अग्नि आलोक

लोहिया : एक आख्यान…लोहिया विचार अगर अमल में आ जाए तो दुनिया बदल सकती है

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 डॉ राम मनोहर लोहिया हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के एकमात्र ऐसे राजनेता रहे है  जिन्होंने गरीब, मजदूर ,दलित ,पिछड़े, अल्पसंख्यक, महिला,, युवा, प्रकृति, विदेश नीति, सीमाएं ,विश्व बंधुत्व ,यानी हर विषय पर अपना मौलिक सौच दिया और 57 साल की कम उम्र में ही अपना जीवन त्याग दिया, लेकिन इस छोटी उम्र के बावजूद उन्होंने  देश और दुनिया के बारे में जो विचार दिये है वह अगर अमल में आ जाए तो दुनिया बदल सकती है ।
समाजवादी आंदोलन के पुरोधा के बारे में हिंदुस्तान के तमाम राजनेताओं और चिंतकों ने अपनी दृष्टि से विचार व्यक्त किए हैं, ऐसे ही कुछ चिंतकों  के विचार सोशलिस्ट युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ,नीरज कुमार संग्रहित कर अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट कर रहे हैं । अग्नि आलोक ने उनकी फेसबुक वॉल से यह विचार आम पाठकों के लिए संग्रहित कर प्रसारित करने का फैसला किया है ।विचारों की यह दूसरी श्रंखला है, जिसमें करीब अट्ठारह व्यक्तियों के विचार संग्रहित है ।



सुचेता कृपलानी लिखती हैं –13- 1942 के भूमिगत आंदोलन के समय डॉ. लोहिया ने मेरे साथ बड़े सहयोग से काम किया । वे उस छोटे-से कार्यकर्ताओं के दल में थे जो भूमिगत अ॰ भा॰ काँग्रेस कार्यालय चलाते थे । तनाव व उलझन तथा चुनौतियों के उन दिनों में उनके जोशीले, हंसमुख और खतरे से खेलने वाले स्वभाव ने हमारी बहुत मदद की । उनके लिए खतरे और झमेले स्वाभाविक थे और वे हर समय अधिक खतरों को न्योता देते रहते थे । और चीजों के अलावा उनके ऊपर भूमिगत रेडियो स्टेशन चलाने की भी ज़िम्मेदारी थी । मुझे उन दिनों की याद है जब मुंबई की पुलिस को उनके गुप्त रेडियो स्टेशन का पता लग गया और वे लोग रेडियो स्टेशन की खोज और उस पर बोलने वालों को गिरफ्तार करने के प्रयास में व्यस्त हो उठे । तब हम रेडियो स्टेशन को एक स्थान से दूसरे स्थान-अपने दोस्तों के घर- हटाते फिरते । एक समय ऐसा भी आया जब लगा की पुलिस का शिकंजा कस गया है और तब हम लोगों ने रेडियो स्टेशन बंद करने की सोची । एक बहुत छोटी उम्र की लड़की उषा मेहता रेडियो पर प्रसारण करती थी । मैं उसके लिए बहुत चिंतित रहा करती थी क्योंकि मुझे भय था कि यदि वह रेडियो पर प्रसारण करती हुई पकड़ी गई तो बहुत कड़ी सजा पाएगी । इसलिए मेरा सुझाव था कि हम लोग रेडियो स्टेशन का काम बंद कर दें । लेकिन लोहिया इस पर एकदम से क्रुद्ध हो उठे । बोले, ‘किसी भी परिस्थिति में हम रेडियो स्टेशन बंद नहीं करेंगे । अगर उषा गिरफ्तार होती ही है तो अच्छा है कि वह प्रसारण करते हुए ही गिरफ्तार हो, क्योंकि हमारी यह ब्रिटिश के खिलाफ पूरी तरह अंतिम लड़ाई है और हम किसी स्थिति में और किसी तरह भी अपने कदम वापस नहीं ले सकते ।’ उस समय मैंने इस नौजवान के दिल में छिपे फौलाद को देखा । उषा सचमुच प्रसारण करते समय ही बड़ी नाटकीय स्थिति में पकड़ी गई और इसके लिए उसे खूब भुगतना पड़ा । 
लोहिया और हम सब भारत-भर में सब जगह भागते फिरते थे और लोगों में ब्रिटिश से लोहा लेने की हिम्मत जगाते थे । हम जानते थे कि यह हमारी आखिरी लड़ाई है । हमारे सामने एक ही लक्ष्य था – करो या करो । लोहिया की हिम्मत, योग्यता, खुशदिली हमारे लिए शक्ति थी । इसी समय हमें उनमें नेतृत्व की खूबियाँ दिखीं जिन्होंने उन्हें बाद में भारत का महान नेता बनाया । 
सुचेता_कृपलानी

कमलादेवी चट्टोपाध्याय लिखती हैं –15- गांधी जी पर लोहिया का अटूट विश्वास था । यहाँ तक कि उनकी मृत्यु के बाद अकेले वही थे जिन्होंने गांधी जी की शिक्षाओं को जीवित रखा । सत्ता उनके लिए साधन थी, साध्य नहीं । और सत्ता से जब साध्य की सिद्धि न हो तो उनके विचार में उसका परिहार उचित था । गांधी जी के समान ही उनके लिए व्यक्ति के स्तर पर सत्य, समाज के स्तर पर अहिंसा और राजनीति के स्तर पर सत्याग्रह का महत्व था । परंतु गांधी जी की अहिंसा में से ब्रह्मचर्य, ईश्वर-विश्वास और राजनीतिक उपवास को निकालकर केवल मानवीय अहिंसा को ग्रहण करते थे । हिंसा के वे खिलाफ थे, इसलिए युद्ध के भी खिलाफ थे । वे कहते थे कि हिंसा हमेशा अपने से दुर्बल को खोजती है, इसलिए भय का वातावरण बनाती है । हर युद्ध दूसरे युद्ध को जन्म देता है । 
मानवीयता के नाते वे विवेकानंद से भी प्रभावित थे । वासुधैव कुटुंबकम की भावना से वे विश्व का एक संघ बनाने और सम्पूर्ण निरस्त्रीकरण के काम में भी लगे हुए थे । 

लोहियाकोआजादीकेपहलेऔरबादमेंकोई 18 बारकैदहुई।जितनीबारवेजेलजाते, अपनासिरमुड़ालेते, मानोसन्यासलेरहेहों।एकबारजबसन 1944 से 46 तकवेलाहौरकिलेमेंकैदथे, तोपूछताछकेलिएउन्हेंलगातार 13 दिनऔर 13 राततकसोनेनहींदियागया।उनकीनाकसेखूनबहनेलगाऔरवेगंभीररूपसेअस्वस्थहोगए, परंतुअंग्रेज़सरकारकोउन्होंनेकोईजानकारीनहींदी।जेलमेंलोहियाकादार्शनिकचिंतनऔरभीगहनहुआ।उन्होंनेकहा – ‘भयहमेशाभविष्यकाहोताहैं।वर्तमानतोमनुष्यहमेशासहजाताहै, याफिरवहमरजाताहै।’
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कमलादेवी_चट्टोपाध्याय

लाडलीमोहननिगमलिखतेहैं –16- लोहियाअनीश्वरवादीथे।ईश्वरपरउनकाविश्वासनहींथा, किन्तुवेअकसरकहाकरतेथे, ‘मेराविश्वासउन्हींचीजोंपरटिकसकताहै, जिनसेमेरासाक्षात्कारहुआहोऔरमेरेलिएजीवनमेंदोहीवस्तुएंदुर्लभहै-एकहैनारीऔरदूसरीहैईश्वर।नारीसेसाक्षात्कारहुआहै, लेकिनईश्वरसेनहीं।इसलिएईश्वरहैयानहींइसबहसमेंमैंनहींजाता।’ 
उनकीआस्थाजीवन-भरदेशवसमाजकेसबसेनिचलेवर्गकेउत्थानकेलिएअर्पितरही।एकबारमैंनेपूछा, ‘आपकेपासकुछभीनहोतेहुएभीऐसीकौन-सीशक्तिहैजिसकेभरोसेआपदुनियातथादेशकीसारीबाधाओंसेलड़तेहैं।राजनीतिमेंभीआपसाधनहीनबिरलेराजनीतिज्ञहैं, शायददुनियामेंअकेलेहैं।’ कुछदेरखामोशीकेबादउन्होंनेउलटाप्रश्नमुझसेकियाकि ‘तुमबताओकितुममेरेसाथक्योंहो ? तुमकोतोमेरेसाथनरहकरनेहरूकेसाथहोनाचाहिएयाजातिकेआधारपरजयप्रकाशकेसाथ।’ मुझेकोईउत्तरनसुझातोमैंनेकहा, ‘यहतोमैंनहींकहताकिमैंनेआपकेसारेमूल्योंऔरसिद्धांतोंकोअंगीकृतकरलियाहै।लेकिनमुझेऐसालगताहैकिहिंदुस्तानकीराजनीतिमेंआपहीऐसेबिरलेपुरुषहैंजोसबसेज्यादाउपेक्षित, प्रताड़ितऔरपीटेगएहैं।’ लंबीखामोशीकेबादएकअटूटविश्वासउनकेचेहरेपरझलकाऔरउन्होंनेकहा, ‘जानतेहो, दुनियाकेगरीब-से-गरीबराजनीतिज्ञकोभीवैचारिकराजनीतिकेलिएन्यूनतमसाधनोंकीजरूरतहोतीहैंचाहेवोअपनेविचारोंकेअनुरूपसंस्थाएंबनाताहोयाअपनेसहयोगियोंकीसीधेयापरोक्षरूपसेइमदादकरताहो, याउसकेपाससत्तावलालचकेदोअस्त्रहों।लेकिनजोमूलप्रश्नतुमनेकियाहैकिमेरीशक्तिक्याहै, तोमैंसिर्फइतनाकहनाचाहूँगाकिमुझेयहविश्वासहैकिशायदहिंदुस्तानकागरीबमुझकोअपनाआदमीसमझताहैं।औरसाथहीसाथबिनास्वार्थकेमेरेसाथदेश-भरमेंदो-चारहजारऐसेलोगजुड़ेहैं, जिनकाकिविश्वासकोईसंस्थायामूल्यनहींखरीदसकते।मैंनहींजानताइतनेसाथियोंकामेरेबादक्याहोगा ? होसकताहैंबहुत-सेमेरासाथछोड़देंऔरदूसरेरास्तेपरचलें।लेकिनअबतकजोकुछमैंनेकियायाभविष्यमेंजोकुछभीमैंकरूंगा, उससेएकविश्वासमुझमेंजन्माहैकिमेरेसाथीमेरीराहछोड़दें, इसदेशऔरदुनियाकेलोगमेरीबातसुनेंगेजरूर, लेकिनशायदमेरेमरनेकेबाद।’ इसकेबादएकखामोशीकाआलमहोगया।उन्होंनेमुझसेकहा, ‘एकबातभविष्यकेलिएयादरखना-मेरीबातपरअंधविश्वासकभीमतरखना।अगरतुम्हेंवहकहींजँचेतोउसकेलिएसंकल्पकरना।वहसंकल्पहीतुम्हारीशक्तिहोगा।’   
# लाडली_मोहन_निगम

लाडलीमोहननिगमलिखतेहैं –17- डॉ.लोहियानेपिछड़ोकेउत्थानकेलिएविशेषअवसरकासिद्धान्तकाप्रतिपादनकियाथा।वेयहभीचाहतेथेकिनारियोंकोपुरुषोंकेबराबरकादर्जामिलेऔरकहाकरतेथेकिइसदेशमेंप्रतिनिधिनारीद्रौपदीहै, सीतायासावित्रीनहीं।वेचाहतेथेकिहिंदुस्तानकेनारियोंकेअंदरद्रौपदीकीतेजस्वितापुनःस्थापितहो।वेरजियाकेसमानसत्ताकाकेंद्रबनें।एकबारहमलोगझाँसीमेंरानीलक्ष्मीबाईकेकिलेकोदेखरहेथे।वहाँसेआनेकेबादहमलोगझाँसीकीरानीलक्ष्मीबाईकोघोड़ेपरसवारप्रतिमाकेसामनेरुकगए।वेकुछदेरअपलकउसप्रतिमाकोदेखतेरहे।उसकेनीचेखुदेहुएपत्थरपरउनकीनिगाहपड़ीतोउनकाचेहरागुस्सेलेलालहोगया।गुस्सेकोजब्तकरकेकहनेलगे, ‘इसदेशकेराजाइतनेराक्षसीहैं, यहमैंकभीकल्पनानहींकरसकता।यहाँनारियोंकोसम्मानकभीनहींमिलसकता।’ मैंनेजबसबबजाननाचाहातोउन्होंनेझल्लातेहुएकहा, ‘पढ़ोइसपट्टीपरक्यालिखाहै।’ उसपरलिखाथा ‘नारीजातिकीगौरवमहारानीलक्ष्मीबाई।’ उसकेबादउन्होंनेकहा, ‘यहवाक्यलिखनेवालाशासकवहीहोगाजोसमताऔरबराबरीकीबातकहताहैलेकिनवहकभीसमताऔरबराबरीदेनहींसकता।क्याझाँसीकीरानीनारियोंकीहीप्रतिनिधिथी ? वहदेशवपुरुषोंकीप्रतिनिधिनहींथी ? क्योंकिजानताहूँकिअगरदेशझाँसीकीरानीकोदेशकागौरवसमझनाचाहता, तोपुरुषोचितअहंकोठेसपहुँचती।’ उन्होंनेकहाकि ‘मैंइसबातकोदेश-भरमेंकहूँगाऔरअगरउसकेबादभीइसदेशमेंइसगलतीकोनहींसुधारागयातो, मैंइसपत्थरकोतोड़दूंगा।   
लाडली_मोहन_निगम

मधुलिमयेलिखतेहैं –18- हमारीपीढ़ीकेलोगजानतेहैंकि 1942 मेंमहात्माजीऔरवर्किंगकमेटीकेदूसरेसदस्योंकीगिरफ्तारकेबादअँग्रेजीदमनचक्रकाविरोधकरकेप्रतीकारकाज्योतिप्रज्वलितकरनेकाकामजिनइने-गिनेनेताओंनेकिया, उनमेंडॉक्टरलोहियाअग्रसररहे।मुल्ककाजोबंटवाराहुआ, उसकेवहघोरविरोधीथे।आजमुझेयादआताहैंकिमाउंटबेटनयोजनापरवर्किंगकमेटीमेंजोप्रस्तावपासकियागया, उसमेंउनकेऔरगांधीजीकेकहनेपरएकयहजुमलाडालागयाकिबंटवारातोहोहीरहाहै, लेकिनहमइसबातकोनहींमानरहेकिहिन्दूऔरमुस्लिमअलग-अलगराष्ट्रहैंऔरपहाड़ों, नदियोंऔरसमुन्द्रकीवजहसेहिंदुस्तानकारूपबनाहै, हिंदुस्तानकीएकताकावहजोचित्रहै, वहहमेशाहृदयंगमरहेगा।डॉ. लोहियामानतेथेकिजबतकगोवाआजादनहींहोगा, जबतकपुंडुचेरीआजादनहींहोगाऔरहिमालयकेइलाकेमेंस्थितनेपाल, तिब्बत, सिक्किमऔरभूटानकेराज्योंमेंजबतकलोकतन्त्रकेआधारपरनयासमाजकायमनहींहोगा, तबतकभारतीयस्वतन्त्रताकाकार्यअधूराहीरहजाएगा।नेपालमेंलोकतान्त्रिकक्रांतिलानेकेलिएऔरगोवाकोआजादकरानेकेलिएसबसेपहलेडॉ. लोहियानेपहलकी।गोवामेंवोदोदफागिरफ्तारहुएथेऔरअगरमहात्माजीनहोते, तोमेराख्यालहैकिउनकोबरसोंतकगोवाकीकैदमेंबंदरहनापड़ता।उसीतरहहमारेदेशकेहीएकभाग, उर्वशीयम, जिसेहमअबभीनेफ़ाकहतेहैं, औरबाकीहिंदुस्तानमेंजोअलगावहै, उसीकोखत्मकरनेकेलिएउनकोसिविलनाफरमानीकरनीपड़ीथी।मधुलिमये

मधुलिमयेलिखतेहैं –19- देशकीगरीबजनताकीमांगकोलेकरडॉ. लोहियाकोनित्यसंघर्षकरनापड़ाऔरस्वतंत्रताकेबादभीअठारहदफाउनकोजेलजानापड़ाउनमेंकेवलराष्ट्रीयभावनाथी, बल्किउनकेसामनेमानवजातिकेकल्याणकाभीसपनाथाउन्होंनेयहकहाहैकिमेरीयहइच्छाहैकिएकऐसीदुनियाकासपनासाकारहो, जिसमेंआदमीकोबिनापासपोर्टलिएहुएकहींभीजानेकीइजाजतमिलेगीऔरजहांपरभीवहरहनाचाहेगायामरनाचाहेगा, उसकीउसकोछुटहोगीयहीवजहहैकिजबवेअमेरिकामेंगएथे, तोवहाँपरवंशवादकोलेकरनीग्रोजनतापरजोअन्यायहोरहाहैं, उसकेविरुद्धकिएजारहेआंदोलनकेप्रतिउन्होंनेकेवलशाब्दिकहमदर्दीहीव्यक्तनहींकी, बल्किएकजगहउन्होंनेखुदसिविलनाफरमानीकीऔरवहाँकीपुलिसनेउनकोगिरफ्तारकिया, लेकिनअमरीकाकीसरकारतत्कालजागी, प्रेसिडेंटजानसननेमाफीमांगीऔरउनकोछोड़दियागयाडॉक्टरलोहियाउनलोगोंमेंसेथे, जिनमेंक्षेत्रीयताऔरसंकीर्णताकाअंशभीनहींथाएकओरवेमानतेथेकिहमारीराजनीतिकाआधारराष्ट्रियताहोनाचाहिएउनकाकहनाथाकिजबतकदुनियामेंसार्वभौमराष्ट्ररहेंऔरसीमाएंरहें, तबतकहमकोभारतकीभूमिकेकिसीभीहिस्सेपरविदेशियोंकाकब्जानहींहोनेदेनाचाहिएलेकिनसाथसाथवहयहमानतेथेकिअंततोगत्वाहमकोविश्वसरकारकीओरजानाहैऔरऐसीविश्वसभाकानिर्माणकरनाहै, जिसमेंसंयुक्तराष्ट्रसंघकीतरहसार्वभौमसरकारोंकेप्रतिनिधिनहींबल्कि, इसलोकसभाकीतरहमानवजातिकेसीधेचुनेहुएप्रतिनिधिजाकरबैठेंगे#मधुलिमयेलिखतेहैं –20- अगरमेरेजैसाव्यक्तिलोकसभामेंजोएकभारतीयभाषाबोलरहाहैं, तोउसकाकारणएकतोमहात्माजीकोधन्यवाददेताहूँकिउन्होंनेऔरस्वतंत्रताकेबादडॉ. लोहियानेहमेशायहआग्रहकिहमारेसार्वजनिकव्यवहारोंमें, सरकारीकामकाजमें, आदालतोंऔरविश्वविद्यालयमेंमाध्यमकेतौरपरअँग्रेजीकानहीं, लोकभाषाकाइस्तेमालहोनाचाहिएडॉ. लोहियाकोबदनामकरनेकीकोशिशकीगईकिवेगैरहिन्दीइलाकोंपरहिन्दीकोलादनाचाहतेथे, वेकिसीकेऊपरहिन्दीकोनहींलादनाचाहतेथेवहइसदेशकी 50 करोड़जानतापरअँग्रेजीलादनेकेदुश्मनथेऔरवेचाहतेथेकिसभीक्षेत्रोंमेंलोकभाषाकाप्रयोगहोइसलिएकभीकभीअपनीभावनाकोव्यक्तकरनेकेलिएकहतेथेकिहिन्दीजहन्नुममेंजाए, उससेमुझेकोईमतलबनहीं, लेकिनअँग्रेजीजाएइसकामतलबयहनहींकिवेअंग्रेजोंसेद्वेषकरतेथे, वेअंग्रेजगवर्नरजनरलोंकीमूर्तियाँहटानेकेहकमेंथे, लेकिनमेराख्यालहैकिअगरशेक्सपियरकेनामसेयान्यूटनकेनामपरयदिकिसीसड़ककानामदियाजातातोवहउसकाविरोधनहींकरतेवेक्लाइवस्ट्रीटकेविरोधीथे, वेडलहौजीस्क्वायरकेविरोधीथे, लेकिनशेक्सपियरऔरबर्नाडशाकेविरोधीनहींथेइसलिएराष्ट्रियताकेसाथसाथविश्वबंधुत्वकाउनकादृष्टिकोणहमेशारहताथाऔरवहचाहतेथेकिदोनोंमेंहमलोगसमन्वयस्थापितकरें

#मधु_लिमेय

रमामित्रलिखतीहैं-21- डॉ. लोहियाकोअखिलभारतीयचिकित्सासंस्थानकेसर्जननेरायदीकिजल्दऑपरेशनकरालेनाचाहिए।ऑपरेशनकेसिवायकोईचारानहीं।जिसतरहकीजिंदगीआपजीतेहैं, जिसमेंदेहातोंमेंजानाहोताहैं, उसमेंनानाप्रकारकेपेचीदगियांपैदाहोसकतीहैंऔरकाफीपीड़ाऔरअसुविधाहोसकतीहै।ऑपरेशनकाख्याललोहियाकोखराबलगताथा।वहसिद्धांतःइसकेखिलाफथे।ऑपरेशनकेख्यालसेहीउन्हेंअरुचिथी।मैंनेउनसेपूछा, क्यावहछुरेसेडरतेहैं ? यहसवालमैंनेऐसेआदमीसेकियाजिसेजिंदगीमेंकिसीतरहकेडरकाएहसासनथा।उन्होंनेकहा, ‘ऐसानहींहै।वहचुपहोगएतोमैंनेकहा, ‘क्याइसकाहिंसाऔरअहिंसासेताल्लुकहै?’ उनकामुखस्नेहकीअपूर्वमुस्कानमेंखिलगया। ‘तुमनेबातठीकपकड़ी।यहचीरने-फाड़नेकीबातमुझेपसंदनहींआती।मुझेसमझमेंनहींआतातुमलोगमुर्गी, मछलीऔरजीवितजानवरखातेहोऔरफिरचटकारेभीभरतेहो।’ उन्हेंपेड़ोंकीशाखाएंकाटनाभीकभीनहींभाया।बहुतदफेउन्होंनेमुझसेशिकायतकीकिमालीडालेकाटदेताहै।मैंउनसेकहाकरती, ‘यहपेड़ोंकेभलेकेवास्तेहै, काट-छांटसेवेबढ़तेहैं।’ ‘अगरतुम्हारेहाथ-पैरकाटदिएजाएंतोतुम्हेंकैसालगे?’ ‘आपकीयहतुलनासहीनहींहै,’ मैंकहती।जीवितप्राणीकेप्रतिकिसीभीप्रकारकीनिर्ममताउनकेस्वभावकेप्रतिकूलथा।वहीअकेलेआदमीथे, जिन्होंनेहिंसाकोलेकरजानऔरमालकेबीचफर्ककिया।मालइसदेशमेंज्यादारक्षणीयरहाहै।वहव्यंग्यमेंकहते, ‘मनुष्यतोमक्खियोंकीतरहहैसोउसकेमरनेकीकिसीकोक्योंप्रवाहहो।’ एकरातशायदअगस्तकामहीनाथा।उन्होंनेअपनाहाथमेरेआगेफैलादियाऔरकहा, ‘हाथदेखो।’ मैंनेहाथदेखतेहुएकहा, ‘आपप्रधानमंत्रीनहींबनोगे।’ ‘तुमक्यासोचतीहोमैंप्रधानमंत्रित्वकीकामनाकरताहूँ? बस, यहबताओकिमैंक्याकुछदेशकाभला, सहीमायनेमेंभलाकरसकताहूँ? क्यालोगकभीमेरीबातसुनेंगेऔरकामकरेंगे?’ इसकेबादफिर ‘क्याजोहोगावहहिंसकहोगा?’ मैंनेकहा, ‘कुछ-न-कुछहोकररहेगा।आपकाआयुष्यदीर्घहैऔर 70 वर्षतकजियेंगे।’, ‘केवल 70, कुछऔरबरसतोदो।’ विरोधीदलोंऔरअपनीपार्टीपरसेविश्वासउठनेपरभीजनतामेंउनकाविश्वासकभीनहींडिगापरकिसतरहजनताको, जोदोहजारसालसेभीअधिकपशुओंजैसाजीवनजीतीआरहीहै, उठायाजाए, जगायाजाए।किसतरहजाति-व्यवस्थाकाघृण्यप्रभावदूरकियाजाए। ‘तुमइतिहासकीकैसीविद्यार्थीहो।क्यातुम्हेंहमारेइतिहासकीइससच्चाईकीपड़तालकरनेकीइच्छानहींहोती? क्याहमारेप्रसिद्धइतिहासकारोंमेंएकभीआदमीऐसानहींहैकिजोहमारेइतिहासकेबारेमेंवास्तविकअनुसंधानकरे? एकनहींतोइतिहासकारोकीटीमहीसही।क्योंविदेशीशासनकेआगेहमनेबार-बारआत्मसमर्पणकिया? विश्वकेइतिहासमेंइसतरहकीकोईमिसालनहीं।#रमा_मित्र

तारकेश्वरीसिन्हालिखतीहैं-22- डॉ. लोहियानेसिर्फराजनीतिकऔरसामाजिकप्रांगणमेंसमानताकाअलखनहींजगायाबल्किभारतकीभाषाओंकोभीएकनयामोड़दिया।उनकायहविश्वासथाकिभारतकीजनताकोअपनीभाषाकेलिएस्वाभिमानचाहिए।उन्होंनेअंग्रेजीकोहटाकरक्षेत्रीयभाषाओंकोइसलिएप्रश्रयदिया।कहनातोयहचाहिएकिडॉ. लोहियाकेआनेकेबादहीसंसदमेंहमेंपहले-पहलमहसूसहुआकिभाषाअपने-आपमेंकितनामहत्वरखतीहै।क्षेत्रीयभाषाओंकाविकाशडॉ. लोहियाकीबड़ीदेनहै।एकबारउन्होंनेलोकसभामेंसरदारस्वर्णसिंहकीकिसीबातपरआलोचनाकरतेहुएकहाकिस्वर्णसिंहजी, तुमझूठबोलरहेहो।कांग्रेसदलकेलोगोंनेइसपरआपत्तिकीऔरकहाकिमाननीयसदस्यडॉ. लोहियागलतऔरहलकेशब्दकाप्रयोगकरतेहैं।सदस्योंनेमांगकीकिवेअपनेशब्दवापसलें, परडॉ. लोहियाअड़ेरहे।बाहरआकरमैंनेकहा, ‘आपइतनेविद्वानहैं, भाषाकेऊपरआपकाइतनाप्रभुत्वहै, फिरआपने ‘झूठ’ शब्दकाक्योंइस्तेमालकिया? झुठकीजगहआपसरदारस्वर्णसिंहसेयहकहतेकिआपअसत्यबोलरहेहैं।’ उन्होंनेबहुतहीकटाक्षभरेशब्दोंमेंमुझसेकहा, ‘तारकेश्वरी, ‘असत्य’ तोपढ़े-लिखेलोगोंकेकोशकाशब्दहोसकताहै, आमजनताअपनीबातचीतकेलिए ‘झूठ’ शब्दकाहीप्रयोगकरतीहै।एकरेहड़ीवालाइसीशब्दकाइस्तेमालकरेगा, ‘असत्य’ शब्दकानहींऔरइसदेशकीभाषावहहैजोसाधारणजनताबोलतीहै।’ इसछोटी-सीघटनामेंउनकाजोरूपमैंनेदेखाइससेमेरारोआँ-रोआँगदगदहोगया।देशमेंआजऐसाकोईव्यक्तिदिखायीनहींदेताजोउनसभीरास्तोंपरचलनेकीक्षमतारखताहो।वहीएकव्यक्तिथेजिन्होंनेभगवानकोइंसानऔरनेताकोमानवबनानेकीकोशिशकी।

#तारकेश्वरी_सिन्हा

शान्तिनाइकलिखतीहैं-23- 1946 मेंडॉ. लोहियाजबजेलसेबाहरआएतोजल्दीहीउन्हेंपुर्तगालीजेलमेंजानापड़ा।गोवामेंवेअपनेदोस्तडॉ. जुलियाओमेंजिसकेघरआरामकरनेगएथे।वहांहजारोंलोगउनसेमिलनेआएऔरलोहियाकोअपनीशिकायतेंसुनायीं।शिकायतेंसुनकरलोहियाकामनअंगार-साभड़कउठा।उन्होंनेकहा, ‘इसअन्यायकाआपलोगप्रतिकारक्योंनहींकरते? खामोशक्योंबैठतेहो।’ लोगोंनेकहा, ‘हमारेमेंइतनीताकतकहांहै ? आपहीहमारानेतृत्वकरें।’ उसकेबादलोहियानेमडगाँवमेंआमसभामेंभाषणकरनेकोशिशकीजिसकोसुननेकेलिएहजारोंलोगउमड़पड़े।उससभामेंहीलोहियाकोगिरफ्तारकरकेजेलभेजागया।जेलसेमुक्तहोनेकेबादलोहियानेलोगोंसेकहा, ‘गोवाकीजनताकोतीनमहीनेमेंनागरिकहकनहींमिलेतोआंदोलनकरनेकेलिएमैंफिरवापसआताहूँ।’
भारत-विभाजनकेमूर्खफैसलेसेलाखोंलोगोंकीजानखतरेमेंपड़ीथी।अकेलेगांधीजीहीथेजोलोहियाकोसाथलेकरलोगोंकेमनकामैलसाफकरनाचाहतेथे।उसीसमयगोवामेंआंदोलनजरूरीथा।वहांकेनेताओंको 12-14 सालोंकीसजाहोरहीथी।जनतामेंचेतनानिर्माणकरनेकीगांधीजीकीशक्तिलोहियानेहासिलकरलीथी।लोहियाकानामगोवाकेघर-घरमेंहोगयाथा।पुर्तगालीसरकारपुलिसऔरमलिट्रीकाराजबनारहीथी।अपनीघोषणाकेअनुसारलोहियाफिरगोवाआए।उनकेसाथगोवाआंदोलनमेंभागलेनेकीअनुमतिमैंनेली।हमजबगोवाजारहेथेतबपूरेरास्तेमेंमीलोंचलकररातमेंहजारोंलोगलोहियाकादर्शनकरनेआएथे।बाबूजीउससमयसूबेकेमजदूरसंगठकथे।उन्होंनेलोगोंसेसिर्फइतनाहीकहाथाकिलोहियाइसगाड़ीसेगोवाजारहेहैं।गोवाकीहदपरबेलगामपूराजगाहुआथा।बेलगाममेंधूमधामसेसभाएंहुईं।वहांसेगाड़ीमेंबैठकरलोहिया, योगेंद्रसिंह, र. वि. पंडितऔरमैंगोवाचले।लोहियानेकहा, ‘शान्ति, वेलोगतुम्हेंगिरफ्तारकरेंगे।’ मैंसिर्फमुस्करायी।बातेंकरते-करतेकिलोमपहुंचगयी।पुलिसलोहियाकोमोटरमेंलेगयी।हमतीनोंकोवहींकिलोमपुलिसस्टेशनपरकैदमेंरखाऔरदूसरेदिनबाहरलाकरछोड़दिया।बेलगाममेंडॉ. नाइककेघरपरकार्यकर्ताओंकाजमघटहुआ।फैसलाहुआकिगोवाकीआर्थिकतटबंदीकरें।गोवाकीसरहदकेगांवोंमेंसभाएंहुईं।लोहियासरलवसीधीहिंदीमेंबोलतेथेजिसेकोंकणी, मराठी, कन्नडीसभीलोगसमझतेथे।हजारोंलोगउनकेनएसंसारकासपनागौरसेसुनते।लोगखुशहोकरलोहियाकेगलेमिलते।एककार्यकर्तानेलोहियासेकहा, ‘फटेहालऔरबदबूनिकलनेवालेलोगोंसेआपगलेकैसेमिलतेहैं? लोहियानेकहा, ‘क्याबातकरतेहो ! उनकादिलतोदेखो!’ 

#शान्ति_नाइक

धनिकलालमंडललिखतेहैं-24- मैं 60-61 मेंसोशलिस्टपार्टीकाप्रधानमंत्रीथा।सोशलिस्टपार्टीकादेशव्यापीसत्याग्रहचलरहाथा।हैदराबदमेंश्रीबदरीविशालपित्तीकेनेतृत्वमेंएकविशालजनसमूहअंग्रेजीकेनामपटकालापोतताचलरहाथातथापुलिसऔरअधिकारीभीड़कोतीतरबितरकरपित्तीजीकोगिरफ्तारकरनेकीअसफलकोशिशकररहेथे।घंटेदोघंटेतकअपनेप्रयासमेंविफलहोनेपरपुलिसनेलाठीचार्जएवंआमगिरफ्तारीशुरूकी।हमकेंद्रीयकार्यालयकेसबसाथीबाहरनिकलआयेऔरलोहियाजीकीगाड़ीमें, जोजुलूससेदूरचलरहीथी, जाबैठे।केंद्रीयकार्यालयमेंपहुंचकरमैंप्रेसट्रस्टकोउसदिनकेसत्याग्रहकाविवरणदेनेलगा।लोहियाजीसेनहींरहागयाऔरउन्होंनेश्रीमुरहरिकोमुझसेटेलीफोनलेलेनेकोकहागुस्सेमेंबोले, ‘झूठबोलतेहो।शांतहोनेपरउन्होंनेसमझायाकिझूठनहींबोलनाचाहिए।पूर्णसत्यतोशायदगांधीभीनहींबोलतेथे, किन्तुझूठनहींबोलतेथे।यदिसत्यबोलनापार्टीयादेशहितमेंहोतोचुपरहो, किन्तुझूठमतबोलो।इससेकिसीकाभीभलानहींहोता।उन्हींदिनोंकीबातहै।डॉक्टरसाहबकहींबाहरसेहैदराबादआएथे।हमसभीस्टेशनसेस्वागतकरउनकोलेआए।उनकेचेहरेपरथकानकीस्पष्टझलकथी।सभीकेकमरेसेचलेजानेपरझुंझलाहटकेस्वरमेंउन्होंनेकहाकितुमनिकम्मेहो।मैंनेउत्तरदियाकिमेरीइच्छातोउनकेमुँहसेनिकलेएकएकशब्दकोसाकारकरदेनेकीरहतीहै।किंतुमैंयामेरेजैसेलोगोंकोसभीबातोंकोसमझनेमेंसमयलगताहै, हमारीबुद्धिअविकसितहै।डॉक्टरसाहबनेकहाकिमैंतुमसेअधिकनहींजानताहूँ।तुम्हारीऔरमेरीबुद्धिमेंबहुतअंतरनहींहै, अंतरहैदृष्टिका।मेरीदृष्टिस्नेहऔरसमताकीदृष्टिहै।जिसदिनतुम्हारीदृष्टिभीस्नेहऔरसमताकीहोगी, तुम्हेंसबदिखाईदेनेलगेगा।हैदराबादकीहीबातथी।डॉक्टरसाहबकेनामचिट्ठीपत्रीकेंद्रीयकार्यालयकेपतेसेहीआतीथी।मैंखुदउनसभीचिट्ठियोंकोएकफ़ाइलमेंजमाकरताथाऔरउनकेआनेपरउन्हेंदेताथा।किसीपत्रसेउनकोलगाकिउनकीचिट्ठीपत्रीगायबभीहोजातीहैं।उनकोनहींमिलतीहैं।डॉक्टरसाहबबहुतदुखीहुए।करुणस्वरमेंउन्होंनेकहाकिअपनेदेशमेंलोगबहुतदुःखीहैं, बेसहारेहैंऔरसंतोषीहैं।जबउन्हेंबहुतदुःखहोताहैऔरकोईसहारानहींमिलताहैतभीपत्रलिखतेहैं।हमयदिकुछनहींकरसकतेतोकमसेकमपत्रकाउत्तरतोअवश्यदेंऔरउसेकिसीपत्रमेंप्रकाशितकरादेवें।डॉक्टरसाहबशेरघाटीसम्मेलनसेलौटकरबोधगयाडोरमेट्रीमेंविश्रामकररहेथे।शेरघाटीसेचलतेसमयउन्होंनेमुझसेभीसाथचलनेकोकहा।मैंनेदूसरेदिनउनसेबोधगयामेंमिलनेकावादाकिया।दूसरेदिनजबमैंडोरमेट्रीपहुंचा, डॉक्टरसाहबगंभीरमुद्रामेंबिस्तरपरलेटेहुएथे।मैंबगलमेंकुर्सीपरबैठगया।उसीमुद्रामेंबोलउठे, ‘काश, मेरेपासपचासलाखरुपयाहोता।तबमैंश्रीनेहरूकोबतादेताकिमैंराजनीतिकरताहूँयासांस्कृतिकएवंशैक्षणिकआंदोलन।मैंनेकहाकियदिआपकाआदेशहोतोहमलोगतिलकलेकरशादीकरेंऔररकमउनकोसुपुर्दकरदें।इसप्रकारउनकेशिष्योंकेमार्फतकाफीरुपयामिलसकताहै।डॉक्टरसाहबपहलेतोहंसे, फिरबोले, ‘देखो, ऐसीगलतीकभीमतकरनापापपरपुण्यकीमुहरलगानेसेकोईलाभनहींहोता।

#धनिकलाल_मंडल

लाडलीमोहननिगमलिखतेहैं-25- सितंबर, 1967 केअंतिमदिनों, 29 या 30 सितंबरको, डॉ. लोहियाकीप्रोस्ट्रेटग्रंथिकाऑपरेशनहुआ। 24 अक्टूबरकोवेविदेशजानेवालेथे।मुझेउनकेऑपरेशनकापतानहींथा।उनदिनोंदेशमेंनौराज्योंमेंसंविद (संयुक्तविधायकदल) सरकारेंथीं।मुझेयहभीपताचलाकिउनकेकुछअंतरंगलोगोंने (जिनमेंविदेशीभीथे) विदेशमेंऑपरेशनकरानेकासुझावदियाथा, लेकिनउन्होंनेकहाकि ‘हमआजविदेशकाअनाजखातेहैं, तोक्याइलाजभीविदेशमेंहोगा? मरनाहैंतोअपनेदेशकेडॉक्टरोंकेहाथोंहीमरनाबेहतरहोगा।’ शल्यक्रियामेंकुछलापरवाहीहुईथीजोकिजानलेवासाबितहुई।अपनेजीवनकेअंतिम 10-12 दिनवेमौतसेलगातारजूझतेरहे।डॉक्टरउनकीइच्छाशक्तिदेखकरहैरानथे।तीसरेरोजउनकीहालतइतनीबिगड़ीकिउनकोदेशकेकिसीऔरहिस्सेमेंलेजानासंभवनहींथा, नहीपुनःऑपरेशनकरकेगलतीसुधारीजासकतीथी।देशकेबड़े-बड़ेडॉक्टरआए।विदेशकेभीविशेषज्ञआए।रह-रहकरडॉक्टरसाहबसन्निपातकीअवस्थामेंपहुंचजातेथे।अर्धचेतनवसन्निपातकीअवस्थामेंभीजबकभीबड़बड़ातेयाबोलतेरहते, उससमयभीउनकेमुंहपरहमेशादेशकीसमस्याओंकाहीजिक्ररहता, मसलनबेमुनाफेकीखेतीपरलगानकाक्याहुआ, फलांकार्यक्रमसरकारपूराकररहीहैयानहीं।ऐसीगंभीरअवस्थाकेउनक्षणोंमेंभीऐसीअसम्बद्धबातेंबोलतेरहतेथे, जिनकोसमझपानापरिचर्यामेंलगेहुएकेलिएअसंभवथा।शायदजोकुछभीबोलरहेथे, यदिवहटेपकियाजातातोदेशकुछनिष्कर्षनिकालसकताथायाउससेकुछनिष्कर्षनिकालाजासकताथा।जिसबातनेमेरेमर्मकोछुआवहयहथीकिअचेतनअवस्थामेंबोलतेयाबड़बड़ातेहुएभीउन्होंनेकभीभीअंग्रेजीभाषाकाइस्तेमालनहींकिया, क्योंकिउन्होंनेदेशकेविकासकेलिएयहसंकल्पलियाथाकिजबतकअंग्रेजीरहेगीदेशउठनहींसकता।अमूमनवेतीनभाषाएँबोलते- यातोजर्मन, याबंगलायाहिंदी।बंगलाउनकेबचपनकेसाथजुड़ीहुईथी।गोकिपैदावेउत्तरप्रदेश (जिलाफैजाबाद, अकबरपुर) अवधमेंहुएथे, लेकिनउनकाबचपनकाकुछसमयबंगालमेंबीताथा।जर्मनउनकीशिक्षावडॉक्टरेटकीडिग्रीकीभाषाथी।हिंदीउनकीमातृभाषाथी।गोकिअंग्रेजीकाउनकाज्ञानविपुलथा, लेकिनउन्होंनेसोचाकिआजादहिंदुस्तानमेंअंग्रेजीहिंदुस्तानकीप्रगतिएवंसमाजकेविकासमेंबाधकहै।वहगरीबोंकोऊपरउठनेसेरोकतीहै।यहजबानरोटीऔररोजगारकेसाथजुड़ीहै।तबसेउन्होंनेअंग्रेजीकेसार्वजनिकइस्तेमालकासैद्धान्तिकविरोधकिया।औरजबखुदइससिद्धांतकोप्रतिपादितकियातोवेइसकाकैसेइस्तेमालकरते? लेकिनसबसेअधिकताज्जुबमुझेतबहुआजबअचेतनअवस्थामेंभीउन्होंनेअंग्रेजीकाइस्तेमालनहींकियाथा।यहएकऐसेसाधककेलिएहीसंभवथा, जोअपनेसिद्धांतोंकेप्रतिसिर्फचेतनरूपमेंहीसमर्पितनहींहोता, वरनउन्हेंअपनेअचेतनमेंभीउतारलेताहैं।दूसरीबात, जबमनुष्यघोरपीड़ासेगुजररहाहोताहैतबउसकोअपनेलोगवईश्वरयादआतेहैं।विकटपीड़ाकेक्षणोंमेंभीजबवेमौतसेजूझरहेथे, उनकेमुंहसेएकबारभीभगवानकानामनहींनिकलाऔरनउन्होंनेमाता-पिताकोयादकिया।ऐसेक्षणोंमेंभीआसपासखड़ेलोगोंसेयहीपूछतेरहेकिउत्तरप्रदेशकीसरकारनेबेमुनाफेकीखेतीपरलगानखत्मकियाकिनहीं, याइतिहासकीबातकिरजियाकोउसकेसूबेदारनेहीमारा।पतानहींइसबातसेउनकाक्याआशयथा।जोकुछभीमेरीजानकारीहैउसकेआधारपरमैंइसबातकाएकहीमतलबनिकालसकाहूँकिसत्ताकेकेंद्रमेंरजियाकेपहलेकोईमहिलासत्तारूढ़नहींहुई।औरजबहुईतोपुरुषोचितअहंउसकोबर्दाश्तनहींकरसकाऔरउसकेहीलोगोंसेउसकोबगावतमिली। 
लाडली_मोहन_निगम

रेवतीकांतसिंहलिखतेहैं-26- डॉक्टरसाहबअपनेव्यवहारसेकिसीकोभीमोहलेतेथे।और, वहभीइसप्रकारसेकिवहआदमीहमेशाकेलिएउनकाश्रद्धालुहोजाए।इसकाबहुतबड़ाप्रमाणमिलाथाअक्टूबर, 1967 में, डॉक्टरसाहबकीबीमारीकेसमय।रीवांकीवहपानवालीतथादिल्लीकावहटैक्सीड्राइवर।डॉक्टरसाहबकोकम-से-कममैंनेकभीपानखातेनहींदेखाथा।फिरभीआदमीतोमौजवालेथेन।मौजमेंआगयेऔरकभीरीवांमेंएकबूढ़ीपानवालीसेपानखालिया।लेकिनवहपानखानाभीऐसाजैसेविदुरकेघरकृष्णनेसागखालिया।वहपानवालीहोगईडॉक्टरसाहबकीभक्त।जबडॉक्टरसाहबकीबीमारीकीखबरउसनेसुनीतोएकमात्रअपनीरोटीकासहारा – दुकानबंदकरकेचलपड़ीदिल्लीकीओर।दिल्लीकेउसमनहूसविलिंग्डनअस्पतालकेहातेमें, आंगनमें, वहबूढ़ीपानवालीबैठीरहतीथीऔरबराबरहाथजोड़करडॉक्टरसाहबकीजिंदगीकेलिएभगवानसेप्रार्थनाकरतीरहतीथी।जबकोईकहदेताकिडॉक्टरसाहबकोअभीकुछआरामहैतोखुशीसेउसकाचेहराचमकउठता, औरयदिकोईबीमारीबढ़जानेकीखबरदेतातोउसकाचेहराउत्तरजाताथा।डॉक्टरसाहबनेअपनेकोआमजनतामेंबिल्कुलएकाकारकरलियाथा।यद्यपिइसप्रकारकेहजारोंउदाहरणउनकीजिंदगीमेंमिलतेहैं, जोयोंतोअपने-आपमेंअत्यंतहीमहत्वहीनलगतेहैं, मगरउनछोटी-छोटीबातोंसेहीआदमीकाव्यक्तित्वनिखरताहै। 1965 में 10 अगस्तकोगिरफ्तारहोकरहमलोगहजारीबागकेंद्रीयकारावासमेंपहुंचेथे।चूंकिडॉक्टरसाहबकीबंदीप्रत्यक्षीकरणयाचिकासर्वोच्चन्यायालयमेंविचारार्थस्वीकृतहोचुकीथी, इसलिए 20 अगस्तकोडॉक्टरसाहबकोहजारीबागसेदिल्लीलेजायागया।जबवेवार्डसेविदाहोनेलगेतोहमराजनीतिककैदियोंसेमिलनेसेपहले, जिन्हेंजेलकीभाषामें ‘बाबूकैदी’ कहाजाताहै, उन्होंनेपरिचारकोंसे, जोबाबूकैदियोंकीसेवाकेलिएसाधारणकैदियोंमेंसेहीनियुक्तहोतेहैं, मिलनापसंदकिया।सबसेपहलेवेउससेलमेंगए, जिसमेंवार्डकासफैया – योगीहरिरहताथा।डॉक्टरसाहबकोदेखकरजैसेहीयोगीअपनेसेलसेबाहरआया, डॉक्टरसाहबनेउसेपकड़करअपनीछातीसेलगालियाऔरकहनेलगे – ‘जारहाहूँ, पतानहींफिरहमलोगोंकीभेंटहोगीकिनहीं।’ योगीडॉक्टरसाहबकेआलिंगनमेंखड़ाअविरलरोरहाथाऔरडॉक्टरसाहबउसकीपीठथपथपारहेथे।लगताथाजैसेपरिवारकेदोसदस्यआपसमेंबिछुड़रहेहों।उसकेबादडॉक्टरसाहबनेसभीपरिचरों – पनिहा, रसोइया, पहरा, मेट- कोगलेलगायाऔरबादमेंहमलोगोंकीबारीआई, जिनमेंकिसीकीपीठथपथपाई, किसीकोप्यारकीचपतलगाईतोकिसीसेसिर्फनमस्कारहीकिया।#रेवती_कांत_सिंह

राजनारायणजीलिखतेहैं-27- डॉक्टरलोहियाकीप्रतिभाचतुर्दिकथी।अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शन, भाषाविज्ञान, राजनीतिशास्त्रसभीकेपंडितथे।जबवेअध्यात्मवादियोंसेबातकरतेथेतोअध्यात्मवादीउन्हेंभौतिकवादीमानताथाऔरजबभौतिकवादियोंसेतर्ककरतेथेतोभौतिकवादीउन्हेंअध्यात्मवादीमानताथा।लोहियाजीजड़औरचेतन, दोनोंकोएकहीसिक्केकेदोपहलूमानतेथे।लोगोंकाचेतनप्रथम, जड़बादमें, याजड़प्रथम, चेतनबादमें, इसविवादमेंपड़नाअनावश्यकतथानिरर्थकहै।वेऐसासमझतेथे।यहीकारणहैकिलोहियाशुद्धमानववादीथे।वेमानवसेप्रेमकरतेथे।इसलिएमानवसेमानवकीदूरीसमाप्तकरसमतातथासमृद्धिकासमाजबनानेकेलिएनिरंतरव्यग्ररहतेथे।कश्मीरमेंहिन्दू-मुश्लिमतनावहोगयाथा।तनावकासिलसिलाएककश्मीरीब्राह्मणकीलड़कीऔरमुसलमानकालड़कादोनोंकेबीचहुईशादीसेशुरूहुआथा।लड़कीबालिगथी, लड़काभीबालिगथा।दोनोंकापरस्परप्रेम, विवाह-संबंधमेंपरिणतहोगया।कश्मीरमेंकश्मीरीब्राह्मणकीलड़कीऔरमुसलमानलड़कामेंएकनहींअनेकोंशादियांपहलेहोचुकीथी।मगरइसशादीकाभयंकरबवंडरखड़ाकियागया।वास्तविकतातोयहथीकिकश्मीरीब्राह्मणनेइसशादीकाबहानाबनाकरसाम्प्रदायिकझगड़ाखड़ाकियाथा।इसकेपीछेशुद्धआर्थिकसंघर्षथा।अभीतककश्मीरमेंसभीबड़े-बड़ेसरकारीओहदोंपरतथासरकारीनौकरियोंमेंकश्मीरीब्राह्मणभरेथे।अबमुसलमानोंमेंभीआबादीकेअनुपातमेंपढ़े-लिखेलोगोंकोनौकरीमेंजगहमिले, इसमांगकोलेकरनव-चेतनाआयी।इसचेतनाकासीधाअसरकश्मीरीब्राह्मणोंपरपड़ाऔरउसनेआर्थिकसंघर्षकोसाम्प्रदायिकताकारूपदेदिया।लोहियाजीनेमुझेकश्मीरजानेऔरसच्चीघटनाकापतालगानेकाआदेशदियाथा।मैंकश्मीरसेलौटकरदिल्लीआयाथा।रपटलिखकरलोहियाजीकोदेनेकेलिएतैयारकियाथा।उसीअवसरपरवे 95, साउथएवेन्यूमेंआगए, बोले – ‘चलोआजतुमकोबाहरखानाखिलाएंगे।’ मैंनेकहा- ‘डॉ. साहब 11 बजेहैं।तेजधूपहै।खानाजल्दीहीघरबनजाएगा।होटलमेंक्योंचलतेहैं।’ वेरूकगए।करीब 3 घंटेरुके।कश्मीरसेलेकरदेश-विदेशऔरपार्टीकीआंतरिकस्थितिपरव्यापकचर्चाहुई।देशऔरसमाजकेलिएवोहमेशाचिंतितरहतेथे।

#राजनारायण

राजनारायणजीलिखतेहैं-28- लोहियाजीएकदिनकरीबग्यारहबजेआगए। ‘निकलोऔरबाहरघूमों।’ दोघंटेतकघूमे। ‘तुम्हारेमुल्कमेंजात-पातकीदीवारजबतकरहेगीसमाजवादक्याजनतंत्रकाबचनाभीमुश्किलहै।तुम्हारेदलमेंभीचितपावनब्राह्मणोंकागटहै।आपसमेंलड़तेहैं।मगरअंतमेंदूसरेकेमुकाबिलएकहोजातेहैं।वशिष्टपरंपराकोकैसेकाटोगे।पिछडोकोजबतकठोसढंगसेविशेषअवसरदेकरनहींबढ़ाओगेतबतकसबविकासकीबातेंव्यर्थहैं।नेहरूकेबादउनकीबेटीइंदिराआगई।अगरदेशमेंगिरावटकाक्रमयहीजारीरहातोइंदिराकाकोईबेटाभीइंदिराकेबादआसकताहै।राजनीतिमेंवंशवादनेहरूनेचलादियाहै।इसेरोकनाहै।लोकशाहीबिनालोकभाषाकैसेचलेगी? ‘अंग्रेजीहटाओ’ आंदोलनकोतेजकरनाहै।अंग्रेजीकेरहतेपिछड़ोकेहाथमेंसच्चीताकतनहींजासकती।यहपेटभीमारताहै।दिमागभीमारताहै।चरणसिंहक्याकरेगा? क्याआनेवचनकोचबाजाएगा? दोरूपयातकलगानदेनेवालेकिसानोंकासम्पूर्णलगानमाफनहींकरेगा? चाहेजोहो, यदिचरणसिंहवचनतोड़तेहैंतोअपनेलोगोंकोसरकारसेहटानाहोगा।तुम्हारेयहांभीतोलोगअजीबहैं।एकबारकुर्सीपकड़लेतेहैंतोछोड़तेनहीं।देखो, बिहारमेंगोलीकांडकीन्यायिकजांचतिवारीनेनहींकराई।विन्देश्वरीमंडलहमारीबातमानगएहोतेतोवहचमकजाते।देखो, आजहमारेलोगोंमेंहिम्मतकीकमीहै।हिम्मतकेसाथआदमीकोधीरजलेकरआगेबढ़नाचाहिए।पथठीकहैतोपथिककोराहकेसंकटसेघबराकरपथनहींछोड़नाचाहिए।अकेलेभीरहोतोभीचलो।देखो ! अपनेलोगोंकोसमझाओ।यहसरकारनतोगरीबीहटासकतीहै, नबेकरीदूरकरसकतीहैं।इसकीयोजनामुट्ठीभरलोगोंकेलिएहै।इसनेखपतकीआधुनिकताबढ़ाईहै, उपजकीनहीं।चंदलोगोंकोयोरोपियकरणहुआहै, जैसेवाईसचांसलर, सचिव, कलक्टरइत्यादि , मगरखेतमजूर, सामान्यकामगार, चतुर्थश्रेणीवतृतीयश्रेणीकेसरकारीकर्मचारी, इनसबकेलिएसरकारकेपासयोजनानहींहैं।इसनेनीचेकेतल्लेउठानेकीजगहऊपरकातल्लाउठायाहै।यहीकारणहैकिधनीऔरगरीबकीखाईचौड़ीहोगयीहै।तुम्हाराहीएकमुल्कहैजिसकीसीमाघटीहै। 15 अगस्त 1947 केबादसेतुम्हारामुल्कसिकुड़ाहै।सरकारकीअपनीकोईविदेशनीतिनहींहै।वहपारी-पारीसेअमरीका-रूसकीओरदेखती, भूकतीऔरउनकेदबावमेंकामकरतीहै।इससमयकोईऐसादलहोजोसभीअसंतोषोंकोबटोरेऔरसभीहरिजनों, पिछड़ों, गरीबमुसलमानोंऔरगरीबठाकुर, ब्राह्मण-बनियोंकोएकखेमेमेंलाकरमौजूदासरकारकोधराशायीकरे।#राजनारायण

राजनारायणजीलिखतेहैं-29- शरदऋतुकीरातथी।बनारसमेंमणिकर्णिकाघाटकेसामनेदूरगंगामेंदशाश्वमेधघाटसेचलकरबजड़ारुकगया।रातको 11 बजेसे 3 बजेतकबजड़ेकीछतपरखुलीचांदनीमेंदरीपरबिछीचादरपरदो-चारमसनदथे।तारोंकावर्णनथा।सप्तऋषिमंडलकहाँहै, शुक्रकहाँहै, कुम्भस्पष्टदृष्टिगोचरहोताहै, विषयोंकीचर्चाथी।देश-विदेशकीराजनीति, धर्म, समाजशास्त्रऔरदार्शनिकमुद्दोंपरगंभीरविचार-विनिमयथाकिंतुलोहियाकीदृष्टिमणिकर्णिकाघाटपरगड़ीरहतीथी।बीच-बीचमेंगांधी, राम, कृष्णकीचर्चाविचारोंकोउलझायेरहतीथी।सन 52 केसार्वजनिकनिर्वाचनमेंरामकेप्रभाव-क्षेत्रमेंसमाजवादीदल, कृष्णकेप्रभावक्षेत्रमेंधर्म-सम्प्रदायप्रधानपार्टियां, शंकरकेप्रभाव-क्षेत्रमेंकम्युनिस्टपार्टीकांग्रेसकेबादआयी, ऐसाक्यों? प्रश्नकाउत्तरढूंढाहीजारहाथाकिबीचहीमेंडॉ. लोहियाबोलउठे- ‘देखो, देखो, चितापरघीछोड़ाजारहाहै।मालूमहोताहै, यहधनीघरकामुर्दाहै।पहलेजीचिताथी, उसमेंऊंचीलहरनहींउठीथी, इतनीदेरतकलाशजलीभीनहींथी, बेचाराकिसीगरीबघरकाथा।अधजलेशरीरकोहीनदीमेंफेंकदियागया।तुम्हारेघरकामुर्दाकहाँजलायाजाताहैराजनारायण?’ 
‘डॉ. साहब ! हमारेयहांकेलोगतोहरिश्चन्द्रघाटपरजलाएजातेहैं।काशीराजकेपारिवारिकलोग।सामनेमंचबनाहै, उसीबगलमेंमालवीयजीकीभीचितालगीथीडॉ. साहब।’ 
‘क्यातुमलोगोंनेमालवीयजीकोजलतेदेखाथा?’ 
‘हां, मैंनेकाशीविश्वविद्यालयसेमालवीयजीकेशवकोलेचलनेवालीटिकटीकेबांससेकंधाहटायाहीनहीं।सड़कोंपरबहुतभीड़थी।फूलऔरमालाकाबोझबढ़ताजाताथा, उसेउतार-उतारकरहल्काकियाजाताथा।चंदनकीलकड़ीपरमालवीयजीकाशवरखागयाथा।कनस्तरकाकनस्तरघीडालागयाथा।लोहबान, धूपऔरअन्यसुगंधितवस्तुएंडालीगयीथीं।मालवीयजीकेशवकोजलानेमेंबहुतदेरनलगी’
‘भारतऐसेगरीबदेशमेंलाशजलायाजानाभीएकसमस्याबनजाताहै।गरीबघरकेमुर्देअच्छीतरहसेजलतेभीनहीं।बेचारोंकेपासमुर्दोंकोजलानेकेलिएलकड़ीभीनहीं।घीऔरचंदनकीबातकहां!’ 
‘आजहमारादेशइतनागरीबहोगयाहै, दोनोंमेंधनऔरविचारसेअकिंचनहैं, नतोसमृद्धिबढ़रहीहैऔरनविचारोंकीसड़ानदूरहोरहीहै।देशकैसेबनेगा? प्रधानमंत्रीपर 30 हजाररुपयेरोजखर्चहों, लोगतीनआना-चारआनाप्रतिव्यक्तिपरगुजरकरें।इसस्थितिकोफौरनबदलनाहै।कैसेबदलें? मन-मस्तिष्ककीदरिद्रताऔरधन-दौलतकीदरिद्रताजबतकदोनोंदूरनहींहोंगेतबतकपिछड़ेरहोगे।क्यातुम्हारीपार्टीयहकामकरेगी? करेगीकहतेहो।कहाँहैंतुम्हारेलोग? कितनेलोगहैं, जोअपनेकोमिटाकरदूसरोंकेहितकीरक्षाकरें ? क्योंनहींतुम्हारेलोगइसबातकाआंदोलनकरतेकिगरीबोंकेमुर्दोंकोबिजलीसेजलायेजानेकाहरजगहसरकारीस्तरपरप्रबंधहो, जिससेगरीबलोगआसानीसेबिनाकिसीचिंताकेपूरीतरहजलाएजासकेंऔरनदियोंकापानीभीस्वच्छरहे।हाँ, ठीकहै, क्याठीकहै? तुमइसकाआंदोलनकरोगे।यादरखो, मेराशववैज्ञानिकढंगसेबिजलीसेजलायाजाए।मैंचाहताहूँकिमेरेमरनेकेबादभीमेरेशवसेगरीबोंकोप्रेरणामिले।औरधनीऔरगरीबकेशवकोजलानेकावहफर्कमीटजाएकिएकघीऔरचंदनसेजलेऔरदूसरेकाशवअधजलाहीपानीमेंबहादियाजाए।मैंमरकरभीअमीरऔरगरीबकाफर्कमिटाऊंइसलिएचाहूंगाकितुमलोगसाधारणआदमीकीतरहमेरीलाशजलानाजिससेगरीबोंमेंआत्मविश्वासऔरआत्मसम्मानकीभावनाजागेऔरविज्ञानकीनवीनमान्यताओंकोअपनाकरपुरानीरूढ़ियोंऔरकुसंस्कारोकेबंधनसेसमाजमुक्तहोकरसमताऔरसमृद्धिकीओरबढ़े।इसप्रकारबिजलीसेशवजलाएजानेपरब्राह्मणवादऔरजातिवादकेमिटनेकीप्रक्रियाशुरूहोगीऔरकर्मकांडकेव्यामोहसेहिन्दूसमाजमुक्तहोगा।’ 
‘तीनबजरहेहैंडॉ. साहब।ठंडकभीबढ़रहीहै।अबयहांसेचलिए, निवासस्थानपरआरामकीजिए।’ मैंनेकहा। 
‘ठीककहतेहो।’ कहकरसदरीउठाए, कंधेपररखेऔरचलदिए।पीछेहमलोगभीचलदिए। 
#राजनारायण

रामकिशोरशास्त्रीलिखतेहैं-30- सोशलिस्टपार्टीकेप्रतिमेरारुझानविद्यार्थीजीवनसेहीथा।हमारागांवसमाजवादीविचारधाराकाकेंद्रीयक्षेत्ररहा।सन 1957 मेंमैंनेहाईस्कूलपरीक्षाउतीर्णकी।उसीवर्षउत्तरप्रदेशसोशलिस्टपार्टीने 10 मईसेनिमांकितप्रमुखमांगोंकोलेकरसविनयअवज्ञाआंदोलनशुरूकरनेकाभीफैसलाकिया- 
1. बिनामुनाफेकीखेतीसेलगानउठालियाजाय। 
2. निःशुल्कअनिवार्यऔरएकतरहकीशिक्षाजूनियरहाईस्कूलतकदियाजाय। 
3. बेकारोंकोकाममिलेयाबेरोजगारीभत्ता।
4. न्यूनतमऔरअधिकतमआमदनीऔरखर्चमें 1:10 काअनुपातहो। 
5. अंग्रेजीकासार्वजनिकप्रयोगबंदकियाजाय।जबमैंनेसोशलिस्टपार्टीकामाँग-पत्रदेखातोमनमेंसत्याग्रहकरजेलजानेकीप्रबलइच्छाहुई।लेकिनयहमेरादुर्भाग्यकि 10 मईकोसत्याग्रहनकरसका।सत्याग्रहकरनेकाइरादाकुछदिनकेलिएटलगया।अगस्तकेमध्यमेंजिलासोशलिस्टपार्टीकेमंत्रीकीओरसेएकपत्रप्रकाशितकियागयाजिसमेंकहागयाथाकिउन्नावजिलेसेसत्याग्रहियोंकाएकजत्थानौसिंतबरकोलखनऊरवानाहोगा।नौसिंतबरकोप्रातःकालहमसत्याग्रहीसाथीलखनऊकेलिएरवानाहुए।हमलोग ‘सोशलिस्टपार्टी-जिंदाबाद’, ‘डॉ. लोहिया-जिंदाबाद’ आदिनारेलगातेहुएविधानसभापहुंचगए।हमारेसाथ-ही-साथपुलिसभीचलरहीथी।विधानसभाभवनकेसमक्षहमलोगगिरफ्तारकिएगएऔरजिलाजेललखनऊभेजदिएगए।जेलकेफाटकपरपहुंचतेहीबड़ीउत्सुकताथीकिजेलदेखूं।आखिरजेलकेअंदरहमघुसनेलगे- मनमेंकुछउदासीछागयी।हमारेअन्यसाथीपहलेसेहीहमारेस्वागतमेंनारेलगारहेथे।हमलोगपरस्परगलेमिले।सबकापरिचयएक-दूसरेसेकियागया।दूसरेदिनसेहीहमाराकार्यक्रमशुरूहोगया।प्रातःकालउठकरपढ़ना-पढ़ानाऔरसत्याग्रहकेबारेमेंजानकारीप्राप्तकरना।पताचलाकिहमलोग ‘क्रिमिनललाएमेंडमेंटएक्ट 7’ केअंतर्गतगिरफ्तारकिएगएहैंऔरहमारीपेशी 23 सिंतबरकोहै।इसीबीचडॉक्टरलोहियाकाबयाननिकला- ‘सोशलिस्टपार्टीनेउत्तर-प्रदेशसेसत्याग्रहवापसलेलियाहै।यदिसरकारसत्याग्रहियोंकोएकमहीनेकेअंदरनहींछोड़तीतोवेव्यक्तिगतसत्याग्रहकरकेअपने-आपकोगिरफ्तारकराएंगे।’ इसकाप्रभावसरकारपरनहींपड़ा।अन्ततःहमलोगोंकामुकदमा 23 तारीखकोनहिकर 28 सिंतबरकोहुआऔरमुझे 4 माहकीसजाहुई।अबजेलमेंमुझेअच्छालगनेलगा।जेलकेअंदरमैंनेसमाजवादीसाहित्यऔरसंस्कृतसाहित्यकाअध्ययनशुरूकिया।वहांपरश्रद्धेयरामसागरमिश्र, अश्वनीकुमारशुक्ल, कृष्णनाथशर्मा, करुणाशंकरदीक्षितकेसंपर्कमेंरहकरमैंनेबहुतकुछसीखा।मेराअपनाअनुभवहैकिराजनीतिकबंदीयदिजेलमेंअपनेजीवनमेंसुधारनहींलासकताहैतोअन्यत्ररहकरसुधारअसंभवनहींतोदुरूहअवश्यहै।इसतरहजेलमेंलगभगदोमाहबीतगए।इसीबीचडॉ. लोहियाकाएकव्यक्तव्यनिकलाकिवेदोनवंबरकोव्यक्तिगतसत्याग्रहकरेंगे।दोनवंबरकोकिसीनेसूचनादी, ‘आपलोगोंकेकोईबड़ेनेताजेलमेंआरहेहैं।’ देखा, डॉ. लोहियाचलेआरहेहैं।सबलोगचिल्लाउठे- ‘डॉ. लोहिया-जिंदाबाद’, ‘सोशलिस्टपार्टी-जिंदाबाद।’ डॉ. साहबकोसबनेप्रणामकिया।मैंनेअपनेकोधन्यसमझा।आजमेरेसमक्षवहव्यक्तित्वहैजिसनेअपनेवंशकोनष्टकरनेवालेब्रह्मराक्षसकोमातदियाहै।डॉ. साहबबैठगए।सबकाकुशलक्षेमपूछाऔरस्नानकरखानेकाआदेशदिया।अपराह्नडॉ. साहबकाबिस्तरआदिभीआगया।दूसरेदिनशीघ्रातिशीघ्रनित्य-कर्मसेनिवृतहुआ।दिन-भरडॉ. साहबकेपासहीरहा।सायंकालसभाकाआयोजनहुआ।डॉ. साहबनेबताया -सत्याग्रहकोईखेलनहींहै।यहजालिमकेसुधारकीऔषधिहै।सत्याग्रहीकोसदैवयहजाननेकीकोशिशकरनीचाहिएकिउसकेकार्योंसेजनमानसमेंकैसाअसरपड़ताहैं।पहलेदिनकाविषयसत्याग्रहतकहीसीमितरहा।इसीतरहनित्यसायंकालसभाहोतीथी।डॉ. लोहियाकुछनकुछअवश्यबताते।कभी-कभीव्यक्तिगतबातेंभीबतादेतेथे। 12 तारीखकोडॉ. साहबकेदांतमेंभीषणदर्दहुआ।हमलोगबेचैनथे।डॉ. लोहियाकारमेंबैठकरमेडिकलकॉलेजगए।ईश्वरकीकृपासेठीकहोगए।इसकेपूर्वआचार्यकृपलानीडॉ. लोहियासेमिलनेआए।किन्तुअधिकारियोंकेहठकेकारणमुलाकातनहोसकी।कारणयहथाकिडॉ. साहबकीमुलाकातउनकेबैरकमेंहीहोतीथी।किन्तुउससमयऐसानहींकियागया।आचार्यकृपलानीकोअनुमतिनहींमिलीकिवेडॉ. साहबसेउनकेकमरेमेंमिलसकें। 16 दिसंबरकोजेलकेभीतरहीहमलोगोंने ‘लोहियादिवस’ मनाया। 17 नवंबरकोश्रीरामनारायणत्रिपाठीभीउनसेमिलनेआये।किन्तुउससमयउनकेकार्यपार्टी-हितमेंनहोनेकेकारणडॉ. साहबनेबातनहींकी।त्रिपाठीजीपार्टीकेआदेशनहोनेपरभीअमरीकाचलेगएथे।जारी…….

#रामकिशोर_शास्त्री

रामकिशोरशास्त्रीलिखतेहैं-31- जेलमेंअभीतकहमसच्चेसमाजवादीबनपायेथे।छुआछूतकीबीमारीसेमुक्तथे।हमलोगोंनेअछूतकहेजानेवालोंकेद्वारापरोसाभोजनकरनेसेइनकारकरदियाऔरअनसनपरबैठे।दोतीनदिनबादडॉ. लोहियाकोपतालगातोउन्होंनेहमेंबुलाया।लोहियाजीनेकुर्सीपरबैठनेकोकहा।बैठगया।इसकेबादपूछातुमइतनेउदासक्योंरहतेहो? मैंनेखानाखानेकाकारणबताया।बोलेतुमइसपाखंडमेंक्योंपड़ेहो? किसदर्जेमेंपढ़तेहो ? मैंनेउतरदियाकक्षा 11 मेंपढ़ताहूँ।उन्होंनेकहाघबराओनहीं।पढ़नेलिखनेमेंमनलगायाकरो।वार्तालापकेमध्यमैंनेकहाडॉक्टरसाहब, मुझेआपअपनेपासहीरखलीजिए।उन्होंनेकहाअभीऔरज्ञानप्राप्तकरो।बी. . पासहोनेपरहमतुम्हेंअपनेपासबुलालेंगे।आगेउन्होंनेकहाकिजेलमेंसभीकोहिलमिलकररहनाचाहिए।कुछबाहरीकिताबेंपढ़नाचाहिए।इसकेअतिरिक्तउन्होंनेमेरेव्यक्तिगतजीवनकेबारेमेंपूर्णजानकारीप्राप्तकी।उन्होंनेपुनःकहाशाबाशबेटे! तुमडरोनहीं, तुमसरकारसेलड़नेआएहो।सदैवयोग्यबननेकीकोशिशकरनीचाहिए।जबतुमइनअछूतोंकाछुआखानानहींखाओगेतोयेलोगतुम्हारेहाथकाकबखाएंगे? मेरेभ्रमकापरदादूरहोगया।उसीसमयछुआछूतमाननेकासंकल्पकिया।लगभगआधाघंटातकवार्तालापचलतारहा।यहमेराप्रथमनिकटतमसाक्षात्कारथा।इसकेबादलोहियाकेप्रतिमेरेविचारोंमेंप्रौढ़ताकाप्रादुर्भावहुआ।सत्याग्रहकीसार्थकताकामननकियाक्योंकिडॉ. लोहियासदैवयहीकहाकरतेथेकिसभीलोगभलीभांतियहजानलेंकिवेजेलक्योंआयेहैंऔरजेलसेछूटनेपरउनकाकर्तव्यक्याहोगा।आखिरकारवहदिनभीदेखनेकोमिलाजिसदिन (30-11-1957) हमलोगोंकेऊपरपशुवतलाठीचार्जकियागया।लोहियाजीनेहाइकोर्टमेंअपीलकीथीकिउन्हेंउत्तरप्रदेशकीनिचलीअदालतोंमेंविश्वासनहींहै।किन्तुउसीदिनयहपताचलाकिआजलोहियाजीकामुकदमाहै।हमलोगकरीब 15 आदमीउससमयलोहियाजीकेसमीपथे।तभीजेलर, डिप्टीजेलरसहितबहुतसेजमादारकैदीआएऔरडॉ. लोहियाकेमुकदमोंकीसूचनादी।लोहियाजीनेमजिस्ट्रेटकेसमक्षजानेमेंअसमर्थताप्रकटकी।कुछदेरबादलगभग 300 सिपाहियोंनेएकदमसेहमलोगोंपरधावाबोलदिया।सिपाहीबड़ीनिर्दयतासेहमेंमाररहेथे, उधरलोहियाजीहमेंशांतरहनेकोकहरहेथे।हमेंमारकरऔरपकड़करबलातबैरकोंमेंठूंसदियागया।उधरलोहियाजीकोकुर्सीपरबैठाकरमजिस्ट्रेटकेसम्मुखपेशकियागया।लोहियाजीकुछनहींबोले, उनकाअंगूठासादेकागजपरजबरदस्तीलगवायागया।उधरहमलोगरातभरठंडकेमारेसिकुड़तेरहे।खानाभीउसदिननहींदियागया।श्रीकृष्णनाथशर्माकोनग्नावस्थापीटागयाऔरतत्क्षणउनकोरायबरेलीजेलभेजदियागया।डॉ. लोहियाकोभीचोटआयी।उन्हेंअस्पतालकेवार्डमेंरखदियागया।इसकेबादहमारीबैरकसुनीसीरहनेलगी।हमारेसाथीअपनीसजापूरीकरकेएकएककरछूटनेलगे।हमलोगभी 17-12-1957 कोजेलसेरिहाहुए।रातभरपानदरीबाकार्यालयमेंरहा।सुबहकीगाड़ीसेघरपहुंचा।सत्याग्रहमेंलगभगपांचहजारहमारेवीरसाथियोंनेविभिन्नजेलोंमेंयातनाएंसहींसत्याग्रहमेंदोमाहसेलेकरउन्नीसमाहतककीसजाएंहुईं।सत्याग्रहकीतेजीऔरउसकेसमर्थनमेंशक्तिशालीजनमतकेसामनेसरकारकोझुककरकुछमांगेंस्वीकारकरनीपड़ीं– 
1.
अंग्रेजोंकीमूर्तियांसार्वजनिकस्थानोंसेहटाईगई। 
2. 100
रु. मासिकसेकमपानेवालेसरकारीकर्मचारीकीपांचरुपयेमासिकतरक्कीहुई। 
3.
कक्षा 6 तकनिःशुल्कशिक्षाहोगई।
4.
वृद्धावस्थाकीपेंशनस्वीकारकीगई।#रामकिशोर_शास्त्री

लोहिया एक व्यक्ति नहीं बल्कि सभी व्यक्तियों के व्यक्तित्व का निचोड़ बन गए थे

तारकेश्वरी सिन्हा लिखती हैं-2 – डॉ. लोहिया को संसद में जब किसी विषय पर भाषण देना होता तो उस विषय की गहराई में जाने के लिए महीनों समय लगाते थे । और इसलिए जब किसी बात को उठाते थे तो उस विषय के आंकड़े उनकी उँगलियों पर थिरकते रहते । वैसे उनके घर जाने का मौका मुझे कम मिला, पर जब भी गयी तो देखा एक मजमा लगा रहता । उसमें कुछ शिक्षक, कुछ मजदूर, कुछ किसान और कुछ कार्यकर्ता होते थे । डॉ. लोहिया का यही परिवार था, जिसके वे अभिभावक नहीं, सहयोगी थे । उनके बारे में यह कहा जा सकता था –

दलित जा, थकित जा 
व्यथित जा, तृषित जा  
मिल पाया प्यार जिन को
आज उनको प्यार मेरा   

किसी भी विषय पर चर्चा करना हो तो जिस तरह वकील किसी को ‘क्रॉस एक्जामिन’ करता है उसी तरह से वे पूछताछ करते थे । मुझे भी जब कभी किसी विषय पर बातचीत करने का मौका मिला तो वे इतनी ज्यादा छानबीन करते कि कभी-कभी अंदर से गुस्सा आ जाता था । ऐसा लगता था जैसे किसी बात के पीछे ही पड़ गए हैं । पर दूसरे ही क्षण यह महसूस होने लगता कि यह भी डॉ. साहब की एक खूबी थी । वे किसी भी विषय को समुद्र मानकर उसकी गहराई में जाने का प्रयत्न करते । इसके अलावा हर व्यक्ति उनके लिए महान था । इसलिए डॉ. लोहिया एक व्यक्ति नहीं बल्कि अपने-आप में सभी व्यक्तियों के व्यक्तित्व का निचोड़ बन गए थे । खानाबदोशी की ज़िंदगी थी और कार्यकर्ताओं के अलावा न उनके पास कोई पूंजी थी, न बैंक-बैलेन्स । रामसेवक यादव जी ने एक बार मुझसे कहा था कि डॉ. लोहिया को हम प्यार इसलिए करते हैं कि अपने या पराए का भेद उनके जीवन में नहीं ।


तारकेश्वरी सिन्हा लिखती हैं-3- एक बार केंद्रीय कक्ष में डॉ. लोहिया बैठे हुए थे । आमतौर पर जहां वे बैठे होते वहाँ अच्छी-खासी भीड़ जमा हो जाती । संसद के सदस्य और अखबारवाले उन्हें घेर लेते । देखा कि डॉ. साहब एक बड़ी भीड़ में घिरे बैठे हैं और हंसी-मज़ाक का फव्वारा छुट रहा है । संसद में वे जीतने कठोर रहते, संसद के केंद्रीय कक्ष में उतने ही नम्र और स्नेह से भरपूर । संसद में कटु आलोचना करने के बाद बाहर निकलने पर अगर डॉ.  साहब की नजर हम लोगों पर पड़ जाती थी तो तुरंत बुलाकर बैठा लेते थे, जबरदस्ती समोसा और आइसक्रीम खिलाते थे और बिना कॉफी पिलाए वहाँ से हटने नहीं देते थे । शनिवार का दिन था, इसलिए संसद का अधिवेशन तो नहीं था, पर केंद्रीय कक्ष खुला हुआ था । मैं अपने दोनों बच्चों को साथ लेकर उनको आइसक्रीम खिलाने के लिए केंद्रीय कक्ष में आयी । डॉ. साहब ने देखते ही बुलाया । जब वहाँ पहुंची तो किसी विषय पर चर्चा हो रही थी । मैंने बातचीत के सिलसिले में एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी मजमे में जब कुछ पुरुष हतोत्साह दिखाई देने लगे तो मैंने उन लोगों से कहा कि आप पुरुष होते हुए भी महिलाओ से भी बदतर हो गए हैं । अच्छा यह होगा कि आप चूड़ी पहनकर बैठ जाएँ । डॉ. साहब बहुत गुस्सा हो गए और उन्होंने मेरी लड़की से कहा, ‘देखती हो- तुम्हारी माँ तुम्हारे खिलाफ कितनी बड़ी बात कह रही है । चूड़ी क्या कमजोरी का प्रतीक है ? एक महिला के मुंह से इस बात का निकलना कि तुम जन्मजात कमजोर हो, कतई उचित नहीं ।’ और फिर एक बार मेरी लड़की की ओर इशारा करते हुए कहा कि तुम्हारी माँ को तुम्हें कमजोर बनाने का कोई हक नहीं । मेरी लड़की एकटक उनका मुंह देख रही थी । सारे सदस्य हंस रहे थे और मैं भीतर ही भीतर इस क्रांतिकारी इंसान को तोलने की कोशिश कर रही थी ।


रमा मित्र लिखती हैं-4- 1946 की फरवरी का महीना था । तब बंगाल के ‘जनता’ कार्यालय का जिम्मा मुझ पर था । हमारा कलकत्ता में, चौरंगी में एक कमरा था, जो अरुणा (आसफ अली) और लोहिया तथा दूसरे साथियों के एक मित्र का था जो दाँत के डॉक्टर थे और विदेश गए हुए थे । वही कमरा हमें दिया गया था । जिसके हिस्से कर लिए गए थे, आधा कमरा ‘जनता’ के लिए और दूसरा आधा हिस्सा एक क्रांतिकारी, पत्रकार और लोहिया के अभिन्न मित्र अश्विनी कुमार गुप्ता के पास था । दूसरे और लोगों के साथ लोहिया हाल ही में जेल से छूटे थे और छुटकर सीधे कलकत्ता आए थे और अश्विनी के कब्जे वाले आधे कमरे में उन्हें रहने की जगह दी गयी थी । अतः यह नितांत स्वाभाविक था कि मेरी उनसे भेंट होती । और उनसे मिलने पर जो पहला प्रभाव पड़ा और सदा जो छवि मन पर अंकित रही- एक प्रभावी व्यक्तित्व, खुशमिजाज और उपस्थित स्त्रियों की प्रशंसा करने वाला (मेरी प्रशंसा भी) । वह सदा की भांति धब्बा-रहित हाथ की बुनी सफेद धोती और कुर्ता पहने थे और हाथ के बुने गर्म कपड़े की जैकेट (सदरी) जो बड़ी लापरवाही से कंधे पर पड़ी थी । यही वह महान विप्लवी था जिसने ब्रिटिश साम्राज्यी शेर की हड्डियों में कंपकंपी भर दी थी – आराम से बैठा, बेपरवाही से सिगरेट फूंकता और कमरे के नीचे सड़क-पटरी की चाय दुकान से चाय मंगाकर पी रहा था । उससे मित्रता व घनिष्ठता बढ़ाना कितना सरल-सहज था, जैसे किसी आत्मीय से मिलना । तब क्या मुझे निराशा हुई थी कि आतंकपूर्ण चर्चाओ का नायक लोहिया इतना साधारण व्यक्ति है ? मुझे याद नहीं, लेकिन जो याद है कि मैं बहुत खुश थी, बहुत सहज और बहुत  असतर्क । मैं हद से अधिक सहज व असतर्क थी । मैं बड़े आदमियों के सामने सदा बहुत असहज और सतर्क रहती रही हूँ । लेकिन उनके साथ जो सहज और असतर्क परिचय हुआ वह घनिष्ठ परिचय और संबंध इक्कीस वर्षों तक एक जैसा रहा, जबकि उन्हें मौत ने छीन लिया ।

कुछ दिनों बाद वे कलकत्ता से  चले गए । जाते समय कुछ रुपये एक कागज में सहेजकर, जिस कागज में मेरे लिए कुछ लिख रखा था, देते गए । मेरे लिए यह उनका पहला लिखित संदेश या पत्र था जिसे बाद में लपरवाही से खो दिया । इस पुरज़े में उन्होंने रुपयों के संबंध में लिखा था – मेरे दफ्तर से उन्होंने जो टेलीफ़ोन किया था उसके बारे में । यह समझना आसान बात थी कि वे यह बात भूल जाते, जैसे लापरवाह और मस्तमौला स्वभाव के वे थे । लेकिन रुपये-पैसे के मामले में वे सदा ही बड़े सतर्क थे, विशेषकर यदि सार्वजनिक कोष के रुपये हों । बाद में मैंने सीखा कि एक-एक पैसे का हिसाब रखना चाहिए, और वह मुझे सदा इसके लिए सतर्क करते रहते थे ।


रमा मित्र लिखती हैं-5- गर्मी के दिनों में मैंने बहुत हिचकिचाते हुए डॉ. लोहिया से कहा मैं एक रूम कूलर आपके लिए लेना चाहती हूँ । ‘माफ करो, मेरे कमरे के लिए नहीं । ये सुख-सुविधाएं मेरे लिए नहीं हैं हालांकि इससे मुझे काम करने में ज्यादा मदद मिलेगी । नहीं, कतई नहीं ।’ 
इससे काफी पहले जब वह पहली बार संसद के सदस्य चुने गए तो उनके कुछ दोस्तों ने उन्हें मोटर खरीद देने की बात कही । मोटर का ऑर्डर भी दे दिया गया । मैं मोटर देखकर आई और उन्हें बताया । उस बार वह नाराज नहीं हुए थे । उन्होंने मुझे बैठाया और मोटर के खर्च का अंदाजा लगाने लगे और फिर विजयोल्लास में कहा, ‘टॅक्सी सस्ती रहेगी ।’ उन्होंने इस संभावना की भी गवेषणा की कि ऐसे 6-7 दोस्त हो सकते हैं जो उन्हें एक महीने में चार बार मोटर देंगे, इस तरह 28 दिन मोटरवाले हो जाएँगे । पर वे एक दोस्त ही जुटा पाए और उसकी मोटर भी नियमित नहीं आ पायी । पैसों की बरबादी के बारे वे बहुत ज्यादा आगाह रहते थे । जनता के बीच जो कहते उसी को हमेशा सबसे पहले अपने ऊपर लागू करते ।   


डॉ. धर्मवीर भारती लिखते हैं-6-लोहिया जी से मेरी मुलाकात का किस्सा कम दिलचस्प नहीं है | जितेन्द्र सिंह ने उनसे मिलने का दिन और समय निश्चित किया था | शनिवार को सुबह 8 बजे | जहां वे थे, वह जगह 18-19 किलोमीटर दूर थी, यानी कम-से-कम एक घंटा तो लग ही जायेगा | तडके सुबह हम चार-पांच लेखक मित्र उठे, तैयार हुए, साइकिलों की जांच-पड़ताल की, हवा भरवायी | एक अदद इक्का, एक अदद रिक्शा और दो अदद साइकिलों पर हिंदी का उस समय का तरुण साहित्यकार लदकर लोहिया से मिलने चल पड़ा |
मिलने की जगह भी अनोखी थी | वे उस समय नेहरु सरकार के मेहमान हो कर नैनी जेल में डेरा डाले हुए थे | उनके कुछ वक्तव्यों और भाषणों के कारण उन पर मुकादमा चलाया गया था | स्वतंत्र भारत की वह विलक्षण घटना थी जब गांधी जी और अहिंसा का नाम लेने वाली सरकार एक चोटी के देशभक्त को जेल में डालने पर अमादा थी | जहां तक मुझे याद है उस मुकदमे में लोहिया जी ने कोई वकील नहीं किया था, खुद बहस की थी और उनकी वह बहस हम तमाम युवकों में एक नयी उमंग जगा गयी थी, एक नयी दृष्टि दे गयी थी |

वैसेहमसब, नएसाहित्यिकजागरणकाझंडाउठायेकाफीटेढ़ेकिस्मकेबुद्धिजीवीथे | आसानीसेकिसीसेप्रभावितहोनाहमेंमंजूरनहींथा, आपसमेंभीझगड़तेरहतेथे | हममेंसेकुछनेहरुकेप्रशंसकथे, कुछजयप्रकाशके, कुछविनोबाके, कुछसुभाषबोसके, लेकिनअकस्मातहमसबकामनलोहियानेजीतलियाथा | नहमनेउन्हेंतबदेखाथा, नउनकीसभाओंमेंगयेथे, परअबहमउनसेमिलनेकोउत्सुकथे |
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डॉ_धर्मवीर_भारती

रामधारी_सिंह_दिनकरलिखतेहैं-7-जबडॉ. राममनोहरलोहियासंसदमेंआये, मैंसेन्ट्रलहॉलकीओरफिरसेजानेलगा, क्योंकिलोहियासाहेबकेसाथबातेंकरनेमेंमुझेताजगीमहसूसहोतीथीऔरमजाआताथा | वेअक्सरमुझसेपूछतेथे, यहकैसीबातहैकिकवितामेंतोतुमक्रांतिकारीहोमगरसंसदमेंकांग्रेसीसदस्य ? इसकाजोजवाबमैंदियाकरताथाउसकानिचोड़मेरी ‘दिनचर्या’ नामककवितामेंदर्जहै –
तबभीमाँकीकृपा, मित्रअबभीअनेकछायेहैं,बड़ीबाततोयहकिलोहियासंसदमेंआयेहैं|मुझेपूछतेहैं, दिनकरकवितामेंजोलिखतेहो,वहहैसत्ययाकिवहजोतुमसंसदमेंदिखतेहो?मैंकहताहूँकिमित्र, सत्यकामैंभीअन्वेषीहूँ,सोशलिस्टहीहूँ, लेकिनकुछअधिकजरादेशीहूँबिल्कुलगलतकम्यून, सहीस्वाधीनव्यक्तिकाघरहै,उपयोगीविज्ञान, मगरमालिकसबकाईश्वरहै|इसकवितामेंएकजगहगरीबीकीथोड़ी-सीप्रशंसा-सीहै–बेलगामयदिरहाभोग, निश्चयसंहारमचेगा.मात्रगरीबी-छापसभ्यतासेसंसारबचेगा |

यहबाततोलोहियाजीकोबिल्कुलपसंदनहींथी | वेनिश्छलआदर्शवादीथेऔरगरीबीकेसाथकिसीभीप्रकारकासमझौताकरनेकोतैयारनहींथे | ईश्वरकाखंडनतोउन्होंनेमेरेसमक्षकभीनहींकिया, मगरभाग्यवादयानियतिवादकेप्रबलविरोधीथे |
संसदमेंआतेहीविरोधीनेताकेरूपमेंलोहियासाहबनेजोअप्रतिमनिर्भीकतादिखायीथी, उसकीबड़ाईबानगीतौरपरकांग्रेसीसदस्यभीकरतेथेऔरउसनिर्भीकताकेकारणलोहियासाहेबपरमेरीबड़ीगहरीभक्तिथी | सन 1962 . मेंचीनीआक्रमणसेपूर्वमैंनेएनार्कीनामकजोव्यंगकाव्यलिखाथा, उसमेंयेपंक्तियाँआतीहैं
तबकालोहियामहानहै,
एकहीतोवीरयहाँसीनारहातानहै |
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रामधारी_सिंह_दिनकर



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लोहियानिर्मलकुमारबोसलिखतेहैं-8- अगस्त, 1947 केअंतमेंदंगेभड़कउठेइसबारहिन्दूनवयुवकोंनेबमबारीऔरआगजनीसेमुसलमानोंकोहिन्दूमोहल्लोंसेएकदमखदेड़देनेकीठानीगांधीजीबहुतचिंतितऔरदुःखीथेसितम्बरकेपहलेसप्ताहमेंकलकताकीशांतिऔरसद्बुद्धिकेलिएउन्होंनेअनशनशुरूकरदियासौभाग्यवशहिन्दू, मुसलमान, सिखनेताओंद्वाराअपनेलोगोंकेबीचप्रयत्नकिएजानेसेदंगेरूकगएऔरगांधीजीनेबहतरघंटेकेबादअपनाअनशनतोड़दियाइसीवक्तडॉ. राममनोहरलोहियानेजोकियाउसकेलिएप्रत्येकव्यक्तिकोहमेशाउनकाकृतज्ञहोनाचाहिएवेशहरकेकईहिस्सोंमेंस्टेनगनऔरहथगोलासेलैसयुवकोंसेमिलनेगएउनसेलगातारबहसकीऔरउन्हेंबहससेराजीकियाकिवेअपनेसारेशास्त्रोंकागांधीकेआगेसमर्पणकरेंउन्होंनेयुवकोंकोकहाकिस्वतंत्रभारतमेंदंगेकभीनहींहोनेचाहिए, क्योंकिहिन्दूऔरमुसलमानोंकोभारतकेसमाननागरिकोंकीतरहएकनयीजिंदगीबनानीहैदरअसलराममनोहरलोहियागांधीजीकेसंदेशकोउनस्थानोंमेंभीलेगए, जहांवहपहलेकभीपहुंचाथाऔरअसरदारहुआथा

औरचमत्कारहुआ।बहुत-सेहिन्दूनवयुवकआएऔरउन्होंनेगांधीजीकेचरणोंपरअपनेशस्त्ररखदिये।एकनवयुवकनेतोगांधीजीकोकहाकिआखिरकारमैंहारगया।कलतकमुझे ‘हीरो’ मानाजारहाथापरआपकेअनशनकेकारणमुझेप्रत्येकआदमी ‘गुंडा’ मानरहाहै।कलकताकेयुवकोंपरगांधीजीकेअनशनकीइसनैतिकविजयकाबहुतकुछश्रेयराममनोहरलोहियाऔरशचीनमित्रऔरस्मृतीशबेनर्जीजैसेलोगोंथा।शचीनमित्रऔरस्मृतीशबेनर्जीनेतोशांतिकीइसयात्रामेंअपनेप्राणोंकीबलिहीदेदी। 
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निर्मलकुमारबोस

लोहियाकोहममानवताकेअधिकारकेसत्यऔरप्रतीककेरूपमेंयादकरतेहैं

कुमारीरूथस्तेफेन (अमरीका) लिखतीहैं-9- बहादुर, दबंग, विद्वानलोहियाकोहममानवताकेअधिकारकेसत्यऔरप्रतीककेरूपमेंयादकरतेहैं …. उनकीअमरीकायात्रामेंमिसिसिपी, जैक्सनमेंहमदोनोंपुलिसलारीमेंथेभूरेरंगकेभारतीयलोहियाअपनेदेशकेकपड़ेपहनेऔरमैंविशुद्धअमरीकीलिबासमेंगोरेलोगोंकेलिएबनेहोटलमेंएकसाथखानाखानेकेप्रयासमेंगिरफ्तारहुएथेहोटलकेमैनेजरनेहमेंदरवाजेपररोकाथाजबहमनेवापसजानेसेइन्कारकियातोहमेंपुलिसनेगिरफ्तारकियाथामैंनहींजानतीथीकिआगेक्याहोगाहमदोनोंपुलिसकीबंदगाड़ीमेंअकेलेथेएकदूसरेकेसाथबैठेथेलोहियानेकहाहमनेसिद्धकरदियाकिहममनुष्यहोनेकेअधिकारीहैं
जेलजानेकेपहलेशायदलोहियाकिअंतर्राष्ट्रीयख्यातिकेकारणहमछोड़दियेगएगिरफ्तारीकीबातसुनतेहीवाशिंगटनकेस्टेटडिपार्टमेंटकेअंडरसेक्रेटरीनेऔरभारतीयदूतावासकेप्रमुखअधिकारीनेफोनकरकेउनसेमाफीमांगीआजलोहियाकेयेशब्दमुझेबारबारयादआतेहैंहमनेसिद्धकरदियाकिहममनुष्यहोनेकेअधिकारीहैं#कुमारी_रूथ_स्तेफेन

एक ‘मनुष्य’ सेमिलनाकितनाअच्छाहोताहैहैरिसबोफोर्ड (‘जूनियर’- अमरीका) लिखतेहैं-11- राममनोहरलोहियासेजबभीभेंटहोतीथीतोवेएकसवालमुझसेबराबरपुछतेथे – ‘तुमजेलकबजाओगे ?’ 
यहीसवालउन्होनेअमरीकाआनेपर 1951 मेंसभीअमरीकीयुवकोंसेपूछाथा, विशेषकरनीग्रोयुवकोंसे।इसीयात्रामेंउन्होनेअपनेलगभगसभीभाषणोंमेंसिविलनाफरमानीकीव्यापकव्याख्याकरकेअमरीकीयुवकोंकीइसओरप्रेरितकियाथा।बादमेंतोमार्टिनलूथरकिंगनेइसेसिद्धान्तरूपमेंस्वीकारकियाहीथा। ….. 
….. यही 1951 मेंलोहियानेकहाथा – ‘मैंचाहताहूँकिसारीदुनियामेंराजनीतिकोंकीएकऐसीबिरादरीबनेजोसत्ताकेबिनाहीअपनाकामकरनासीखे।’….
1951 मेंलोहियाआइन्स्टीनसेमिलनेफ्रिस्टनगएथे।तबआइन्स्टीनऔरलोहिया- दोनोंएक-दूसरेसेबातेंकरतेसमयजिसप्रकारमुक्तहंसीहँसेथे- लगाथाकिदोनोंनेहीकुछक्षणोंकेलिएदुनियाकेअस्तित्वकोभुलादियाथा।लोहियानेकहाथा – ‘डॉ. आइन्स्टीन ! क्यामैंएकप्रश्नकरूँआपसे ? राजनीतिकेबारेमेंनहीं।मैंयहाँआपसेकुछसीखनेआयाहूँ।राजनीतिमेंतोमैंसमझताहूँकिमैंहीबहुतकुछआपकोबतासकूँगा।लेकिनमानव-मस्तिष्ककेउच्चस्तरपरहमेंआपकीसहायताचाहिए।बर्लिनमेंमैंनेकहाथाकिहमारेयुगनेकेवलदोविचारदिएहैं- महात्मागांधीऔरअणु-शक्ति।एकतोचलागयाऔरआपकाआविष्कारमौतकासाधनबनगया।मानव-मस्तिष्कइसजकड़नसेकैसेछूटे ?… 
जबदोनोंअलगहोनेलगेतोआइन्स्टीननेलोहियाकोबाहोंमेंभरकरकहाथा-‘एक ‘मनुष्य’ सेमिलनाकितनाअच्छाहोताहै – नहींतोकितनाअकेलापनरहताहै।’
एकजगहलोहियानेलिखाहै -‘ईश्वरऔरऔरत, जीवनकेयेदोहीध्येयहोतेहैं।मैंनेईश्वरकोनहींदेखा, औरऔरतमुझेमिलीनहीं, लेकिनएकमनुष्यमिलाथा, जिसकीस्मृतिसेरास्ताचमकपड़ताहै।’
लोहियानेयहगांधीकेलिएकहाथा।यहीशब्दमैंलोहियाकेलिएदोहराताहूँ।
#हैरिस_बोफोर्ड

संजीवरेड्डीलिखतेहैं –12- डॉ. लोहियाकेलिएराजनीतिपेशानहींथावरनएकऐसेप्रायश्चितसरीखीथीजिसेबहुततकलीफझेलकरपूराकरनापड़ताहै।अपनेकोशायदउन्होनेइसबारेमेंएकछुटदीथीकिअपनेअनुयायियोंकाहालबेहालनहो, इसबारेमेंअपनीव्यक्तिगतचिंताऔरध्यानकीवजहसेवहअपनेप्रत्येकअनुयायीसेवफादारीऔरनिष्ठाप्राप्तकरसके।अपनेचरित्रकेइसीगुणकीवजहसेवहअपनेदलकेभीतरविभिन्नमतोंकेलोगोंकोएकछतकेनीचेभीलासके।हमारेदेशकेइतिहासकेबारेमेंडॉ. लोहियाकीव्याख्याआमव्याख्याओंसेभिन्नथी।उनकीयहमान्यताथीकिहमारादेशशासकोंकीफूटकेकारणविदेशीआक्रमणकाशिकारनहींहुआ, वरनउसकेशिकारहोनेकाकारणबहुतांशजानताकाउदासीनहोनाथा।जनताकेरवैयेमेंइसीतरहकीउदासीनताकाबनारहनाउन्हेंखतराजानपड़ताथा।उनकोयहमहसूसहुआकिकाँग्रेसकाआंदोलनभी-जोशायदहालकेइतिहासकासबसेबड़ाआंदोलनथा – सिर्फसमाजकेविशिष्टवर्गकोहीअपनीओरखींचसका।जबतकराजनीतिजनतामेंसक्रियतालानेमेंसक्षमनहींहोतीतबतकदेशकाभविष्यनहींबनसकता।यहउदासीनतास्थायीबनगईहैऔरजनताकीआदतबनगईहै।इसकीजड़ेगहरीऔरवमजबूतहैसोइसकोदूरकरनेकेलिएअपरम्परागतऔरनएतरीकोंकीजरूरतहै।डॉ. लोहियानेजिननीतियोंकोचलायावेइसबुनियादीतथ्यसेउत्पन्नहुईथीं।यदिहमलोहियाकीनीतियोंऔरतरीकोंकेइसबुनियादीआधारकोयादरखेंतोहमइसबातकोअच्छीतरहदेखपाएंगेकिवहक्योंआंदोलनात्मकराजनीतिचाहतेथे।आंदोलनसेभारतीयराजनीतिकेसड़ेवमृतढांचेमेंप्राणफूंकेजासकेंगे।उन्हेंआशाथीकिआंदोलनकेसाथरचनात्मककार्यक्रमोंकाबारी-बारीसेमेलबैठाकरजनताकोपरंपरागतउदासीनताकाशिकारहोतेरहनेसेरोकाजासकेगा।डॉ. लोहियासमाजवादऔरसमानताकीवकालतकरतेहुएवर्गहीनसमाजकीमांगकररहेथे।भारतमेंवर्गहीनसमाजकामतलब- दोबातेंहोंगी- एकतरफवर्गभेदकोबढ़नेसेरोकाजायेऔरदूसरेअतीतकेवर्गभेदसे, जोजातीकेरूपमेंहै, निपटाजाय।वर्णभेदऔरजात-प्रथाकीसमस्यासेनिपटनेकेलिएवहकेवलसमानअवसरकेअधिकारकीबातसेसंतुष्टनहींथे, उन्होंनेपिछड़ेलोगोंकोविशेषअवसरदियेजानेकीवकालतकी।डॉ. लोहियाकीनीतियोंसेसहमतियाअसहमतिहोसकतीहैपरउनकीनिष्ठा, सच्चाईऔरलगनकेप्रतिसबकेमनमेंआदरवसम्मानथा।हरएकव्यक्तियहमहसूसकिएबिनानहींरहताथाकिउनकादिमागअत्यंतसक्रियवतेजहैऔरउनकाव्यक्तित्वप्रभावोत्पादकऔरगतिमानहै।वहजोमहसूसकरतेथेवहीबोलतेथे।उन्हेंलाग-लपेटनहींसुहातीथीऔरइसमामलेमेंवेकिसीकोभीनहींबख्शतेथे – उनकेअनुयायीहों, मित्रहोंयाविरोधी।वहअपनेसिद्धान्तपरअडिगथेऔरसिद्धान्तकोलेकरकोईसमझौताकरनेकीबातउनकेमनमेंकभीआईहीनहीं।#संजीव_रेड्डी

सुचेताकृपलानीलिखतीहैं –13- 1942 केभूमिगतआंदोलनकेसमयडॉ. लोहियानेमेरेसाथबड़ेसहयोगसेकामकिया।वेउसछोटे-सेकार्यकर्ताओंकेदलमेंथेजोभूमिगतअ॰भा॰काँग्रेसकार्यालयचलातेथे।तनाववउलझनतथाचुनौतियोंकेउनदिनोंमेंउनकेजोशीले, हंसमुखऔरखतरेसेखेलनेवालेस्वभावनेहमारीबहुतमददकी।उनकेलिएखतरेऔरझमेलेस्वाभाविकथेऔरवेहरसमयअधिकखतरोंकोन्योतादेतेरहतेथे।औरचीजोंकेअलावाउनकेऊपरभूमिगतरेडियोस्टेशनचलानेकीभीज़िम्मेदारीथी।मुझेउनदिनोंकीयादहैजबमुंबईकीपुलिसकोउनकेगुप्तरेडियोस्टेशनकापतालगगयाऔरवेलोगरेडियोस्टेशनकीखोजऔरउसपरबोलनेवालोंकोगिरफ्तारकरनेकेप्रयासमेंव्यस्तहोउठे।तबहमरेडियोस्टेशनकोएकस्थानसेदूसरेस्थान-अपनेदोस्तोंकेघर- हटातेफिरते।एकसमयऐसाभीआयाजबलगाकीपुलिसकाशिकंजाकसगयाहैऔरतबहमलोगोंनेरेडियोस्टेशनबंदकरनेकीसोची।एकबहुतछोटीउम्रकीलड़कीउषामेहतारेडियोपरप्रसारणकरतीथी।मैंउसकेलिएबहुतचिंतितरहाकरतीथीक्योंकिमुझेभयथाकियदिवहरेडियोपरप्रसारणकरतीहुईपकड़ीगईतोबहुतकड़ीसजापाएगी।इसलिएमेरासुझावथाकिहमलोगरेडियोस्टेशनकाकामबंदकरदें।लेकिनलोहियाइसपरएकदमसेक्रुद्धहोउठे।बोले, ‘किसीभीपरिस्थितिमेंहमरेडियोस्टेशनबंदनहींकरेंगे।अगरउषागिरफ्तारहोतीहीहैतोअच्छाहैकिवहप्रसारणकरतेहुएहीगिरफ्तारहो, क्योंकिहमारीयहब्रिटिशकेखिलाफपूरीतरहअंतिमलड़ाईहैऔरहमकिसीस्थितिमेंऔरकिसीतरहभीअपनेकदमवापसनहींलेसकते।’ उससमयमैंनेइसनौजवानकेदिलमेंछिपेफौलादकोदेखा।उषासचमुचप्रसारणकरतेसमयहीबड़ीनाटकीयस्थितिमेंपकड़ीगईऔरइसकेलिएउसेखूबभुगतनापड़ा।लोहियाऔरहमसबभारत-भरमेंसबजगहभागतेफिरतेथेऔरलोगोंमेंब्रिटिशसेलोहालेनेकीहिम्मतजगातेथे।हमजानतेथेकियहहमारीआखिरीलड़ाईहै।हमारेसामनेएकहीलक्ष्यथा – करोयाकरो।लोहियाकीहिम्मत, योग्यता, खुशदिलीहमारेलिएशक्तिथी।इसीसमयहमेंउनमेंनेतृत्वकीखूबियाँदिखींजिन्होंनेउन्हेंबादमेंभारतकामहाननेताबनाया।#सुचेता_कृपलानी

कमलादेवीचट्टोपाध्यायलिखतीहैं –14- लोहियाकीबुद्धिबहुतप्रखरथी, उनकाचिंतनविवेकपूर्णऔरगहराथासाथहीसाथ, उनकेपाससमाजमेंआमूलक्रांतिकीएकव्यापकऔरसम्पूर्णदृष्टिथीसत्यकेमामलेमेंउनकेबड़ेमौलिकविचारथेवेकहते, सत्ययातोसम्पूर्णहोताहै, याबिल्कुलनहींउसकेटुकड़ेनहींहोसकतेजिसप्रकारकिसीपूर्वनिश्चितमतकेलिएतथ्योंकोतोड़ामरोड़ानहींजासकता, उसीप्रकारएकमतमेंसबतथ्योंकाप्रवेशकरउसेविकृतनहींकियाजासकताजीवनकेहरवस्तुकेसंबंधमेंउनकायहीदृष्टिकोणरहताथा, क्योंकिजीवनप्रत्येकव्यक्तिकेलिएएकसम्पूर्णतथ्यहोताहैलोहियाकेसामनेएकहीप्रश्नथाअन्यायऔरअसमानताकोकैसेखत्मकियाजाए ? जीवनमेंउन्हेंजल्दीहीअनुभवहोगयाथाकीसमाजमेंसबसेअधिकअन्यायोंकीजड़मेंनारीपरलगेप्रतिबंधहैंपुरुषभीतबतकस्वतंत्रनहींहोगाजबतकनारीपूर्णतयास्वतंत्रनहींहोतीनारीस्वतन्त्रताकीबातउनकेलिएमहजनारानहींथाउसेवेव्यावहारिकताकेस्तरतकलेआएथेअपनेसमयकीकईप्रखरबुद्धिवालीस्त्रियोंसेउनकेमैत्रीसंबंधहुए, परंतुप्रचलितविवाहपद्धतिमेंस्त्रीकोनीचास्तरदियेजानेकेकारणउन्होंनेविवाहकिसीसेनहींकियावेकहतेथेकिआजादहिंदुस्तानमेंहरआदमीअपनेहकसेराजाहोगास्त्रियाँभीअपनेहकसेराजाहोंगी, किसीकीपत्नीहोनेकेनातेनहीं
जीवनभरविरोधकरतेकरतेवेबड़ीजीवंत, खुरदरी, शहरीबनावटसेदूरगाँवकीधूलभरीभाषाकाप्रयोगकरनेलगेथेलोकसभामेंनेहरूजीसेझड़पोंकेसमयकोईकहनहींसकताथाकिवेसंस्कृतसाहित्यमेंनिष्णातहैंऔरकालिदासकीव्याख्याकरसकतेहैंचीनकेआक्रमणकेबादउन्होंनेयहसिद्धकरनेकेलिएकिहिमालयहमाराहै’, संस्कृतसाहित्यसेबड़ेसशक्तप्रमाणप्रस्तुतकिएथेऔरकैलाशमानसरोवरकीभूमितकअपनाकब्जाकरनेकीबातकहीथीचीनकेइरादोंकोवे 1959 मेंहीभाँपगएथेजबउसनेतिब्बतकोसमेटलियाथालोहियानेउसकृत्यकोशिशुहत्याकहाथाउससमयउन्होंनेलखनऊमेंएकहिमालयनीतिसम्मेलनबुलायाथाऔरहिमालयक्षेत्रकोसुदृढ़करनेकेलिएहिमालयनीतिबनानेपरजोरदियाथा 
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कमलादेवी_चट्टोपाध्याय

मैंयहीमानूँगाकितुम्हारादिमागभ्रष्टहै

तारकेश्वरीसिन्हालिखतीहैं : एकदिनमैंलोकसभाकेदरवाजेकेपासअपनीगाड़ीकाइंतजारकररहीथीकिदेखाकिडॉ. लोहियाआकरखड़ेहोगए।मैंनेपूछाकिडॉ. साहब, कहाँजानाहै ? मैंवहाँपहुंचादूँ ?उन्होंनेकहाकिकॉफीहाउसजानाहै, वहींपहुंचादो।वेगाड़ीमेंबैठगए।कॉफीहाउसकेनजदीकगाड़ीपहुंचीतोउन्होंनेगाड़ीसेउतरतेसमयमुझसेभीउतरनेकेलिएकहा।मैंनेकहा, ‘नहीं, डॉ. साहब, जहांआपजारहेहैं, वहाँबहुतहँगामारहताहैं, मैंनहींजाऊँगी।’ मेरीइसबातकोसुनउन्होंनेमुझेबहुतडांटाऔरकहा, ‘जिस-तरहकीजनतायहाँआतीहैंउसजनता-जनार्दनकोतुमहंगामाकहतीहो ! तारकेश्वरी, मुझेबड़ाअफसोसहैकितुम्हारेदिमागमेंइसतरहकाभेदहैं।मैंयहमानताहूँकियहाँआमजनसमूहआताहै-गाड़ीवाला, बैलगाड़ीवाला, रेहड़ीवाला, टैक्सीवाला, सरकारीदफ्तरमेंकामकरनेवालाकर्मचारी।तुमसमझतीहोकिइनलोगोंकेबीचतुम्हाराजानाशानकेखिलाफहै ? अगरतुमऐसासमझतीहोतोमैंयहीमानूँगाकितुम्हारादिमागभ्रष्टहै।’ मुझेयादहैकिमैंऊपरसेनीचेतकतिलमिलाउठीथीऔरसाथहीयहभीमहसूसकियाथाकिमेरेमनमेंअगरइसतरहकापापहैतोमुझेउसकोनिकालकरफेंकदेनाचाहिए।


राजनारायण जी लिखते हैं-29- शरद ऋतु की रात थी। बनारस में मणिकर्णिका घाट के सामने दूर गंगा में दशाश्वमेध घाट से चलकर बजड़ा रुक गया। रात को 11 बजे से 3 बजे तक बजड़े की छत पर खुली चांदनी में दरी पर बिछी चादर पर दो-चार मसनद थे।

तारों का वर्णन था। सप्तऋषि मंडल कहाँ है, शुक्र कहाँ है, कुम्भ स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, विषयों की चर्चा थी। देश-विदेश की राजनीति, धर्म, समाजशास्त्र और दार्शनिक मुद्दों पर गंभीर विचार-विनिमय था किंतु लोहिया की दृष्टि मणिकर्णिका घाट पर गड़ी रहती थी। बीच-बीच में गांधी, राम, कृष्ण की चर्चा विचारों को उलझाये रहती थी। सन 52 के सार्वजनिक निर्वाचन में राम के प्रभाव-क्षेत्र में समाजवादी दल, कृष्ण के प्रभाव क्षेत्र में धर्म-सम्प्रदाय प्रधान पार्टियां, शंकर के प्रभाव-क्षेत्र में कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस के बाद आयी, ऐसा क्यों? प्रश्न का उत्तर ढूंढा ही जा रहा था कि बीच ही में डॉ. लोहिया बोल उठे- ‘देखो, देखो, चिता पर घी छोड़ा जा रहा है। मालूम होता है, यह धनी घर का मुर्दा है। पहले जी चिता थी, उसमें ऊंची लहर नहीं उठी थी, इतनी देर तक लाश जली भी नहीं थी, बेचारा किसी गरीब घर का था। अधजले शरीर को ही नदी में फेंक दिया गया। तुम्हारे घर का मुर्दा कहाँ जलाया जाता है राजनारायण?’
‘डॉ. साहब ! हमारे यहां के लोग तो हरिश्चन्द्र घाट पर जलाए जाते हैं। काशीराज के पारिवारिक लोग। सामने मंच बना है, उसी बगल में मालवीय जी की भी चिता लगी थी डॉ. साहब।’
‘क्या तुम लोगों ने मालवीय जी को जलते देखा था?’
‘हां, मैंने काशी विश्वविद्यालय से मालवीय जी के शव को ले चलने वाली टिकटी के बांस से कंधा हटाया ही नहीं। सड़कों पर बहुत भीड़ थी। फूल और माला का बोझ बढ़ता जाता था, उसे उतार-उतारकर हल्का किया जाता था। चंदन की लकड़ी पर मालवीय जी का शव रखा गया था। कनस्तर का कनस्तर घी डाला गया था। लोहबान, धूप और अन्य सुगंधित वस्तुएं डाली गयी थीं। मालवीय जी के शव को जलाने में बहुत देर न लगी’
‘भारत ऐसे गरीब देश में लाश जलाया जाना भी एक समस्या बन जाता है। गरीब घर के मुर्दे अच्छी तरह से जलते भी नहीं। बेचारों के पास मुर्दों को जलाने के लिए लकड़ी भी नहीं । घी और चंदन की बात कहां!’
‘आज हमारा देश इतना गरीब हो गया है, दोनों में धन और विचार से अकिंचन हैं, न तो समृद्धि बढ़ रही है और न विचारों की सड़ान दूर हो रही है। देश कैसे बनेगा? प्रधानमंत्री पर 30 हजार रुपये रोज खर्च हों, लोग तीन आना-चार आना प्रति व्यक्ति पर गुजर करें। इस स्थिति को फौरन बदलना है। कैसे बदलें? मन-मस्तिष्क की दरिद्रता और धन-दौलत की दरिद्रता जब तक दोनों दूर नहीं होंगे तब तक पिछड़े रहोगे। क्या तुम्हारी पार्टी यह काम करेगी? करेगी कहते हो। कहाँ हैं तुम्हारे लोग? कितने लोग हैं, जो अपने को मिटाकर दूसरों के हित की रक्षा करें ? क्यों नहीं तुम्हारे लोग इस बात का आंदोलन करते कि गरीबों के मुर्दों को बिजली से जलाये जाने का हर जगह सरकारी स्तर पर प्रबंध हो, जिससे गरीब लोग आसानी से बिना किसी चिंता के पूरी तरह जलाए जा सकें और नदियों का पानी भी स्वच्छ रहे। हाँ, ठीक है, क्या ठीक है? तुम इसका आंदोलन करोगे। याद रखो, मेरा शव वैज्ञानिक ढंग से बिजली से जलाया जाए। मैं चाहता हूँ कि मेरे मरने के बाद भी मेरे शव से गरीबों को प्रेरणा मिले। और धनी और गरीब के शव को जलाने का वह फर्क मीट जाए कि एक घी और चंदन से जले और दूसरे का शव अधजला ही पानी में बहा दिया जाए। मैं मरकर भी अमीर और गरीब का फर्क मिटाऊं इसलिए चाहूंगा कि तुम लोग साधारण आदमी की तरह मेरी लाश जलाना जिससे गरीबों में आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की भावना जागे और विज्ञान की नवीन मान्यताओं को अपनाकर पुरानी रूढ़ियों और कुसंस्कारो के बंधन से समाज मुक्त होकर समता और समृद्धि की ओर बढ़े। इस प्रकार बिजली से शव जलाए जाने पर ब्राह्मणवाद और जातिवाद के मिटने की प्रक्रिया शुरू होगी और कर्मकांड के व्यामोह से हिन्दू समाज मुक्त होगा।’
‘तीन बज रहे हैं डॉ. साहब । ठंडक भी बढ़ रही है। अब यहां से चलिए, निवासस्थान पर आराम कीजिए।’ मैंने कहा।
‘ठीक कहते हो।’ कहकर सदरी उठाए, कंधे पर रखे और चल दिए। पीछे हम लोग भी चल दिए।

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