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*महज मजहबी तालीम नहीं देते मदरसे*

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        पुष्पा गुप्ता 

बहुत से ग़ैर मुस्लिम और ग़ैर जानकार मुसलमान ये समझते हैं कि मदरसे में सिर्फ़ इस्लामी शिक्षा दी जाती है।आधुनिक शिक्षा से मदरसों का कोई संबंध नहीं होता। ऐसे में आज हम मदरसों के बारे में बताते हैं। दरअसल मुल्क की आज़ादी के पहले से लेकर आज तक मदरसों में हर तरह के विषयों की शिक्षा दी जाती रही है। मदरसे की शिक्षा प्रणाली का विभाजन वैसे ही है जैसा आधुनिक स्कूलों में होता है।

      प्राथमिक शिक्षा का नाम तहतानिया है।इसमें पाँचवीं कक्षा तक पढ़ाई होती है। जूनियर हाईस्कूल का नाम फ़ौकानिया है। इसमें कक्षा आठ तक पढ़ाया जाता है। हाईस्कूल पास करने वाले को मुंशी और मौलवी की सनद मिलती है।इंटरमाडिएट पास करने वाले को आलिम कहा जाता है। ग्रेजुएट को कामिल कहा जाता है और परास्नातक मतलब पोस्ट ग्रेजुएट करने वाले को फ़ाज़िल की डिग्री मिलती है।

इसी तरह कहीं-कहीं मदरसों में आठवीं तक को इब्तिदाई, हाईस्कूल को अदीब और इंटर को अदीब माहिर का नाम मिला है। इसी तरह ग्रेजुएट को अदीब कामिल और पीजी को अदीब फ़ाज़िल के नाम से जाना जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में एक और डिग्री होती है जिसे मोअल्लिम-ए-उर्दू कहा जाता है,ये बीटीसी के समकक्ष होती है। इसी तरह से विभिन्न विषयों के अलग-अलग नाम हैं।

       अब बताते हैं कि मदरसों के कोर्स में क्या होता है। जैसे अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में अंग्रेज़ी के माध्यम से शिक्षा दी जाती है, हिंदी माध्यम में हिंदी में शिक्षा दी जाती है, वैसे ही मदरसों में उर्दू माध्यम से शिक्षा मिलती है। अलग से उर्दू विषय भी पढ़ाया जाता है, अरबी की भी पढ़ाई होती है और बहुत जगहों पर फ़ारसी भी पढ़ाई जाती है। बस यही अंतर है। बाकी मदरसों में हिंदी माध्यम और अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों की तरह हर आधुनिक विषय की शिक्षा दी जाती है।

     मदरसों में आज़ादी से पहले से लेकर इस दौर तक दीनियात मतलब दीनी शिक्षा के साथ-साथ जदीद मतलब मॉडर्न शिक्षा भी दी जाती रही है। जिसमें आर्ट्स विषय को कारीगरी कहा जाता है, म्यूज़िक को मौसीक़ी के नाम से जाना जाता है। केमिस्ट्री पढ़ाई जाती है जिसको कीमिया कहते है।

      फ़िजिक्स की तालीम दी जाती है जिसे तिब्बियात कहा जाता है। भूगोल को जुगराफ़िया सब्जेक्ट के नाम से पढ़ाया जाता है।बायोलॉजी की तालीम हयातियात के नाम से दी जाती है। इतिहास का नाम तारीख़ है, पॉलिटिकल साइंस का नाम सियासत है, कंप्यूटर का नाम कंप्यूटर साइंस ही है, ये विषय कंप्यूटर आने के बाद जुड़ा है।

इसी तरह वाणिज्य का नाम माआशियात है। मैथमैटिक्स को रियाज़ी नाम के विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है। इसके अलावा अंग्रेज़ी विषय की तालीम दी जाती है। हिंदी विषय भी पढ़ाया जाता है। साथ ही साथ दीनी तालीम भी मदरसों में दी जाती है, जिसे आप धार्मिक शिक्षा समझें। इसमें पवित्र क़ुरआन की तफ़्सीर पढ़ाई जाती है। हदीस और सूफ़िज्म की तालीम दी जाती है।

     एक विषय हिफ़्ज़ होता है जिसको कुछ ही छात्र लेते हैं, उन्हें क़ुरआन कंठस्थ कराया जाता है। फ़ारसी उर्दू और अरबी का इतिहास पढ़ाया जाता है। इस्लामी शरिया की तालीम दी जाती है।फ़िक़्ह् मतलब इस्लामी न्याय व्यवस्था की शिक्षा दी जाती है और सर्फ़ पढ़ाया जाता है जो अरबी ग्रामर होता है।फिर अलग-अलग विभागों में कोई तालीम लेना चाहे तो फ़िलॉस्फ़ी यूनानी मेडिसिन खगोलशास्त्र लॉजिक अदब मतलब भाषाओं के लिट्रेचर समेत वो तमाम विषय जो दुनिया में हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रचलित हैं उन सबकी तालीम भी बहुत से बड़े मदरसों में उच्चतर स्तर पर दी जाती है। मदरसों में कुल मुस्लिम बच्चों की संख्या के पाँच फ़ीसद से कम बच्चे ही पढ़ते हैं।

     मदरसों को यूपी सरकार केन्द्र सरकार समेत हर राज्यों की सरकार का उनके राज्य में अनुदान मिलता है और सरकारें मान्यता देती हैं। मदरसों की शिक्षा से मिली डिग्रियों को आधुनिक शिक्षा के तहत मिलने वाली डिग्रियों के समकक्ष माना जाता है और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में मदरसे के बच्चे हिस्सा लेते हैं, सरकारी नौकरियों में जाते हैं।

       सरकारें उर्दू माध्यम के प्राथमिक विद्यालय मुस्लिम बहुल इलाक़ों में चलाती हैं जैसे हिंदी माध्यम के चलते हैं।मेरे गाँव का सरकारी प्राइमरी और जूनियर हाईस्कूल ख़ुद आज़ादी से पहले से उर्दू माध्यम रहा है और आज भी उर्दू माध्यम से शिक्षा दी जाती है। मेरे गाँव में तो अब मदरसे के अलावा हाईस्कूल से लेकर गर्ल्स पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज भी है जिसमें हिंदी और अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा दी जाती है।

 जब आज़ादी से पहले देश में हिंदी और अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल नहीं थे तो हिंदू-मुस्लिम-सिख समेत हर धर्म के बच्चे मदरसों से ही बड़ी संख्या में शिक्षा अर्जित करते। ब्रिटिश दौर में मदरसों को और बढ़ावा मिला और मदरसों ने शिक्षा में विषयों को लेकर ब्रिटिश स्टाइल की शिक्षा नीति को अपनाया।

     मदरसों में आज से नहीं बल्कि हम अपने बचपन से देखते आ रहे हैं कि राष्ट्रीय पर्वों मसलन स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराया जाता है और ज़ोर शोर से धूमधाम से के साथ कार्यक्रम होते हैं। इसलिए किसी को ऐसा विचार नहीं रखना चाहिए कि मदरसों में राष्ट्रीय पर्व नहीं मनाए जाते।

     लाखों मुसलमानों ने सन् अट्ठारह सौ सत्तावन से लेकर आज़ादी मिलने तक देश की आज़ादी के लिए अपनी जान दी है, वो भला क्यों आज़ादी का जश्न नहीं मनाएंगे और गणतंत्र दिवस नहीं मनाएंगे,वो मनाते हैं और उनकी धूम किसी हिंदी मीडियम या कान्वेंट स्कूल से कम नहीं होती। हम तो विख्यात कान्वेंट स्कूल में पढ़े लेकिन हमें उर्दू-अरबी-फ़ारसी की तालीम देने वाले उस्ताद एक मदरसे में भी पढ़ाते थे, वो पंद्रह अगस्त को अपने मदरसे के कार्यक्रम में हमें बुलाते, हम अपने स्कूल के कार्यक्रम के बाद वहाँ जाते थे।

      वहाँ एक कार्यक्रम ‘चना जोर गरम’ होता जो हमें याद है,वो कार्यक्रम नाटक के मंचन के तौर पर होता और उसमें आज़ादी की जंग में चने को प्रतीक बना अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ कैसे जंग छेड़ी गई इसका मंचन होता।

ख़ैर, मोटी बात सबको समझनी चाहिए कि मदरसों में सिर्फ़ धार्मिक शिक्षा ही नहीं दी जाती बल्कि हर प्रकार के आधुनिक विषय आज़ादी के पहले से पढ़ाए जाते थे और आज भी पढ़ाए जाते हैं।दीनी के साथ दुनियावी तालीम भी दी जाती है।

     अब तो तमाम ऐसे सीबीएसई और आईसीएसई के स्कूल हो गए हैं जो दीनी के साथ दुनियावी तालीम दे रहे हैं।मेरे कैमरे की इस तस्वीर में लखनऊ का मशहूर तालीमी इदारा फ़िरंगी महल।

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