राहुल पाण्डेय
क्या आप जानते हैं कि पिछले साल धरती से हर मिनट दस फुटबॉल के मैदान जितने जंगल खत्म होते रहे? पिछले साल जिस तरह से धरती पर 37.5 लाख हेक्टेयर जंगलों का नुकसान हुआ है, नतीजा हम सभी भुगत रहे हैं। बहरहाल, यूरोपियन यूनियन ने इसे अब और आगे न होने देने का फैसला किया है। पिछले हफ्ते यूरोपियन यूनियन के देश इस बात पर राजी हो गए कि अब वे ऐसे सामान नहीं खरीदेंगे, जिनके लिए जंगलों को काटा जाता है। कारोबारी हों या कंपनियां, अब यूरोपियन यूनियन में अपना सामान बेचने से पहले सबको यह सबूत देना होगा कि उनके उत्पादन में जंगलों को एक इंच भी नुकसान नहीं पहुंचाया गया है। चीन के बाद दुनिया में यूरोपियन यूनियन ही दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा कृषि उपज खरीदती है।
नए कानून के लागू होने के बाद रबर, कॉफी, कोको, फर्नीचर, जानवर और पाम ऑयल बेचने से पहले व्यापारियों को सबूत देने होंगे कि उन्होंने जंगल को नुकसान नहीं पहुंचाया है। दिसंबर 2020 तक जहां जंगल था, अगर वे चीजें वहां उगाई गई होंगी तो वह इटली तो क्या, लिथुआनिया में भी नहीं बिक पाएंगी। कंपनियों को यह भी दिखाना होगा कि प्रोडक्शन में उन्होंने स्थानीय लोगों के अधिकारों का पूरा सम्मान किया है। इस कानून के उल्लंघन पर कुल टर्नओवर के चार फीसदी तक जुर्माना लग सकता है। पर्यावरण बचाने से जुड़े लोगों ने इस कानून को ऐतिहासिक बताया है तो इंडोनेशिया, ब्राजील और कोलंबिया जैसे देश इसके विरोध में हैं। उनका कहना है कि नए नियम खर्च तो बढ़ाएंगे ही, फ्री ट्रेड व्यवस्था में भी बाधा खड़ी करेंगे। दरअसल, इन देशों में उष्ण कटिबंधीय वन हैं, यानी वर्षा वन। पाम ऑयल के लिए इन लोगों ने उन्हें नेस्तनाबूद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है बल्कि फुटबॉल के मैदान वाली बात इन्हीं देशों पर ज्यादा लागू होती है। पाम ऑयल एक्सपोर्ट करने में इंडोनेशिया दुनिया भर में नंबर वन है तो कोलंबिया नंबर चार पर।
वैसे नए नियमों की मुसीबत भारत पर भी पड़ सकती है। दुनिया भर में अमेरिका के बाद यूरोपियन यूनियन ही भारत की सबसे बड़ी ट्रेडिंग पार्टनर है। बल्कि साल 2021-22 में उससे होने वाला द्विपक्षीय व्यापार 43.5 फीसदी बढ़कर 116.36 बिलियन डॉलर पर जा पहुंचा है। स्टैटिस्टा के मुताबिक ब्राजील की तरह भारत इस साल भी दुनिया के टॉप फाइव बीफ निर्यातक देशों में बना हुआ है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के मुताबिक 2021 में भारत ने अपने 1.31 लाख हेक्टेयर जंगल काट डाले हैं। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा खेती का ही है, दूसरे नंबर पर सड़क है और तीसरे पर है शहरीकरण। अब भले इंग्लैंड से लेकर यूरोप के कई देशों से भारत की फ्री ट्रेड की बात चल रही हो, या समझौते हो चुके हों, जंगल काटने की कीमत अब भारत को भी चुकानी ही होगी।