बिहार की राजधानी पटना में आज एक बड़ी राजनीतिक घटना हो रही है। बीजेपी विरोधी विपक्षी पार्टियों की बैठक में राहुल से लेकर ममता तक, केजरीवाल से लेकर अखिलेश तक; विपक्ष के टॉप लीडर्स शिरकत कर रहे हैं। एजेंडा एक ही है- 2024 के चुनाव में एकजुट होकर बीजेपी को हराना।
सुगबुगाहट है कि 450 सीटों पर विपक्ष ‘वन इज टु वन’ फॉर्मूले से बीजेपी को चुनौती देगा। यानी बीजेपी कैंडिडेट के खिलाफ विपक्ष की ओर से सिर्फ एक कैंडिडेट उतारा जाएगा। हालांकि इस फॉर्मूले की सबसे बड़ी चुनौती है सीटों का बंटवारा, यानी कितनी सीटों पर किस पार्टी का कैंडिडेट लड़ेगा।
विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ ‘वन इज टु वन’ फाॅर्मूले के तहत उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं। दरअसल, जब किसी मजबूत पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ बाकी सभी विपक्षी दल मिलकर अपना सिर्फ एक उम्मीदवार उतारते हैं तो इसे ‘वन इज टु वन’ का फॉर्मूला कहा जाता है।
बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी का फॉर्मूला
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 13 मई को कांग्रेस की जीत के दो दिन बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक प्रपोजल दिया था। उन्होंने कहा कि हम उन राज्यों में कांग्रेस का समर्थन करेंगे जहां पर उसकी जड़ें मजबूत हैं। इसके बदले में कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों को उनके गढ़ में समर्थन देना चाहिए।
ममता ने पारस्परिक गठबंधन की शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि यह नहीं हो सकता कि हम यानी तृणमूल कर्नाटक में आपको समर्थन दें और आप बंगाल में तृणमूल के खिलाफ लड़ें। अगर आप कुछ अच्छा हासिल करना चाहते हैं तो आपको कुछ क्षेत्रों में त्याग करना पड़ेगा।
ममता के पास अन्य राज्यों और पार्टियों के लिए भी प्रपोजल है। ममता पश्चिम बंगाल में बीजेपी को कमजोर करने के लिए बिना शर्त समर्थन हासिल करना चाहती हैं। साथ ही वह कहती हैं कि यूपी में अखिलेश यादव की सपा मजबूत है। इसलिए हमें यूपी में सपा का समर्थन करना चाहिए।
ममता का प्रपोजल यहां उन सीटों से है जिन पर 2019 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी और जिन पर वह बीजेपी के मुकाबले दूसरे नंबर पर थी।
ममता के फॉर्मूले से कांग्रेस को 227 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी
ममता का मानना है कि कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात सहित देश भर की लगभग 200 लोकसभा सीटों पर मजबूत है। इन 200 लोकसभा सीटों में से 91 सिर्फ राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात में हैं।
अगर विपक्षी एकता के लिए ममता का फॉर्मूला लागू किया जाता है तो कांग्रेस को 227 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी। ये वे सीटें हैं, जिन पर 2019 में कांग्रेस ने या तो जीत दर्ज की थी या वो बीजेपी के मुकाबले दूसरे नंबर पर रही।
इसके अलावा 34 सीटें ऐसी हैं जहां पर क्षेत्रीय पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही। माना जा रहा है कि ममता इनमें से भी कुछ सीटें कांग्रेस को देने को तैयार हो सकती हैं।
इस फॉर्मूले से तो पश्चिम बंगाल, यूपी और बिहार में किनारे हो जाएगी कांग्रेस
पश्चिम बंगाल : राज्य में लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं। 2019 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस और लेफ्ट ने मिलकर लड़ा। सिर्फ तीन सीटों को छोड़कर यह चुनाव तृणमूल बनाम बीजेपी हो गया था। इन तीन सीटों में से भी कांग्रेस 2 ही जीत पाई और उसका कुल वोट शेयर भी घटकर 4.76% हो गया। यानी ममता फॉर्मूले के हिसाब से कांग्रेस को यहां भी सिर्फ 2 सीटें मिलेंगी।
यूपी: यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 67 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन जीत सिर्फ सोनिया गांधी की सीट रायबरेली पर मिली थी। वहीं तीन सीटों पर पार्टी दूसरे नंबर पर थी। यानी ममता के फॉर्मूले के हिसाब से कांग्रेस को यूपी में सिर्फ 4 सीटें मिलेंगी।
बिहार : बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। वर्तमान में बिहार में कांग्रेस, जदयू और राजद तीनों महागठबंधन का हिस्सा हैं। कांग्रेस ने 2019 में 9 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत मिली सिर्फ एक पर। साथ ही दो सीटों पर बीजेपी के मुकाबले नंबर दो पर रही। यानी कांग्रेस को यहां भी 3 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी।
विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस अभी कितनी सीटें कुर्बान करने को तैयार है?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने कहा कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन होने की स्थिति में 350 सीट से कम पर चुनाव नहीं लड़ेगी। देश में लोकसभा की कुल 543 सीट है। कांग्रेस ने 2019 में 421 सीटों पर चुनाव लड़ा था। ऐसे में वह विपक्षी सहयोगियों के लिए 193 सीटें छोड़ने को तैयार है।
राहुल ने भी अमेरिका दौरे के दौरान कहा था कि विपक्षी एकता के लिए कुछ गिव एंड टेक करने होंगे। कांग्रेस ने नीतीश कुमार को भी इस बारे में जानकारी दे दी है। माना जा रहा है कि तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सीटों पर अंतिम फैसला लेगी। यहां पर कांग्रेस की जीत और हार का असर सीटों पर भी पड़ेगा।
अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस पार्टी ममता बनर्जी के फॉर्मूले पर राजी होगी?
पहला सिनैरियाः कांग्रेस राजी हो सकती है
- 2019 के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि कांग्रेस इतिहास में अब तक की सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है। हालांकि वास्तविकता यह थी कि कांग्रेस ने 2004 में इससे भी कम सीटों पर चुनाव लड़ा था, जो 400 थी। इससे साफ है कि कांग्रेस ने 2004 के बाद से लोकसभा सीटों को लेकर लचीला रुख दिखाया है। यानी कांग्रेस ममता फाॅर्मूले को मान सकती है।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 19.4% हो गया था। यदि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अपने वोट शेयर को गिरने से रोकना चाहती है तो उसे उन सीटों पर चुनाव लड़ना होगा, जहां न केवल उसके जीतने की बल्कि तीसरे या चौथे स्थान पर आने की संभावना है। इससे पार्टी को अपना वोट शेयर बढ़ाने में मदद मिलेगी।
दूसरा सिनैरियोः ममता फॉर्मूले पर कांग्रेस का इनकार
- यदि कांग्रेस बहुत अधिक सीटों का त्याग करती है तो बीजेपी को कांग्रेस के खिलाफ निगेटिव अभियान चलाने का बहाना मिलेगा। इससे बीजेपी दावा करेगी कि वह कांग्रेस को चुनावी रूप से कमजोर करने में सफल रही।
- वहीं लोकसभा में कम सीटों पर चुनाव लड़ने से क्षेत्रीय क्षत्रपों का पलड़ा भारी हो गया यानी उन लोगों ने ज्यादा सीटें जीत लीं। ऐसे में क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को प्रधानमंत्री पद की रेस से बाहर रखने के लिए एकजुट हो सकती हैं। यदि उस वक्त कांग्रेस उनकी बात नहीं मानेगी तो उसके राष्ट्रीय हित को लेकर सवाल उठाया जाएगा।