अग्नि आलोक

लगभग सारे दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप में वामपंथी परचम लहराया

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ब्राजील में जनकल्याण के नारों, वादों और नीतियों की जीत

 मुनेश त्यागी

          दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप में वामपंथी नीतियों की जीत का उभार जारी है। एक बार फिर ब्राजील की जनता ने वामपंथी पार्टी और वामपंथी विचारधारा को सत्ता में लाकर खड़ा कर दिया है। इससे पहले मेक्सिको, क्यूबा, होंडुरास, निकारागुआ, पीरू, चिली, अर्जेंटीना, कोलंबिया, बोलीविया और अब ब्राजील में यानी कि एक दो देशों को छोड़कर लगभग सारे दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप में मजदूरों और किसानों का वामपंथी परचम लहरा दिया गया है।

      दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील में यह जनतंत्र की जीत है। लूला दा सिल्वा ने अपने दक्षिणपंथी प्रतिद्वंदी जायर बोलसोनारो पर दूसरे राउंड के चुनाव में जीत हासिल कर ली है। लूला को 50.9 परसेंट और बोलसीनारो को 49.1% मत मिले हैं।

      ब्राजील की यह जीत, किसी पार्टी की जीत नहीं है। यह ब्राजील की जनता की जीत है, ब्राजील के किसानों, मजदूरों की जीत है। यह ब्राजील के जनतांत्रिक आंदोलन, नीतियों, विचारों और विचारधारा की जीत है। यह जीत बेहद कड़े मुकाबले के बाद हासिल की गई है। अतः ब्राजील की चेतना को पुनः बनाने, आपसी दया भाव दिखाने, आपसी भाईचारा और सामाजिक सौहार्द बढ़ाने की, एकजुटता दिखाने, मत भिन्नता का सम्मान करने और सबसे प्यार करने की जरूरत है।

      वहां पर जनता लगभग दो बराबर हिस्सों में बंटी हुई है। अब शासक पार्टी का और सरकार का यह दायित्व है कि वह सारी जनता को इत्मीनान में लेकर, विश्वास में लेकर, उसका सम्मान करके, उसकी जीवन मरण की समस्याओं का समाधान करे। वहां की जनता और सरकार, ब्राजील की सारी जनता को विश्वास में लेकर, उसके विकास का काम करें, उसकी उन्नति और प्रगति का काम करें, उसकी समस्त समस्याओं का समाधान करें। 

    राष्ट्रपति लूला 1 जनवरी 2023 को ऑफिस संभालेंगे। उन्होंने वादा किया है कि वह केवल उन्हीं के ही नहीं हैं जिन्होंने उन्हें वोट दिया है, बल्कि में 21 करोड़ ब्राजीलवासियों के राष्ट्रपति हैं। उन्होंने कहा है कि हम दो ब्राजील नहीं हैं, हम एक देश, एक जनता और एक महान देश है। लूला, जो ब्राजील की मजदूर पार्टी के प्रतिनिधि हैं, ने अपने चुनाव अभियान में सामाजिक असमानता और गरीबी के खात्मे पर जोर दिया था। आने वाले अपने राष्ट्रपति काल में वे अमीरों पर टैक्स बढ़ाने की बात कही थी। सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाने का वादा किया था और सारी जनता तमाम मेहनतकशों, मजदूरों किसानों का न्यूनतम वेतन बढ़ाने का वादा और नारा दिया था।

        इसके विपरीत चुनाव में बोलसोनारो के नारे थे,,,,, भगवान, परिवार, मातृभूमि और आजादी, राजकीय तेल कंपनियों का निजीकरण करेंगे, अमेजॉन क्षेत्र में खानों की संख्या बढ़ाएंगे और बंदूक नियंत्रण में ढिलाई लाएंगे और वे वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण की जन विरोधी, किसान विरोधी, मजदूर विरोधी, नीतियों में विश्वास जता रहे थे और उन्हें आगे बढ़ाने की बात कर रहे थे। जैसे किसानों मजदूरों का जनकल्याण और उनकी समस्याएं, उनके एजेंडे में ही नहीं थीं।

       ब्राजील का चुनाव बड़ा ही मजेदार था। चुनाव प्रचार में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार लूला ने राष्ट्रपति बोलसोनारो को “तानाशाह” बताया था और आजादी और जनतंत्र की रक्षा करने की शपथ खाई थी। राष्ट्रपति बोलसोनारो ने लूला को “नेशनल एंबेरेसमेंट यानी राष्ट्रीय उलझन” बताया था।

       लूला इससे पहले भी 2003 से 2011 तक ब्राजील प्रशासन कर चुके हैं, जहां उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाना पड़ा था। मगर बाद में भ्रष्टाचार के सभी आरोप झूठे पाए गए और उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों से बाइज्जत बरी कर दिया गया।

       ब्राजील की चुनाव उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों की हार है क्योंकि ब्राजील के राष्ट्रपति बोलसोनारो जनता की समस्याओं पर रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार गरीबी पर ध्यान नहीं दे रहे थे, बल्कि वे वैश्वीकरण की इन नीतियों को आगे बढ़ा रहे थे, जिससे अमीरी गरीबी की खाई बढ़ती जा रही थी, अमीर अमीर होते जा रहे थे, गरीब गरीब होते जा रहे थे और जनता में अमीरी और गरीबी का अनुपात बहुत ज्यादा बढ़ गया था, किसानों और मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिल रहा था जिस कारण उनकी आए बहुत घट गई थी, जिससे वहां के किसान और मजदूर सरकार की नीतियों से खुश नहीं थे।

      ब्राजील की यह जीत जनता के सर्वांगीण विकास और कल्याण की जनता की, बुनियादी समस्याओं को सुलझाने और समाधान करने की नीतियों, वादों और नारों की जीत है, क्योंकि अपने चुनाव प्रचार में लूला ने किसानों मजदूरों की दशा सुधारने के वादे किए थे और नारे दिए थे और उन्होंने कहा था कि वह अमीरों पर टैक्स लगाएंगे, गरीबी का खात्मा करेंगे, सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाएंगे और सारी जनता की न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोतरी करेंगे।

        ब्राजील की जनता ने इन नारों और वादों पर विश्वास किया और राष्ट्रपति लूला को चुनाव में विजय प्रदान कराई। ब्राजील की जीत के चुनाव में वहां की जनता ने बोलसोनारो की जन विरोधी और पूंजीपरस्त नीतियों के खिलाफ वोट दिया है और उसने जनता के कल्याण करने की नीतियों और वादों पर विश्वास करके जनता के कल्याण के राज को वोट दी है।

        ब्राजील की इस जीत से साबित हो गया है कि जनता वैश्विकरण, निजीकरण और उदारीकरण की नीतियों के पक्ष में नहीं है क्योंकि ये नीतियां जनता का कल्याण करने में विश्वास नहीं रखतीं और ये नीतियां केवल और केवल बड़े-बड़े पूंजीपतियों के, धन्ना सेठों के साम्राज्य बढ़ाते हैं, उनके मुनाफे में इजाफा करती हैं। इसलिए जनता ने वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण की नीतियों को सिरे से नकार दिया है और अब लगभग पूरे दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप में वामपंथ का परचम लहरा गया है। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति लूला की जीत, किसानों मजदूरों के कल्याण की नीतियों और वादों की जीत है।

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