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देखो देखो गौर से देखो, मानव मुक्ति का घोष है एक 

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,मुनेश त्यागी

सारी दुनिया में शोषण, अन्याय, भेदभाव, गैर बराबरी और लूट खसोट की शक्ल सूरत एक जैसी है, जो मानव विरोधी हैं और जो रुप रंग और प्रवृत्ति में सब एक  जैसे हैं। ये सब मिलकर किसानों, मजदूरों और तमाम मेहनतकशों का खून पीते हैं, इनका भयंकर शोषण और दमन करते हैं और इनकी मेहनत और श्रम को हड़पते हैं। 
 इन सबके खात्मे और विनाश को लेकर  शिक्षा, एकता, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और क्रांति की जरुरत आज सबसे ज्यादा बनी हुई है। इन्हीं सब को लेकर, यह कविता लिखी गई है। आप इसे पढ़िए। इस कविता को पढ़कर लगता है कि पूरे देश और दुनिया में ये शोषण, अन्याय, भेदभाव और गैरबराबरी सारी दुनिया में सब जगह एक जैसे हैं और हमारे देश और तमाम विश्व के पैमाने पर, इसका विस्तार देखने लायक है।
 यह भी दुनिया की सबसे बड़ी हकीकत है कि देश और दुनिया के पैमाने पर सामंत, पूंजीपति, भ्रष्ट, अंधविश्वासी, धर्मांध और सांप्रदायिक ताकतें अपने-अपने देशों में एक मिली जुली नीति के तहत, अपनी सारी जनता का शोषण और दमन करते रहते हैं। अब तो पूंजीपतियों के साम्राज को बढ़ाने के लिए और मुनाफाखोरी का विस्तार करने के लिए, इन्होंने किसानों मजदूरों की रक्षा के लिए बने तमाम कानूनों को रौंदना शुरू कर दिया है और इन देशों की तमाम सरकारें  लुटेरे पूंजीपतियों की पिछलग्गू बनकर रह गई हैं।
  इसको पढ़कर आपको आनंद आएगा, जिज्ञासा बढ़ेगी क्योंकि ये जनविरोधी और मनुष्य विरोधी मुद्दे आज भी दुनिया भर में कायम हैं और बने हुए हैं, इन सभी मुद्दों से संघर्ष करना आज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी और जरुरत बनी हुई है। इन्हीं सब कारणों से इस कविता की अहमियत एवं महत्व और भी कई गुना बढ़ गया है। यह कविता सविनय, आपकी सेवा में पेश कर रहा हूं,,,,,,

अमेरिका और रूस में देखो
चीन और जापान में देखो
भारत और यूरोप में देखो
देश और विदेश में देखो,
देखो देखो गौर से देखो
सारे रक्त पिपासु एक।

रेल सड़क और कार में
खेत और खलिहान में
मां बहन की इज्जत लूटती
ऑफिस और जहान में,
देखो देखो गौर से देखो
सारे चीर खसोटू एक।

चाहे गांव के, चाहे शहर के
काले, गोरे कैसे भी हों
मैं भी कहता, तुम भी कह दो
जन-शोषक शत्रु हैं एक,
देखो देखो गौर से देखो
मेहनत के हड्पी सारे एक।

वोल्गा, गंगा, डार्लिंग में
मिसौरी अमेजन नील में देखो
कष्ट, दुख और वेदना का
रूप एक है, रंग भी एक,
काली गोरी झुर्रियों में
बहता हुआ रक्त भी एक।

सूरज एक है, चंदा एक
गगन एक है, धरती एक
इंद्रधनुष और हवा एक है
मांस, मज्जा, रुधिर है एक
देखो देखो गौर से देखो
शोषक चोर लुटेरे एक।

सुनो तनिक, सोचो भी जरा
जात पांत और धर्म की
दीवारों को, जंजीरों को
तोड़ो, ढाओ, देओ फैंक,
देखो देखो गौर से देखो
मानव मुक्ति का घोष है एक।

एक विश्व है, देश अनेक
मेहनतकश सारे एकम एक
अब ना सहेंगे जुल्मों सितम हम
नारा, परचम, सबका एक,
देखो देखो गौर से देखो
क्रांति के सब माहिर एक।

दलित, पीड़ित और उत्पीड़ित
किसान और मजदूर हैं एक
नहीं रहेंगे अलग अलग अब
हिंदू मुस्लिम है सब एक,
देखो देखो गौर से देखो
इंकलाब का नारा एक।

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