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लोकतंत्र में विपक्ष पर हावी न हो बहुमत?

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शशिकांत गुप्ते

चमत्कार है, रेकॉर्ड तोड़ चमत्कार है।चमत्कार को नमस्कार है।
सियासत में भी चमत्कार होने लगा है।
चुनाव में बहुमत प्राप्त कर सत्तारूढ़ होने का एक अनोखा मतलब प्रचारित किया जा रहा है।
बहुमत मिल गया मतलब सारी बुनियादी समस्याओं का मानो मतदाताओं ने समर्थन कर दिया।
क्या यही मापदंड जिन राज्यों में विपक्ष की सरकारें हैं उनपर भी लागू होगा? यदि इस मापदंड को सच मान लिया जाए तो विपक्ष की सरकारों पर आरोप करना व्यर्थ है।
बहुमत प्राप्त करने का मतलब यह भी हो सकता है कि सभी दूध के धुले हो गएं हैं?
इतना लिखकर आगे क्या लिखना यह सोच रहा था। सयोंग से एकदम सीतारामजी का आगमन हो गया।
सीतारामजी ने अपनी व्यंग्यकार की भाषा में मुझसे पूछा? रेकॉर्ड तोड़ शब्द को इतनी ऐहमीयत दे रहे हो तो, जरा निम्न मुद्दों का रेकॉर्ड भी याद कर लो।
कमरतोड़ महंगाई, रेकॉर्ड तोड़ बेरोजगारी, कुपोषण और भुखमरी का टूटता रेकॉर्ड आर्थिक मंदी को कागजों पर तेजी में बदलने का भी रेकॉर्ड तोड़ प्रयास हो रहा है।
सत्तर वर्ष की उपलब्धियों को नकारने के बाद भी बहुत से सरकारी संस्थान बेचने का आरोप भी रेकॉर्ड तोड़ है।
व्यवहारिक सवाल तो यह है कि,महंगाई पर काबू पाने में रेकॉर्ड कब बनाया जाएगा? किए गए वादों के अनुसार अभी तक आठ करोड़ बेरोजगारों के रोजगार उपलब्ध कराने का रेकॉर्ड कब बनाया जाएगा?
कृषकों को उपज का दोगुना मूल्य मिलने का रेकॉर्ड कब बनाया जाएगा?
देश में साम्प्रदायिक सद्भावना जागृत होने का रेकर्ड कब कायम होगा?
शिक्षा और चिकित्सा आमजन के हित में सरलता,सहजता से उपलब्ध होने का रेकॉर्ड कब बनेगा?
40℅ विरोधी मतों की ऐहमीयत को कब तक नजरअंदाज किया जाएगा?
बहुमत के दम्भ के आगे लोकतंत्र में विपक्ष की ऐहमीयत पर गम्भीर प्रश्न उपस्थित होना लाज़मी है?
उपर्युक्त मुद्दों पर देशव्यापी बहस अनिवार्य हो गई है।
एक महत्वपूर्ण बात याद रखना चाहिए। विकल्पहीन नहीं है दुनिया।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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