पत्नि अपनी कामना से पति को शयन काल में आमंत्रित करे. अमोऽहमस्मि’ मंत्र से पत्नी का आलिंगन करे।
इस मंत्र का भावार्थ है : देवि! मैं प्राण हूँ, तुम वाक हो। मैं साम हूँ, तुम ऋत हो। मैं आकाश हूँ, तुम पृथ्वी हो। अतः आओ हम दोनों एक साथ रेतस धारण करें।
तत्पश्चात पत्नी के दोनों जांघों को फैलाएं और विजिहीथां द्यावापृथिवी इति! मंत्र मन में पढ़ें.
इस मंत्र का अर्थ : हे आकाश और पृथ्वी! तुम दोनों विलग होओ, हमें अद्वैत होने दो.
इसके बाद पति, पत्नी के योनिमंदिर में अपना लिंग स्थापित करे. एक-दूसरे के मुँह से मुँह मिलाकर दोनों चुम्बन और स्वासों का आदान प्रदान करें. पति अनुलोम क्रम से पत्नी के सम्पूर्ण शरीर का (केश से पैर तक) तीन बार पुष्पवत स्पर्श करे (सहलाये)। इस मार्जन काल में ‘विष्णुर्योतिकलकपयतु’ मंत्र का मौन पाठ करें।
इस मंत्र का भाव है : प्रिय! सर्वव्यापी भगवान हमारी जननेंद्रिय को फलोत्पत्ति में समर्थ बनावें। भगवान हम में अभिन्न रुप में स्थित हों, वीर्य-अंड का आधान करें।
इसके बाद नर अपनी मादा में ‘प्रकृति’ देखे और मादा अपने नर में ‘परमात्मा’.
स्त्री के किसी भी अंग पर बिना दबाव और दर्द दिए, पुरुष तब तक संसर्ग करे; ज़ब तक स्त्री परमानंद में डूबकर निश्चेत (बे-सुध) नहीं हो जाए.
~ बृहदारण्यकोपनिषद :
(6/4/20- 2 1)
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(लेखिका चेतना विकास मिशन क़ी संचालिका हैं.)