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सरकार की नीतियों से अधिकांश हिंदुओं का जीवन खतरे में 

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मुनेश त्यागी

      हम बहुत साल पहले से हिंदी हिंदू हिंदुस्तान की बात सुनते आ रहे हैं। हम यह भी सुनते आ रहे हैं कि हिंदुओं का जीवन खतरे में है और उन्हें आजादी के बाद वह नहीं मिल पाया जो उन्हें मिलना चाहिए था। पहले बहुत दिनों से आर एस एस के नेतृत्व में हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा हिंदुस्तान की जनता के खतरे में होने की बात की जा रही हैं मगर यहां असली प्रश्न यह है कि यह खतरा किससे है? ये कौन ताकतें हैं जो भारत की जनता को खतरा पैदा कर रही हैं? खतरा है मनुवादियों, भ्रष्टाचारियों, कॉरपोरेट पूंजीपतियों और हिंदुत्ववादियों के जनविरोधी, देशविरोधी गठजोड़ से, खतरा है नव उदारवाद की जनविरोधी नीतियों से, खतरा है देश की जनता की गाढ़ी कमाई से बनाई गई नवरत्न कंपनियों को अडानी, अंबानी और चंद पूजी पतियों को बेचने से। और आश्चर्यचकित करने वाली बात यह है कि यह सारा काम मोदी सरकार कर रही है।

     खतरा है सरकारी नीतियों के कारण भयावह होती बेरोजगारी की स्थिति से, खतरा है मनुवाद की नीतियों से,  मनुवादी नजर और नजरिया से, मनुवादी सोच और मानसिकता को अमल में लाने से, खतरा है हिंदुत्ववाद की जन विरोधी किसान विरोधी और मजदूर विरोधी नीतियों और सोच से।

       हिंदूवाद की नीतियां और सोच, हिंदुत्ववाद की नीतियों और सोच से बिल्कुल भिन्न हैं। हिंदूवाद वसुधैव कुटुंबकम, विश्वबंधुत्व, भाईचारे, दया, धर्म, सम्यक दृष्टि, सबका कल्याण और सबके विकास की नीतियों और सोच में विश्वास करता है। जबकि हिंदुत्ववादी सोच मनुवाद वर्णवाद, जातिवाद, ऊंच-नीच, अमीर गरीब, धर्मांधता, श्रद्धांधता, छोटा बड़ा, शोषण, जुल्म अन्याय, भेदभाव और छुआछूत की मानसिकता और सोच में में विश्वास करती है।

     सावरकर कहता था कि उसका वाद और उसकी विचारधारा, हिंदुवाद नही, बल्कि हिंदूत्ववाद में विश्वास करता है। उसका हिंदुत्ववाद, हिंदुओं का सैन्यीकरण और सेना का हिंदूकरण करने में विश्वास करता था। हिंदुत्ववादी सोच समता, समानता, आजादी, न्याय, जनवाद, धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी सोच की खुल्लम खुल्ला विरोध करती है और इनमें कतई विश्वास नहीं करती है। हिंदूत्ववादी सोच का भारत की एकता और अखंडता में कोई विश्वास नहीं है।

     हिंदुत्ववादी सोच और नीतियों का, 90 फ़ीसदी भारतीयों के कल्याण में कोई विश्वास नहीं है, यह  उनके कल्याण की कोई बात नहीं करता। हिंदुत्ववादी नेता 90 फ़ीसदी जनता को रोजगार, रोजी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुढ़ापे की अवस्था के बारे में कोई बात नहीं करते। हमारे देश में लगभग 85% हिंदू हैं और हिंदुत्ववादी सोच और नीतियां, 70 फ़ीसदी हिंदुओं, जैनियों बोध्दों और सिखों की बुनियादी समस्याओं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, बुढ़ापे की पेंशन और रोजगार के बारे में कोई बात नहीं करती। मोदी सरकार द्वारा लागू की जा रही, हिंदुत्ववादी नीतियों के कारण देश की एकता, अखंडता, कानून के शासन और संविधान को, आज सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है।

      हिंदुत्ववादी साधु और सन्यासी धर्म संसद में मुसलमानों के कत्लेआम का आह्वान कर रहे हैं, गांधी को बुरी बुरी गालियां बक रहे हैं, गांधी के हत्यारे गोडसे का महिमामंडन और गुणगान कर रहे हैं और हिंदुत्ववादी सरकार खामोश होकर तमाशबीन बनी हुई है। हिंदुत्ववादियों और उनकी सरकार की कोई भी नीति 80% हिंदुओं की गरीबी, अन्याय, बेरोजगारी, शोषण, महंगाई और भ्रष्टाचार के खात्मे की बात नहीं करती। हमारे देश में 80 फ़ीसदी लोगों की आय ₹20 प्रतिदिन भी नहीं है, बेरोजगारी आज अपने चरम पर है आर्थिक असमानता ने सारी हदें पार कर दी हैं, भ्रष्टाचार नैतिकता और सामाजिक मूल्यों को निगल गया है, महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है।

      किसानों को फसलों का वाजिब दाम मिले, मजदूरों के अधिकारों को लागू किया जाए, सारे कर्मचारियों और बुजुर्गों को पेंशन दी जाए, सबको रोजगार मोहिया कराया जाए, नौकरियों को स्थाई किया जाए, सभी तरह की ठेकेदारी प्रथा का खात्मा हो, तमाम हिंदूत्ववादियों का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। बड़े बड़े पूंजीपतियों ने सरकारी बैंकों के 11 लाख करोड़ रुपए मार लिए हैं, हिंदुत्ववादियों की इतने बड़े धन को वापस लेने की कोई योजना नहीं है। हमारे देश में सारे पांच करोड़ मुकदमे पेंडिंग हैं, मुकदमों के अनुपात में जज और कर्मचारी नहीं हैं। सस्ते और सुलभ न्याय की आशा में 10 करोड़ से ज्यादा पक्षकार अदालतों के चक्कर लगाते लगाते, तारीख पर तारीख लेते लेते थक गए हैं। हिंदूत्ववादी सोच के लोगों और सरकार का इस और कोई ध्यान नहीं है, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाना उनकी सोच और नीतियों में नहीं है।

      उपरोक्त के आलोक में हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि निकट भविष्य में 80 फ़ीसदी हिंदुओं को अपने सामने मुंह बाए खड़ी बुनियादी समस्याओं से निजात मिलने की कोई उम्मीद नहीं है और हिंदुत्ववादी सोच और पूंजीपतियों और उनकी सरकार, भारत के हिंदुओं की सबसे बड़ी विरोधी और दुश्मन बन कर सामने आई है और आज हिंदुओं को सबसे ज्यादा खतरा हिंदुत्ववादी सोच, हिंदूवादी सरकार और पूंजीपतियों और उनकी नीतियों से है।

      याद रखना हिंदुत्ववादी सोच, मानसिकता, नज़र और नजरिए को गौतम, बुद्ध, महावीर जैन, अमीर खुसरो, कबीर, नानक, ज्योतिबा फुले, गांधी टैगोर, अम्बेडकर और क्रांतिकारी भगत सिंह, बिस्मिल, आजाद और सुभाष चंद्र बोस की सम्यक दृष्टि और सर्व कल्याण की हिंदुवादी सोच और नीतियां से ही हराया जा सकता है। 

     यह भी स्मरण रखने की जरूरत है कि हिंदुत्ववादी  और पूंजीपतियों की सरकार ही, उनकी नीतियां और सोच ही, इस देश के 80 फीसदी हिंदुओं की सबसे बड़ी अहितकारी और दुश्मन हैं।  हिंदुत्ववादियों और पूंजीपतियों के गठजोड़ की सरकार की इस हिंदू विरोधी सोच, मानसिकता और नीतियों को, 90 फ़ीसदी भारतीय जनता यानी किसानों, मजदूरों, नौजवानों, छात्रों, महिलाओं, बुद्धिजीवियों, जजों, वकीलों और मीडिया कर्मियों के एकजुट संघर्ष और आंदोलन और क्रांतिकारी सोच, नीतियों और आंदोलन से ही हराया और हटाया जा सकता है, इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं रह गया है। आज भारत की शोषित पीड़ित जनता एकजुट होकर ही भारतीय समाज, भारत के संविधान, कानून के शासन, जनता की एकता और आपसी भाईचारे को बचा सकती है।

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