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*मनुष्य एक ट्रेंबलिंग, एक कंपन*

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           ~ पुष्पा गुप्ता 

किर्केगार्ड ने मनुष्य को कहा है, ए ट्रेंबलिंग, एक कंपन। पूरे समय- जन्म से लेकर मृत्यु तक–एक कंपन, जहाँ सब कंप रहा है, जहाँ सब भूकंप है। जहाँ भीतर कोई थिरता नहीं, कोई दृढ़ता नहीं। जो हम बाहर से चेहरे बनाए हुए हैं, वे झूठे हैं।

        हमारे बाहर के चेहरे ऐसे लगते हैं, बड़े अकंप हैं। सचाई वैसी नहीं है; भीतर सब कँपता हुआ है। बहादुर से बहादुर आदमी भीतर भय से कँप रहा है। बहादुर से बहादुर आदमी भीतर भय से कँप रहा है।

        स्टैलिन। नाम ही उसको स्टैलिन इसलिए दिया- मैन आफ स्टील, लौहपुरुष। नाम नहीं है उसका असली वह, दिया हुआ नाम है– लौहपुरुष, स्टैलिन, स्टील का आदमी। लेकिन ख्रुश्चेव ने अभी संस्मरण लिखे हैं। तो उसमें लिखा है कि वह इतना भयभीत आदमी था, जिसका कोई हिसाब नहीं। और एक दिन तो ख्रुश्चेव से उसने कहा कि अब तक तो मैं दूसरों से डरता था, अब तो मैं अपने से भी डरने लगा हूँ। डर भारी था।

स्टैलिन कभी भी भोजन नहीं कर सकता था सीधा, जब तक कि दो-चार को खिलाकर न देख ले। अपनी लड़की पर भी भरोसा नहीं था, कि जो खाना बना है, उसमें जहर तो नहीं है! ख्रुश्चेव ने लिखा है, हम सब को उसका भोजन पहले चखना पड़ता था। हम भी कँपते हुए चखते थे कि जिससे स्टैलिन घबड़ा रहा है, लौहपुरुष, वह हमको चखना पड़ रहा है! लेकिन मजबूरी थी। पहले चार को भोजन करवा लेता सामने बिठाकर। जब देख लेता कि चारों जिंदा हैं, तब भोजन करता। भोजन करना भी निश्चिंतता न रही।

       घर से बाहर नहीं जाता था। समझा तो यह जाता है कि उसने एक डबल आदमी रख छोड़ा था, अपनी शकल का एक आदमी और रख छोड़ा था, जो सामूहिक जलसों में सम्मिलित होता था। हिटलर ने भी एक डबल रख छोड़ा था। सामूहिक जलसे में कहाँ- कब गोली लग जाएगी!

       सब इंतजाम है, फिर भी डर है। इंतजाम भारी था। स्टैलिन और हिटलर के पास जैसा इंतजाम था, ऐसा पृथ्वी पर किसी आदमी के पास कभी नहीं रहा। एक-एक आदमी की तलाशी ले ली जाती थी। हजारों सैनिकों के बीच में थे। सब तरह का इंतजाम था। लेकिन फिर भी आखिरी इंतजाम यह था कि जो आदमी सलामी ले रहा है जनता की, वह असली स्टैलिन नहीं है।

       वह एक नकली अभिनेता है, जो स्टैलिन का काम कर रहा है। स्टैलिन तो अपने घर में बैठा हुआ देख रहा है, खबर सुन रहा है कि क्या हो रहा है।

कैसी विडंबना है कि स्टैलिन और हिटलर जैसे आदमी इसी यश को पाने के लिए इतना श्रम करते हैं! और फिर कोई अभिनेता नमस्कार लेता है जाकर। पत्नी को भी कमरे में सुला नहीं सकते। क्योंकि रात कब गरदन दबा देगी, कुछ पता नहीं।

      खूब स्टील के आदमी हैं! तो घास-फूस का आदमी कैसा होता है? भूसे से भरा आदमी कैसा होता है? और अगर स्टैलिन इतने भूसे से भरे हैं, तो हमारी क्या हालत होगी? हम तो स्टैलिन नहीं हैं, हम तो स्टील के आदमी नहीं हैं। स्टील के आदमी की यह हालत हो, तो हमारी क्या हालत होगी?

      नहीं, एक चेहरा, एक मास्क, एक मुखौटा है, जो ऊपर से बिलकुल थिर है। भीतर असली चेहरा पूरे वक्त कँप रहा है। वहाँ कंपन ही चल रहा है। वहाँ बहादुर से बहादुर आदमी भीतर भयभीत है। वहाँ तथाकथित ज्ञानी से ज्ञानी, भीतर गहरे में अज्ञान से कँप रहा है।

यहाँ वह कह रहा है कि मुझे पता है, ब्रह्म है। और वहाँ भीतर वह जान रहा है, मुझे कुछ भी पता नहीं। यह भी पता नहीं है कि मैं भी हूँ। बाहर वह दिखला रहा है अधिकार, कि मुझे मालूम है। भीतर उसे कुछ भी मालूम नहीं है। भीतर अज्ञान खाए जा रहा है। बाहर से वह कह रहा है, आत्मा अमर है। और भीतर मौत मुँह बाए मालूम पड़ती है।

     ऐसी जो हमारी बुद्धि है, जो दृढ़ नहीं है। लेकिन दृढ़ का क्या मतलब है? फिर वही कठिनाई है शब्दों की। दृढ़ का क्या मतलब है? जिसको हम दृढ़ आदमी कहते हैं, क्या उसके भीतर कंपन नहीं होता? असल में जितनी दृढ़ता आदमी बाहर से दिखाता है, उतना ही भीतर कंपित होता है। असल में दृढ़ता जो है, वह सेफ्टी मेजर है, वह भीतर के कंपन को झुठलाने के लिए आयोजन है।

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