© शंभू राय
जिंदगी किताबों सी,
पन्ने सभी खूबसूरत होते हैं…!
बदलते हैं पन्ने जिस तरह किताबों के!
रहस्य खुलता जाता हैं…!
जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है..!
वक्त जब ले रहा हो परीक्षा,
हमारे हौसले की..!
पहचान भी हो जाती है,
लोगों की वास्तविकत यहाँ..!
सबकुछ है यहाँ दिखावा मात्र,
अनजाने से लगने लगते हैं.!
वर्षों से अपने लगने वाले चेहरें ..!
बढ़ने लगती है रिश्तों में दूरियाँ,
उदास होता है अंतर्मन भी,
पश्चाताप के आँसू रोता है..!
अकेला पाकर इंसान इस रंगमंच में,
सच्चाई को स्वीकार करने से कतराता हैं!
अपनों के साथ खुशहाल जिंदगी के सपने,
स्वार्थ के खंभों के नीचे..,
बिखरा हुआ वह पाता है..!
जिंदगी भी मानों चाहती हो,
व्यंग्य करना ….!
कदम भी डगमग करने लगते हैं,
स्थिर रहने की कोशिश में..!
किसी तरह मनुष्य आगे बढ़ाता हैं,
अपने जीवन यात्रा को..!
रास्ते अकेले तय करने के बाद,
खूबसूरत लगने लगती है जिंदगी..!
फिर लोग आकर सामने,
अपने मतलब के रिश्तों को,
आगे बढ़ना चाहते हैं..!
क्या फर्क है किताबों और जिंदगी में..!
दोनों हमें जीना सिखाती है..!
रहस्य का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है,
किताबों की ऊपरी पृष्ठ देखकर…!
जिंदगी में भी लोगों के वास्तविक चेहरें,
पहचान में नहीं आते हैं..!
जिंदगी भी एक किताब सी,
रहस्य को छुपाए रहती है..!
अपने अंदर…!
© शंभू राय
सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल