अग्नि आलोक

*समता और सम्मन्नता के नायक महाराजा अग्रसेन*

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*रामबाबू अग्रवाल* 

महापुरूष शब्दवीर नही कर्मवीर होते है। वे अपने विचारों को साकार रूप में प्रस्तुत ताकि लोग यह समझ सके कि आदर्श केवल पुस्तकों की शोभा नही होते है, वरन दृढ इच् के बल पर उनको व्यवहार मे भी उतारा जा सकता है। महाराजा अग्रसेन का संपूर्ण कार्यशैली आदर्शों को यथार्थ मे बदलने की गाथा है।

हर युग का एक महानायक होता है, जो अपने समय को नेतृत्व प्रदान करता है ऐसी व्यवस्था विकसित करता है, जो समय की माँग की पूर्ति करती हो। महाराजाधिराजा महाराज अग्रसेन एक ऐसे ही युगदृष्टा थे, जिन्होने न केवल समता व न्यायमूलक राज्य के आदर्श को न बदला, वरन राज व्यवस्था के क्षेत्र मे ऐसे विचारों की स्थापना भी की, जो आगे चलकर स व प्रजातन्त्र की आधारशीला भी बने।

महाराजा अग्रसेन महाभारत कालीन युगपुरूष थे। यह वह समय था, जब राज्य वस्तु व व्यक्तिगत संपत्ति मानी जाती थी। राजा अपना व्यक्तिगत वैभव बढाने के लिये राज्य संपदा का दोहन करते थे। स्वयं राजा होते हुये भी महाराजा अग्रसेन ने इस पद्धति का विरोध किया व संभवतः देश मे पहली बार यह स्थापित किया कि राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी होना चाहिये। 

महाराजा अग्रसेन का सम्पूर्ण जीवन व कार्यशैली आदर्शों में बदलने की गाथा है। समाजवाद की स्थापना के साथ-साथ महाराज अग्रसेन ने अपने राज्य में गरीबी उन्मूलन के लिए भी अनेक कल्याणकारी कार्य किए। इसके लिए व्यापार-व्यवसाय, कृषि, उद्योग को बढ़ावा दिया। कोई भी नागरिक खुद को दीन-हीन और एकाकी ना समझे इस हेतु एक ईंट-एक रुपए के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसके अंतर्गत यह व्यवस्था की गई कि उनके राज्य में बसने के लिए आने वाले प्रत्येक नागरिक को पहले से निवास कर रहे सभी परिवार एक इंट और एक मुद्रा देंगे, ताकि उन्हें अपने आवास और व्यापार के लिए पूंजी प्राप्त हो सके। वे यह महसूस करें कि जिस राज्य का ये अंग बन रहे हैं, उसकी सकल संपदा में उनका भी हिस्सा है। अग्रोहा राज्य की यह व्यवस्था आगे चलकर समाजवाद के सिद्धांत की जननी बनी। यह सहकारिता का ऐसा पहलू था, जिसने महाराजा अग्रसेन को विशिष्ट भी बनाया और पूजनीय भी।

महाराजा अग्रसेन के जीवन का प्रति पल जनहितकारी प्रकल्पों और सेवा कार्यों को समर्पित था। वे जातिगत विद्वेश के विरूद्ध थे, जियो और जीने दो का मूल भाव ही उनके कर्म क्षेत्र का आधार वाक्य था। आज की ज्वलंत समस्याओं पर

दृष्टिपात किया जाए तो यह सिद्ध हो जाएगा कि महाराज अग्रसेन ने  समाज को निष्कंटक बनाने के लिए

अपने शासन काल में ही प्रयास तेज कर दिए थे। वर्तमान में उनके कर्म और सेवा भावना को अपनाकर हम दोबारा

भारत का स्वर्णिम युग लौटा सकते है, पर वर्तमान में यह तभी संभव है कि अग्रसेनजी के सभी वैश्य समुदाय

राजनैतिक हेसियत पाप्त करने के लिये संगठित प्रयास करें। 

 महाराज अग्रसेन की कार्यशैली और युग निर्माण के हर सांचे पर न्याय, समानता, सहिष्णुता और उदारता का मूल भाव ही केंद्रीय विचार के रूप में अंकित था।ऊनके कार्य आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणा पुंज हैं। 

जाति व वर्ण व्यवस्था की मान्य परम्परा के विरूद्ध 

 महाराजा अग्रसेन ने सूर्यवंशी होते हूं भी नागराजा की पुत्री नागवंशी माधवी से विवाह कर दो संस्कृतियों व विचारधाराओं का क्रांतिकारी समन्वय किया।

महाराजा अग्रसेन का अनुयाई अग्रवाल समुदाय देश के शक्तिशाली वणिक  समाज का महत्वपूर्ण अंग है ।  अग्रवाल समाज का देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में अभूतपूर्व योगदान है। देश की औद्योगिक एवं व्यवसायिक तरक्की में अग्रवाल बंधुओं के अग्रवाल समाज की गणना देश के उन गिन चुने समाजों में होती है जिनका देश के राजनीतिक, सामाजिक लगनशीलता और उद्यमशीलता के जरिए विकास में अपना योगदान दे रहे है। देश में कहीं भी चले जाएं ऐसा कोई बदला शहर ही मिलेगा जहां आगरा बंधु रहते हो लेकिन वहां धर्मशाला अस्पताल या कोई लोक कल्याणकारी संस्थान कार्यरत ना हो के निर्माण और संचालन में अग्र बंधुओं का योगदान हो ।

इतिहास गवाह है कि जब वैश्यों, विशेषतः अग्रवाल समुदाय के हाथों में कृषि, पशुपालन व व्यवसाय रहा है. तब तब देश आर्थिक रूपसे सुसक्षम व समृद्ध रहा है तथा यहां का वैभव दुनियां को आकृष्ट करता रहा है । आज भी देश के अनेक उधोगों को जन्म देने का श्रेय इसी समुदाय के लोगो को प्राप्त है ।

इन्दौर में ही पुरातन समय से अग्रवाल समाज के दो दर्जन से ज्यादा सार्वजनिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट कार्यरत है, जिनके द्वारा कई धर्मशालाएं, अन्नक्षेत्र, शिक्षण संस्थाए और अन्य पारमार्थिक संस्थाओं का संचालन किया जा रहा है। कालान्तर से समाज के प्रति निभाई जा रही इस जवाबदारी में अब कुछ कमी आई है। जहां पूर्वज एवं बड़े बुजुर्ग अपनी कमाई में से एक बड़ी राशि पुण्य कार्य में खर्च करते थे वहीं नई पीढी का ध्यान इस ओर कम ही है। इन्दौर में अग्रवाल समाज की आबादी भले ही अन्य समाजों से कुछ कम हो मगर सम्पन्नता के मामले में समाज किसी से कम नहीं है। यदि वह चाहे तो शहर में कई अस्पताल, अच्छे स्कूल एवं अन्य परमार्थ कार्य कर समाज देश और प्रदेश के विकास में भागीदारी निभा सकता है। मगर समाज के वर्तमान कर्णधारों का इस ओर ध्यान कम ही है। जबकि इस ओर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए ।

व्यवसायिक व्यवस्थाओं के चलते अग्रबंधु आज देश भर में फैल तो जरूर गए मगर संगठन स्तर पर वे संगठित कम है। परिणाम स्वरूप आज देश के कई हिस्सों में वे पीडित है। आसाम, बिहार, झारखंड, पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां वे अग्रवादियों और नक्सली हमलों के शिकार हो रहे है। वहीं पंजाब कश्मीर आदि राज्यों में आतंकियों के / समाज स्तर पर ऐसी घटनाओं के प्रतिकार के बारे में भी सोचा जाना चाहिए।

1952 के बाद से देश में 13 चुनाव हो चुके है। देश की संसद और विधानसभाओं में अग्रबंधुओं और वैश्य समुदाय की संख्या में लगातार कमी आई है। इसका प्रमुख कारण यह हे कि देश के हरेक राजनीतिक दल चाहे कांग्रेस हो या भाजपा या अन्य कोई उसने वैश्य समुदाय से धन तो लिया लेकिन चुनाव के वक्त उन्हें टिकिट देने में कंजुसी की। परिणाम यह हुआ कि देश की जन पंचायतों में इस वर्ग का प्रतिनिधित्व लगातार कम हुआ है। अतः आज जरूरत है कि सभी वैश्य समुदाय राजनीतिक सामाजिक हेसियत प्राप्त करने के लिए संगठित हो और जो उनकी उपेक्षा करे उनका भी संगठित हा प्रतिकार करें। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वैश्य सम्मेलन प्रयासरत जरूर है मगर इसमें भी अभी पूरे वैश्य समाजों की भागीदारी नहीं हो पाई है। जिसकी आज महती आवश्यकता है। 

वैश्य संघों का दावा है कि भारतवर्ष में करीब 16% अर्थात 16 करोड़ वेश्य समुदाम है। जो पूरे देश के हर गोव में निवास करता है। जो कि देश की 350 उपजातियों के रूप में जाना-जाता है। इनमा संगठित होना ही वैश्य समाज के समक्ष आने वाली चुनोतिया का निदान है एवं तभी से देश सेवा में अग्रणी स्थान भी पा सके 

*रामबाबू अग्रवाल*

 (*लेखक इंदौर के वरिष्ठ समाजसेवी , अ.भा.वैश्य सम्मेलन के पदाधिकारी तथा बालाजी सेवा संस्थान , इंदौर के अध्यक्ष है। संपर्क 9827031550*)

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