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*हमारे सम्मान की रक्षा के लिए बने कानून*

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जय कुमार कालरा

लाल साईं की आराधना और स्तुति का पर्व चालिहा साहब पूर्ण हो चुका है
ऐसे आयोजनों की यादें लंबे समय तक दिमाग में रहती हैं
अगले वर्ष फिर कुछ नया करने और अधिक उत्साह के साथ करने की ख्वाहिशें भी दिमाग में रहती है

इन चालीस दिनों में जहां समाज को सामूहिक रूप से एकत्रित होने का अवसर मिला
वही हमारी सामूहिकता को ,
हमारे चालिहा साहब के पर्व को राजनीतिक लोगों ने भी अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया
हमारे धार्मिक आयोजनों को सियासी इवेंट का रूप देने का प्रयास किया जा रहा है
धार्मिक आयोजनों के मंचों पर सियासी लोगो को
विशिष्ट और मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया जा रहा हे
भीड़ इकट्ठी करने के लिए कई बार ऐसे प्रयास किए जाते हैं
आयोजनों के मंचों से उन्होंने वही गिसी पिटी , रटी रटायी और समाज को खुश फहमी में रखने की बेमतलब की बातों को दोहराया

सिंधी पुरुषार्थी है
विस्थापित होने के बाद भी अपने परिश्रम से एक मुकाम हासिल किया है
सिंधियों के अंदर देशभक्ति है
समर्पण की भावना है
सिंधी आज भी विस्थापन को नहीं भूले हैं
कैसे भूलेंगे भाई
हर बार , हर आयोजन में आप हमारे जख्मों को कुरेद कर चले जाते हो
और हम हैं कि हर बार इन जख्मों की पीड़ा को सहते हुए आपकी इस बकवास लिए तालियां बजाते है

मैंने इन बातों को बेमतलब की ओर बकवास इसलिए बताया
क्योंकि नेताओ को हमसे, हमारी बातों से कोई मतलब नहीं होता है
हमारी पीड़ा से इनका कोई मतलब नहीं
हमारी समस्याओं से, हमारी जरूरतों से , हमारे वाजिब अधिकारों से इनको कोई लेना-देना नहीं होता
यह हर बार हमें मूर्ख बनाते हैं
और हम हैं कि हर बार मूर्ख बन कर भी
इन लोगों की आव भगत करते हैं
इनके तलवे चाटते हैं
और यह सब समाज हित के लिए नहीं होता
बल्कि
अपनी राजनीतिक इच्छा पूर्ति के लिए होता है
इनके पास हमें देने के लिए कुछ है ही नहीं
तभी तो यह हमें हर बार हमें हमारा इतिहास बताते हैं
और उस इतिहास को न भूलने की भी हिदायत देते हैं
इन पेशेवर राजनीतिकज्ञो को हमारा विस्थापन हमसे ज्यादा याद रहता है
परंतु इससे पहले के हमारे समृद्ध इतिहास की इनको रत्ती भर की भी समझ नहीं होती है
उस वक्त के सिंध में हम कितने समृद्ध और संपन्न हुआ करते थे
हजारों साल से हमारी सैकड़ो पीढ़ियां वहां गुजर गई
किसकी वजह से हमे परित्याक्त समुदाय बना दिया गया
उन परिस्थितियों का कौन जिम्मेदार था
हम हमेशा से ही अपने साथ हुए अत्याचारों के लिए
देश के विभाजन और हिंसक दंगों के लिए
उस वक्त के दो बड़े नेताओं को ही जिम्मेदार मानते आए हैं
जब देश का बटवारा हुआ तो क्यो सिंध सूबा पूरा पाकिस्तान को दे दिया गया
और इस विषय पर हमारे लौह पुरुष के सामने ऐसी क्या मजबूरियां थी जो इस विषय पर खुलकर विरोध में सामने नही आये
उस वक्त जब 15% जनसंख्या वालों के लिए अलग से देश बनाया जा रहा था
तो इसी देश के सिंध सूबे में हम करीब 25% होते हुए भी हमें सिन्ध मे अपना हिस्सा क्यों नहीं दिया गया
क्या उस वक्त कोई हिंदू समर्थक पार्टी थी ही नहीं ?
जो सिन्ध के हिंदू समुदाय के लिए पंजाब और बंगाल की तरह सिंध के बंटवारे को मजबूर करती
क्या हमें हिंदू समझा ही नहीं गया था क्या?
क्योंकि विस्थापित होने के बाद भी कई सालों तक हमें एक संदिग्ध हिंदू के रूप में देखा गया
यह जुमला भी हमने सुना कि
सांप ओर सिंधी में से कोई दिखे तो पहले सिंधी को मारो
आज भी कुछ जगहों पर जहां ऊंची जाति के स्थानीय लोग रहते हैं वहा हमारे समाज बंधु को बसने नहीं दिया जाता

हमारी मिली जुली संस्कृति, हमारा खान-पान , हमारा परिवेश, हमारी अरबी लिपि, हमारी धार्मिक पद्धतियां,
हमारा जात-पात को न मानना
अनेको ऐसी चीज थी जो यहां के ऊंची जातियों के स्थानीय हिंदुओं को शुरू से ही रास नहीं आयी
बंगाल और पंजाब की तरह सिंध का बटवारा न करना भी एक साजिश के तहत ही हुआ था
क्या हो जाएगा जो कुछ लाख हिंदू अगर इस्लाम कबूल कर लेंगे तो
उस वक्त के कुछ जिम्मेदार लोगों के इस तरह के वक्तव्य भी हमने पढे हे

यहां का कुछ विशेष समुदाय चाहता ही नहीं था कि सिंधी यहां आकर हिंदुस्तानी नागरिक कहलाये
कुछ जिम्मेदार तत्वों ने तो हमें कायर तक कह दिया था
जिसका आदरणीय चोइथराम गिडवानी साहब ने विरोध किया था
जो उस वक्त आजादी के आंदोलन में गांधीजी के साथ हुआ करते थे
सिर्फ चोइथराम जी ही नहीं हमारे समाज की अनेक विभुतियो ने आजादी के आंदोलन में अपना सहयोग और बलिदान दिया है
25% आबादी थी उस वक्त सिंध में और करीब 40% स्थाई संपत्ति हमारी थी
सिंध सुबे का पूरा व्यापार और उद्योग हमारे हाथ में था
सब ने यही उम्मीद करी थी कि सिंधी समुदाय अपनी संपत्ति के मोह में धर्म बदल कर पाकिस्तान मे ही रह लेगा
परंतु अपने स्वाभिमान, सम्मान और राष्ट्र के लिए हमने सब कुछ न्योछावर कर दिया
हम सिंध जरूर छोड़कर आ गए लेकिन सिंधियत साथ लेकर आए थे

ऐसे अनेकों सवाल हैं जिन पर किसी भी पार्टी का कोई नेता हमारे मंचों से नहीं बोलता
और यह कहते हैं कि सिंध छोड़ दिया तो क्या है पूरा देश आपका है
भाई वाह
यह तो वैसे ही हो गया कि
कल को हमें हिंदुस्तान से निकाल दे तो लोग यह कहेंगे पूरा विश्व आपका है

अपना बाप नहीं है तो सबको अपना बाप मान लो

हमे तो यह समझ में नहीं आता है कि हमारे समाज के लोग इनको मंचों पर बुलाते क्यों हैं
यह चतुर लोग हमारे सामने हमारी कितनी ही तारीफ कर लें
लेकिन अंदरूनी तौर पर यह हमेशा हमसे नफरत ही करते आए हैं
जो आज भी यदा-कदा देखने और सुनने को मिल जाती है
जैसे अभी एक-दो दिन पहले जयपुर में एक वाक्या देखने को मिला
(मेरा अनुरोध है ऐसे अवसरों पर सामाजिक एकजुटता दिखाएं)
हमने तो यहां नंगे पेर आ कर भी किसी से कुछ नहीं मांगा
ले दे के कुछ दिया गया तो सिर्फ सामाजिक भवनो के लिए हमें जमीने दी गई
वह भी मुफ्त में नहीं दी गई
अन्य समाजों की तरह हमें भी रियायती दरो दी गई

हम अगर अपनी छोड़ी गई संपत्तियो और जमीन जायदादो के हर्जाने और मुआवजे मांगने लगे तो सरकारें कंगाल हो जाएगी
खजाने खाली हो जाएंगे इनके

अगर आकलन किया जाए तो
हम संख्या में मुट्ठी भर होने के बावजूद
देश के आर्थिक विकास में जो हमने सहयोग दिया है
उतना तो किसी बहुसंख्यक समाज ने भी नहीं किया
जितना लिया है उससे कई ज्यादा दिया है
क्यों नहीं दे हमारा मुल्क है

हमें किसी से कुछ नहीं चाहिए
हम इतना अनुरोध करते हैं
हमें हमारे अधिकार दे दीजिए

हमें पाकिस्तानी कहे जाने पर गैर जमानती अपराधिक कृत्य का कानून बनाया जाए

हमें पाक विस्थापित कहना बंद किया जाए
हमें शरणार्थी कहकर संबोधित करना बंद किया जाए
सामाजिक मंचों से हमें अपमानित करना बंद करिये
आज के बाद कोई भी व्यक्ति अगर हमारे सामाजिक मंचों से हमें विस्थापित कह के संबोधित करेगा
या हमारे लिए शरणार्थी शब्द का उपयोग करे
उसे तुरंत मंच से नीचे उतार दीजिए
हम किसी की कृपा दृष्टि से यहा जिंदा नहीं है
हम अब और अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे

🙏🏻 जय झूलेलाल

जय कुमार कालरा
कोटा , राजस्थान
9829092206

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