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ममता दीदी को अब विधान परिषद चाहिए; 51 साल पहले बंगाल में भंग हुई थी परिषद

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पश्चिम बंगाल में एक बार फिर विधान परिषद गठन की तैयारी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कैबिनेट ने इसकी मंजूरी भी दे दी है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद इस बिल को अब राज्यपाल के पास भेजा जाएगा। इसके बाद बिल को जरूरी मंजूरी के लिए विधानसभा में पारित करा के राज्य सरकार संसद की मंजूरी के लिए केंद्र को भेजेगी, लेकिन केंद्र और बंगाल सरकार के बीच जारी टकराव के बीच संसद से इस बिल को पास करवाना ममता के लिए बड़ी चुनौती होगी।

ममता सरकार विधान परिषद का गठन क्यों करना चाहती है? क्या बंगाल में पहली बार ऐसा हो रहा है? किसी राज्य में विधान परिषद कैसे बनाई जा सकती है? आइए जानते हैं…

ममता सरकार विधान परिषद का गठन क्यों करना चाहती है?

ममता बनर्जी ने अपने चुनावी मेनिफेस्टो में विधान परिषद गठन की बात कही थी। कहा जा रहा है कि ममता ने विधानसभा चुनाव के वक्त पार्टी के कई सीनियर नेताओं के टिकट काटे थे। उस वक्त उन्होंने इन नेताओं को विधान परिषद सदस्य बनाने का वादा किया था। इसके लिए भी ममता को विधान परिषद का गठन करना होगा।

देश में कब से शुरू हुई राज्य विधान परिषद की परंपरा?

भारत में दो सदनों वाले विधानमंडल का इतिहास काफी पुराना है। सबसे पहले 1919 में मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिफॉर्म्स ने राज्य विधान परिषद के गठन की नींव रखी। 1935 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत राज्यों में दो सदनों वाले विधानमंडल को मंजूरी मिली। 1937 में देश में पहली बार किसी राज्य में विधान परिषद का गठन हुआ। राज्य था, बंगाल।

आजादी के बाद संविधान निर्माताओं में विधान परिषद को लेकर मतभेद था। संविधान निर्माता इसे लेकर एक राय नहीं हो पा रहे थे। इसे देखते हुए ये प्रावधान किया गया कि शुरुआत में सिर्फ 6 राज्यों पश्चिम बंगाल, बिहार, यूनाइटेड प्रोविंस (अब उत्तर प्रदेश), पंजाब, मद्रास (अब तमिलनाडु) और बॉम्बे (अब महाराष्ट्र) में विधान परिषद होगी। इसके साथ ही राज्यों को ये विकल्प दिया गया कि वो अपनी विधान सभा में एक प्रस्ताव पारित करके नया विधान परिषद बना सकते हैं। और चाहें तो मौजूदा विधान परिषद को समाप्त भी कर सकते हैं।

बंगाल में विधान परिषद थी तो इसे खत्म कब और क्यों कर दिया गया?

1969 तक पश्चिम बंगाल में विधानसभा और विधान परिषद दोनों सदन थे, लेकिन 1967 में विधान परिषद में हुई एक घटना इस सदन को समाप्त किए जाने की वजह बन गई। दरअसल, 1967 में राज्य विधानसभा चुनाव हुए। राज्य में पहली बार कांग्रेस को हार मिली और 14 पार्टियों का गठबंधन यूनाइटेड फ्रंट सत्ता में आया, लेकिन महज आठ महीने बाद ही राज्यपाल धर्मवीर ने अजय मुखर्जी सरकार को बर्खास्त कर दिया।

निर्दलीय विधायक प्रफुल्ल चंद्र घोष कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बने। इसके बाद पश्चिम बंगाल के दोनों सदनों में अलग तरह के सीन देखने को मिले। विधानसभा में जहां स्पीकर ने राज्यपाल के कदम को असंवैधानिक करार दिया। वहीं, कांग्रेस के प्रभाव वाली विधान परिषद ने घोष सरकार में विश्वास दिखाते हुए एक प्रस्ताव पारित कर दिया। हालांकि महज 90 दिन में घोष सरकार गिर गई। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा।

नए सिरे से चुनाव होने के बाद 1969 में यूनाइटेड फ्रंट सरकार फिर से सत्ता में आई। अपने चुनावी घोषणा पत्र में इस फ्रंट ने विधान परिषद को खत्म करने की बात शामिल की थी। लिहाजा यूनाइटेड फ्रंट सरकार ने विधान परिषद को खत्म करने का बिल विधानसभा में दो तिहाई बहुमत से पास करा लिया।

राज्य विधानसभा में बिल पास होने के चार महीने बाद संसद के दोनों सदनों से भी इसे पास कर दिया गया। इसके साथ ही बंगाल में विधान परिषद खत्म हो गई। अब 51 साल बाद एक बार फिर ममता बनर्जी बंगाल में विधान परिषद के गठन की कोशिशों में जुटी हैं।

विधानसभा चुनाव हारीं ममता क्या विधान परिषद का सदस्य बनकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बनी रहना चाहती हैं?

ममता बनर्जी ने 5 मई को ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। उन्हें छह महीने के भीतर सदन का सदस्य बनना होगा। ऐसे में जरूरी नहीं है कि इस दौरान विधान परिषद बनने की प्रक्रिया पूरी हो जाए और सदन के सदस्यों का चुनाव भी हो जाए।

राज्य विधानसभा से विधान परिषद बनाए जाने का बिल पास होने के बाद इसे संसद से पास करना होता है। यहीं, आकर कई बार पेंच फंस जाता है। असम की विधानसभा ने 2010 में और राजस्थान विधानसभा ने 2012 में राज्य में विधान परिषद बनाए जाने का बिल पास किया, लेकिन दोनों राज्यों का ये बिल अभी भी राज्यसभा में लटका हुआ है।

ममता को भी इसका अहसास है, इसलिए बंगाल विधानसभा चुनाव में नंदीग्राम सीट से चुनाव हारने वाली ममता के लिए सीट खाली हो गई है। भवानीपुर सीट से चुनाव जीतने वाले तृणमूल विधायक शोभन देव चटर्जी ने इस्तीफा दे दिया है। अब ममता यहां से चुनाव लड़ सकती हैं, क्योंकि ये उनकी पारंपरिक सीट रही है।

और कौन से राज्य हैं जहां विधान परिषद बनाई या खत्म की गई?

1986 में तमिलनाडु की AIADMK सरकार ने राज्य विधान परिषद को खत्म कर दिया। तब से इसे फिर से गठित करने को लेकर राजनीति होती रही है। DMK कई बार राज्य विधान परिषद के गठन की कोशिश कर चुकी है। वहीं, AIADMK इसका विरोध करती रही है। हाल ही में खत्म हुए विधानसभा चुनाव में DMK ने फिर से विधान परिषद के गठन का वादा किया था।

इसी तरह आंध्र प्रदेश में 1958 में पहली बार विधान परिषद का गठन हुआ। 1985 में एनटी रामाराव की TDP सरकार ने इसे खत्म कर दिया। 2007 में कांग्रेस ने एक बार फिर राज्य विधान परिषद का गठन किया। फिलहाल इसे खत्म करने का आंध्र प्रदेश विधानसभा का प्रस्ताव अभी तक संसद में पेश नहीं किया जा सका है।

जम्मू कश्मीर में 1957 में राज्य विधान परिषद का गठन हुआ। 2019 में जम्मू-कश्मीर राज्य को दो अलग केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में बदल दिया गया। इसके साथ ही राज्य विधान परिषद भी खत्म हो गई।

अभी देश में कहां-कहां विधान परिषद है?

इस वक्त देश के छह राज्यों में विधान परिषद हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में दो सदनों वाली व्यवस्था है। इन छह राज्यों में से तीन राज्यों के मुख्यमंत्री विधान परिषद के सदस्य हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश में तो योगी आदित्यनाथ से पहले मुख्यमंत्री रहे अखिलेश यादव और मायावती भी विधान परिषद के सदस्य थे। नीतीश कुमार भी जब से बिहार के मुख्यमंत्री बने हैं, वो विधान परिषद के ही सदस्य रहे हैं।

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