रिजवान अंसारी
पिछले दिनों बरेली के बारादरी इलाके में एक रिटायर्ड पुलिसकर्मी के जवान बेटे ने खुदकुशी कर ली। बेरोजगारी के चलते वह डिप्रेशन में चला गया था। उज्जैन के नागझिरी में भी ऐसा ही वाकया हुआ। वहां भी लॉकडाउन की वजह से एक युवक का रोजगार छिन गया था और उसने खुदकुशी कर ली। नोएडा के सेक्टर 66 में भी यही कहानी दोहराई गई। मुंबई स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के मुताबिक मई में एक करोड़ लोगों की नौकरी पर कैंची चली है।
सीएमआईई बताता है कि बीते अप्रैल माह में 70 लाख लोगों का काम-धंधा छिन गया था। इस महीने, यानी मई की 23 तारीख तक देश में बेरोजगारी दर 10.59 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई, वहीं इसका वीकली रेट 14.7 प्रतिशत पर आ गया। साल 2017-18 में 6.1 फीसदी बेरोजगारी दर को पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा बताया गया। ऐसे में मौजूदा हालात की भयावहता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। संस्था के मुताबिक, शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी दर बढ़ रही है, लेकिन सामान्य प्रवृत्ति के उलट शहरी बेरोजगारी दर ग्रामीण से बहुत ज्यादा है। अप्रैल-जून, 2020 के बाद यह पहला मौका है, जब शहरी बेरोजगारी दर दोहरे अंक में पहुंचेगी।
कहने की जरूरत नहीं कि देश का युवा बेरोजगारी का दंश सालों से झेल रहा है। युवाओं के सबसे गंभीर सवाल की उपेक्षा ने हमें कैसे मोड़ पर ला खड़ा किया है, इसकी एक बानगी पिछले साल की नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट में दर्ज है। 2018 आंकड़ों को पेश करते हुए एनसीआरबी ने बताया कि इस दौरान किसानों से ज्यादा बेरोजगार युवाओं ने आत्महत्या की। 2018 में जहां 10,349 किसानों ने खुदकुशी की, वहीं 12,936 युवाओं ने बेरोजगारी से तंग आकर अपनी जिंदगी खत्म कर ली। 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 14,051 तक पहुंच गया। इस तरह के आंकड़े बताते हैं कि हर रोज औसतन 39 युवा बेरोजगार खुदकुशी कर रहे हैं। ऐसे में हर किसी की जबान पर यह सवाल है कि बेरोजगारी के मसले पर केंद्र सरकार सहित राज्य सरकारें क्या कुछ कर रही हैं?
बिहार सरकार ने ग्रामीण इलाकों में रोजगार देने की मुनादी कराई है, ताकि कोई भी व्यक्ति रोजगार से वंचित न रहे। उन्होंने मनरेगा के तहत रोजगार सृजन की बात कही है। दिलचस्प बात है कि पिछले साल भी नीतीश कुमार ने यही कहा था, लेकिन पिछले लॉकडाउन में किसी तरह बिहार लौटे लोगों को ही मनरेगा में ही पूरा काम नहीं मिल पा रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश इस मामले में बिहार से होड़ लेता नजर आ रहा है। प्रदेश के बदायूं जिले में मनरेगा का काम ठप पड़ा है और मजदूरों के सामने खाने के लाले पड़े हैं। कुल मिलाकर जिले के 1.44 लाख परिवारों के सामने रोजगार का संकट है। यूपी के ही झांसी में पिछले 16 दिनों में बीस युवा सुसाइड कर चुके हैं, जिसकी वजह बेरोजगारी और कहीं न कहीं उसी से उपजी घरेलू कलह बताई जा रही है।
गांव से वापस शहर लौटें तो यहां सरकार ऑनलाइन ट्रेनिंग के बाद नौकरी देने की तैयारी में है। पंजीकृत युवाओं को गूगल मीट के जरिए 100 दिन की ट्रेनिंग के बाद नौकरी के अवसर देने की बात की जा रही है, लेकिन अभी तक ऐसी पहल का बहुत असर नहीं हुआ है। अगर कुछ होता तो बेरोजगारी के कारण इतनी ज्यादा खुदकुशी के मामले सामने नहीं आते। पुणे के लोनी कलाभोर में तो बेरोजगारी से आकर 38 साल के एक युवक ने धारदार हथियार से पहले अपनी बीवी और बच्चे को मारा, फिर खुद फांसी लगा ली।
बेरोजगारी घटाने को लेकर कमोबेश हर राज्य सरकार के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन सरकारी दावों की हकीकत से कोई भी अनजान नहीं है। उधर, अपनी नौकरी से हाथ धो रहे लोगों के लिए केंद्र सरकार भी अब तक कोई ब्लूप्रिंट सामने लेकर नहीं आई है। हम सालाना एक करोड़ ऐसे युवाओं की तादाद और जोड़ रहे हैं, जो कोई ना कोई डिग्री लेकर निकल रहे हैं, और घर पर जाकर बैठ जा रहे हैं।