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अधिकार से बाहर जाकर दिया महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने फैसला

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सनत जैन

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सहित 16 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने जिस गाइडलाइन के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष को फैसला करने के लिए कहा था। विधानसभा अध्यक्ष ने उस गाइडलाइन की अवहेलना करते हुए जो फैसला दिया है। उसको लेकर तरह-तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा था, कि दल बदल विरोधी कानून के प्रावधानों के आधार पर विधायकों की अयोग्यता के संबंध में निर्णय दिया जाए।

अयोग्यता के मामले में फैसला करने का अधिकार संविधान ने विधानसभा अध्यक्ष को दिया है। विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर को विधायकों की अयोग्यता पर जो फैसला करना था।वह फैसला तो उन्होंने किया नहीं,उल्टे उन्होंने शिवसेना के शिंदे गुट को ही असली शिवसेना बता दिया है। जबकि चुनाव आयोग अपने फैसले में शिंदे गुट को मान्यता दे चुका था। विवाद का विषय वह नहीं था, जो फैसला आया है। यह कहा जा सकता है, कि विधानसभा अध्यक्ष ने अपनी परिधि से बाहर जाकर अयोग्यता वाले मामले में फैसला दिया है। महाराष्ट्र के विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिवसेना के 1999 के संविधान और 2018 के संविधान को लेकर अपने फैसले को जटिल बनाने के साथ और अपने फैसले को सही साबित करने की चेष्टा की है। जबकि उन्हें दल बदल विरोधी कानून और शिवसेना द्वारा संगठन स्तर पर जो फैसले किए गए थे।

उसके अनुसार उन्हें अपना निर्णय देना था। शिवसेना के 55 विधायक थे। इसमें से घटनाक्रम के रूप में 16 विधायकों ने सचेतक के विहिप का पालन नहीं किया था। जिसके कारण दल बदल कानून के अनुसार वह विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित हो सकते थे। ईस अयोग्यता के संबंध में विधानसभा अध्यक्ष को फैसला करना था। जब 37 विधायक शिंदे गुट में चले गए, और नए मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें शपथ दिला दी गई। तब उनके पास 37 विधायकों का बहुमत था। उस बहुमत को आधार बनाते हुए विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने शिवसेना के शिंदे गुट को ही असली शिवसेना बता दिया।

यह निर्णय एक तरह से सुप्रीम कोर्ट के जो निर्देश थे। उन निर्देशों का पालन नहीं किया गया। फैसला करते समय जो अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को नहीं था। वह फैसला विधानसभा अध्यक्ष ने करके,एक तरह से नए-नए विवादों को जन्म देने का काम किया है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे इसे सुप्रीम कोर्ट अपमान करने वाला फैसला बता रहे हैं।वहीं विधानसभा अध्यक्ष ने जो फैसला दिया है। अब उसका क्या प्रभाव होगा। विधानसभा अध्यक्ष के इस निर्णय से दल- बदल विधैयक पूरी तरह से निष्प्रभावी हो गया है। विधानसभा अध्यक्ष के इस निर्णय सेअब एनसीपी वाले मामले में भी अजीत पवार गुट को ही असली एनसीपी की मान्यता देने का काम, विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने अप्रत्यक्ष रूप से कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, महाराष्ट्र के राज्यपाल की भूमिका सही नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था, महाराष्ट्र की सरकार असंवैधानिक है। यदि उद्धव ठाकरे ने इस्तीफा नहीं दिया होता, तो सुप्रीम कोर्ट ठाकरे की सरकार को बहाल कर देते। दल बदल कानून के अनुसार अयोग्यता के मामले में फैसला विधानसभा के अध्यक्ष को करना होता है। सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट मत था,कि इसमें फैसला करने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष का है। अतः वह नियमानुसार फैसला करें। सुप्रीम कोर्ट ने जो समय दिया था।विधानसभा अध्यक्ष ने बार-बार सुप्रीम कोर्ट से समय बढ़ाने की गुहार लगाई। उसके बाद 1200 पन्नों का जो फैसला दिया है। उस फैसले में अपने संवैधानिक अधिकारों का पालन नहीं करते हुए,जो अधिकार हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की अधिकारिता के थे। उसके बारे में एक तरह से फैसला करने का काम विधानसभा के अध्यक्ष ने किया है। उन्होंने अपने फैसले में शिंदे गुट को ही असली शिवसेना बता दिया है।

विधानसभा अध्यक्ष के इस फैसले से महाराष्ट्र की सरकार पर जो संकट था, वह टल गया है।वही अजीत पवार गुट के बारे में भी यह फैसला हो गया है,कि वह असली एनसीपी है। इससे महाराष्ट्र सरकार के ऊपर कोई संकट नहीं रहा। समय बीत गया है, बकोल सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र मे असंवैधानिक सरकार चल रही है।कुछ माह पश्चात लोकसभा के चुनाव होने हैं। 2024 के अंत में महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव भी होना है। जिस सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक सरकार बता दिया था। राज्यपाल की भूमिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा था। उसको नजर अंदाज करते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने जो फैसला दिया है। उसकी शिवसेना उद्धव गुट में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। शिवसेना ने जनता के बीच जाकर लड़ाई लड़ने की बात कही है।

उद्धव गुट इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा। 11मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने भरत गोगावले की नियुक्ति को अवैध ठहराया था।विधानसभा अध्यक्ष नार्वेकर ने उस नियुक्ति को भी अपने फैसले में वैध ठहरा दिया है।स्पष्ट नियम और कानून को किस तरह से जटिल बना दिया जाता है।यह इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। निश्चित रूप से विधानसभा अध्यक्ष के इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट की साख पर भी दूरगामी असर होगा। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।

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