विजय दलाल
*क्रोनी पूंजीवाद के नये संसदीय फासीवादी संस्करण ने उनके सबसे बड़े, अकेले और सच्चे विरोधी वामपंथी दलों को हाशिए पर धकेल दिया।*
*राजनीति में धर्म, कार्पोरेट्स समर्थक आर्थिक नीतियों, धनबल और बाहुबल के अंधे और अनैतिक शासन के दम पर लोकतंत्र के चारो स्तंभों को, विधायिका , कार्यपालिका, न्यायपालिका और फोर्थ इस्टेट (मीडिया) केवल अपने लिए इस्तेमाल कर और भ्रष्टाचार को शिष्टाचार में बदल कर देश की जनता में समाजवाद की रक्षा तो दूर की कोढ़ी हो गई, लोकतंत्र और संविधान की रक्षा तक के लिए उदासीन बना दिया है।*
*आज कांग्रेस सहित सारे विपक्षी दलों की हालत यह हो गई है कि वह अपने अस्तित्व को कैसे बचाएं?*
*आज उनके पास अपनी जन-समर्थन में अपनी बातें आम जनता तक पहुंचे, बहुत सीमित माध्यम बचे हैं।*
*न्यायपालिका किसी भी प्रकरण पर न्याय देती भी है तो इतना समय ले लेती है कि जब तक शातिर और आम गरीब मेहनतकश विरोधी सरकार उसका अपने लिए पुरा इस्तेमाल कर चुकी होती है, जैसा कि चुनावी बांड के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में हुआ है।*
*बीजेपी ने वामपंथी दलों को छोड़कर सारे INDIA गठबंधन की हालत यह बना दी है कि उनकी प्राथमिकता बीजेपी हटाओ देश बचाओ के स्थान पर अपनी पार्टी बचाओ कर दी है।*
*इसलिए यह साफ दिखाई देता है कि चुनावों के और सीटों के बंटवारे के स्तर पर INDIA गठबंधन में वामपंथी पार्टियों की उपेक्षा की जा रही है और सम्पूर्ण पब्लिक मीडिया तो इस काम में वर्षों से लगा है।*ईवीएम के माध्यम से सबसे अधिक नुकसान किसी को पहुंचाया भी जा रहा है तो वो वामपंथी पार्टियां है।*
*मैं वामपंथी पार्टियों सहित सभी को यह स्मरण कराना चाहता हूं कि 2019 के चुनाव में वोटों के भारी अंतर का क्वींट द्वारा पहला मामला वायनाड केरल का था। गणना के समय क्रमवार घोषित वोटों और परिणाम के समय घोषित वोटों में हजारों या लाख का अंतर था।*
*क्वींट ने अभी 372 सीटों वोटों में कहीं कम ज्यादा वोटों का अंतर बताया उनमें त्रिपुरा में भारी मात्रा में यानी एक सीट पर तो 19 हजार कम होने का अंतर बताया।*
*यही बात बंगाल में नजर आती है जहां विधानसभा चुनाव में वामपंथी पार्टियों को मिलने वाले वोट तीसरे या चौथे नंबर पर थे वहीं पंचायत चुनावों में वोट पाने में वामपंथी पार्टियों दूसरे नंबर पर थी और भाजपा तीसरे नंबर पर।*
*सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के चुनाव के पहले वीवीपेट पर्ची की समानांतर गणना पर फैसला नहीं दिया तो चुनावों में देश के संसदीय इतिहास में चुनाव में सबसे बड़ी हार और फासीवादी ताकतों की जीत का सामना करना पड़ेगा।*