शशिकांत गुप्ते
सीतारामजी आज फ़कीर शब्द का अर्थ समझा लग गए।
फ़कीर का मतलब होता है ग़रीब।
सांसारिक विषयों का त्याग करने वाला व्यक्ति; साधु; संत; महात्मा, भजन करके गुज़ारा करने वाला मुसलमान साधु,बहुत गरीब या कंगाल व्यक्ति, भीख माँगने वाला व्यक्ति; भिखमंगा; भिक्षुक।
मैने पूछा आज एकदम आपको फ़कीर की याद कैसे आ गई?
सीतारामजी ने कहा पिछले आठ वर्षों में फ़कीर शब्द बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। जो फ़कीर होता है,वह अपने साथ एक झोला भी रखता ही है।
इनदिनों फ़कीर के साथ झोला शब्द की अहमियत भी बढ़ गई है।
फ़कीर के झोले में भिक्षापात्र होता है और सम्भवतः एक या दो जोड़ फटे पुराने कपड़े होतें होंगे।
फ़कीर के झोले में बहुत कम वजन होता है। इसलिए फ़कीर जब चाहे तब आसानी से झोला उठाकर कहीं भी भ्रमण पर निकल सकता है।
फ़कीर मतलब पूरा फक्कड़ व्यक्ति होता है। एक कहावत है,फूटे भाग फ़कीर के,भरी चिलम ढुल जाए। इस कहावत में एक राज छिपा है। भरी चलिम ढुल जाए मतलब फ़कीर भी चिलम खींचने का शौकीन होता है। वैसे अपने यहाँ धार्मिक अनुष्ठान के समय नागा साधुओं को चिलम के लिए लगने वाले पदार्थ को शासन खुद ही मुहैया करवाता है। हमारा भारत देश धार्मिक आस्था का देश है।
एक शायर नोमान शौक का यह शेर उक्त लेख के साथ प्रासंगिक है।
फ़कीर लोग रहे अपने अपने हाल में मस्त
नहीं तो शहर का नक्शा बदल चुका होता
सीतारामजी ने इसतरह फ़कीर के महत्व को विस्तार से समझाया।
मैने पूछा आज आप फ़कीर शब्द इतना मेहरबान क्यों हैं?
सीतारामजी ने कहा यदि मैने आशय समझा दिया तो मेरे व्यंग्यकार होने का महत्व ही समाप्त हो जाएगा?
शशिकांत गुप्ते इंदौर