Site icon अग्नि आलोक

भारत के बहुसंख्यकों को, अल्पसंख्यक विरोधी मुहिम के खिलाफ आगे आना होगा

Share

 मुनेश त्यागी

    अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हमारी आजादी की लड़ाई के दौरान हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई के बीच जो एकता कायम हुई थी और उसके बल पर दी गई अनगणित कुर्बानियों की बदौलत हमारा देश आजाद हुआ और संविधान बना। हमारे देश का संविधान तीन सिद्धांतों प्रजातंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद व प्रजातंत्र व गणतंत्र पर आधारित है। ये तीनों सिद्धांत एक दूसरे के साथ एक कड़ी में बंधे हुए हैं।

      संविधान के रचयिता डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर ने अपने कई भाषणों और   लेखों में इस सच्चाई का खुलासा किया था। बिना धर्मनिरपेक्षता अर्थात बिना तमाम समुदायों के समान अधिकारों की प्राप्ति के और राजनीति से धर्म को अलग किए बिना, प्रजातंत्र की कल्पना नहीं की जा सकती। यह बात सही है कि पूंजीवादी प्रणाली के चलते इन तीनों सिद्धांतों को कमजोर करने की लगातार कोशिश शासक वर्गों की तरफ से होती रही है। लेकिन यह भी सही है कि इनको मजबूत बनाए रखने का संघर्ष भी लगातार जारी है।

     दुर्भाग्यवश भाजपा की मौजूदा सरकार को संचालित करने वाली आर एस एस की संस्था का संविधान में कभी विश्वास नहीं रहा है। उसने हमेशा मनुस्मृति के सिद्धांतों को ही माना है और संविधान को हटाकर उसे भारत के न्याय शास्त्र के रूप में प्रस्तुत करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए संविधान के तीनों सिद्धांतों पर प्रहार करना उसने आवश्यक समझा है। पिछले सात वर्षों में निश्चित तौर पर जनतांत्रिक संस्थाओं, हिंदू मुस्लिम एकता और परंपराओं पर क्रूर हमले हुए हैं। अधिकांश नागरिक आर्थिक और सामाजिक व राजनीतिक गैर बराबरी के शिकार हैं। महिलाएं, दलित, आदिवासी, पिछड़े और गरीब इन बढ़ती असमानताओं और अभाव का शिकार बनाकर उन्हें संवैधानिक अधिकारों से लगातार वंचित किया जा रहा है।

     सबसे बड़ा और सबसे कठोर हमला धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर किया जा रहा है। धार्मिक संस्थाओं के मूल अधिकारों को समाप्त करने की मुहिम सरकार की ओर से चलाई जा रही है। इस मुहिम के पीछे संघ परिवार एक  तीर से दो शिकार हासिल करना चाहती है। पहला यह कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके वह बहुसंख्यक समुदाय को अपने पीछे लामबंद करना चाहती है जिससे उसे चुनावी जीत हासिल हो सके और दूसरा यह कि सांप्रदायिक घृणा से प्रभावित बहुसंख्यक समाज के बड़े हिस्से को अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों का समर्थक बनाकर वह पूरी जनता पर अपनी पूंजीवादी कारपोरेटपरस्त आर्थिक नीतियों को लाना चाहती है। 

    अब उसने एक नया पैंतरा बदला है और वह यह कि अब वह चुनाव होने के बाद मुसलमानों को विशेष निशाना बना रही है, वह उनको दोयम दर्जे का नागरिक सिद्ध करना चाहती है। उनको क्रूर, निर्दयी और भारत की सभ्यता और संस्कृति के खिलाफ दिखाना चाहती है। वह पूरी तरह से मुसलमानों को खलनायक सिद्ध करना चाहती है और वह दिखाना चाहती है कि भारत के मुसलमानों का भारत की संस्कृति और एकता में कोई विश्वास नहीं है। उसके नेता मुसलमानों के खिलाफ लगातार भाषण दे रहे हैं, उनके खिलाफ जनता को भड़का रहे हैं और उनके खिलाफ लगातार जहर घोल रहे हैं और नफ़रत उगल रहे हैं। यह काम पहले से मीडिया के माध्यम से जारी था। अब फिल्म के माध्यम से भी इस काम को शुरू कर दिया है। कश्मीर फाइल्स उसी की अगली कड़ी है जो हकीकत से दूर है और झूठे तथ्यों के आधार पर झूठी घटनाओं को आधार पर फिल्म बनाकर मुसलमानों को शैतान दिखाया जा रहा है, उनके खिलाफ नफरत पैदा की जा रही हैं।

      गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी, अत्याचार, गुंडागर्दी और हिंसा जनजीवन को बुरी तरह से घेरे हुए हैं। जनता के गुस्से से बचने के लिए और असंतोष को दूसरी दिशा में मोड़ने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इस्तेमाल से ही सरकार ने जनता के एक बड़े हिस्से को अपने पक्ष में करने की रणनीति अपनाई है। सन 2021 में केवल जनवरी से अक्टूबर तक प्रदेश में ईसाइयों के खिलाफ 66 हमले हो चुके हैं। उन्हें हैंड पंप से पानी लेने से रोका जा रहा है, प्रार्थना करने से रोका जा रहा है, धर्मांतरण करने का इल्जाम लगाकर उन पर हमला किया जा रहा है, ननों को बुरी तरह से पीटा जा रहा है।

      जब ईसाइयों के साथ इस तरह का व्यवहार हो रहा है तो मुसलमानों के प्रति संघ परिवार का क्या रुख होगा। उनकी संख्या प्रदेश की कुल आबादी की 15 फीसद है और पिछले सात वर्षों में उनके खिलाफ अनगिनत हमले हुए हैं। गाय के सवाल को लेकर उनकी हत्याएं हुई हैं, उनको घायल किया गया है, उन्हें जेलों में ठूंसा गया है। यही नहीं, इसी मुद्दे को इस्तेमाल करके उनकी जीविका को छीनने का काम भी बड़े पैमाने पर हुआ है, धर्मांतरण और अंतर धार्मिक विवाह के मुद्दे उठाकर उनके साथ अन्याय और अत्याचार किया जा रहा है। यहां तक कि उनका सामाजिक बहिष्कार भी किया जा रहा है।

      हमें ध्यान देने की जरूरत है की r.s.s. 1925 से और मुस्लिम लीग 1940 से गंगा जमुनी तहजीब और हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने के अभियान में लगी हुई हैं। इन दोनों सांप्रदायिक ताकतों का भारत की आजादी और जन अधिकार हासिल करने में कोई योगदान नहीं रहा है। आज भी ये दोनों संप्रदायिक ताकतें हिंदू मुस्लिम एकता तोड़कर पूंजीपतियों और लुटेरे साम्राज्यवादी ताकतों से तालमेल करके जनता को लूटवा रही हैैं, उसके अधिकारों पर हमले कर रही हैं, और उन्हें छीन रही हैं।

     हिंदुत्ववादी ताकतें पिछले 97 साल से हिंदू मुस्लिम एकता तोड़ने के काम में लगी हुई हैं। ये ताकतें आज भी जनता को लूटने के अभियान में लगी हुई हैं और भारतीय संविधान के आदर्शों को छोड़कर मनुवादी संस्कृति कायम करने में लगी हुई हैं। वर्तमान समय में भारत के बहुसंख्यक संप्रदाय का यह कर्तव्य और फर्ज बन जाता है कि सांप्रदायिक ताकतों के मंसूबों को परास्त करने के लिए, हिंदू मुस्लिम एकता जरूरी है और अल्पसंख्यकों और दलितों के हितों और अधिकारों की रक्षा करने का काम सिर्फ और सिर्फ बहुसंख्यक समुदाय का रह गया है।

     सरकार इस बारे में कोई मदद नहीं करेगी क्योंकि सरकार किसानों मजदूरों की नही है। केवल किसानों मजदूरों की सरकार ही और जनता और किसान मजदूर ही एकजुट होकर अल्पसंख्यकों को बचा सकते हैं, यह उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है और वर्तमान परिस्थितियों में बहुसंख्यक समुदाय की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी और फर्ज है कि वह अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करें। उनके खिलाफ शुरू की गई नई जहरीली और नफ़रत भरी मुहिम को तथ्यों के साथ, इतिहास का सहारा लेकर, पूर्ण शिकस्त दी जाए। इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।

     हिंदू-मुस्लिम एकता कायम बनाए रखने के लिए और अल्पसंख्यकों की रक्षा करने के लिए हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों द्वारा फैलाए जा रहे झूठे इतिहास और नफरत का मुकाबला करना पड़ेगा। इस विषय में इतिहास हमारी बहुत मदद कर सकता है भारत के इतिहास में हिंदू मुस्लिम एकता के और हिंदू मुस्लिम हीरे मोतियों के हजारों हजार किस्से और कहानियां मौजूद हैं। हमें अपने इतिहास को पढ़कर, हिंदू मुस्लिम हीरे मोती और एकता के और भारत के शहीदों और हजारों स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियां और  किस्से, उनकी एकजुट कहानियां और कार्यवाहियां निकालकर जगता के बीच में जाना होगा और जनता को इनसे अवगत कराना होगा।

      यहीं पर महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल और महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान को याद करना बहुत जरूरी है। फांसी के तख्ते पर चढ़ने से पहले इन दोनों महान क्रांतिकारियों ने भारत की जनता को एक संदेश दिया था, एक अपील की थी और उस अपील में और उस संदेश में इन दोनों महान क्रांतिकारियों ने कहा था कि “हमारे लिए सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि भारत की जनता जैसे भी हो आपस में हिंदू मुस्लिम एकता बनाए रखें।” क्रांतिकारियों के इस महान संदेश को लेकर हमें जनता के बीच जाना होगा और उन्हें इस संदेश के बारे में जानकारी देनी होगी। हमें यकीन है कि भारत की जनता इस संदेश को सुनकर हिंदू मुस्लिम एकता को कायम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी।

     यहां पर हमें एक बात और कहनी है,वह यह मुसलमानों का एक धड़ा मुस्लिम राष्ट्र की मांग को लेकर हिंसा, हत्या और आतंकवादी कार्यवाहियां करके हिंदुत्ववादी गिरोह की मदद करता रहता है। हमें जनता के बीच इनकी भी कड़ी आलोचना करनी होगी और उसे बताना होगा कि ये दोनों ताकतें एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ये हिंसा, हत्या और आतंक की कार्यवाहियां करके दूसरों की मदद करते हैं और जनता का ध्यान उसके बुनियादी संघर्ष से उसकी बुनियादी समस्याओं से हटाने में मदद करता है। हम सबको इनसे भी सचेत रहना होगा।

     इस काम के लिए हमें  जनता, किसानों और मजदूरों के बीच विचार गोष्ठी, भाषण, निबंध प्रतियोगिता, कविता, शायरी और सांस्कृतिक कार्यक्रम और भारत की जनता का “मुक्ति कार्यक्रम” हमारी बहुत मदद कर सकते हैं। हमें इस सामग्री के साथ जनता के बीच जाना चाहिए और हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों द्वारा फैलाई जा रहे ज़हर और नफरत का मुकाबला करना होगा। इनका मुकाबला करने के लिए हमें राष्ट्रीय स्तर पर, राज्य स्तर पर, जिला स्तर पर, शहर स्तर पर, गांव स्तर पर और मोहल्ला स्तर पर “भाईचारा कमेटियां” बनाकर, इनकी मुहिम को परास्त करना होगा और अल्पसंख्यकों की हिफाजत के लिए आगे आना होगा। आज की परिस्थितियों की यही सबसे बड़ी मांग है।

Exit mobile version