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भारत में नदियों को अविरल बहने दें

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राकेश दुबे  

भारत की नदियों के बारे में एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि वर्ष १९९६ के बाद से देश की  बड़ी नदियों में  बाढ़, विशेष तौर पर अचानक बाढ़, की घटनाएं बढीं हैं।वैसे तो  दुनियाभर की नदियों का स्वरुप बदलता जा रहा है और इसका कारण जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है |अनेक वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि दुनिया भर में नदियों को सबसे अधिक खतरा मनुष्यों की गतिविधियों, विशेष तौर पर भूमि उपयोग में बेतरतीब परिवर्तन के कारण है।

भारत के विशेष संदर्भ में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस और आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने गंगा को बनाने वाली नदियों – भागीरथी और अलकनंदा – में पानी के बहाव पर विस्तृत अध्ययन किया है और इसे साइंटिफिक रिपोर्ट्स नामक जर्नल में प्रकाशित किया है। उत्तराखंड के देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा नदियों का संगम होता है, और यहीं से गंगा का नाम शुरू होता है। इस अध्ययन के लिए वर्ष १९७१  से २०१०  तक के इन दोनों नदियों के क्षेत्र में बारिश की वार्षिक मात्रा, पानी का बहाव और सेडीमेंट के बहाव के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। पूरी अवधि को वर्ष १९९५ से पहले और बाद के कालखंड में विभाजित किया गया है।

वस्तुत: भारत में नदियां एक थर्मामीटर की तरह हैं जो पृथ्वी की सतह की स्थिति से अवगत कराती हैं। मनुष्य जो भी गतिविधि पृथ्वी की सतह पर करता है उसका संवेदनशील सूचक नदियां हैं। नदियां कृषि, उद्योग, मनोरंजन, पर्यटन और यातायात का आधार हैं, फिर भी  नागरिक और सरकारें इनकी लगातार उपेक्षा करते जा रहे हैं।

सब जानते हैं  नदियां एक प्राकृतिक भौगोलिक संरचना होती हैं जिसका पारिस्थितिकी तंत्र में विशेष महत्व है, पर समस्या यह है कि इसका उपयोग स्थानीय प्रशासन की जागीर के तौर पर किया जाता है। पारिस्थितिकी तंत्र की दृष्टि से नदियों में पानी का जितना महत्व है, लगभग उतना ही महत्व इसमें जमा होने वाले तलछट [सेडीमेंट] का भी है। यह अधिकतर जलीय जीवन का आवास है। इसके कारण नदियों के बाढ़ क्षेत्र, मुहाना और डेल्टा का निर्माण होता है। नदियां जहां समुद्र में मिलती हैं, उस क्षेत्र में सेडीमेंट जमा होता जाता है और पूरे क्षेत्र को ज्वारभाटा और बाढ़ से बचाता है। नदियों में सेडीमेंट के बहाव के कारण बाढ़ क्षेत्र में पोषक तत्वों का नावेनीकरण होता रहता है, जो कृषि के लिए आवश्यक है।

 देश की सबसे बड़ी और प्राचीन नदी भागीरथी के रास्ते में तीन बड़े बांध मनेरी, टेहरी और कोटेश्वर हैं, इसलिए इसमें पानी का बहाव कम या मध्यम रहता है, दूसरी तरफ वर्ष १९९५  से २०१०  के बीच जोशीमठ में स्थित बहाव आकलन केंद्र के अनुसार अलकनंदा में पानी का बहाव दुगुना हो गया है। अलकनंदा में पानी का आकस्मिक तेज बहाव भी बहुत सामान्य है, और इसके जलग्रहण क्षेत्र में वार्षिक बारिश की मात्रा भी बढ़ गयी है। पर, वर्ष २०१०  के बाद से नदियों का स्वरुप तेजी से बदल रहा है। भागीरथी नदी पर ११ नए बड़े बांध निर्माणाधीन हैं या प्रस्तावित हैं, जबकि स्वच्छंद बहने वाली अलकनंदा पर भी २६  नए बांध निर्माणाधीन हैं या फिर प्रस्तावित हैं। इन बांधों से निश्चित तौर पर नदियों में पानी के बहाव के साथ ही गंगा में सेडीमेंट की मात्रा भी प्रभावित होगी।

एक वैज्ञानिक पत्रिका, साइंस, में डार्टमाउथ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र में बताया गया है कि नदियों में सेडीमेंट के बहाव और इसके जमा होने की दर पहले केवल प्राकृतिक कारणों से तय होती थी, पर वर्तमान में मनुष्य की गतिविधियों का प्रभाव प्राकृतिक कारणों से भी अधिक हो गया है। अमेरिका और पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में नदियों पर बहुत सारे बड़े बांध हैं, जो नदी के वास्तविक बहाव को रोक देते हैं। बांधों के कारण सेडीमेंट का बहाव भी नियंत्रित और अवरुद्ध हो जाता है। 

विश्व को जो निर्णय करना हो करे, भारत को अपनी नदियों के अविरल बहाव के लिए स्पष्ट नीति बनानी चाहिए और देश के नागरिकों को इसके लिए दबाव बनाना चाहिए |

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