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115 लोगों की मौत का जिम्मेदार अधिकारी महीप तेजस्वी हैं शिवराज के खास

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मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने भ्रष्ट अफसरों की कारगुजारी को दिया संरक्षण*
*भ्रष्ट, निक्कमे और अकर्मण्य अधिकारियों को मिलता है शिवराज का आशीर्वाद

विजया पाठक,

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अंदाज अब बदल गये हैं, जहां वो आजकल मंच में घूम-घूमकर माइक पर अधिकारियों को निलंबित या उनका तबादला कर देते हैं पर प्रदेश के आंकड़े कुछ और बताते हैं। दरअसल प्रदेश में जो जितना भ्रष्ट, कामचोर, अकर्मण्य अधिकारी रहा है शिव के राज में उनका कद बढ़ता ही गया है। मीडिया के लिए स्टेज सेट होता होगा पर असलियत में मध्यप्रदेश में अफसरों का बोलबाला कितना तेज है यह इस बात से मालूम चलता है कि अफसर चाहे जितने भ्रष्ट हो या फिर भ्रष्टाचार को अंजाम दे चुके हों, लेकिन प्रदेश की शिवराज सरकार का उन्हें पूरा-पूरा संरक्षण है। यह हम नहीं बल्कि इन भ्रष्टाचारी अफसरों के कारनामें कह रहे हैं कि लाखों करोड़ों रुपये का भ्रष्टाचार करने के बाद सरकार को जहां इन्हें निलंबित कर देना चाहिए था वहीं, सरकार इन्हें प्रमोशन देकर अपने माथे पर बिठा रही है। बीते दिनों एक अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में ऐसे कई अफसर अभी भी प्रमुख जगहों पर बैठे हैं जिन पर करोडों रुपये गबन, पद का दुरूपयोग कर भ्रष्टाचार करने जैसे संगीन आरोप लगे हैं लेकिन शिवराज सरकार ने इन्हें सजा देने के बावजूद इनके हाथ में प्रमोशन थमा दिया है। प्रमोशन के बल पर कोई अफसर सीएम सचिवालय में बैठा है, तो कोई राज्य शासन के प्रमुख विभागों में पद का सुख भोग रहा है।

*आखिर भ्रष्ट अफसरों पर क्यों है मेहरबानी?*

मध्यप्रदेश में सरकार क्या भ्रष्ट अफसरों पर मेहरबान है। ये सवाल इसलिए क्योंकि शासन लोकायुक्त को भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच की मंजूरी नहीं दे रहा। ऐसे करीब 280 अफसर हैं जिनके खिलाफ ईओडब्ल्यू को शिकायत मिली है। लेकिन शासन की मंजूरी न मिलने के काऱण इनके खिलाफ चार्जशीट ही पेश नहीं हो पा रही। कई बार पत्राचार के बावजूद संबंधित विभाग अभियोजन की स्वीकृति में आनाकानी कर रहे हैं। कुछ विभाग तो लोकायुक्त की चिट्ठी का जवाब तक नहीं दे रहे।

*भ्रष्टाचार के 15 केस 9 साल से लंबित हैं*

मध्यप्रदेश में लोकायुक्त संगठन को ऐसे 280 अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ जांच शुरू करने का इंतजार है। इजाजत नहीं मिलने की वजह से भ्रष्टाचार के 15 केस 9 साल से लंबित हैं। सबसे ज्यादा नगरीय आवास और विकास विभाग के लगभग 31 मामले लंबित हैं। सामान्य प्रशासन विभाग और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के 29-29 मामले लंबित हैं। वहीं राजस्व विभाग के 25 और स्वास्थ विभाग के 17 मामले लंबित हैं। अभियोजन स्वीकृति समय पर नहीं मिलने के कारण चार्जशीट पेश करने में देर हो रही है। वैसे नियम के अनुसार अधिकतम 4 महीने में अभियोजन की स्वीकृति मिलनी चाहिए।

*इस मामले में भी नहीं मिली अभियोजन की मंजूरी*

आईएएस पवन जैन के खिलाफ केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की सलाह के बाद शासन ईओडब्ल्यू को केस चलाने की मंजूरी देगा। सामान्य प्रशासन विभाग पत्र लिखकर डीओपीटी से इस मामले में सलाह लेगी। ईओडब्ल्यू ने इंदौर से जुड़े 7 साल पुराने मामले में चालान पेश करने के लिए शासन से अभियोजन की स्वीकृति मांगी। डीओपीटी से अभियोजन की स्वीकृति के बाद ही आगे की कार्रवाई हो सकेगी। तत्कालीन एसडीओ राजस्व पवन जैन पर रियल स्टेट के लोगों से सांठगांठ कर पर्यवेक्षण शुल्क जमा करने का आरोप हैं।

*जीरो टॉलरेंस की बात को कमजोर कर रहे*

3 साल पहले भ्रष्टाचार करते रंगे हाथों पकड़े गए अफसर, आज एडीएम हैं। ऐसे कई केस हैं, जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की बात को कमजोर कर रहे हैं। मप्र में लोकायुक्त पुलिस के 318 और ईओडब्ल्यू के 44 केस में आरोपियों के खिलाफ चालान सिर्फ इसलिए पेश नहीं हो रहे, क्योंकि अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिल रही है। अकेले लोकायुक्त पुलिस साल 2022 में कुल 358 केस की जांच पूरी कर चुकी है। इनमें 269 ट्रैप, 25 अनुपातहीन संपत्ति और 64 पद के दुरुपयोग के प्रकरण हैं।

*घूस मांगने पर घिरे थे राज्य पुलिस अफसर*

तत्कालीन एएसपी अनिता मालवीय और धर्मेंद्र छबई पर 4 साल पहले रेलवे थाना प्रभारी ने घूस मांगने का आरोप लगाया था। लोकायुक्त ने केस किया। कोर्ट के आदेश के बाद रीइन्वेस्टिगेशन जारी है, लेकिन इस बीच अनिता आईपीएस प्रमोट हो गईं और शिवपुरी बटालियन में कमांडेंट हैं, जबकि धर्मेंद्र भी आईपीएस बन गए।

*रिश्वत में ट्रैप हुए थे एसडीएम*

उमरिया जिले के बिरसिंहपुर पाली में पदस्थ एसडीएम नीलांबर मिश्रा व सुरक्षा गार्ड चंद्रभान सिंह को 24 जुलाई 2019 को क्रशर संचालन के बदले रिश्वत लेते लोकायुक्त रीवा की टीम ने पकड़ा था। अभी इन्वेस्टिगेशन चल रहा है, लेकिन इन्वेस्टिगेशन के बीच ही नीलांबर को पन्ना एडीएम बना दिया गया।

*संभाग की जिम्मेदारी सौंपी*

लोकायुक्त ने 16 अक्टूबर 2019 को सहायक आबकारी आयुक्त आलोक खरे के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति की शिकायत पर चार शहरों में छापा मारकर 100 करोड़ की संपत्ति का खुलासा किया था। कार्रवाई के वक्त खरे इंदौर में सहायक आयुक्त थे। अब वे रीवा के डिप्टी कमिश्नर हैं और 7 जिलों का प्रभार है। राजकीय प्रेस के उप नियंत्रक (मु.) विलास मंथनवार पर 3 हजार रु. रिश्वत का आरोप लगा था। 9 मई 2022 को लोकायुक्त पुलिस ने केस दर्ज कर एक जुलाई 2022 को उन्हें हटाने को लिखा। 8 अगस्त को उन्हें केंद्रीय मुद्रणालय भोपाल में लगा दिया। जांच के बीच 21 फरवरी 2023 को उन्हें खरीद एवं वितरण प्रभार दे दिया।

*रतनगढ़ में 115 मौतों का जिम्मेदार महीप तेजस्वी को शिवराज ने रखा मुख्यमंत्री सचिवालय में*

दतिया के रतनगढ़ में हादसे में जखौरिया गांव के लोग ट्रैक्टर से रतनगढ़ माता पर जबारे चढ़ाने गए थे। वहां पुल पर मची भगदड़ में दबकर जखौरिया के 115 लोगों की मौत हो गई थी। हादसे के पीड़ितों का आरोप था कि प्रशासन ने न तो उनकी मदद की और न सरकार ने उनके साथ न्याय किया। घटना के बाद शासन ने जिला कलेक्टर संकेत भोंडवे, एसपी चंद्रशेखर सोलंकी, एसडीएम महीप तेजस्वी, एसडीओपी बीएन बसावे, अतरेंटा व थरेट थाना प्रभारी को निलंबित किया था। घटना की जांच के लिए सीएम ने न्यायिक आयोग गठित किया था। सरकार ने इन पर कोई कार्यवाही करने के बजाय सरकार ने क्लीनचिट देते हुए उन्हें दोषमुक्त कर प्रशासनिक सेवा में न केवल बहाल कर दिया, बल्कि पहले ग्वालियर में प्राइम पोस्टिंग और बाद में सरकार ने तेजस्वी महीप को सीएम सचिवालय में पदस्थ कर लिया है। फिलहाल वो मुख्यमंत्री के खास अधिकारी बनकर मुख्यमंत्री सचिवालय और हाउस में पदस्थ हैं।

*पेटलाबाद धमाके के जिम्मेदारों को दी प्राइम पोस्टिंग*

झाबुआ जिले के पेटलावद में 12 सितंबर 2015 को जिलेटिन छड़ों के गोदाम में हुए भीषण विस्फोट में 78 लोगों के चिथड़े उड़ गए थे, पोटलियों में अंग समेटने पड़े थे। इस मामले में सजा के नाम पर तत्कालीन पेटलावद थानाधिकारी शिवजी सिंह की सेवानिवृत्ति से ठीक पहले एक वेतनवृद्धि (1600 रुपए) रोकने के आदेश हुए।

*भोपाल में क्राइम बढ़ाने वाले निक्कमे पुलिस कमिश्नर मकरंद देउस्कर को इंदौर जैसी प्राइम पोस्टिंग मिली*

आजकल मध्यप्रदेश में उल्टी गंगा निकल रही है निक्कमों को शिवराज का वरदस्त प्राप्त है। यह हम नहीं आंकड़े दिखाते है, दरअसल कुछ समय पहले भोपाल-इंदौर में अपराधों में लगाम लगाने के मकसद से पुलिस कमिश्नरी सिस्टम चालू किया गया और राजधानी के पहले कमिश्नर बनाए गए मकरंद देउस्कर। पर इस निक्कमे पुलिस अधिकारी की एप्रोच के कारण राजधानी में क्राइम का जबरदस्त इजाफा हुआ। इनके कार्यकाल में भोपाल में बलात्कार में 16%, हत्या में 8%, लूट में 72.5% का इजाफा हुआ। अब ऐसे निक्कमे अधिकारी को प्रदेश की सबसे बढ़िया पोस्टिंग मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संजीदगी दर्शाती है। जहां ऐसे नान-परफॉर्मर को शंट करना था उनको एलीवेट कर इंदौर पुलिस कमिश्नर बना दिया गया है। कांग्रेस प्रवक्ता अनुसार मध्यप्रदेश में बीजेपी भ्रष्टाचार तंत्र को संरक्षण दे रही है। ऊपर तक इनकी मिलीभगत है इसलिए भ्रष्ट अधिकारियों के मामले में अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी जा रही है। इससे स्पष्ट है कि सरकार भ्रष्टाचारियों का संरक्षण और उनका बचाव कर रही है।

*इसलिए बच जाते हैं अफसर*

सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) का आदेश है कि सिर्फ चार्जशीट पेश होने पर आरोपी को निलंबित कर सकते हैं। केस दर्ज होने के बाद तबादला। ट्रैप केस की जांच में डेढ़-दो साल लग जाते हैं। फिर अभियोजन स्वीकृति मांगी जाती है। यूं तो 4 महीने में स्वीकृति मिलनी चाहिए, पर ऐसा होता नहीं। अब चुनावी साल में मुख्यमंत्री टेड-टाक स्टाइल में मंच से अधिकारियों को निलंबित करते है, पर इस नाटक के इतर प्रदेश में शिवराज के राज में भ्रष्ट, निक्कमे और अकर्मण्य अधिकारियों की प्रदेश में मौज है।

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