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लोहिया:रचनाकारों की नजर में(भाग -6)

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*'सौंदर्य और कामुकता सहयोगी है, हालांकि कामुकता के बिना कोई प्रेम नहीं है और प्रेम के बिना कोई सुंदरता नहीं है'।* 
    *"मोशे शरेट,अल्बर्ट आइंस्टीन, स्ट्रिंगफैलो र्बर,एच एन आर इवा मारिया, हबीब बोर्गिबा,तैयब स्लिम,कमल जूमबर्स्ट, लुई फिशर, और सत्येंद्र बोस जैसे पुरुषों के प्रति उनके मन में आकर्षण था'।

प्रोफेसर राजकुमार जैन

भोला चटर्जी को सोशलिस्ट तहरीक में खतरों से खेलने वाले, एक प्रखर बुद्धिजीवी, जिन्होंने जयप्रकाश नारायण का खत रंगून में बर्मी सोशलिस्ट नेता यू वासवे को पहुंचाने तथा नेपाली तानाशाही के खिलाफ लड़ रही नेपाली कांग्रेस के लिए शस्त्रों से भरा एक जहाज पहुंचाने का इंतजाम भी किया। अपने लिखने के अनोखे अंदाज में उन्होंने एक लंबा लेख “तार्किक आदमी का अकेलापन” मैं मुख्तलिफ मुद्दों पर लोहिया के नजरिए को पेश किया है। उनके लेख की रेंज के इन दो नमूनों से थोड़ा अंदाजा लगाया जा सकता है। लोहिया ने लिखा है कि “ब्रह्मचर्य आमतौर पर एक जेल घर है। ऐसी कैद आत्माओं से कौन नहीं मिला है, जिनका कौमार्य उन्हें जकड़े रहता है और जो एक मुक्तिदाता की बेसब्री से प्रतीक्षा करते हैं। जाति और महिला रूपी दो अलगाव -मुख्यतः आत्मा के इस पतन के लिए जिम्मेदार है। इन अलगावो’ में रोमांच और आनंद के लिए सभी क्षमता को खत्म करने की पर्याप्त शक्ति निहित है।”
वे (लोहिया) कोई विक्टोरियन अहंकार से ग्रस्त व्यक्ति नहीं थे जो मैथुन को एक ऐसे पुरुष और महिला जो ‘’पवित्र’ विवाह बंधन में नहीं थे, के मध्य बने शारीरिक संबंधों की तुलना में अधिक रक्षात्मक मानते थे । वे व्यभिचार से घृणा करते थे, जबकि वे कुंवारे थे। सेक्स उनके लिए वर्जित नहीं था । बनर्जी, कलाबोवा, मित्रा और स्किनस (लोहिया की महिला मित्र) उस भीड़ का हिस्सा नहीं थे, जिसके साथ वे दिन – रात घूमा करते थे। उनकी मान्यता थी कि “सौंदर्य और कामुकता सहयोगी है, हालांकि कामुकता के बिना कोई प्रेम नहीं है और प्रेम के बिना कोई कोई सुंदरता नहीं है।”
उनकी छवि एक ऐसे व्यक्ति की होगी जो तर्क करने की अपनी क्षमता का उपयोग करने पर जोर देता है, ऐसे समय में जब अन्य लोग शास्त्रों में लिखी बातों का पालन करना पसंद करते हो : जो देश, महाद्वीपों की सीमा से परे हो। और शायद यही कारण है कि शूमाकर, मिलोवन जिलास, अल्बर्ट आइंस्टीन, मोशे शरेट, स्ट्रिंगफेलो बर्र, एचएन और इवामारिया, हबीब बोर्गिबा, तैयब स्लिम, कमल जूमबर्स्ट, लुईस फिशर और सत्येन बोस जैसे पुरुषों के प्रति उनके मन में इतना आकर्षण था।
किताब में नेविल मैक्सवेल के “डॉ, लोहिया – एक संक्षिप्त संस्मरण” लेख को भी के आलोचनात्मक प्रशंसक थे। उन्होंने बिना किसी भूमिका के मुख्तसर रूप से कई शामिल किया गया है। मैक्सवेल एक प्रमुख पत्रकार, लेखक होने के साथ-साथ लोहिया आयामों पर बेबाक अपनी बात लोहिया के सामने रखी थी। लोहिया ने भी उसी तरह बिंदुवार अपने विचार, उनके सुझावों को और अधिक पुष्ट करने के लिए दिए थे। उनके लेख की शुरुआत को पढ़कर लग सकता है कि वह लोहिया के कटु आलोचक हैं परंतु, पूरा लेख पढ़ने पर वे लोहिया के सकारात्मक रूप को स्वीकार करते हुए नजर आते हैं।
एक समय डॉक्टर लोहिया के सचिव रहे, के. एस. कारंत के लेख “डा. लोहिया की यादें” मे लिखा कि वे दिल के धनी, सार्वभौमिक दृष्टिकोण से संपन्न बेहद समृद्ध बुद्धि वाले एक महान इंसान थे। वे वास्तव में ऐसे चमत्कार थे जिनमें पूर्व और पश्चिम में मौजूद दोनों सभ्यताओं के दोषो को देखने की क्षमता थी और जिनके पास एक नई सभ्यता की परिकल्पना करने की दृष्टि थी।
यह हमारे देश के सार्वजनिक जीवन पर एक दुखद टिप्पणी है कि उनकी प्रतिष्ठा और कद के नेता के पास प्राथमिक आवश्यकताओं का अभाव था। उनके जीवन के अंत तक उनके पास सहायता के लिए योग्य सचिव नहीं थे। उनके पास स्टेनो नहीं था, उनके पास पूर्णकालिक टाइपिस्ट भी नहीं था। इन सुविधाओं के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। मारवाड़ी व्यापारिक समुदाय में जन्मे लोहिया जीवन भर पर्याप्त सुख सुविधा के साथ रह सकते थे, अगर केवल वे अपने सिद्धांतों से केवल थोड़ा सा समझौता करने के लिए तैयार होते। लेकिन वह ऐसा नहीं करेंगे उन्होंने सिद्धांतों की खातिर उन सभी को त्यागना पसंद किया। मैं यह कहने की हिम्मत करता हूं कि लोहिया एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने मुझ पर एक संत की छाप छोड़ी। वे कभी-कभी मुझे अपने साथ रेस्टोरेंट चलने के लिए कहते थे ऐसे मौके पर मैं होटल के वेटरो को उनकी मेज के चारों ओर चक्कर लगाते और उनके साथ वर्तमान राजनीतिक समस्याओं पर चर्चा करते हुए देखता था जैसे कि वह उनमें से ही एक हो। उन्होंने कभी उनके प्रति नाराजगी नहीं दिखाई। वे उनसे शालीनतापूर्वक और स्नेह से बात से किया करते थे। मैंने एक बार उन्हें एक वेटर को शर्माजी कहकर संबोधित करते देखा और फिर उन्होंने एक क्षेपक की तरह कहा “क्या एक वेटर को “हे बॉय” के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए?” जिसका तात्पर्य था कि उन्हें इस तरह के अशोभनीय शब्दों से संबोधित नहीं किया जाना चाहिए।
इस पुस्तक में तीन लेखों, अशोक मेहता द्वारा लिखित ” राममनोहर लोहिया”, मधुलिमए के लेख “राममनोहर लोहिया और उनके विचार” तथा सुरेंद्र मोहन के “राजनीतिज्ञ लोहिया- उनके विचारों के कुछ पहलू” लेख को शामिल किया गया है। यह तीनों लोहिया के सहकर्मी, साथी तथा शागिर्द की हैसियत से निकट संपर्क में रहे हैं। तीनों ने लोहिया की वैचारिकी पर अपने लेख में विस्तार से विमर्श किया है। इनके अध्ययन से सोशलिस्टो की वैचारिक पद्धति, सिद्धांतों, नीति कार्यक्रमों, रणनीतियों तथा इतिहास के दिग्दर्शन होते हैं।
अशोक मेहता एक फेबियन सोशलिस्ट थे। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में उन्होंने और लोहिया ने शाने- बशाने एक साथ काम किया था। सोशलिस्ट चिंतक के रूप में उन्होंने कई किताबें लिखी । उनमें और लोहिया में वैचारिक भिन्नता के भी कई आयाम है, परंतु व्यक्तिगत संबंधों के बारे में एक बार लोहिया ने लिखा था की अपनी युवावस्था में हम दोनों देर रात तक राजनीति से अलग भी बात किया करते थे।
मधुलिमए लोहिया धारा के सबसे प्रमुख व्याख्यकार, पैरोकार तथा वैचारिक ट्रस्टी है। डॉक्टर लोहिया को नजदीक और गहराई से उन्होंने समझा तथा अनुकरण किया। सोशलिस्ट नेता सुरेंद्र मोहन पहले प्रजा समाजवादी पार्टी तथा बाद में सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख नेता, व्याख्याकार रहे हैं। सोशलिस्ट आंदोलन के हर दौर में उनकी एक प्रमुख भूमिका रही है। पार्टी संगठन चलाने तथा उसकी नीतियों के प्रचार प्रसार को भी उन्होंने बखूबी निभाया है।
पुस्तक के अंत में एक बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अध्याय, लोहिया द्वारा स्थापित मैनकाइंड पत्रिका (अंग्रेजी) के प्रथम संस्करण में लोहिया द्वारा बिना नाम के लिखा गया, लेख भी शामिल किया गया है।
इस किताब की एक और ख़ासियत यह भी है कि हर लेख के बाद, संपादक ने लोहिया द्वारा समय-समय पर कहीं गई महत्वपूर्ण बातों को सूक्ति के रूप में अंकित किया है। उन सबको मिलाकर ही एक पुस्तक का आकार दिया जा सकता है, जिससे लोहिया को बिना पूरे पढ़े ही बहुत कुछ लोहिया का फलसफा पाठकों को मिल जाएगा।
किताब में जहां विद्वानों ने लेखो के माध्यम से लोहिया की शख्सियत के मुख्तलिफ आयामों पर तस्किरा किया है, वही इस किताब में देश के नामी कवियों बालकृष्ण राव, नरेश सक्सेना, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, बालकवि बैरागी, ओमकार शरद प्रदीप कुमार तिवारी उमाकांत मालवीय ने अपनी कविताओं से लोहिया को अपनी सिराज ए अकीदत पेश की है। उनकी कविताएं उच्च स्तर के प्रतिमानों,औ भावों, अलंकारों, प्रतीको पर लिखी गई है।
लोहिया का अपने बारे में कहना था कि ‘आज मेरे पास कुछ नहीं है,
सिवाय इसके कि हिंदुस्तान के साधारण गरीब लोग सोचते हैं कि मैं शायद उनका आदमी हूं।
किताब के संपादक अपने संपूर्णता के ख्वाब को किस हद तक अमली जामा दे पाए है इसका अंतिम फैसला तो पढ़ने वाले ही कर पाएंगे।


	
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