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श्रम और विश्राम का संतुलन है जीवन

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 डॉ. विकास मानव

    एक साधक ने पूछा : ध्यान में पर्याप्त समय तक बैठ नहीं पाते हैं, क्या करें?

       बैठने के लिए हमें “चलना” होगा और चलने के लिए हमें “बैठना” होगा। जब हम सारा दिन काम करते हैं तो ही रात को “सो” पाते हैं और हम रात को सो पाते हैं इसीलिए लिए सारा दिन “काम” कर पाते हैं। यानि श्रम और विश्राम दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। श्रम होगा तो “विश्राम” होगा और विश्राम होगा तो ही “श्रम” होगा।

        यही बात ध्यान-साधना में भी लागू होती है। ध्यान में प्रवेश करने के लिए हमें गहरे विश्राम में जाना होगा। और गहरे विश्राम में जाने के लिए हमें कठोर श्रम से गुजरना होगा। साधना में समस्या यहीं से शुरू होती है। हम श्रम करते नहीं है। जिससे हमें विश्राम उपलब्ध नहीं होता है और विश्राम उपलब्ध नहीं होता है तो हमारा ध्यान में प्रवेश मुश्किल हो जाता है, क्योंकि ध्यान में प्रवेश तो गहन विश्राम में ही हो सकता है!

        यही कारण है कि ध्यान में बार-बार मन उचटता है। थोड़ी देर भी नहीं बैठ पाते हैं और कहीं खुजली चलने लगती है, कहीं चींटी काटने लगती है, और कहीं सुन्नपन और अकड़न होने लगती है।

     ध्यान साधना की प्राथमिक समस्या यही रही है कि हम ध्यान में ज्यादा समय तक बैठ नहीं पाते हैं। उसका कारण यही है कि हम ज्यादा चलते नहीं हैं।

श्रम और विश्राम दोनों समानुपात में घटित होंगे। जितना श्रम होगा उतना ही विश्राम होगा। यदि हमें एक घंटे ध्यान में बैठना है तो उससे पहले हमें एक घंटे चलना होगा। हम श्रम करेंगे, चलेंगे तो ही विश्राम में बैठ पाएंगे? 

       साधना के मुख्यतः दो चरण है। एक सक्रिय चरण है और दूसरा निष्क्रिय चरण है। सक्रिय चरण में वे प्रयास आते हैं जिनमें कुछ किया जाता है, जैसे व्यायाम, प्राणायाम, दौड़ना, नाचना  इत्यादि। और दूसरे निष्क्रिय चरण में वे प्रयास आते हैं जिनमें कुछ किया नहीं जाता है, जिनमें हुआ जाता है, जैसे शवासन में जाना, श्वास पर ध्यान लगाना, धारणा करना, नाभी पर ध्यान करना या किसी चक्र पर ध्यान साधना इत्यादि। 

साधना का पहला चरण किये बिना हम दूसरे चरण में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। सक्रिय प्रयास किये बिना हम निष्क्रिय प्रयास में नहीं उतर सकते हैं। समस्या यहीं से शुरू होती है, जब हम पहला चरण पूरा किये बिना ही दूसरे चरण में प्रवेश करने लगते हैं। 

       रोजाना हम जितना भोजन लेते हैं। हम जो ऊर्जा हमारे शरीर में डालते हैं वह जरुरत से ज्यादा होती है। क्योंकि उसे हम पूरा खर्च ही नहीं कर पाते हैं। हम जितनी कैलोरी उर्जा अपने शरीर को दे रहे हैं उसे हम पूरी तरह से खर्च नहीं कर पाते हैं। वह उर्जा जब शरीर शिथिल होकर ध्यान में जाने लगेगा तब शरीर में सक्रिय होगी और बाधा देगी।

      आज नींद नहीं आने का मुख्य कारण यही है कि हम काम नहीं करते हैं, हमारे जीवन से श्रम खो गया है। हमारी सारी ऊर्जा को हम खर्च नहीं कर पाते हैं और वह उर्जा ध्यान में और नींद में दोनों में बाधा देती है। नींद के समय और भी ज्यादा विचार आते हैं, क्योंकि जो ऊर्जा हमने खर्च नहीं की है वह उर्जा अब विचारों में बहनी शुरू हो गई है।

      यदि नींद नहीं आए तो शरीर को थोड़ा थका लेना बेहतर होता है। थोड़ा चलना-फिरना या नाचना सहयोगी होगा। शरीर थक जाएगा तो स्वतः ही नींद में प्रवेश कर जाएगा। 

श्रम नहीं करने के कारण हमरे शरीर से पसीना भी नहीं निकलता है और पसीना नहीं निकलता है तो वह पसीना शरीर में ही घूमता रहेगा और ध्यान में बैठने पर खुजली और अकड़न पैदा करेगा। पसीना निकल जाने पर वे सारे तत्व शरीर के बाहर चले जाते हैं जो ध्यान में बाधा उत्पन्न करते हैं, जो नींद में बाधा उत्पन्न करते हैं।

       पसीना बहाने से शरीर की चमड़ी के सारे रोम छिद्र खुल जाते हैं जिससे प्राण तत्व पूरे शरीर में फैलने लगते हैं जो हमारी भीतर की ऊर्जा को सक्रिय करने में सहयोगी होते हैं। 

       विश्राम में जाने के लिए हमें श्रम में जाना होगा। सुबह व्यायाम या दौड़ लगाकर पसीना निकालना होगा। जितना हो सके चलना होगा। और शरीर को जितनी उर्जा की जरूरत है उतनी ऊर्जा ही देनी होगी।

      हमें अपने भोजन में सुधार करना होगा। क्योंकि शरीर यदि हल्का होगा तो ही हमारा ध्यान में प्रवेश करना आसान होगा। 

दिन में श्रम करने पसीना बहाने के बाद जब सांझ हम ध्यान में प्रवेश करते हैं तो हमारा शरीर एक शांत और विश्राम-पूर्ण अवस्था में प्रवेश करने लगता है। कहीं कोई खुजली नहीं होगी, कहीं कोई अकड़न नहीं होगी, कहीं कोई सुन्नपन नहीं, कोई बाधा नहीं होगी क्योंकि बाधा पैदा करने वाले तत्वों को हमने पसीने द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया है।

      काम करने के लिए शरीर को नाभि तक श्वास चलानी पड़ी है, जिससे हमारे शरीर में आक्सीजन की मात्रा बढ़ गई है, जो हमारे होश पूर्ण होने में सहयोगी है। जो हमें जगाये रखेगी, नींद में नहीं जाने देगी। 

       जब हम विश्राम पूर्ण अवस्था में ध्यान में प्रवेश करने लगेंगे और हमारा शरीर शांत और शिथिल होगा तब हमारी श्वास गहरी हो नाभि तक जाने लगेगी, तो श्वास में छुपी आक्सीजन के कारण हमारे भीतर की उर्जा सक्रिय होने लगेगी और वह उस दिशा में गति करने लगेगी जिस दिशा में हमारा ध्यान होगा। हमारा ध्यान यदि मष्तिष्क में होगा तो हमारा मष्तिष्क विचार करने लगेगा।

 हमारा ध्यान यदि ह्दय पर होगा तो हमारा ह्दय चक्र सक्रिय होने लगेगा। यदि हमारा ध्यान नाभि पर होगा तो हमारा नाभि चक्र सक्रिय होने लगेगा। 

       उर्जा पहले तो सीधा देखने वाले की ओर यानि साक्षी की ओर  बहेगी। फिर साक्षी जिस केंद्र की ओर देखेगा, उर्जा उस केंद्र की ओर गति करने लगेगी। साक्षी यदि विचारों में खोया है तो उर्जा विचारों को मिलेगी।

       साक्षी यदि अपने भीतर मष्तिष्क में हो रहे अचेतन मन के सन्नाटे को सुनने की कोशिश करेगा तो उर्जा उस दिशा में गति करने लगेगी। 

      शरीर शिथिल और विश्राम में होगा तो हमारा मन भी विश्राम में होगा और विचार विलीन होने लगेंगे।

        हम साक्षी हो विचारों को विलीन होता हुआ देखने लगते हैं, विचारों के विलीन होते-होते निर्विचार का सन्नाटा और भी गहराने लगता है और हमारा चेतन मन से अचेतन मन में प्रवेश होने लगता है।

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