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*प्रेमी औरंगज़ेब* 

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          ~ पुष्पा गुप्ता

आततायी के रूप में जिसे जाना जाता है, वह प्रेमी भी रहा है. उसकी एक अलग किस्म की प्रेम कहानी है. एक ऐसे राजकुमार की कहानी, जिसकी छवि निर्मम, हठी, और धार्मिक कट्टरवादी की है, जिसका प्यार-मुहब्बत से 36 का आंकड़ा है। यह मुगल सम्राट औरंगजेब की पहली नज़र के इश्क़ की कहानी है।

1636 में औरंगजेब दकन का सूबेदार था। दिल्ली से औरंगाबाद जाते हुए वह रास्ते में अपनी मामी से मिलने के लिए बुरहानपुर रुका था जहां उसके मामा, सैफ खां सूबेदार थे। उसके बाद की कहानी के बारे में कई कहावतें हैं लेकिन सबका लब्बोलुबाब यही है कि उसे अपने मामा के हरम की एक औरत से पहली ही नजर में इश्क़ हो गया। उसका नाम था हीराबाई।

      नवाब शम्सुद्दौला और उनके बेटे अब्दुल हई खान द्वारा 18वीं शताब्दी में लिखित ग्रंथ, ‘मा असिर अल-उमरा’ में इस प्रकरण का विस्तृत विवरण मिलता है।

एक दिन शाहजादा अपने हरम की स्त्रियों के साथ ज़ैनाबाद बुरहानपुर के अहू-खाना (हिरण उद्यान [dear park]) नामक बगीचे में सैर करने गया और अपने चुनंदा साथियों के साथ चहलकदमी कर रहा था। खूबसूरती में बेजोड़ तथा अपनी संगीत के कौशल से होश उड़ा देने के वाली हीराबाई फलों से लदे आम के पेड़ को देखकर, शाहजादे की उपस्थिति को समुचित तरजीह दिए बिना, हर्षोल्लास में, उछलकर आम तोड़ने लगी। उसकी इस अदा पर शाहजादा दीवाना हो गया।   

     अपनी अडिग (कट्टर) धार्मिकता के बावजूद औरंगजेब संगीत का पारखी तथा कुशल वीणावादक था। हीराबाई की खूबसूरती और संगीत कौशल ने शाहजादे को दीवाना बना दिया। कहा जाता है कि वह उस पर इस क़दर मोहित हो गया कि उसने उसकी शराब पीने की बात मान ली थी। लेकिन जैसे ही वह शराब का प्याला होठों से लगाने को हुआ, हीराबाई ने उसे रोक दिया, कहा कि वह तो उनके प्यार की परीक्षा ले रही थी।

     एक कट्टर धार्मिक शहजादे का शराब पीने के लिए राजी हो जाना प्रेमिका के लिए उसकी बेइम्तहां मुहब्बत बयान करता है।

      अकबर ने हरम के सुचारु संचालन के लिए हरम की औरतों के नाम उस जगह के नाम पर रखने का आदेश दिया था जहां से वे आई थीं, जो आगे चलकर मुगल हरम का रिवाज बन गया था। इसलिए औरंगजेब के हरम में आने के बाद हीराबाई का नाम ज़ैनाबादी पड़ गया था।

*एकांत में मातम :*  

     1640 में लिखे गए अहकाम-ए-औरंगजेब में औरंगजेब के जीवनीकार हमीदुद्दीन निमचाह बुरहानपुर प्रकरण का अलग किस्सा बताते हैं। उनके अनुसार,यह मुलाकात तब हुई थी जब शाहजादे  बिना बताए हरम में चले गए। हीराबाई को देखते ही वह बेहोश हो गया।

     मामी के पूछने पर उसने दर्द-दिल  बयान किया और इलाज पूछा। उसके हरम की एक औरत के बदले उसे हीराबाई भेंट की गयी। उसके बाद के जज़्बात और सम्मोहन का वर्णन इसमें भी वैसा ही दिया हुआ है।

       मा’असिर उमरा में बताया गया है कि औरंगजेब की प्रेम कहानी इतना आगे बढ़ गयी थी  कि इसकी भनक शाहजहां के कानों तक पहुंच गयी थी। कहा जाता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी भाई दाराशिकोह ने अपने पिता शाहजहां से कहा था, “पवित्रता और संयम का पाखंड करने वाले इस धूर्त की करतूत देखिए, मामी की हवेली की एक लड़की के लिए इसका यह काला कारनामा देखिए।”

      लेकिन हीराबाई ज्यादा दिन साथ नहीं रही, जल्दी ही उसकी मौत हो गयी। उसकी मौत से शाहजादा दुःख के समंदर में डूब गया था। उसे औरंगाबाद में दफनाया गया था। मा’असिर अल-उमरा में बताया गया है कि अपनी प्रेमिका की मौत के ग़म से वह इतना बेचैन हो गया था  कि वह महल छोड़ कर शिकार पर निकल गया था।

      जब कवि मीर अस्करी (अकील खां) ने ग़म में अपनी जान जोखिम डालने का उलाहना दिया तो शाहजादे ने कहा, “घर में बैठ  कर रोने से दिल का बोझ  हल्का  नहीं हो सकता, दिल का दर्द कम करने के लिए एकांत में ही जी भर कर रोया जा सकता है। 

अकील खां ने अपना एक शेर सुनाया :

     “कितनी आसान लगती थी मुहब्बत, लेकिन अफसोस, है ये बहुत मुश्किल, 

बहुत घना है जुदाई का ग़म, 

मगर इससे महबूबा को तो कुछ न मिला!

     शाहजादे के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। कवि का नाम याद करने की नाकाम कोशिशों के बाद उसने कविता की पंक्तियां कंठस्थ कर ली थीं।

*अधूरा वर्णन :*

      औरंगजेब के जीवन के इस दौर का वर्णन इतलवी यात्री और लेखक,  निकोलाओ मनुक्की (1639-1717) ने भी किया है:

    “अपने हरम की एक नर्तकी पर औरंगजेब इतना मुग्ध हो गया कि कुछ समय तक वह  नमाज और अन्य धार्मिक अनुष्ठान भूल कर संगीत और नृत्य में खोया रहा। इतना ही नहीं,  उस नर्तकी के कहने पर वह शराब में खुशी तलाशने लगा। नर्तकी की मौत के बाद औरंगजेब ने शराब और संगीत से दूर रहने  की कसम खा ली। बाद के दिनों में वह कहता  रहता था कि ईश्वर ने उस नर्तकी को अपने पास बुलाकर उस पर बहुत मेहरबानी की थी।

     उसी के कारण वह भोग-विलास में लिप्त होकर अधर्म के रास्ते पर चल पड़ा था और दुराचार  पर कभी नियंत्रण न कर पाने के खतरे  में फंस गया था।”

(जानी-मानी इतिहासकार प्रो. राना सफ़वी के शोधपत्र का हिंदी रूपांतर)

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