एड. आराधना भार्गव
मध्यप्रदेश अब भ्रष्टाचार और हिंसक प्रदेश के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। अखबार उठाने पर भ्रष्टाचार और हिंसा से भरी खबरों के अलावा और कुछ दिखाई नही देता। सागर में युवती की दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। मेरे दिमांक में दो सवाल गूंज रहे है पहला महिला हिंसा करने वाले अपराधी आखिर अदालत से कैसे जमानत पा लेते है, दूसरा महिला हिंसा करने वाले अपराधी को पुलिस वा पितृात्मक सत्ता गंभीर अपराधी क्यों नही मानती ? तीसरा अपराधी को पकड़ने तथा सही जाँच (इन्वेस्टीगेशन) करने में पुलिस की रूचि क्यों नही है ? पुलिस द्वारा समय अवधि में न्यायालय के समक्ष चालन प्रस्तुत ना करके अपराधी का घर तोड़कर समाज को यह संदेश देने की कोशिश की जाती है कि पुलिस ने त्वरित न्याय कर दिया है। न्याय देने का काम पुलिस का नही न्यायपालिका का है। देश के हर न्यायाधीश को बेटियों को बचाने के लिए अपनी न्यायिक दृष्टि का उपयोग भी करना पड़ेगा। जनता के पैसों से ही न्यायाधीश और पुलिस को वेतन मिलता है, वेतन तथा सुख सुविधा देने में भारत की जनता पीछे नही है, प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कर देकर न्यायाधीश एवं पुलिस को पर्याप्त सुख सुविधा के साधन एवं वेतन उपलब्ध कराती है, उस तुलना में हमारी न्यायपालिका और पुलिस मेहकमा काम करते दिखाई नही दे रहा है।
सागर जिले जैसी घटना पूरे देश में आये दिन देखने को मिल रही है। 21 वर्षीय युवति को चार साल से रोहित सिंह राजपूत परेशान कर रहा था। चार माह पहले उसने युवति की हाथ की नश इसलिये काट दी थी की युवति उससे शादी करने के लिए तैयार नही थी, इस घटना की रिपोर्ट मोती नगर थाने में दर्ज कराई गई, पुलिस ने रोहित को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया, जमानत पर छूटने के पश्चात् युवति 02 सितम्बर को दोपहर अपने भाई के साथ काॅलेज से लौटी थी, अरोपी उसके घर में घुसा युवति को घसीटते हुए सड़क पर लाया माँ एवं भाई उसे बचाने आए रोहित सिंग राजपूत ने पिस्तौल चलाकर युवति को घटना स्थल पर ही घरासाई कर दिया, घटना स्थल पर ही युवति की मौत हो गई।
सवाल यह उठता है कि पुलिस तत्काल आरोपी को गिरफ्तार क्यों नही कर पाई ? और आरोपी के घर को नेस नाबूत करके पुलिस प्रदेश की जनता को क्या संदेश देना चाहती है ? गम्भीर अपराध करने वालों को पुलिस एवं अदालत पहचानने में कहीं चूक कर रही है। रोहित सिंग राजपूत ने पहली बार मृतक युवति की नस काटी थी उसी वक्त अगर पुलिस प्रकरण को गम्भीरता पूर्वक लेती तथा सही तरीके से प्रकरण की जाँच करती तो अदालत द्वारा आरोपी की जमानत नही हो सकती थी। आरोपी की जमानत देने वाले न्यायाधीश पर भी सवाल उठता है। पिछले वर्ष महिला के साथ छेड़छाड़ करने के मामले में न्यायाधीश ने यह कहकर आरोपी को जमानत दी कि वह अपनी पत्नी के साथ छेड़छाड़ करने वाली महिला के घर पर मिठाई का डब्बा लेकर जाए। उच्च न्यायालय ने इंदौर की इस घटना के आदेश को रद्द किया तथा जमानत देने वाले न्यायाधीश पर कड़ी टिप्पणी की।
जिस तरीके से कहा जाता है कि कपड़ा अगर थोड़ा सा फटा है तो उसकी तत्काल सिलाई कर लेना चाहिए वरना कपड़ा पूरा फट जायेगा। उसी तरीके से महिला हिंसा से सम्बधित किसी भी अपराध की जानकारी परिवार, समाज, काॅलेज, स्कूल, साथ में पढ़ाई करने वाले दोस्त पुलिस तथा न्यायपालिका को बहुत गम्भीरता पूर्वक देखना और अपने दायित्व का निर्वाहन करना होगा। सरकार की भी यह जिम्मेदारी है कि उनके मंत्री या समाज के प्रतिष्ठित लोग महिला हिंसा को लेकर अभद्र टिप्पणी ना करें। कोरोना महामारी के दौरान इस तरह की खबर भी पढ़ने को मिली कि महिला हिंसा करने वाले चाहे वे बलात्कार के आरोपी हो या सजायाफ्ता उन्हें जमानत पर या पैरोल पर छोड़ दिया जायेगा। ऐसे आदेश यह दर्शाते है कि महिलाओं के साथ होने वाले अपराध को समाज, पुलिस और न्यायपालिका गम्भीर अपराध की श्रैणी में नही समझती।
आईये हम सब मिलकर प्रयास करें कि सागर जैसी घटना अब हमें दोबारा देखने और सुनने को ना मिले, पुलिस आरोपी को इन्काउण्टर में मार कर एवं उसका घर तोड़कर अपने आप को हीरों ना समझकर उचित जाँच करके समय पर न्यायालय में चालान प्रस्तुत करें, समय अवधि में न्यायपालिका न्यायिक प्रक्रिया का पालन कर दोषी को कानून के प्रावधानों के अनुसार सजा का ऐलान करें। न्यायाधीश प्रकरण का फैसला इस तरीके से करें कि उच्च न्यायालय द्वारा उसकी सजा बरकरार रहे उच्च न्यायालय, उत्तम न्यायालय तथा राष्ट्रपति के पास आरोपी के सजा मांफी के प्रकरण की सुनवाई शीघ्रता शीघ्र हो और आरोपी फांसी के तख्ते पर टंगे। न्यायिक प्रक्रिया का पालन करने के पश्चात् तिल तिल करता आरोपी प्रतिदन प्रति घण्टे मरता है। इन्काउण्टर या अपराधी का घर नेस नाबूत करने का पुलिस का शाॅर्टकट रास्ता अपराधी के हौसले बुलंद करता है। अपराध से संबंधित अन्य जुड़े अपराधी तक कानून के हाथ नही पहुँच पाते। सागर में आरोपी रोहित सिंग राजपूत के घर को तोड़ने वाले पुलिस अधिकारी तथा अपराधी को भागने का अवसर देने वाले पर कानून कार्यवाही होनी चाहिए तथा आरोपी रोहित सिंग राजपूत को जमानत पर रिहा करने वाले न्यायाधीश को भी अपना न्यायिक मस्तिष्क का मंथन करके ये सोचना चाहिए की उनसे कहाँ चूक हुई जिसके कारण एक युवति न्याय की गुहार करते हुए इस दुनिया से चली गई और उसे न्याय नही मिल पाया।
एड. आराधना भार्गव
पता: 100 बी, वर्धमान सिटी, छिन्दवाड़ा,