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*जीवन-सूत्र : Minimalism &  Non-possession*

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       डॉ. विकास मानव

 दिल्ली की संभ्रांत पृष्ठभूमि से एक लड़की आती है रजनी. यह दुनिया के 20 देशों में रह चुकी है पर इसने पिछले 5 वर्षों से हवाई जहाज़ में सफ़र नहीं किया है.

    दिल्ली में रहते हुए इसके पास ना कोई वाहन है और ना ही कोई घर. वह पूरी तरह वीगन है. एकल उपयोग प्लास्टिक का किसी भी तरह इस्तेमाल नहीं करती. वह स्वतंत्र यात्रा नहीं करती (काम के सिलसिले में भी नहीं). दिल्ली में कहीं भी जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन का ही इस्तेमाल करती है.

     यह लड़की अतिसूक्ष्मवाद यानी minimalism और गैर स्वामित्व यानि non-possession में विश्वास रखती है। इसका मतलब सिर्फ़ उतना ही खरीदना या लेना जितना कि न्यूनतम एक इंसान को औसत जीवन जीने के लिए ज़रूरी है।

     रजनी अपना सारा काम खुद करती है और 3 R (reduce, reuse & recycle) में विश्वास करती है। 

     दिल्ली जैसे महानगर में ऐसी सोच रखना और इसे ज़मीनी स्तर पर अपने ऊपर लागू करना स्वतः ही समाज द्वारा आपको हँसी और उपहास का पात्र बनाने के लिए काफ़ी है। इसलिए की यह समाज है ही ऐसा.

  लेकिन रजनी इस पृथ्वी को हमारे, आपके और हम सबकी आने वाली पीढ़ी के लिए ही नहीं बल्कि इस पृथ्वी के सभी जीव जंतुओं के लिए एक बेहतर जगह बनाने की उम्मीद व कोशिश करती हैं। यह चाहती है कि इंसान अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने में इतना आत्ममुग्ध ना हो जाए कि उसे दूसरे जीव जंतुओं की ज़रूरतों तक का ख्याल ना रहे। 

    यह सब रजनी को विचलित नहीं करता। शुरू में करता था, पर अब उसे आदत हो गई है. इसलिए उसने इन सब को अब नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया है। दिल्ली में संभवतः सबसे कम कार्बन फुटप्रिंट जिनका है, रजनी उनमें से एक है।

   इसका घर एक मिनी कूड़ादान है क्योंकि अगर कोई कचरा हुआ भी (जैसे बस टिकट, फल के छिलके, इत्यादि) और यदि आसपास कोई कूड़ादान ना दिखे तो वह उसे अपने बैग में रख लेती है। फिर या तो उसे पुन: उपयोग करती है या उसे रिसाइकल करती है। 

     रजनी से मिलने से पूर्व मुझे लगता था कि मैं काफ़ी कुछ कर रहा हूँ इस पृथ्वी के लिए, लेकिन रजनी ने मेरा और मेरे आसपास कई लोगों का यह भ्रम तोड़ दिया।

   हम सब संभवतः अभी भी काफ़ी आत्ममुग्ध हैं और अपनी सुविधा देखकर ही कोई पहल करते हैं। पर रजनी ने अपना जीवन ऐसे डिज़ाइन  कर लिया है जिससे कम से कम संसाधनों का इस्तेमाल कर अपनी रोज़मर्रा और उससे आगे की ज़रूरतें पूरी की जा सकें।

    रोज़मर्रा की आदत बदलना तो दूर की बात हम बेतक्कलुफ होकर अपनी विलासिता भर जीवम जीते हैं, यात्रा करते हैं। हम सब उपभोक्तावाद के चंगुल में फँसे हुए हैं और कोई भी फैसला लेते वक़्त दूसरे जीवों पर उसके दुष्परिणाम के बारे में विरले ही सोचते हैं।

    मैं यह नहीं कहता कि आप कोई भी चीज़ (चाहे वह आवश्यक हो या अनावश्यक) लेना बंद कर दें या यात्रा ना करें. बस थोड़ा जागरूक हो जाएँ कुछ भी खरीदने या उपभोग करने से पहले, और अपनेआप से पूछें कि क्या वाकई हमें अपना जीवन जीने के लिए इसकी आवश्यकता है या हम सिर्फ़ देखा देखी या विलासिता भरा जीवन जीने के लिए खर्च या उपभोग कर रहे हैं? क्या मैं ऐसा कुछ कर सकती / सकता हूँ जिससे मेरी आने वाली पीढ़ी और इस ग्रह के अन्य जीव जंतुओं का जीवन आसान बना सकूँ?

     यह लेख रजनी का प्रमोशन नहीं है बस जागरूक करने का एक तरीका है : यह बताकर कि हमारे आपके बीच ऐसे कई लोग हैं जो अपनी ख्वाहिशें मिटाकर एकदम न्यूनतम जीवन जी रहे हैं ताकि पृथ्वीवासियों का जीवनकाल थोड़ा और बढ़ जाए।    

   रजनी के निजी जीवन से, उनकी संगति से और भी बहुत कुछ मैने सीखा है, पर मुझे इसकी इजाज़त नहीं कि मैं उनका निजी जीवन उनसे मिले अपने आंतरिक अनुभव को पब्लिकली ओपन करूँ। उनकी पिक्चर ओपन करने की इजाजत भी उन्होंने नहीं दी है. इतना पढ़ने के लिए धन्यवाद।

    अगर आप में से 02 लोग भी इसे आत्मसात करेंगे और अपने आसपास के लोगों को यह अपनाने के लिए कहेंगे तो मुझे लगेगा रजनी की मेहनत और मेरी कोशिश सफल हो रही है।

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