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बेशक ,मध्यप्रदेश-छग शांति का टापू

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सुसंस्कृति परिहार

मध्यप्रदेश में जिस तरह मुख्यमंत्री पद को लेकर तीन दिसंबर से सरगर्मी रही वह इतनी आसानी से निपट जाएगी ऐसा तो किसी ने शायद ही सोचा होगा। शिवराज ने जिस तरह मोदी और कमल चेहरे के बीच अपनी अहमियत बनाए रखी वह काबिले गौर है किंतु इतना बहुमत आने के बाद उनका मुख्यमंत्री नहीं बनना, कहीं भी विरोध दर्ज ना करना तो यही दर्शाता है कि जैसे वे पहले से घर वापसी के लिए तैयार बैठे थे। इसलिए लाड़ली बहनों से कहते रहे जब मैं नहीं रहूंगा बहुत याद आऊंगा।

खैर शिवराज तो इस बात को समझ गए थे। केन्द्र से आए मंत्रीगणों में से सिर्फ नरेन्द्र तोमर को स्पीकर बनाने की घोषणा की गई है।बाकी मंत्री प्रह्लाद पटेल और पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय अपने मतदाताओं का कैसे सामना करेंगे।जो इस विश्वास में रहे कि मुख्यमंत्री बनेंगे उनके विधायक। बहरहाल ये साफ़ हो गया कि मध्यप्रदेश संघ के हाथों सुपुर्द करके उन्हें शायद वापस संसद की ओर प्रस्थान करना पड़ेगा। संघ का डंडा इतना मज़बूत है कि उसके आगे किसी की नहीं चलती इसे ही वे अनुशासन कहते हैं।

यदि नहीं भेजे गए तो यहां मंत्रीमंडल में स्थान मिलेगा ही।

जय हो मोदीजी की जिन्होंने अपनी मेहनत से मध्यप्रदेश को मामा प्रदेश से मोदीमय बना दिया लेकिन लगता है संघ की लाठी छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश तक चल रही है और आपकी जुगल जोड़ी मोदी शाह पिछड़ रही है बहरहाल यह अंदर की बात है लेकिन यह सब समझ रहे हैं लोकसभा में गुजरात लाबी अब प्रमुख नहीं रहेगी।काम आपका होगा और कुर्सी उनका आदमी पकड़ लेगा। छत्तीसगढ़ चूंकि मध्यप्रदेश का हिस्सा है इसलिए दो राज्य किसी भी तरह के विरोध के पक्ष में नहीं हैं। दोनों शांति के टापू बने हुए हैं।

देखना तो यह है अब राजस्थान वीरभूभि से वीरांगना वसुंधरा राजे सिंधिया कब तक इनसे टक्कर ले पाती हैं सुना जा रहा है कि वे कांग्रेसियों के साथ हाथ मिलाकर ऊपरी गेम समाप्त करने की कोशिश में लगी है। गहलोत से आपकी करीबी छिपी नहीं है मरता क्या नहीं करता।गेम खेलें ज़रुर ताकि आपका ज़मीर बच जाए पर दिल्ली सल्तनत और संघ आपको आगे क्या बख्श  देगी यह भयावह होगा।

फिलहाल मध्यप्रदेश के शिवराज सिंह से सीखने की ज़रूरत है। ख़ामोश रहकर वे किसी बड़े मिशन में लगे गए हैं। गांधी का रास्ता पकड़ रखा है जिससे वे कम से कम सुरक्षित रहेंगे और मन की करने स्वतंत्र भी होंगे।आज की राजनीति में कमज़ोर बनकर ही बहुत  कुछ हासिल किया जा सकता है।वे काम में जुट चुके हैं।

मुझे याद आता है उमाभारती का बुंदेलखंड से पहली बार मुख्यमंत्री बनना और कर्नाटक के एक केस में पद छोड़ना।वे बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाकर चली गई जब लौटीं तो उस पद पर शिवराज काबिज़ थे। उन्होंने फिर उमाभारती को पद नहीं दिया।आज वही दृश्य सामने है मेहनत शिवराज की और सत्ता मोहन यादव की।तब भी शांति पूर्वक आपकी सत्ता सुरक्षित रही।आज भी वही स्थिति है।

मुझे लगता है यह प्रदेश की तासीर में है कोई नृप होय हमें का हानि किन्तु इस बार लाड़ली बहनों में शोक है क्या यह शोक मोदीजी के सामने आक्रोश में बदलेगा या तासीर के मुताबिक सब ठंडा हो जाएगा। बहनों से ही एक उम्मीद बनती है कि वे अपने मामा के लिए ज़रुर आवाज उठाएंगी।बाकी विधायक तो शिवराज का जयकारा लगाते रहे और फिर डंडे से डर गए। मोहन यादव मुख्यमंत्री बन गए ।

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