मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले के साथ ही पढ़ें राज्यसभा में महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के दौरान राजद सांसद मनोज झा द्वारा ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ का पाठ किए जाने पर बिहार में चल रही बयानबाजी पर लालू प्रसाद का पक्ष और महाराष्ट्र में मराठाओं को ओबीसी में शामिल करने पर भड़के आक्रोश के बारे में
बीते 29 सितंबर, 2023 को मद्रास हाई कोर्ट ने एक फैसले में तीस साल पहले आदिवासी औरतों के खिलाफ अंजाम दिए गए सामूहिक अपराध के मामले में 215 अपराधियों की सजा को बरकरार रखा। इनमें सारे अपराधी राज्य सरकार के वन विभाग एवं राजस्व विभाग व पुलिसकर्मी हैं। इसके पहले निचली अदालत ने इन आरोपियों को 1992 में छापेमारी के दौरान आदिवासी औरतों के साथ बलात्कार करने का दोषी पाया था और सभी को एक साल से लेकर 7 साल की सजा सुनाई थी।
धर्मपुरी की निचली अदालत ने 29 सितंबर, 2011 को इस घटना के संबंध में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के चार अधिकारियों समेत 126 वनकर्मियों, 84 पुलिसकर्मियों और राजस्व विभाग के पांच लोगों को दोषी करार दिया था। कुल 269 आरोपियों में से 54 की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी।
मद्रास उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा 215 लोगों की दोषसिद्धि और सजा के आदेश को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन ने 18 महिलाओं को तत्काल 10-10 लाख रुपए का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया, जो धर्मपुरी में हुई इस कुख्यात घटना के दौरान यौन उत्पीड़न का शिकार हुई थीं। दोषियों की तरफ से किये गए अपीलों को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति वेलमुरुगन ने कहा, “इन अपीलों में कोई दम नहीं है। इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है।” उन्होंने राज्य सरकार को बलात्कार पीड़िताओं को 10-10 लाख रुपए का मुआवजा प्रदान करने और दोषियों से 50 प्रतिशत राशि वसूलने का निर्देश दिया। साथ ही उन्होंने राज्य सरकार को उन 18 पीड़ितों या उनके परिवार के सदस्यों को स्व-रोजगार या स्थायी नौकरी के माध्यम से उपयुक्त रोजगार प्रदान करने का भी निर्देश दिया, जिनकी रोजी-रोटी खत्म हो गई थी।
मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश यहीं नहीं रूके, उन्होंने राज्य सरकार को संबंधित अवधि के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और तत्कालीन जिला वन अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि बयानों और दस्तावेजी साक्ष्यों को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि छापेमारी करते समय सभी अपीलकर्ता तलाशी के उद्देश्य से भटक गए थे तथा सामूहिक अपराध को अंजाम दिया।
ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता में कोई बुराई नहीं : लालू प्रसाद
बिहार में ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ का पाठ राज्यसभा में राजद के सदस्य प्रो. मनोज झा द्वारा किए जाने पर सियासी बवाल मचा है। इस बीच राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद ने अपने बयान में कहा है कि ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता में कोई बुराई नहीं है। अपने ही दल के एक नेता आनंद मोहन के द्वारा मनोज झा के ऊपर टिप्पणी किए जाने पर उन्होंने कहा कि जिसके पास जितनी बुद्धि होगी, वह उतना ही बोलेगा। वहीं राजद नेता व पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने कहा है कि ओमप्रकाश वाल्मीकि ने 44 साल पहले यह कविता लिखी थी, जो सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि दलित वर्ग का मर्मस्पर्शी बयान है। जिस समय वाल्मीकि जी ने यह कविता लिखी तब किसी ने उन्हें जीभ काटने और गर्दन उतारने की बात नहीं कही। लेकिन आज जब इसका पाठ किया जा रहा है तो इस तरह की धमकियां दी जा रही हैं। ऐसा होना दिखाता है कि सामाजिक न्याय की लड़ाई अभी बहुत लंबी है।
“चूल्हा मिट्टी का
मिट्टी तालाब की
तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की
रोटी बाजरे की
बाजरा खेत का
खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का
हल ठाकुर का
हल की मूठ पर हथेली अपनी
फ़सल ठाकुर की।
कुआं ठाकुर का
पानी ठाकुर का
खेत-खलिहान ठाकुर के
गली-मुहल्ले ठाकुर के
फिर अपना क्या ?
गांव?
शहर?
देश?”
ओमप्रकाश वाल्मीकि की यह कविता मनोज झा ने महिला आरक्षण विधेयक पर हुई बहस में अपने संबोधन के दौरान राज्यसभा में पढ़ दी। मनोज मैथिल ब्राह्मण हैं। इस तरह एक ब्राह्मण ने राजपूत के आधिपत्य या प्रभुत्व से जुड़ी कविता पढ़ दी। उस समय राज्यसभा का सामान्य माहौल था। जैसे राजनाथ सिंह भाषणों में कविता या शायरी के इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह मनोज झा ने भी अपनी बात के प्रवाह में एक कविता पढ़ दी। संसद में सांसदों का भाषण विवाह में गीत के समान होता है, जिसको लोग सुनते हैं और जिसके काम का होता है, वह गुनता भी हैं।
लेकिन विवाह के इस गीत पर बिहार के राजपूतों ने तलवार भांजना शुरू कर दिया। बयान ऐसे दिये जा रहे हैं कि जैसे इनका शौर्य लूट लिया गया हो। इसमें सभी पार्टी के राजपूत नेता छाती पीट रहे हैं। मनोज झा के भाषण के बाद भाजपा के एक प्रादेशिक राजपूत प्रवक्ता अरविंद कुमार सिंह ने पहली प्रतिक्रिया दी। ठीक उसी अंदाज में जैसे एक ब्राह्मण ने इनका शौर्य लूट लिया हो। इसके बाद सभी पार्टी के नेता और विधायक बयानबाजी में शामिल हो गये। छाती पीटने का चीत्कार जीभ खींचने तक पहुंच गया।
महाराष्ट्र : मराठों के ओबीसीकरण का कड़ा विरोध
मराठा आरक्षण की मांग रूपी चिंगारी पूरे महाराष्ट्र में भड़क उठी है। इस बीच मराठा समुदाय को कुनबी में शामिल किए जाने के लेकर राज्य के पिछड़े वर्ग के लोग आक्रोशित हैं। इस संबंध में राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ की बैठक बीते दिनों 17 सितंबर को चंद्रपुर जिले में संपन्न हुई। इस मौके पर सचिन राजुरकर के नेतृत्व में राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के सदस्यों ने चंद्रपुर के गांधी चौक से एक विशाल मार्च निकालकर अपना आक्रोश व्यक्त किया। मार्च में भावसार, शिम्पी, पारित, लोहार और कोडई समाज संगठन सहित दलित, आदिवासी, मुस्लिम संगठन के समर्थक उपस्थित थे।
इस मौके पर सचिन राजुरकर ने अपने संबोधन में कहा कि राज्य सरकार को ओबीसी की मांगों को तुरंत पूरा करना चाहिए। मराठा समाज के व्यक्तियों को किसी भी परिस्थिति में कुनबी जाति का प्रमाण पत्र नहीं दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार की तर्ज पर महाराष्ट्र में जातिवार सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए। बैठक को पूर्व विपक्षी नेता विजय वड्डेतिवार, पूर्व मंत्री परिणय फुके, विधायक अभिजीत वंजारी, ए. किशोर जोर्गेवार, प्रतिभा धानोरकर, अशोक भाऊ जीवतोड़े, पूर्व विधायक देवराव भांडेकर, पूर्व विधायक आशीष देशमुख, ए. सुदर्शन निमकर, नंदू नागरकर, पप्पू देशमुख, महेंद्र ब्राह्मणवाडे, देवराव भोंगड़े, सतीश वारजुरकर, संध्याताई गुरनुले, रवींद्र शिंदे, राजेंद्र वैद्य, सलिल देशमुख आदि ने संबोधित किय।
झारखंड के लातेहार जिले में प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी को लेकर निकाला आक्रोश मार्च
बीते 29 सितंबर, 2023 को झारखंड के लातेहार जिले के मनिका प्रखंड में ग्राम स्वराज मजदूर संघ के बैनर तले स्थानीय निवासियों ने प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी को लेकर आक्रोश मार्च निकाला। इस संबंध में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने बताया कि ग्राम स्वराज मजदूर संघ के सदस्यों ने प्रखंड के सरकारी स्कूलों का जायजा लिया। इस क्रम में पाया गया कि प्रथमिक विद्यालय जमुना में 120 बच्चे हैं और वहां केवल एक शिक्षक की प्रतिनियुक्ति की गई है। वे भी 11 बजे आते हैं और 1 बजे वापस चले जाते हैं। मनिका प्रखंड में 100 प्राथमिक स्कूलों से 44 स्कूल ऐसे हैं जहां केवल एक शिक्षक हैं। ऐसे ही प्रखंड के तीन उच्च प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जो केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।
आक्रोश मार्च के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए ज्यां द्रेज ने कहा कि शिक्षा का अधिकार बच्चों का मौलिक अधिकार है और इसको हर हालत में पूरा करना जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि यह बच्चों के साथ बहुत बड़ी नाइंसाफी है कि उन्हें ऐसे स्कूलों में पढ़ाया जा रहा है, जहां पर्याप्त शिक्षक न हों। उन्होंने कहा कि हर तीस बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए और हर स्कूल में कम-से-कम दो शिक्षक नियमित तौर पर होने ही चहिए। सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज ने कहा कि बच्चों को शिक्षा से वंचित करना एक हिसाब से देश को कमजोर करना है। झारखंड में 2016-17 के बाद प्राथमिक शिक्षकों की बहाली नहीं हुई है।