच नरेंद्र मोदी एक बड़ी फॉल्ट लाइन के प्रतीक हैं। मणिपुर में संकट, जो अब छठे सप्ताह में भी जारी है, पर मोदी की जानबूझकर धारण की गई चुप्पी दुखद है। इससे पता चलता है कि प्रधानमंत्री बेफिक्र और उदासीन हैं। वहीं मीडिया को कटघरे को खड़ा करते हुए वह कहते हैं कि समस्या को समझने और बुझाने के बजाय मीडिया ने समस्या के प्रमुख अंतर्निहित कारणों को समझे बिना भावनाओं को भड़का दिया है।
उनका कहना है कि ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जानबूझकर केवल बांटों और राज करो नीति के तहत भौगोलिक स्थिति का ग़लत विभाजन किया गया, जिसे आज़ाद भारत की सरकारों ने भी बनाए रखा। और मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार अधिनियम, 1960 जैसे कानून बनाए, जो मैतेई समुदाय को पहाड़ी में ज़मीन ख़रीदने से रोकते हैं। इसने उन लोगों को, जो (जनजातीय मूल व भाषा के आधार पर) एक जैसे थे, भौगोलिक आधार (घाटी और पहाड़) पर खुद को अलग समझने के लिए प्रेरित किया। जो लोग भाई-बहन हैं, वे एक-दूसरे को विरोधी और दुश्मन समझने लगे। चुनावी राजनीति ने इस स्थिति को और बढ़ा दिया है, क्योंकि राजनेता उन समुदायों से अपील करते हैं, जिनसे वे वोट चाहते हैं, जो उस समुदाय के लिए विशिष्ट हैं और इस प्रकार पहाड़ी और घाटी के लोगों के बीच विभाजन को बढ़ाया गया।
वे कहते हैं कि संकट के समाधान के लिए लोगों की कानूनी/अवैध स्थिति का उचित व्यवस्थित संवैधानिक सत्यापन भी आवश्यक है। उनका सुझाव है कि पहाड़ी जनजातियों (कुकी और नागाओं) को अधिक अधिकार देने का एक तरीका यह होगा कि जनसंख्या के आकार के आधार पर नहीं, बल्कि जिलों की संख्या (नागा-कुकी बाहुल्य अधिकांश जिले पहाड़ी क्षेत्रों में हैं) के आधार पर मणिपुर विधानसभा का दूसरा सदन बनाया जाए।
केंद्र सरकार एक तरह से कुकी समुदाय पर मैतेई हमलों का कर रही समर्थन
नागा समुदाय के सबसे सम्मानित बुजुर्ग राजनेताओं में से एक थुइंगलेंग मुइवा और महान नेता ए.जेड. फ़िज़ो के भतीजे निकेतु इरालु अलग प्रशासन की मांग पर कहते हैं कि मणिपुर में व्यवस्था बहाल करने में भारतीय अर्धसैनिक बलों की विफलता ‘जानबूझकर’ की गई है। गृह मंत्री का मणिपुर आने में देरी पर संदेह और चिंता जताते हुए वह आगे कहते हैं मैतेई संगठनों द्वरा लगभग तीन सौ चर्चों को निशाना बनाने से यह संदेह पैदा होता है कि आरएसएस और अन्य हिंदुत्व ताक़तें जानबूझकर मणिपुर में परेशानियों को सांप्रदायिक रंग दे रही हैं।
इरालू ने मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी चुप्पी पर सवाल उठाया कि “प्रधानमंत्री एक शब्द भी क्यों नहीं बोल रहे हैं? क्या वह सिर्फ़ भाजपा के प्रधानमंत्री हैं? या पूरे भारत का?” वह स्पष्ट कहते हैं कि भारत के लिए यह बहुत ख़तरनाक़ स्थिति है। वे आगे कहते हैं कि कुकियों का कहना है कि यह वास्तव में मैतेई द्वारा किया जा रहा जातीय सफाया है। दूसरी ओर मैतेई हैं जो कुकी को नार्को-आतंकवादी बताकर हिंसा के पीछे उनका हाथ बता रहे हैं।
पूर्वोत्तर और नई दिल्ली के बीच विश्वास की कमी पैदा होने के सवाल पर वह स्पष्ट कहते हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाना ‘प्रतिशोध’ था। और पूरा नॉर्थ ईस्ट इस बात से डरा हुआ और चिंतित है कि अनुच्छेद 371 जो कई उत्तर पूर्वी राज्यों की विशिष्ट पहचान की रक्षा करता है, को भी इसी तरह निरस्त किया जा सकता है।
सेना और अर्धसैनिक बल हिंसा रोकने में सफल नहीं हुए क्योंकि उन्हें स्पष्ट आदेश नहीं दिए गए
पांच बार विधायक रहे कांग्रेस नेता हेमोचंद्र सिंह मणिपुर के मौजूदा हालात को क़ाबू में करने के लिए दो आवश्यक तत्काल कदम सुझाते हैं। पहला यह कि सेना और अर्धसैनिक बलों को हिंसा (जातीय और सांप्रदायिक) पर काबू पाने के स्पष्ट आदेश दिए जाने चाहिए। उन्होंने दावा किया कि उन्हें मणिपुर से जो रपटें मिली हैं, उनसे पता चलता है कि अब तक सेना और अर्धसैनिक बल हिंसा रोकने और हालात संभालने में सफल नहीं हुए हैं और ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें स्पष्ट आदेश नहीं दिए गए हैं। वे कहते हैं कि शायद राष्ट्रपति शासन की घोषणा करना आवश्यक है ताकि दिल्ली प्रत्यक्ष प्रभार ले सके और भारतीय राज्य के अधिकार का उपयोग करके अमन-चैन सुनिश्चित कर सके। कांग्रेस नेता ने आगे कहा कि एक बार शांति और कानून व्यवस्था बहाल हो जाने के बाद कुकी और नागाओं के प्रतिरोध को बातचीत के माध्यम से दूर किया जा सकेगा।
समग्र रूप से पूर्वोत्तर के बारे में बोलते हुए हेमोचंद्र सिंह ने कहा कि दिल्ली की सरकारों को यह समझना चाहिए कि पूर्वोत्तर के विभिन्न समुदायों के लोगों के लिए उनकी विशिष्ट पहचान कितनी महत्वपूर्ण है और इसलिए उन्हें विश्वसनीय आश्वासन दिया जाना चाहिए कि अनुच्छेद 371 के साथ छेड़छाड़ या निरस्त नहीं किया जाएगा, जैसा कि साल 2019 में धारा 370 के साथ किया गया। वे भारतीय संविधान के तीसरे अनुच्छेद में संशोधन करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं ताकि संसद अपने दम पर राज्य विधानमंडल की सहमति के बिना किसी राज्य की सीमाओं को नहीं बदल सके।
सरकार जल्दी से हस्तक्षेप नहीं करेगी तो गृहयुद्ध में कुकी अपनी रक्षा नहीं कर पाएंगे
जिन दो संगठनों पर मणिपुर की वर्तमान समस्याओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने और हिंसा, लूटपाट और चर्चों को जलाने और जातीय सफाये के आरोप लग रहे हैं उनमें से एक ‘मैतेई लीपुन’ के प्रमुख प्रमोत सिंह कहते हैं कि मौजूदा संघर्ष से मैतेई लोगों के एक वर्ग द्वारा महसूस की गई पीड़ा और अन्याय की भावना के साथ-साथ कुकी के प्रति उनकी गहरी नापसंदगी का भी पता चलता है। वे स्पष्ट तौर पर दोनों सरकारों को चेतावनी देते हुए कहते हैं कि दिल्ली और मणिपुर की सरकार जल्दी से हस्तक्षेप नहीं करती हैं तो गृहयुद्ध होगा और कुकी समुदाय अपनी रक्षा करने में सक्षम नहीं होंगे।
प्रमोत सिंह ने दावा किया कि 15 किमी क्षेत्र में कुकियों ने अवरोध और अतिक्रमण किया है, जिसका सफाया कर दिया जाएगा। मैतेई लीपुन के प्रमुख ने दावा किया कि कुकी बाहरी हैं, वे परिवार का हिस्सा नहीं हैं। वे मणिपुर के मूल निवासी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि कुकी मणिपुर में किरायेदार की तरह हैं और अधिकांश कुकी अवैध हैं।
गत 6 जून, 2023 को करण थापर के साथ एक इंटरव्यू में बात करते हुए प्रमोत सिंह स्वीकार करते हैं कि मैतेई लीपुन उन लोगों को बंदूक प्रशिक्षण देने में शामिल है, जिनके पास बंदूक का लाइसेंस है। मैतेई लीपुन का आरएसएस या अन्य हिंदुत्व समूहों से कोई आधिकारिक संबंध होने से इंकार करते हुए प्रमोत सिंह बताते हैं कि वह व्यक्तिगत रूप से एबीवीपी का सदस्य रहे हैं और इससे काफी प्रभावित हैं। वे अपने संगठन मैतेई लीपुन का दूसरे मैतेई संगठन ‘अरामबाई तेंगगोल’ के साथ किसी भी तरह के संबंध से भी इंकार करते हैं।
गौरतलब है कि मैतेई लीपुन के अलावा अरामबाई तेंगगोल पर भी कुकियों के ख़िलाफ हिंसक अभियान में शामिल होने का आरोप है।
बता दें कि 28 अप्रैल को मैतेई लीपुन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट करके अपील किया गया कि “आइए पहाड़ों पर अपने पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी का सफाया करें।” वहीं 2 मई को (हिंसा शुरू होने से एक दिन पहले) मैतेई लीपुन के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने जवाबी कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा था, “अपनी स्थिति को भौतिक रूप से लागू करना हमारा कर्तव्य है”।
मुख्यमंत्री जानबूझकर कुकियों को बना रहे हैं निशाना
कुकी लोगों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग करने वाली सबसे मजबूत आवाज़ों में से एक कुकी पीपुल्स एलायंस के महासचिव विल्सन लालम हैंगशिंग का कहना है कि कुकी के लिए उसी राज्य में मैतेई लोगों के साथ रहना ‘असंभव’ है। विल्सन लालम हैंगशिंग ज़ोर देकर कहते हैं कि कुकी लोग एक अलग प्रशासन की अपनी मांग से पीछे नहीं हटेंगे। मणिपुर के भीतर स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदों का विकल्प पूरी तरह से खारिज करते हुए वो कहते हैं कि वे लोग अलग प्रशासन द्वारा एक अलग राज्य या केंद्र शासित प्रदेश चाहते हैं।
मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली बीरेन सिंह सरकार का समर्थन देती आ रही कुकी पीपुल्स अलायंस के प्रमुख हैंगशिंग ने बीरेन सिंह ‘कुकी विरोधी’ करार देते हुए कहा कि कुकी पीपुल्स एलायंस ने बीरेन सिंह पर विश्वास खो दिया है। हालांकि उन्होंने अभी तक तकनीकी रूप से समर्थन वापस नहीं लिया है। उन्होंने मौजूदा कुकी-मैतेई समस्या के लिए बीरेन सिंह और पिछले 4-5 वर्षों के उनके व्यवहार को जिम्मेदार ठहराया। हैंगशिंग ने बीरेन सिंह की एक गैर-जिम्मेदारी और बेहद परेशान करने वाले कृत्य का खुलासा करते हुए बताया कि बीरेन सिंह को भाजपा के ही एक विधायक लेटपाओ हाओकिप ने बार-बार फोन करके कहा था कि उनका घर लूटा जा रहा है और जलाया जा रहा है। लेकिन हाओकिप का पड़ोसी होने के बावजूद, बीरेन सिंह ने कुछ नहीं किया और अंततः उनका घर जल गया। हैंगशिंग दावा करते हैं कि यह इस बात का सबूत है कि बीरेन सिंह जानबूझकर कुकियों को निशाना बना रहे हैं और उनके ऊपर अत्याचार कर रहे हैं। यही कारण है कि वे अब अलग होने की मांग कर रहे हैं।
मणिपुर का विभाजन स्वीकार नहीं
मणिपुर के स्वतंत्र मैतेई विधायक निशिकांत सपम, जो इंफाल में बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार का समर्थन करते हैं, ने जोरदार ढंग से कहा है कि मैतेई कभी भी मणिपुर के विभाजन को स्वीकार नहीं करेंगे। मणिपुर विधानसभा में विशेषाधिकार और नैतिकता समिति के अध्यक्ष निशिकांत सपम असम की तर्ज़ पर अवैध प्रवासियों का मुद्दा उठाते हुए मणिपुर में एनआरसी की ज़रूरत पर बल देकर दावा करते हैं कि मैतेई लोगों का यह विश्वास है कि म्यांमार से अवैध आप्रवासन के कारण कुकी आबादी का प्रतिशत हिस्सा बढ़ गया है। अतः मणिपुर में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की आवश्यकता है ताकि उन लोगों की पहचान की जा सके। जो अवैध अप्रवासी हैं, उन्हें म्यांमार वापस भेजा जाना चाहिए।
वे आगे कहते हैं कि मैतेई राज्य की आबादी का 53 प्रतिशत हैं, लेकिन इंफाल घाटी क्षेत्र के बाहर ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं, जबकि घाटी क्षेत्र राज्य के कुल क्षेत्रफल का सिर्फ़ 10 प्रतिशत है। शेष 90 प्रतिशत क्षेत्र आदिवासियों (कुकी और नागा) के लिए सुरक्षित है, जो इसके अलावा, इंफाल घाटी में भी ज़मीन ख़रीद सकते हैं। सपम आरक्षण का मुद्दा उठाते हुए दावा करते हैं मैतेई लोगों का मानना है कि वे सरकारी नौकरियां खो रहे हैं और सबसे अच्छी नौकरियां कुकियों के पास जा रही हैं। मैतेई लोगों के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग का उद्देश्य इस मुद्दे के साथ-साथ भूमि मुद्दे का भी समाधान करना है।
कटघरे में सेना भी
चुराचांदपुर जिले के सैकोट विधानसभा से भाजपा विधायक पाओलीनलाल हाओकिप मणिपुर में हिंसा को ‘लक्षित जातीय सफाया’ बताते हुए आरोप लगाया है कि राज्य की सेनाएं खुलेआम दंगाइयों की मदद कर रही हैं।
उनके इस आरोप में सत्य भी निहित है। गौरतलब है कि एक दुकान में आग लगाते हुए पकड़े जाने पर मणिपुर में तैनात रेपिड एक्शन फोर्स (रैफ) के तीन जवानों सोमदेव आर्य, कुलदीप सिंह और प्रदीप कुमार को 27 मई को हिरासत में लिया गया और फिर तीनों को सस्पेंड कर दिया गया था।
मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को ‘कुकी विरोधी’ और ‘पूर्वाग्रह से ग्रसित’ बताते हुए भाजपा विधायक ने कहा कि मुख्यमंत्री ने उनका विश्वास खो दिया है। उनके सत्ता में रहने तक कुकी किसी भी बातचीत को स्वीकार करने की संभावना नहीं रखते हैं, क्योंकि खुद मुख्यमंत्री बीरेन सिंह कुकियों को विदेशी और यहां तक कि अवैध अप्रवासी कहने वाली भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके ऊपर नशीली दवाओं के व्यापार और पोस्ता की खेती में शामिल होने के साथ-साथ वन भूमि पर अतिक्रमण करने का आरोप लगा रहे हैं। वे दावा करते हैं कि इंफाल घाटी में सभी कुकी बस्तियों को आग लगा दी गई है। मैतेई जिलों की सीमा से लगी सभी कुकी बस्तियों को निशाना बनाया गया है और गांवों को जला दिया गया है तथा मणिपुर पुलिस कमांडो ने कुकी के खिलाफ़ वालों का पक्ष लिया है।