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दीप से दीप जले

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डॉ. राजरानी अरोड़ा

भारतीय संस्कृति में दीपक प्रकाश,ज्ञान,विजय,आस्था,धर्म और आशा का प्रतीक माना गया है।जनमानस में नवजीवन का संचार करने और आशा का दीपक जलाने का किंचित प्रयास कुछ शब्द रश्मियों के साथ अभिव्यक्त है।
प्रकृति की विचित्र दृश्यावलियों, सुख-दुःख की मिश्र अनुभूतियों ,आशा -निराशा की झिलमिल कणिकाओं में जीवन रूपी दीप प्रज्वलित कर नए जीवन की परिकल्पना।जहाँ सूर्य की अगणित किरणों से धरा का श्रृंगार आलोकित है वहीं चाँद की शीतलता में असीम शांति और सुकून समाहित है। एक स्नेहभरा दीप उस पथ पर जलाएं जहाँ असंख्य दुःखी आत्माएं तड़प रही हैं ,रोटी के एक निवाले को तरस रही हैं उनको जीने की राह दिखाएं। पीड़ित मानव को साहस और आत्मविश्वास प्रदान करें नए जीवन की संभावना दिखाएं।दीन -हीन प्राणी निराशा की चादर उतार कर आशा की ओढ़नी ओढ़ सकें और अपने जीवन को नए सिरे से जी सकें ऐसा अल्प प्रयास करें। कुछ पंक्तियों से सुंदर भाव व्यक्त होरहे हैं —
मैं उन्हें चाँद दूंगी ,जिनके घर नहीं सितारे जाते।
मैं उन्हें हंसी दूंगी, जिनके घर फ़ूल नहीं हँस पाते।।

हम उस मनु की संतान हैं जो जल-प्रलय में जीवन का संगीत सुन रहे थे।जब सारी सृष्टि का विनाश हो रहा था तो मनु के द्वारा नई सृष्टि की कल्पना साकार रूप ले रही थी।
प्रकृति अपने रूप नित्य प्रति बदलती है तो जीवन का स्वरूप भी नया क्यों नहीं हो सकता ?
हर निशा के बाद रवि का आगमन निश्चित है तो दुःख के बाद सुख का चक्र भी सुनिश्चित है ,फिर क्यों निराश हुआ जाए? प्रकृति के नियम को नहीं बदल सकते तो हम उसके अनुकूल ढल तो सकते हैं। इतना आत्मविश्वास हो कि गिरें, पड़ें ओर फिर खड़े हो सकें। सही मायने में दीपावली मनाने का अर्थ अनेक घरों के बुझे चराग़ों को फिर से लौ दिखाने का प्रयास करना है।उनके दीपक में नए जीवन का तेल डालकर उम्मीद की बाती जलाकर तम हरना है ताकि त्रस्त मानव जीवन को फिर से नई रोशनी मिल सके। सकारात्मक सहयोग का प्रयास करना है,कंधे से कंधा मिलाकर चलना है। असहाय व लाचार को सहारा देकर ऊपर उठाना है और जीने के लिए प्रेरित करना है। त्याग और समर्पण की भावना से मानव जाति को जीवन दान दे सकते हैं। कुछ कठिन होगा पर असंभव नहीं। जयशंकर प्रसाद की पंक्तियों का उल्लेख उचित है —
“दुःख की पिछली रजनी बीच ,
विकसता सुख का नवल प्रभात। “(कामायनी)

कोरोना महामारी की भयावहता में असंख्य प्राणियों की जीवन लीला समाप्त हो गयी,असंख्य बच्चे अनाथ हो गए ।चारों और हाहाकार मचा था,जीवन की आशा टूट चुकी थी,
इन परिस्थितियों में निरीह प्राणियों के जीवन दीप को आलोकित कर सकें तो हमारा दीपावली मनाना सफल है।रोती बिलखती मानवता को हौसला दे कर खड़ा कर सकें तो हमारा जीवन सार्थक है।
एक कदम शिक्षा की ओर भी बढ़ाएं।किसी बेसहारा का सहारा बनें किसी बुझती आँखों की रोशनी बनें।एक भी बच्चे का जीवन शिक्षित कर सकें तो कई पीढ़ियों का हित हो जायेगा। बस अंगुली पकड़कर रास्ते पर चलना सिखा सकें तो क्या पता उस पगडंडी के सहारे पत्थरों से टकराकर कोई अमूल्य हीरा ही तराशा जाए जो समाज के गौरव भाल को सुशोभित कर सके। कवि की पंक्तियां सटीक लग रही हैं–
एक चिंगारी कहीं से ढूंढ लाओ दोस्तो
इस दीये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।”
…दुष्यंत कुमार

आशा और विश्वास की एक चिंगारी उन्हें दिखानी है,क्योंकि जब भविष्य के सुनहरे ख्वाबों की हवा लगेगी तो वह स्वयं ज्वाला का रूप धारण कर लेगी तब हमारा एक दीप जलाना भी दीपावली मनाना हो जाएगा।
धर्म और संस्कृति की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है तो मानवता की रक्षा करना भी हमारा धर्म है। परोपकार की भावना से ओतप्रोत प्रकृति भी हमें यही संदेश देती है।नदियां कभी स्वयं जल नहीं पीती और पेड़ कभी स्वयं फल नहीं खाते फिर हम क्यों मानव सेवा में पीछे रहें।हम भी मानव जाति की रक्षा के लिए अल्प प्रयास कर सकते हैं और सब मिल कर तो सुंदर नए समाज की सरंचना कर सकते हैं। कवि रहीम की पंक्तियों का उल्लेख करना उचित है –
“तरुवर फ़ल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपत्ति सँचहि सुजान।।”

पुराणों में दान और धर्म की सुंदर व्याख्या की गई है।हमारे असंख्य दानदाताओं, पूर्वजों ने कुए, तालाब ,बावड़ी, शिक्षण संस्थाओं ,सार्वजनिक संस्थानों का निर्माण परोपकार के लिए ही किया था। जब महाराणा प्रताप को भामाशाह जैसे आदर्श व्यक्ति जीवन दान दे सकते हैं तो हम भी भामाशाह बन सकते हैं जितनी सामर्थ्य है उसी का सदुपयोग करना है।सर्वजनहिताय की भावना अपनाएं तथा उसी का प्रसार करें।सब के सुख में सुखी और सब केदुःख में दुःखी।व्यष्टि में समष्टि और समष्टि में व्यष्टि का भाव रखें यही हमारे जीवन का सार है। एक दिव्यदीप असंख्य रोशनियों का पुंज बने।दीप से दीप जलाओ और दीपावली मनाओ। अंत में बस इतना ही कवि प्रसाद की पंक्तियों के द्वारा आह्वान करना चाहती हूँ–
औरों को हंसता देखो मनु हँसो और सुख पाओ।
अपने सुख को विस्तृत कर लो सब को सुखी बनाओ।।”
… (कामायनी)
डॉ. राजरानी अरोड़ा

प्रधानाचार्य,
महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय, खंडेला
जिला- सीकर, राजस्थान।

9460863798

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