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आओ परंपरा का निर्वाह करें?

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शशिकांत गुप्ते

काश इस वर्ष कोरोना के लिए कोई गाईड लाइन घोषित ना हो?
वैसे हम तो कोरोना से डरतें नहीं है? जब कोरोना अपने शबाब पर था, तब हम अपने घरों नित नए व्यंजन बना कर फेसबुक और व्हाट्सएप पर प्रेषिष कर गर्व का अनुभव करते ही थे।
महामारी ने परिवार को एक जुट कर दिया था। हमने अपने मनोरंजन में कोई कमी आने नहीं थी।
दूसरी ओर कुछ सेवाभावी पीड़ितों की मदद के लिए मुस्तैद थे। बहुत से सेवाभावियों ने धार्मिकता ताक में रखकर सर्वधर्मसमभाव की सूक्ति चरितार्थ किया। विधर्मियो के शवों का अंतिम संस्कार करने में तन-धन-मन से तत्परता दिखाई।
हम घरों में बैठ कर महामारी के दौरान पैदल चल कर अपने घरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर, मजदूरों को समाचारों में सिर्फ देखते थे।
जो महामारी से पीड़ित थे,वे शारीरिक रूप से त्रस्त हो ही रहे थे, साथ चिकित्सा में लगने वाले धन के कारण पस्त हो रहे थे। पीड़ितों के परिजन अपनों की सेवा सुश्रुता में व्यस्त थे।
जिन लोगों को स्वर्ग से आमंत्रण नहीं आया वे, स्वर्ग के द्वार तक जा कर लौट आए। तादाद में स्वर्ग में भी पहुँच ने सफल भी हो गए।
चिकित्सा सेवा की अपर्याप्त व्यवस्था के कारण बहुत से बिन बुलाए मेहमान की तरह भगवान को प्यारे हो गए।
तादाद में परलोक सिधार ने वालों की अंतक्रिया के लिए समुचित व्यवस्था में अभाव होने के कारण अंसख्य लोगों को मरणोपरांत जल समाधि दि गई।
बहुतसो को बालू रेत में दफना कर रामनामी चादर ओढाई गई।
राम नाम ही सत्य है। इस सूक्ति को सिद्ध किया गया।
जब लॉक डाउन से मुक्ति मिली तब चिकित्सकों के द्वारा देश की आर्थिक स्थिति को सुदृढ करने के लिए बेतहाशा अचल समाप्ति क्रय करके “कर” अदा कर शासन के राजस्व की आय में वॄद्धि की गई,ऐसे समाचार भी गुप्त रूप से प्रकट हुए हैं।
इन समाचारों में कितनी सच्चाई है यह कह पाना असंभव है। काश यह अफवाह ही हो?
बहरहाल हम इस वर्ष भी न्यू ईयर मनाएंगे। लगभग दो वर्षो से हम न्यू ईयर मनाने से वंचित रहें हैं।
New year मनाएंगे। 31 दिसंबर की रात जश्न मनाएंगे। सम्पूर्ण जश्न English में होगा। न्यू ईयर के जश्न में Full, Half और का Quarter सेवन किया जाएगा। साधारण भाषा में समझने के लिए (खम्बा,अद्दि और पव्वा।)
यह सेवन एक दूसरें को तरबेज देतें हुए मतलब चुनौती देते हुए लबरेज़ होने तक अर्थात मुँहामुँह होने तक डकारेंगें।
अपनी भारतीय संस्कृति को मुँह चिढाते हुए,पाश्चात्य सँस्कृतिहीन नृत्य करेंगें। न्यू ईयर के जश्न को मनाते हुए संभ्रात स्त्री, पुरुष एक दूसरे के साथ ना सिर्फ गलबहिया करेंगे बल्कि स्पीकर की कर्कश आवाज के साथ हो-हल्ला करते हुए तमाम मर्यादाओं को त्याग, नृत्य करेंगे?
दूसरें दिन जब खुमार उतरेगा तब घरों में टँगे कैलेंडर बदलेंगे। बीते वर्ष के कैलेंडर को रद्दी में डाल देंगे। पुनः नए वर्ष का इंतजार रहेगा।
आने वाले वर्ष को हम नव वर्ष कहतें हैं और कहतें रहेंगे। हम स्वयं कितने बदलेंगे यह अनुत्तरित प्रश्न सम्भवतः अनवरत रहेगा?

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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