अग्नि आलोक

बांग्लादेश  की घटना से सबक लेना होगा!

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-सुसंस्कृति परिहार 

 तरक्की के नए सोपान जुटाता, भारत की सैंन्य मदद से बना बांग्लादेश अब प्रौढ़ हो रहा था किंतु यकायक आज एक घटनाक्रम की बदौलत उसकी प्रधानमंत्री शेख हसीना अपनी बहन के साथ भारत की शरण में है उन्होंने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया है। कभी कभी सत्तारुढ़ रहने की ज़िद ही अर्श से फर्श पर ले आती है इसका उदाहरण यहां सामने आया है। लोकतांत्रिक देश में तानाशाह बनने वालों  को हमेशा सबक सिखाया है। इसे हमारी प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने भी झेला था । बांग्लादेश हमारा पड़ोसी देश है इसलिए  हमें इस पर चिंतन मनन की ज़रूरत है क्योंकि इससे पहले इसी तरह के जनाक्रोश ने श्रीलंका में बदलाव लाया था।

 इसकी जो वजह सामने आ रही है उसका।  सबसे। बड़ा कारण लोकतांत्रिक देशों में आजकल चुनाव जीतने के लिए  धांधली और साजिशों का सहारा लिया जाने लगा है लेकिन एक ना एक दिन ये तमाम चीजें धरी रह जाती हैं जब जनता ताज़ उछालकर दम लेती है। पिछले तीन बार से शेख हसीना चुनाव जीतती आ रहीं थीं किन्तु इस बार चुनाव के पहले केयरटेकर सरकार की व्यवस्था को धता बता दिया जो इससे पहले हमेशा चुनाव कराती रही है इस बार हसीना की अपनी मर्जी से चुनाव हुआ और भारी मतों से जीता गया तथा सरकार बनाई। इससे वहां  की  विपक्षी पार्टियों में आक्रोश रहा बल्कि जनता भी पशोपेश में रही कि अवामी पार्टी जीत कैसे गई। ठीक भारत के लोकसभा चुनाव में भी इसी तरह के संकेत मिले हैं लेकिन जनमानस की विरोधी मानसिकता देखते हुए चुनाव आयोग  ने उतनी मनमानी नहीं की फिर भी पांच करोड़ वोट का घपला जो सामने आ गया है और येन केन प्रकारेण जो सरकार बनी है उससे जनता में रोष है यह इस बात से सामने आ रहा कि जनता अपनी समस्याओं के निदान के लिए सरकार के पास नहीं प्रतिपक्ष नेता के पास पहुंच रही है। उनमें विश्वास जता रहे हैं।

इसी तरह शेख हसीना  के प्रशासन में विपक्षी आवाज़ों और असहमति को व्यवस्थित रूप से दबाने का आरोप लगता रहा है। सत्ता में उनके लंबे शासनकाल में विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला और असहमत लोगों के दमन की घटनाएं भी बड़े पैमाने पर सामने आई। उन्होंने विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के साथ-साथ विरोध प्रदर्शनों को भी दबाने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी। हाल के विरोध प्रदर्शनों में भी उनकी सरकार की प्रतिक्रिया विशेष रूप से हिंसक रही है, जिसमें प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग की खबरें आईं, बड़े पैमाने पर लोग हताहत भी हुए।

उन्होंने इस बीच लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संस्थाओं को कमजोर कर दिया था उनके कार्यकाल के दौरान चुनाव धांधली और हिंसा के आरोपों से घिरे रहे हैं। सरकारी एजेंसियां उनके इशारों पर साजिश रचकर विपक्षी नेताओं को जेल में डालती रहीं या उन पर मुकदमें चलाती रही। पुलिस से लेकर अन्य सरकारी एजेंसियों ने विपक्षी नेताओं को फंसाने का काम ज्यादा किया। निष्पक्षता पर चिंताओं के कारण प्रमुख विपक्षी दलों ने इस बार भी चुनावों का बहिष्कार कर दिया. इसने देश में अजीब सी स्थिति पैदा कर दी। गुस्सा अंदर ही अंदर बहुत दिनों से पल रहा था जो फूट पड़ा ।

एक बात और सामने आई है शेख हसीना सरकार ने नौकरियों में उन लोगों को कोटा दे दिया था, जिनके परिवारवालों ने 1971 में देश की आजादी की लड़ाई लड़ी थी,इसके खिलाफ छात्रों का गुस्सा भड़क गया। जगह जगह प्रदर्शन होने लगा। छात्रों का ये विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया। हिंसा हुई. हालांकि बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने इस कोटे को खत्म कर दिया लेकिन तब तक सारा देश धधक चुका था. विपक्ष ने भी इस आंदोलन को और हवा दे दी। नतीजतन बांग्लादेश में गुस्सा और बढ़ गया.मानवाधिकारों के उल्लंघन की कई रिपोर्टें आई हैं, जिनमें लोगों को जबरन गायब करना और न्याय से परे जाकर हत्याएं शामिल हैं. अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने इन दुर्व्यवहारों का दस्तावेजीकरण किया है, जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी देशों ने इन उल्लंघनों से जुड़े कुछ सुरक्षा बलों के खिलाफ प्रतिबंध भी लगाए।

 पिछले तीन दिनों से ऐसा लग रहा था कि बांग्लादेश में सरकार नाम की चीज ही नहीं है. व्यापक हिंसा, आगजनी और अफरा-तफरी का आलम था अंततः प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और भारत भागना पड़ा।

यदि बांग्लादेश की इस राजनैतिक घटना के उपयुक्त पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर अपने देश के बारे में सोचा जाए तो कमोवेश स्थितियां  हबहू यहां मौजूद हैं इसलिए कार्टूनिस्ट मोदीजी को स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि वे भागने तैयार हो जाएं।

विकास का डंका पीटना, अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के विज्ञापनों से जनता संतुष्ट नहीं होती।उसका संतोष और खुशहाली उसके जीवन की तीन मूल भूत आवश्यकताओं रोटी,कपड़ा और मकान है जिसकी आपूर्ति वायदों से नहीं रोजगार देकर होती है।नि:शुल्क राशन से नहीं हो जाती । बांग्लादेश और श्रीलंका के लोगों की पीड़ाओं को दूर ना कर सत्ता सुरक्षित रखने का अंजाम  ऐसा ही होता है। यह भारत सरकार के लिए बड़ा सबक है विपक्ष और जनता की बकौल अमित शाह  चें चे नहीं है।

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